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व्यक्ति विशेष

भाग – 268.

साहित्यकार अन्नपूर्णानंद

अन्नपूर्णानंद एक हिंदी साहित्यकार और कवि थे, जो अपनी देशभक्ति कविताओं और भारतीय संस्कृति से जुड़े विषयों के लिए जाने जाते हैं. उनका जन्म 15 अगस्त 1880 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में हुआ था. वे हिंदी साहित्य के छायावादी युग के महत्वपूर्ण साहित्यकार माने जाते हैं.

अन्नपूर्णानंद की कविताओं में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, समाज सुधार, और नैतिक शिक्षा का भाव प्रबलता से दिखाई देता है. उन्होंने भारतीय संस्कृति और परंपराओं के गौरव को अपने लेखन में स्थान दिया और समाज में जागरूकता फैलाने का काम किया.

उनकी रचनाओं में “भारत-भारती” जैसी रचनाएँ प्रमुख हैं, जो भारतीय स्वाभिमान और राष्ट्रीयता को प्रकट करती हैं. अन्नपूर्णानंद जी ने अपने लेखन के माध्यम से समाज को जागरूक और प्रेरित करने का प्रयास किया, और उनका योगदान हिंदी साहित्य के विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण है.

वे एक कुशल गद्यकार और नाटककार भी थे, जिनकी रचनाओं ने भारतीय साहित्य को समृद्ध किया. उनके योगदानों को भारतीय साहित्यिक जगत में हमेशा याद किया जाएगा.अन्नपूर्णानंद  निधन 4 दिसम्बर 1962 को हुआ था.

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अभिनेत्री अज़रा

अज़रा एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी सिनेमा में 1950 – 60 के दशक में सक्रिय थीं. वह अपने समय की सहायक और चरित्र भूमिकाओं में दिखाई दीं, और उनके अभिनय में सरलता और सजीवता की झलक मिलती थी. अज़रा ने कई प्रसिद्ध फिल्मों में अभिनय किया है.

प्रसिद्ध फ़िल्में: –

” श्री 420″ (1955) – इस फिल्म में उन्होंने राज कपूर और नरगिस के साथ एक छोटी मगर यादगार भूमिका निभाई थी. फिल्म में उनकी उपस्थिति ने कहानी को और दिलचस्प बनाया.

” तीसरी मंजिल” (1966) – इस फिल्म में उनकी सहायक भूमिका थी, जिसमें शम्मी कपूर और आशा पारेख मुख्य भूमिकाओं में थे. फिल्म को आज भी क्लासिक थ्रिलर के रूप में जाना जाता है.

” दिल अपना और प्रीत पराई” (1960) – यह एक रोमांटिक ड्रामा फिल्म थी, जिसमें उन्होंने एक महत्वपूर्ण सहायक भूमिका निभाई थी. इस फिल्म में राजकुमार और मीना कुमारी मुख्य भूमिकाओं में थे.

अज़रा का अभिनय सादगी और प्रभावशाली अभिव्यक्ति के लिए जाना जाता था. भले ही वह मुख्य अभिनेत्री के रूप में बहुत ज्यादा प्रसिद्ध नहीं हुईं, लेकिन उनके द्वारा निभाई गई सहायक भूमिकाएँ हमेशा दर्शकों के दिलों में जगह बनाने में कामयाब रहीं.

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पूर्व मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री

भोला पासवान शास्त्री बिहार के एक प्रमुख राजनीतिक नेता थे, जिन्होंने तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया. उनका जन्म 21 सितंबर 1914 को बिहार के पूर्णिया जिले के बयासी गांव में हुआ था. वे समाजवादी और दलित समुदाय के नेता के रूप में जाने जाते थे, और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी.

भोला पासवान शास्त्री का राजनीतिक जीवन भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण माना जाता है, खासकर बिहार की राजनीति में. उन्होंने पहली बार 1968 में मुख्यमंत्री का पद संभाला, और उसके बाद 1969 और 1971 में भी मुख्यमंत्री बने. शास्त्री जी को उनकी सादगी, ईमानदारी, और गरीबों तथा वंचित वर्गों के उत्थान के प्रति समर्पण के लिए जाना जाता है.

उनकी नीतियाँ और निर्णय समाज के पिछड़े और गरीब तबकों को सशक्त बनाने पर केंद्रित थे। भोला पासवान शास्त्री की सरकार ने कृषि, शिक्षा, और सामाजिक सुधारों पर ध्यान दिया. उन्होंने शिक्षा के प्रसार और समाज में समानता की भावना को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए. भोला पासवान शास्त्री के राजनीतिक जीवन और उनकी उपलब्धियों को भारतीय राजनीति में हमेशा सम्मानपूर्वक याद किया जाता है.

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अभिनेत्री और गायिका नूरजहाँ

नूरजहाँ जिनका असली नाम अल्लाह वासयाई था, एक मशहूर पाकिस्तानी गायिका और अभिनेत्री थीं, जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप में संगीत और फिल्म उद्योग में अद्वितीय योगदान दिया. उनका जन्म 21 सितंबर 1926 को पंजाब के कसूर (अब पाकिस्तान में) में हुआ था. नूरजहाँ ने हिंदी, उर्दू और पंजाबी फिल्मों में अभिनय किया और अपनी शानदार गायकी के लिए विशेष रूप से जानी गईं.

नूरजहाँ ने भारतीय सिनेमा में 1930 के दशक में बाल कलाकार के रूप में अपना कैरियर शुरू किया. उन्होंने हिंदी और पंजाबी फिल्मों में काम किया और जल्दी ही एक सफल अभिनेत्री के रूप में स्थापित हो गईं.

फ़िल्में: –

ख़ानदान (1942) – इस फिल्म ने उन्हें स्टारडम दिलाया और वह एक प्रमुख अभिनेत्री के रूप में उभरीं.

अनमोल घड़ी (1946) – यह एक सफल म्यूजिकल फिल्म थी, जिसमें उन्होंने सुरैया और सुरेंद्र के साथ काम किया. इस फिल्म में उनके गाए गीत आज भी लोकप्रिय हैं।

जुगनू (1947) – यह एक बड़ी हिट फिल्म थी, जिसमें उन्होंने दिलीप कुमार के साथ काम किया था.

गायकी: –

नूरजहाँ ने न केवल भारतीय फिल्मों में अभिनय किया बल्कि अपनी मधुर आवाज़ से भी लोगों का दिल जीता. उनकी गायकी ने उन्हें “मल्लिका-ए-तरन्नुम” (गायकी की रानी) का खिताब दिलाया. उनका गायकी कैरियर पाकिस्तान के फिल्म उद्योग में विशेष रूप से फल-फूल गया, जहाँ उन्होंने कई यादगार गाने गाए. उनके कुछ प्रसिद्ध गीतों में शामिल हैं: –

“आवाज़ दे कहां है” (फिल्म: अनमोल घड़ी),

“जवां है मोहब्बत” (फिल्म: अनमोल घड़ी),

“चाँदनी रातें” – यह गाना नूरजहाँ की आवाज़ में एक कालजयी रचना बन गया.

वर्ष 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद, नूरजहाँ पाकिस्तान चली गईं और वहां की फिल्म इंडस्ट्री में गायिका और अभिनेत्री के रूप में सक्रिय रहीं. उन्होंने पाकिस्तानी सिनेमा में कई फिल्मों में अभिनय किया और पार्श्व गायिका के रूप में काम जारी रखा. उनकी आवाज़ का जादू पाकिस्तानी सिनेमा में भी उतना ही चमकदार था जितना भारतीय सिनेमा में.

नूरजहाँ को उनकी अद्भुत प्रतिभा के लिए भारतीय और पाकिस्तानी संगीत और फिल्म उद्योग में अत्यंत सम्मान मिला. वह न केवल अपनी गायकी के लिए, बल्कि अपने अभिनय के लिए भी समान रूप से सराही जाती हैं. उनका योगदान भारतीय और पाकिस्तानी फिल्म संगीत में अमूल्य माना जाता है, और वह उपमहाद्वीप की सबसे महान गायिकाओं में से एक मानी जाती हैं. उनका निधन 23 दिसंबर 2000 को हुआ, लेकिन उनकी कला और संगीत आज भी जीवित है और लोगों को प्रेरित करता है.

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शास्त्रीय संगीतकार जीतेंद्र अभिषेकी

पंडित जीतेंद्र अभिषेकी भारतीय शास्त्रीय संगीत के एक महान गायक, संगीतज्ञ, और संगीतकार थे. उनका जन्म 21 सितंबर 1929 को गोवा के मंगेशी गांव में हुआ था. वे भारतीय शास्त्रीय संगीत की परंपरा के अनुयायी थे, लेकिन उन्होंने अपने संगीत में आधुनिकता और नवाचार को भी समाहित किया, जिससे वे एक विशिष्ट और प्रतिष्ठित कलाकार बने.

पंडित अभिषेकी को ख्याल गायन में महारत हासिल थी, जो भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक महत्वपूर्ण अंग है. उन्होंने ठुमरी, भजन, और अन्य शास्त्रीय शैलियों में भी गाया. उनके गायन की सबसे बड़ी विशेषता थी उनकी गहराई, तल्लीनता, और एक विशिष्ट “आभा”, जिसे वे हर प्रस्तुति में लेकर आते थे. उनकी संगीत शैली का आधार ग्वालियर और आगरा घरानों पर था, लेकिन उन्होंने विभिन्न संगीत घरानों की विशिष्टताओं को मिलाकर अपनी अनूठी शैली विकसित की.

हालाँकि पंडित अभिषेकी परंपरागत शास्त्रीय संगीत के गायक थे, उन्होंने मराठी नाट्य संगीत (संगीत नाटक) में भी अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी. उन्होंने कई मराठी नाटकों के लिए संगीत रचना की, जिससे मराठी नाट्य संगीत में एक नई जान आई. उन्होंने शास्त्रीय संगीत के साथ-साथ लोक संगीत और आधुनिक तत्वों को मिलाकर मराठी संगीत नाटकों को समृद्ध बनाया. उनकी रचित कुछ प्रसिद्ध मराठी संगीत नाटक हैं: – “काट्यारा”, “मानापमान”, “स्वयंवर”.

पंडित जीतेंद्र अभिषेकी ने अपने जीवन में कई शिष्यों को प्रशिक्षित किया, जिनमें से कई आज भारतीय शास्त्रीय संगीत में जाने-माने कलाकार हैं. उनके शिष्यों में महेश काले, सुप्रिया जोशी, और आरती अंकलीकर-टिकेकर जैसे प्रसिद्ध कलाकार शामिल हैं.

पंडित जीतेंद्र अभिषेकी को उनके संगीत में अद्वितीय योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया, जो भारत में संगीत, नृत्य, और नाटक के क्षेत्र में सर्वोच्च सम्मान है.

पंडित अभिषेकी का योगदान न केवल शास्त्रीय संगीत, बल्कि मराठी रंगमंच संगीत में भी अविस्मरणीय है. उन्होंने अपनी जीवनभर की साधना और निष्ठा से भारतीय संगीत को समृद्ध किया. उनका संगीत और उनकी शिक्षाएं आज भी उनके शिष्यों और संगीत प्रेमियों के बीच जीवित हैं. उनका निधन 7 नवंबर 1998 को हुआ, लेकिन उनके द्वारा स्थापित संगीत की परंपरा आज भी जीवंत है और संगीत प्रेमियों को प्रेरणा देती है.

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स्वामी अग्निवेश

स्वामी अग्निवेश एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता, राजनेता, और आर्य समाज के नेता थे. वे अपने मानवाधिकार, समाज सुधार, और भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनों के लिए जाने जाते हैं. स्वामी अग्निवेश का जन्म 21 सितंबर 1939 को आंध्र प्रदेश के शख्तुल्ला इलाके में हुआ था, और उनका असली नाम वेंकटेश्वर राघव रेड्डी था. उन्होंने धार्मिक और सामाजिक सुधारों के साथ-साथ राजनीतिक रूप से भी सक्रिय भूमिका निभाई.

स्वामी अग्निवेश ने कोलकाता विश्वविद्यालय से कानून और अर्थशास्त्र में पढ़ाई की. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कुछ समय तक अध्यापन किया और फिर समाज सेवा और राजनीति में उतर गए. वे आर्य समाज से प्रभावित थे, जिसके सिद्धांतों पर चलकर उन्होंने सामाजिक सुधार और जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़ी.

स्वामी अग्निवेश का सबसे महत्वपूर्ण योगदान बंधुआ मजदूरी के खिलाफ लड़ाई में था. उन्होंने 1981 में बंदुआ मुक्ति मोर्चा (Bonded Labor Liberation Front) की स्थापना की, जो भारत में बंधुआ मजदूरी की समाप्ति के लिए एक बड़ा आंदोलन था. इस आंदोलन ने हजारों बंधुआ मजदूरों को आजाद कराया और उनकी आर्थिक स्थिति को सुधारने में मदद की. वे हमेशा से दलितों, आदिवासियों, और कमजोर वर्गों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे। उनके कार्यों में शराबबंदी, बाल श्रम के खिलाफ आंदोलन, और महिला अधिकारों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण प्रयास शामिल थे.

स्वामी अग्निवेश ने राजनीति में भी सक्रिय भूमिका निभाई. वर्ष 1977 में वे हरियाणा विधानसभा के लिए चुने गए और हरियाणा सरकार में शिक्षा मंत्री बने. हालांकि, उन्होंने जल्द ही राजनीति से खुद को दूर कर लिया और समाज सेवा और सामाजिक आंदोलनों पर ध्यान केंद्रित किया. उन्होंने 2011 के अन्ना हज़ारे के नेतृत्व वाले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में भी हिस्सा लिया और भारत में लोकपाल बिल की मांग के समर्थन में आवाज उठाई. वे एक बेबाक वक्ता और सामाजिक न्याय के प्रबल समर्थक थे, और हमेशा सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने के लिए जाने जाते थे.

स्वामी अग्निवेश आर्य समाज के एक प्रमुख नेता थे. उन्होंने आर्य समाज के सिद्धांतों को बढ़ावा देने के साथ-साथ विभिन्न धार्मिक और सांप्रदायिक मुद्दों पर भी काम किया. वे धार्मिक कट्टरता के खिलाफ थे और धार्मिक सहिष्णुता और संवाद के समर्थक थे. उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता और सभी धर्मों के बीच सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास किया. अपने बेबाक विचारों और आंदोलनों के कारण स्वामी अग्निवेश कई बार विवादों में भी रहे. वे धार्मिक कट्टरपंथियों के निशाने पर रहे, और कुछ समय उनके विचारों का विरोध भी हुआ. लेकिन वे अपनी निडरता और समर्पण के साथ सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों की लड़ाई में जुटे रहे.

स्वामी अग्निवेश को उनके सामाजिक कार्यों के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया. वे एक दृढ़ इच्छाशक्ति वाले नेता थे, जिन्होंने अपना जीवन समाज के वंचित और उत्पीड़ित वर्गों के उत्थान के लिए समर्पित किया. 25 सितंबर 2020 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनके विचार और उनका योगदान हमेशा याद किए जाते रहेंगे.

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अभिनेत्री करीना कपूर

करीना कपूर भारतीय फिल्म अभिनेत्री हैं, जिन्होंने हिंदी सिनेमा में अपनी अनूठी पहचान बनाई है. उनका जन्म 21 सितंबर 1980 को हुआ था और वे कपूर परिवार की एक प्रतिष्ठित सदस्य हैं. उनके पिता रणधीर कपूर और माता बबीता भी फिल्मी जगत से जुड़े हुए हैं, और उनकी बहन करिश्मा कपूर भी एक सफल अभिनेत्री हैं.

करीना कपूर ने अपने कैरियर की शुरुआत 2000 में फिल्म “रिफ्यूजी” से की, जिसमें उनके सह-कलाकार अभिषेक बच्चन थे. इस फिल्म में उनके अभिनय की सराहना की गई और इसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ नवोदित अभिनेत्री का फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला. इसके बाद उन्होंने कई हिट फिल्मों में काम किया और बॉलीवुड की शीर्ष अभिनेत्रियों में शामिल हो गईं.

प्रमुख फिल्में: –

” कभी खुशी कभी ग़म” (2001) – इस फिल्म में करीना ने पू (पूजा) नामक एक ग्लैमरस किरदार निभाया, जो आज भी लोकप्रिय है.

” चमेली” (2004) – इस फिल्म में उन्होंने एक वेश्या का किरदार निभाया और यह उनके कैरियर का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ.

” जब वी मेट” (2007) – इसमें उन्होंने गीत नामक चुलबुली लड़की का किरदार निभाया. फिल्म एक बड़ी हिट रही और इसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर अवार्ड मिला.

” 3 इडियट्स” (2009) – राजकुमार हिरानी की इस फिल्म में उन्होंने आमिर खान के साथ काम किया, और यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट रही.

” बजरंगी भाईजान” (2015) – सलमान खान के साथ इस फिल्म में उन्होंने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. फिल्म बहुत बड़ी हिट रही.

करीना कपूर की अभिनय शैली में गहराई, सहजता और विविधता है. उन्होंने रोमांटिक, कॉमेडी, ड्रामा, और गंभीर किरदार निभाए हैं, और उनकी ऑन-स्क्रीन उपस्थिति हमेशा प्रभावशाली रही है. करीना अपनी खूबसूरती और फैशन सेंस के लिए भी जानी जाती हैं, और उन्हें बॉलीवुड की फैशन आइकन माना जाता है.

करीना कपूर ने 2012 में अभिनेता सैफ अली खान से शादी की। उनके दो बेटे हैं, तैमूर अली खान और जेह अली खान. करीना अपने परिवार के साथ एक खुशहाल जीवन जीती हैं और अपने करियर को भी संतुलित तरीके से आगे बढ़ा रही हैं. करीना ने फिल्मों के अलावा कई सामाजिक और ब्रांड अभियानों में भी हिस्सा लिया है. वह हेल्थ और फिटनेस पर ध्यान देती हैं और अपनी किताब “प्रेग्नेंसी बाइबिल” के लिए भी जानी जाती हैं, जिसमें उन्होंने अपने अनुभव साझा किए हैं.

करीना कपूर का कैरियर लगभग दो दशक से अधिक समय से चल रहा है, और वह आज भी हिंदी फिल्म उद्योग की प्रमुख अभिनेत्रियों में से एक हैं.

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महिला स्क्वैश खिलाड़ी दीपिका पल्लीकल

दीपिका पल्लीकल भारतीय महिला स्क्वैश खिलाड़ी हैं और उन्हें भारत की सबसे सफल स्क्वैश खिलाड़ियों में से एक माना जाता है. उनका जन्म 21 सितंबर 1991 को चेन्नई, तमिलनाडु में हुआ था. दीपिका ने न केवल भारत में स्क्वैश को लोकप्रिय बनाया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत का नाम रोशन किया.

दीपिका पल्लीकल ने कम उम्र में ही स्क्वैश खेलना शुरू किया. उन्होंने कई जूनियर प्रतियोगिताओं में भाग लिया और 2006 में विश्व जूनियर स्क्वैश चैंपियनशिप में अच्छा प्रदर्शन किया. इसके बाद, उन्होंने अपने खेल को और बेहतर बनाया और कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में भारत का प्रतिनिधित्व किया.

कॉमनवेल्थ गेम्स 2014 – दीपिका ने कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत के लिए स्क्वैश में पहला पदक जीता. उन्होंने जोशना चिनप्पा के साथ महिला युगल स्पर्धा में स्वर्ण पदक हासिल किया। यह भारत के लिए ऐतिहासिक जीत थी.

एशियाई खेल 2014 – दीपिका ने एशियाई खेलों में भी भारत के लिए कांस्य पदक जीता. यह उनके कैरियर की एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि थी.

WISPA टूर – दीपिका पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनीं, जिन्होंने WISPA (Women’s International Squash Players Association) टूर इवेंट जीता. इसके साथ ही, वह शीर्ष 10 महिला स्क्वैश खिलाड़ियों में स्थान पाने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी भी बनीं.

एशियाई खेल 2018 – दीपिका ने 2018 एशियाई खेलों में भी कांस्य पदक जीता, जिससे उन्होंने भारत के स्क्वैश में अपनी प्रमुखता को और मजबूती दी.

दीपिका पल्लीकल ने 2015 में भारतीय क्रिकेटर दिनेश कार्तिक से शादी की. वे खेल जगत की एक प्रतिष्ठित जोड़ी माने जाते हैं. दीपिका के परिवार में खेल का माहौल शुरू से था. उनकी मां सुसैन पल्लीकल एक पूर्व भारतीय एथलीट और मॉडल रही हैं.

दीपिका पल्लीकल को उनके अद्भुत योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया है. वह स्क्वैश में भारत की एक आदर्श खिलाड़ी हैं और उन्होंने इस खेल को राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

दीपिका पल्लीकल न केवल अपने खेल कौशल के लिए जानी जाती हैं, बल्कि वह महिलाओं के खेलों में प्रेरणास्त्रोत भी हैं. उनका समर्पण और मेहनत नई पीढ़ी के खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है.

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महाराजा सवाई जयसिंह

महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय एक महान भारतीय शासक, खगोलशास्त्री और वास्तुकार थे, जिन्होंने राजस्थान के आमेर राज्य (आधुनिक जयपुर) पर शासन किया. उनका जन्म 3 नवंबर 1688 को हुआ था और वे कछवाहा वंश के राजा थे. सवाई जयसिंह ने जयपुर शहर की स्थापना की और भारतीय खगोलशास्त्र और वास्तुकला में अद्वितीय योगदान दिया. वे अपने ज्ञान, विज्ञान, और शासन के लिए प्रसिद्ध थे.

सवाई जयसिंह का जन्म आमेर में राजा बिशन सिंह के घर हुआ था. वर्ष 1699 में, अपने पिता की मृत्यु के बाद, उन्होंने मात्र 11 साल की उम्र में आमेर के राजा का पद संभाला. वे मुगल सम्राट औरंगजेब के शासनकाल में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे, और मुगलों के साथ उनके संबंध हमेशा अच्छे रहे.

सवाई जयसिंह द्वितीय ने 1727 में जयपुर की स्थापना की, जो भारतीय शहरी नियोजन का एक उत्कृष्ट उदाहरण है. जयपुर को वास्तुशास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर एक योजनाबद्ध शहर के रूप में डिज़ाइन किया गया था, और इसे गुलाबी नगरी के नाम से भी जाना जाता है. जयपुर का निर्माण महान वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य की देखरेख में हुआ.

सवाई जयसिंह खगोलशास्त्र में गहरी रुचि रखते थे और उन्होंने भारतीय खगोलशास्त्र को आधुनिक रूप में प्रस्तुत किया. उन्होंने देशभर में पाँच खगोलीय वेधशालाओं का निर्माण करवाया, जिन्हें जंतर मंतर कहा जाता है. ये वेधशालाएँ जयपुर, दिल्ली, मथुरा, वाराणसी और उज्जैन में स्थित हैं. इन वेधशालाओं में कई खगोलीय उपकरण हैं, जिनका उपयोग आकाशीय पिंडों की स्थिति और समय मापने के लिए किया जाता है.

जंतर मंतर, जयपुर – यह उनकी सबसे प्रमुख वेधशाला है और इसका समृद्ध खगोलीय महत्व है. इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई है.

जंतर मंतर, दिल्ली – दिल्ली का जंतर मंतर भी एक प्रसिद्ध वेधशाला है, जो उनके विज्ञान और खगोलशास्त्र में गहरे योगदान को दर्शाती है.

सवाई जयसिंह ने खगोलशास्त्र, गणित और ज्योतिष के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने संस्कृत के कई विद्वानों और वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित किया और कई ग्रंथों का अनुवाद भी करवाया. उन्होंने तत्कालीन दुनिया के नवीनतम खगोलीय उपकरणों का अध्ययन करने के लिए कई विद्वानों को विदेश भेजा.

सवाई जयसिंह को “सवाई” की उपाधि मुगल सम्राट औरंगजेब ने दी थी, जिसका अर्थ है “सवा” यानी एक से सवा गुणा अधिक. यह उपाधि उनकी बुद्धिमानी, योग्यता, और नेतृत्व क्षमता को दर्शाती है.

सवाई जयसिंह द्वितीय का निधन 21 सितंबर 1743 को हुआ. वे अपने समय के सबसे कुशल शासकों में से एक थे. उनके द्वारा बनाए गए जंतर मंतर और जयपुर शहर आज भी उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण और शासकीय कौशल की याद दिलाते हैं.

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