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व्यक्ति विशेष

भाग – 275.

साहित्यकार श्रीनारायण चतुर्वेदी

श्रीनारायण चतुर्वेदी हिंदी साहित्य के एक प्रमुख साहित्यकार, पत्रकार, और भाषाविद थे. वे विशेष रूप से अपनी आलोचना, निबंध और भाषा-साहित्य के क्षेत्र में किए गए महत्वपूर्ण योगदानों के लिए जाने जाते हैं. श्रीनारायण चतुर्वेदी ने हिंदी भाषा के विकास और उसे साहित्यिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

श्रीनारायण चतुर्वेदी का जन्म 1896 में हुआ था और वे स्वतंत्रता संग्राम के समय के सक्रिय व्यक्तित्वों में से एक थे. वे भारतीय साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में भी समर्पित थे. श्रीनारायण चतुर्वेदी ने साहित्य के माध्यम से भारतीय संस्कृति, भाषा और साहित्य को समृद्ध किया और उन्हें हिंदी पत्रकारिता में एक विशेष स्थान प्राप्त है.

इसके साथ ही वे कई हिंदी पत्रिकाओं और समाचार पत्रों के साथ जुड़े हुए थे और उन्होंने भाषा और साहित्य से जुड़े मुद्दों पर गंभीरता से लेखन किया. उनके लेखन में भारतीय समाज, संस्कृति और साहित्य का गहरा प्रभाव देखने को मिलता है. उनकी लेखनी ने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी और वे अपने जीवनकाल में कई प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित हुए.

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पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी रामहरख सिंह सहगल

रामहरख सिंह सहगल एक प्रतिष्ठित पत्रकार, लेखक, और स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने भारत की आजादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया. वे अपने लेखन और पत्रकारिता के माध्यम से ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाने वाले प्रमुख व्यक्तित्वों में से एक थे. सहगल ने पत्रकारिता को एक साधन के रूप में इस्तेमाल किया, जिससे स्वतंत्रता संग्राम के संदेश को जन-जन तक पहुँचाया जा सके.

रामहरख सिंह सहगल का जन्म 28 सितम्बर, 1896 ई. को लाहौर के निकट एक गांव में हुआ था. उन्होंने पत्रकार का जीवन की शुरुआत वर्ष 1923 ई. में इलाहाबाद से ‘चांद’ मासिक पत्रिका प्रकाशित करने के साथ शुरू किया. वर्ष 1927 में ‘भविष्य’, वर्ष 1937 में ‘कर्मयोगी’ और वर्ष 1940 में ‘गुलदस्ता’ अंक निकाला. उन्होंने अपने प्रकाशित ‘चांद’ अंक को जनचेतना और नारी-जागरण का माध्यम बना दिया.

उनकी पत्रकारिता न केवल राजनीतिक जागरूकता फैलाने में सहायक थी, बल्कि समाज सुधार और राष्ट्रीय एकता की भावना को भी बल देने वाली थी. स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी सक्रियता और उनके लेखों ने उन्हें ब्रिटिश शासन की नजरों में खलनायक बना दिया, और उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा.

रामहरख सिंह सहगल का निधन 1 फरवरी, 1952 को हुआ था. रामहरख सिंह सहगल का योगदान स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ हिंदी पत्रकारिता के विकास में भी महत्वपूर्ण रहा. वे समाज में सुधार लाने और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को जन-जन तक पहुँचाने के लिए समर्पित थे.

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अमर शहीद भगत सिंह

अमर शहीद भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रसिद्ध क्रांतिकारियों में से एक थे. उनका जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के बंगा गांव (अब पाकिस्तान में) में हुआ था. भगत सिंह का नाम आज भी भारत में क्रांति और स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीक के रूप में लिया जाता है. वे देशभक्ति, साहस, और त्याग की प्रतिमूर्ति थे.

भगत सिंह का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था, जो खुद स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से शामिल था. उनके पिता और चाचा स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल थे, जिससे भगत सिंह को छोटी उम्र से ही देशभक्ति की प्रेरणा मिली. जलियांवाला बाग नरसंहार (1919) ने भगत सिंह के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला और यहीं से उनके अंदर ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ आक्रोश और विद्रोह की भावना ने जन्म लिया.

भगत सिंह ने शुरुआत में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया, लेकिन बाद में अहिंसक आंदोलन से निराश होकर क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए. वे “हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” (HSRA) के प्रमुख सदस्य बने, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ क्रांति लाने की कोशिश कर रहे थे.

भगत सिंह और उनके साथियों ने 1928 में ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या की योजना बनाई थी, जिसका उद्देश्य लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेना था, जो साईमन कमीशन के विरोध के दौरान ब्रिटिश पुलिस की लाठीचार्ज में गंभीर रूप से घायल हुए थे. सॉन्डर्स की हत्या के बाद भगत सिंह को देशभर में एक क्रांतिकारी हीरो के रूप में देखा गया.

8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने ब्रिटिश असेंबली में “बहरों को सुनाने के लिए” बम फेंका. उनका उद्देश्य किसी को चोट पहुँचाना नहीं था, बल्कि ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जनता में जागरूकता फैलाना था. इस घटना के बाद भगत सिंह और दत्त ने खुद को गिरफ्तार कर लिया, ताकि वे अपने विचारों और क्रांति की आवश्यकता को जनता तक पहुँचा सकें.

भगत सिंह को लाहौर षड्यंत्र केस में सजा-ए-मौत सुनाई गई. 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई. उनकी शहादत के बाद वे भारत में अमर हो गए और उनके बलिदान ने लाखों भारतीयों को स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित किया.

भगत सिंह केवल एक क्रांतिकारी नहीं थे, बल्कि एक विचारक और लेखक भी थे. उन्होंने समाजवाद और साम्यवाद के सिद्धांतों का अध्ययन किया और वे मानते थे कि असली आजादी तभी आएगी, जब शोषण का अंत होगा. भगत सिंह नास्तिक थे और वे धार्मिक कट्टरता के खिलाफ थे, वे एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के समर्थक थे, जहां सभी को समान अधिकार मिले. भगत सिंह आज भी भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं. उनकी क्रांतिकारी भावना, साहस, और बलिदान की कहानियाँ आज भी पूरे भारत में गूँजती हैं.

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पार्श्वगायिका लता मंगेशकर

लता मंगेशकर भारतीय सिनेमा की सबसे महान पार्श्वगायिकाओं में से एक थीं, जिन्हें “सुर सम्राज्ञी” और “भारत की कोकिला” के नाम से भी जाना जाता है. उनका जन्म 28 सितंबर 1929 को इंदौर, मध्य प्रदेश में हुआ था. लता मंगेशकर ने अपने संगीत कैरियर में हजारों गीत गाए और वे भारतीय फिल्म संगीत का एक अविभाज्य हिस्सा बन गईं. उनकी अद्वितीय आवाज़ और संगीत में गहराई के कारण उन्हें भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक विशेष स्थान प्राप्त है.

लता मंगेशकर का जन्म एक संगीत परिवार में हुआ था. उनके पिता, दीनानाथ मंगेशकर, एक प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक और रंगमंच कलाकार थे. लता ने छोटी उम्र में ही अपने पिता से संगीत सीखना शुरू किया. उनके पिता की अचानक मृत्यु के बाद, परिवार के भरण-पोषण के लिए लता ने बहुत कम उम्र में फिल्मों में गायन और अभिनय शुरू किया.

लता मंगेशकर का पहला बड़ा ब्रेक वर्ष 1949 में फिल्म “महल” के गीत “आएगा आनेवाला” से मिला, जिसे आज भी एक ऐतिहासिक गीत माना जाता है. इसके बाद लता ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपने कैरियर में विभिन्न भाषाओं में 25,000 से अधिक गीत गाए. हिंदी के अलावा, उन्होंने मराठी, बंगाली, गुजराती, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और अन्य कई भाषाओं में भी गाने गाए. उनकी आवाज़ में हर भाव और हर मूड को सहजता से व्यक्त करने की अद्भुत क्षमता थी, चाहे वह रोमांटिक गाने हों, भक्ति गीत, देशभक्ति गीत या शास्त्रीय संगीत पर आधारित गीत.

लता मंगेशकर ने भारतीय सिनेमा के लगभग सभी प्रमुख संगीतकारों के साथ काम किया, जिनमें सचिन देव बर्मन, शंकर-जयकिशन, नौशाद, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, राहुल देव बर्मन आदि शामिल हैं. उनकी आवाज़ ने कई अभिनेत्रियों को पर्दे पर अमर कर दिया, और वे सभी उम्र के दर्शकों और श्रोताओं के दिलों में बस गईं.

प्रमुख गाने : –

“लग जा गले” (वो कौन थी, 1964),

“प्यार किया तो डरना क्या” (मुगल-ए-आज़म, 1960),

“ऐ मेरे वतन के लोगों” (1963, देशभक्ति गीत),

“तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा” (आंधी, 1975),

“सत्यम शिवम सुंदरम” (सत्यम शिवम सुंदरम, 1978).

लता मंगेशकर को भारतीय संगीत और सिनेमा में उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए. उन्हें भारतरत्न (2001), पद्म भूषण (1969), पद्म विभूषण (1999) और दादा साहब फाल्के पुरस्कार (1989) से सम्मानित किया गया. इसके अलावा, उन्होंने कई फिल्मफेयर और राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी जीते.

लता मंगेशकर एक सरल और सादगी भरा जीवन जीती थीं. संगीत के प्रति उनका समर्पण और योगदान उन्हें विश्व भर में एक सम्मानित स्थान दिलाता है. उनका नाम भारतीय संगीत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है. 6 फरवरी 2022 को लता मंगेशकर का निधन हो गया, लेकिन उनकी आवाज़ और उनके गीत अनंत काल तक गूंजते रहेंगे. उनका संगीत भारतीय सिनेमा और संगीत प्रेमियों के दिलों में अमर रहेगा.

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निशानेबाज़ अभिनव बिन्द्रा

अभिनव बिंद्रा भारत के सबसे सफल और सम्मानित निशानेबाजों में से एक हैं. वे ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले और एकमात्र भारतीय निशानेबाज हैं, जिन्होंने व्यक्तिगत स्पर्धा में यह गौरव प्राप्त किया. उनका जन्म 28 सितंबर 1982 को देहरादून, उत्तराखंड में हुआ था. बिंद्रा ने अपने कैरियर में निशानेबाजी में कई उपलब्धियाँ हासिल कीं और भारतीय खेल जगत में अपनी खास जगह बनाई.

अभिनव बिंद्रा का जन्म एक संपन्न पंजाबी परिवार में हुआ था. उनके माता-पिता ने उन्हें छोटी उम्र में ही निशानेबाजी के प्रति प्रोत्साहित किया. बिंद्रा की शिक्षा दून स्कूल (देहरादून) और स्टीफ़न कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) से हुई. उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि मजबूत थी, जिससे उन्हें शुरुआती दिनों में खेल में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए सभी सुविधाएं मिलीं. उन्हें बचपन से ही निशानेबाजी के प्रति लगाव था, और उनके माता-पिता ने उनके इस जुनून को पूरा समर्थन दिया.

अभिनव बिंद्रा ने अपने कैरियर की शुरुआत बहुत ही कम उम्र में की थी. 15 साल की उम्र में, उन्होंने 1998 में कॉमनवेल्थ गेम्स में हिस्सा लिया और 2000 में सिडनी ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया. इसके बाद, उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारत के लिए पदक जीते.

बिंद्रा का सबसे बड़ा और ऐतिहासिक क्षण 2008 बीजिंग ओलंपिक में आया, जब उन्होंने 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता. यह भारत के लिए एक ऐतिहासिक जीत थी, क्योंकि इससे पहले किसी भी भारतीय ने व्यक्तिगत स्पर्धा में ओलंपिक स्वर्ण पदक नहीं जीता था. इस जीत ने उन्हें देशभर में एक नायक बना दिया और भारत में निशानेबाजी के खेल को एक नई पहचान दी.

प्रमुख उपलब्धियाँ : –

बीजिंग ओलंपिक (2008): 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में स्वर्ण पदक.

कॉमनवेल्थ गेम्स: कई पदक, जिसमें व्यक्तिगत और टीम स्पर्धाओं में स्वर्ण, रजत और कांस्य शामिल हैं.

एशियाई खेल: कई अंतरराष्ट्रीय पदक.

विश्व चैंपियनशिप (2006): 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में स्वर्ण पदक, जिससे वे विश्व चैंपियन बने.

अभिनव बिंद्रा को उनके योगदान और उपलब्धियों के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. उन्हें भारत सरकार ने अर्जुन पुरस्कार और राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया. इसके अलावा, उन्हें 2011 में पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया, जो भारत का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है.

निशानेबाजी से संन्यास लेने के बाद भी, अभिनव बिंद्रा भारतीय खेल जगत में सक्रिय रहे. उन्होंने अपने अनुभवों और कौशल को भारतीय युवा खिलाड़ियों के साथ साझा करने का निर्णय लिया. बिंद्रा ने अपने कैरियर के बाद अभिनव बिंद्रा फाउंडेशन की स्थापना की, जो भारतीय एथलीटों को उच्च-स्तरीय प्रशिक्षण और समर्थन प्रदान करता है.

इसके अलावा, उन्होंने अपनी आत्मकथा “A Shot at History: My Obsessive Journey to Olympic Gold” भी लिखी, जिसमें उन्होंने अपने जीवन के संघर्ष और ओलंपिक स्वर्ण जीतने के सफर के बारे में विस्तार से बताया है.

अभिनव बिंद्रा ने भारतीय खेल जगत को प्रेरित किया है और निशानेबाजी के क्षेत्र में एक नई दिशा प्रदान की है. उनकी उपलब्धियों ने न केवल निशानेबाजी में बल्कि अन्य खेलों में भी युवाओं को प्रेरित किया है. उनकी मेहनत, दृढ़ संकल्प और अनुशासन उन्हें एक असाधारण खिलाड़ी के रूप में स्थापित करता है, और वे भारत के महानतम एथलीटों में से एक माने जाते हैं.

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अभिनेता रणबीर कपूर

रणबीर कपूर भारतीय सिनेमा के सबसे लोकप्रिय और प्रतिभाशाली अभिनेताओं में से एक हैं. उनका जन्म 28 सितंबर 1982 को मुंबई में हुआ था. वे भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के प्रतिष्ठित कपूर परिवार से आते हैं, जो बॉलीवुड के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित परिवारों में से एक है. रणबीर, अभिनेता ऋषि कपूर और अभिनेत्री नीतू सिंह के बेटे हैं, और महान अभिनेता-निर्देशक राज कपूर के पोते हैं.

रणबीर कपूर का शुरुआती जीवन सिनेमा से जुड़ा रहा. बचपन से ही उनका फिल्मों की ओर झुकाव था. उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा बॉम्बे स्कॉटिश स्कूल से पूरी की और इसके बाद ली स्ट्रैसबर्ग थिएटर एंड फिल्म इंस्टीट्यूट, न्यूयॉर्क से अभिनय का प्रशिक्षण प्राप्त किया. रणबीर ने फिल्म निर्माण और अभिनय दोनों की पढ़ाई की, जिससे वे सिनेमा के तकनीकी और रचनात्मक पहलुओं को समझ सकें.

रणबीर कपूर ने 2007 में संजय लीला भंसाली की फिल्म “सांवरिया” से बॉलीवुड में कदम रखा. हालांकि यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर असफल रही, लेकिन रणबीर के अभिनय को काफी सराहा गया और उन्हें सर्वश्रेष्ठ नवोदित अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला.

फ़िल्में: – 

वेक अप सिड (2009): – एक युवा लड़के की कहानी, जो अपने जीवन के उद्देश्य की तलाश में है। इस फिल्म में रणबीर के अभिनय को खूब सराहा गया.

अजब प्रेम की गजब कहानी (2009): – इस रोमांटिक कॉमेडी में उनके अभिनय और कैटरीना कैफ के साथ उनकी जोड़ी को पसंद किया गया.

रॉकेट सिंह – सेल्समैन ऑफ द ईयर (2009): – इसमें रणबीर ने एक साधारण सेल्समैन की भूमिका निभाई, और उनका अभिनय बेहद प्रभावशाली था.

राजनीति (2010): – एक राजनीतिक थ्रिलर, जिसमें उन्होंने गंभीर और जटिल किरदार निभाया और अपनी अभिनय क्षमता को साबित किया.

रॉकस्टार (2011): – यह रणबीर के करियर की सबसे महत्वपूर्ण फिल्मों में से एक है. इम्तियाज अली द्वारा निर्देशित इस फिल्म में उन्होंने एक संघर्षशील संगीतकार का किरदार निभाया, जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला.

बर्फी! (2012): – इस फिल्म में उन्होंने एक गूंगे और बहरे व्यक्ति की भूमिका निभाई. उनके संवेदनशील अभिनय को व्यापक सराहना मिली और उन्होंने एक बार फिर फिल्मफेयर पुरस्कार जीता.

ये जवानी है दीवानी (2013): – यह रोमांटिक ड्रामा रणबीर के कैरियर की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से एक रही, जिसमें उनकी और दीपिका पादुकोण की जोड़ी को खूब पसंद किया गया.

तमाशा (2015): – इसमें उन्होंने एक भावुक और उलझन में फंसे युवक की भूमिका निभाई, और उनके अभिनय को इम्तियाज अली के निर्देशन के तहत खूब सराहा गया.

संजू (2018): – संजय दत्त की बायोपिक में रणबीर ने संजय दत्त का किरदार निभाया. इस फिल्म में उनके अभिनय ने दर्शकों और आलोचकों को प्रभावित किया, और उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला.

रणबीर कपूर को अपने कैरियर में कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें कई फिल्मफेयर पुरस्कार शामिल हैं. वे अपनी अभिनय की गहराई और अलग-अलग किरदारों को निभाने की क्षमता के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने हर फिल्म में खुद को नए तरीके से प्रस्तुत किया है, जिससे वे बॉलीवुड के सबसे बहुमुखी अभिनेताओं में से एक माने जाते हैं.

रणबीर कपूर का निजी जीवन हमेशा चर्चा में रहा है. उन्होंने बॉलीवुड की कई प्रमुख अभिनेत्रियों के साथ रिश्तों को लेकर सुर्खियां बटोरीं, जिनमें दीपिका पादुकोण और कैटरीना कैफ प्रमुख हैं. वर्ष 2022 में, रणबीर ने अभिनेत्री आलिया भट्ट से शादी की. दोनों ने एक साथ फिल्म “ब्रह्मास्त्र” में काम किया, जो वर्ष 2022 में रिलीज़ हुई थी.

रणबीर कपूर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे बॉलीवुड में एक परंपरागत “स्टार” की छवि से अलग, एक ऐसे अभिनेता के रूप में उभरे हैं जो अपने अभिनय के दम पर दर्शकों का दिल जीतते हैं. वे अपनी फिल्मों के चुनाव में जोखिम लेने से नहीं घबराते और हमेशा कुछ नया और चुनौतीपूर्ण करने की कोशिश करते हैं. रणबीर कपूर आज के दौर के सबसे प्रतिभाशाली और पसंदीदा अभिनेताओं में से एक हैं, और आने वाले समय में भी वे भारतीय सिनेमा को कई बेहतरीन फिल्में देने का वादा करते हैं.

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अभिनेत्री मौनी रॉय

मौनी रॉय एक लोकप्रिय भारतीय अभिनेत्री और मॉडल हैं, जो टेलीविजन और फिल्म दोनों में अपने अभिनय के लिए जानी जाती हैं. उनका जन्म 28 सितंबर 1985 को कूचबिहार, पश्चिम बंगाल में हुआ था. मौनी ने भारतीय टेलीविजन के साथ-साथ बॉलीवुड में भी अपनी पहचान बनाई है और अपनी बेहतरीन अदाकारी के लिए प्रसिद्ध हैं.

मौनी रॉय का जन्म एक बंगाली परिवार में हुआ था. उनके दादा, शेखर चंद्र रॉय, एक जाने-माने थिएटर कलाकार थे, और उनकी मां, मुक्ति रॉय, भी एक थिएटर आर्टिस्ट थीं. मौनी ने अपने प्रारंभिक शिक्षा के बाद दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय से मास कम्युनिकेशन में डिग्री हासिल करने के लिए दाखिला लिया, लेकिन उन्होंने बीच में ही पढ़ाई छोड़कर अभिनय के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाने का फैसला किया.

मौनी रॉय ने अपने कैरियर की शुरुआत 2006 में लोकप्रिय टीवी शो “क्योंकि सास भी कभी बहू थी” से की, जिसमें उन्होंने कृष्णा तुलसी की भूमिका निभाई. इस शो से उन्हें पहचान मिली और वे भारतीय टेलीविजन की चर्चित अभिनेत्री बन गईं. इसके बाद लोकप्रिय टीवी शो: –

देवों के देव…महादेव (2011-2014): – इस शो में उन्होंने देवी सती का किरदार निभाया, जो उनके कैरियर का एक बड़ा मोड़ साबित हुआ.

नागिन (2015-2016, 2016-2017): – मौनी ने इस शो में शिवन्या और फिर शिवांगी का किरदार निभाया। यह शो भारतीय टेलीविजन पर सुपरहिट साबित हुआ और मौनी को घर-घर में प्रसिद्धि दिलाई. नागिन सीरीज़ के लिए उन्हें कई पुरस्कार भी मिले.

मौनी रॉय ने बॉलीवुड में अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत 2018 में अक्षय कुमार के साथ फिल्म “गोल्ड” से की, जिसमें उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई. फिल्म में उनके अभिनय की प्रशंसा हुई.

फ़िल्में: – 

रोमियो अकबर वॉल्टर (2019): – इसमें उन्होंने जॉन अब्राहम के साथ काम किया.

मेड इन चाइना (2019): – राजकुमार राव के साथ इस कॉमेडी-ड्रामा फिल्म में उन्होंने एक अहम भूमिका निभाई.

ब्रह्मास्त्र: पार्ट वन: – शिवा (2022): इस बड़े बजट की फिल्म में मौनी रॉय ने नेगेटिव रोल निभाया, जो दर्शकों द्वारा काफी सराहा गया.

मौनी रॉय एक कुशल डांसर भी हैं, और उन्होंने कई डांस रियलिटी शोज़ में हिस्सा लिया है. वे एक प्रशिक्षित कथक डांसर हैं, और उनके डांस को उनके फैंस के बीच काफी पसंद किया जाता है. उन्होंने डांस शो “झलक दिखला जा” में भी भाग लिया था. वर्ष 2022 में मौनी रॉय ने दुबई के बिजनेसमैन सूरज नांबियार से शादी की. उनकी शादी भारतीय और मलयाली परंपराओं के अनुसार हुई, जिसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुईं.

मौनी रॉय सोशल मीडिया पर भी काफी सक्रिय हैं और उनके लाखों फॉलोअर्स हैं. उनकी खूबसूरती और फैशन सेंस की वजह से वे एक स्टाइल आइकन मानी जाती हैं, और उन्हें अक्सर कई ब्रांड्स और फैशन इवेंट्स में देखा जाता है. मौनी रॉय की सबसे बड़ी खासियत यह है कि उन्होंने टेलीविजन से लेकर फिल्मों तक के सफर को बड़ी सफलता के साथ तय किया है. वे अपनी मेहनत, समर्पण और बहुमुखी प्रतिभा के कारण इंडस्ट्री में एक खास स्थान रखती हैं.

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अभिनेत्री मुनमुन दत्ता

मुनमुन दत्ता एक भारतीय अभिनेत्री और मॉडल हैं, जो सबसे ज्यादा लोकप्रियता टेलीविजन शो “तारक मेहता का उल्टा चश्मा” में अपने किरदार बबीता जी से हासिल की हैं. उनका जन्म 28 सितंबर 1987 को दुर्गापुर, पश्चिम बंगाल में हुआ था. मुनमुन ने अपने अभिनय कौशल और चुलबुले व्यक्तित्व से घर-घर में अपनी खास पहचान बनाई है.

मुनमुन दत्ता का जन्म एक बंगाली परिवार में हुआ. उनका झुकाव बचपन से ही कला और संगीत की ओर था. उन्होंने क्लासिकल संगीत की शिक्षा भी ली है. मुनमुन ने अपनी स्कूली शिक्षा पश्चिम बंगाल में पूरी की और फिर पुणे में अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त की.

मुनमुन दत्ता ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत टीवी सीरियल “हम सब बाराती” से की, जो 2004 में ज़ी टीवी पर प्रसारित हुआ था. इस शो के बाद उन्होंने विभिन्न धारावाहिकों और विज्ञापनों में काम किया, लेकिन उनकी असली पहचान 2008 में शुरू हुए सब टीवी के लोकप्रिय कॉमेडी शो “तारक मेहता का उल्टा चश्मा” से मिली. इस शो में उनका किरदार बबीता अय्यर बहुत लोकप्रिय हुआ, और वे इस शो के माध्यम से हर घर में पहचानी जाने लगीं.

मुनमुन दत्ता ने कुछ हिंदी फिल्मों में भी काम किया है. उन्होंने “मुंबई एक्सप्रेस” (2005) और “हॉलिडे” (2006) जैसी फिल्मों में छोटे-छोटे किरदार निभाए हैं. हालांकि, फिल्मों में उन्हें उतनी सफलता नहीं मिली जितनी टेलीविजन पर मिली है. मुनमुन दत्ता अपने निजी जीवन को लेकर काफी प्राइवेट रहती हैं. वे सोशल मीडिया पर सक्रिय रहती हैं और अपने फैंस के साथ अपनी तस्वीरें और विचार साझा करती हैं. वे जानवरों के प्रति भी बेहद संवेदनशील हैं और पशु अधिकारों के समर्थन में काम करती हैं.

मुनमुन दत्ता सोशल मीडिया पर काफी लोकप्रिय हैं और इंस्टाग्राम पर उनके लाखों फॉलोअर्स हैं. वे अक्सर फैशन, ट्रैवल और अपने शो से जुड़े पोस्ट शेयर करती रहती हैं. इसके अलावा, वे यूट्यूब पर भी सक्रिय हैं, जहां वे विभिन्न विषयों पर व्लॉग्स बनाती हैं. मुनमुन दत्ता की खासियत उनकी चुलबुली और जीवंत अदायगी है. उन्होंने अपने किरदारों को एक विशेष स्टाइल में प्रस्तुत किया है, जो उन्हें अन्य अभिनेत्रियों से अलग बनाता है.

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जन्म: –

प्राचीन भारत संबंधी सांस्कृतिक अनुसंधानों के प्रारम्भकर्ता विलियम जोंस का जन्म 28 सितंबर 1746 को लंदन में हुआ था.

अभिनेता पी. जयराज का जन्म 28 सितंबर 1909 को निजाम स्टेट के करीमनगर ज़िले में हुआ था.

साहित्यिकार कल्याण मल लोढ़ा का जन्म 28 सितंबर 1921 को जोधपुर, राजस्थान के एक जैन परिवार में हुआ था.

भारत के 41वें मुख्य न्यायाधीश राजेन्द्र मल लोढ़ा का जन्म 28 सितंबर 1949 को राजस्थान के जोधपुर ज़िले में हुआ था.

गायिका असीस कौर का जन्म 28 सितंबर 1988 को हरियाणा के पानीपत में हुआ था.

निधन: –

साहित्यकार शिवप्रसाद सिंह का निधन 28 सितंबर 2008 को हुआ था.

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बृजेश मिश्र का निधन 28 सितंबर 2012 को हुआ था.

कवि वीरेन डंगवाल का निधन 28 सितंबर 2015 को हुआ था.

अन्य: –

बहादुर शाह द्वितीय को 28 सितंबर 1837 को मुगल बादशाह बनाया गया था. भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की जफर को भारी कीमत भी चुकानी पड़ी थी.

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