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व्यक्ति विशेष

भाग – 262

वैज्ञानिक और निर्माता मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया (1861–1962) एक प्रसिद्ध भारतीय इंजीनियर, वैज्ञानिक और राजनेता थे, जिन्हें आधुनिक भारत के निर्माण में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है. उन्हें “भारत रत्न” से भी सम्मानित किया गया था, जो भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है. उनकी उत्कृष्ट इंजीनियरिंग प्रतिभा और उनके द्वारा किए गए विकास कार्य उन्हें भारतीय इतिहास में एक अग्रणी स्थान दिलाते हैं.

प्रमुख योगदान: –

कृष्णराज सागर बांध: – यह बांध मैसूर (अब कर्नाटक) में कावेरी नदी पर बनाया गया था, जो विश्वेश्वरैया के नेतृत्व में संभव हुआ. यह बांध सिंचाई और जल आपूर्ति के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण था.

ब्लॉक सिस्टम: – उन्होंने एक अद्वितीय “ब्लॉक सिस्टम” विकसित किया, जो पानी की बेहतर प्रबंधन और सिंचाई में सहायक था. इसे आज भी आधुनिक जल प्रबंधन प्रणालियों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है.

भारत का औद्योगिकीकरण: – विश्वेश्वरैया का मानना था कि औद्योगिकीकरण ही भारत के विकास का मार्ग प्रशस्त करेगा. उन्होंने भारत में उद्योग और प्रौद्योगिकी के विकास के लिए कई सुझाव दिए.

मैसूर का विकास: – कर्नाटक के मैसूर राज्य के दीवान रहते हुए उन्होंने मैसूर के शहरी और औद्योगिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनके नेतृत्व में कई उद्योग और शैक्षिक संस्थान स्थापित किए गए.

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को वर्ष 1955 में देश के प्रति योगदान के लिए भारत रत्न से सम्मानित किया गया था. उनकी जयंती 15 सितंबर को भारत में इंजीनियर्स डे के रूप में मनाई जाती है, ताकि उनके योगदान को याद किया जा सके.

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को न केवल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में उनकी महान उपलब्धियों के लिए जाना जाता है, बल्कि वे एक दूरदर्शी व्यक्ति भी थे, जिन्होंने आधुनिक भारत के निर्माण में अहम भूमिका निभाई.

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 साहित्यकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय बांग्ला साहित्य के प्रमुख उपन्यासकार और कहानीकार थे. उनका साहित्यिक योगदान न केवल बंगाली साहित्य में बल्कि पूरे भारतीय साहित्य में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है. शरतचंद्र ने समाज की गहरी संवेदनाओं और मानव मन के जटिल पहलुओं को अपने लेखन में बखूबी उकेरा, और उनकी रचनाएँ आज भी जनमानस में प्रासंगिक हैं.

शरतचंद्र का जन्म 15 सितंबर 1876 को पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के देवघर में हुआ था. उनका बचपन गरीबी और कठिनाइयों में बीता, और यही अनुभव उनकी रचनाओं में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है. उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की, लेकिन उनकी औपचारिक शिक्षा पूरी नहीं हो सकी. गरीबी और संघर्ष के बीच भी उन्होंने लेखन जारी रखा और अपने लेखन के माध्यम से समाज में फैली कुरीतियों और अंधविश्वासों पर प्रहार किया.

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की कई रचनाएँ भारतीय साहित्य की अमूल्य धरोहर मानी जाती हैं. उनकी कहानियों में समाज के पीड़ित वर्ग, महिलाओं की स्थिति और मानवीय संवेदनाओं का गहरा चित्रण मिलता है.

प्रमुख कृतियाँ: –

देवदास: – शरतचंद्र की सबसे प्रसिद्ध कृति, जो एक त्रासदीपूर्ण प्रेम कहानी है. इस उपन्यास पर कई फिल्मों का निर्माण किया गया है और यह आज भी लोकप्रिय है.

श्रीकांत: – यह उनकी एक और प्रमुख कृति है, जिसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं और अनुभवों को सुंदरता से उकेरा गया है.

परिणीता: – एक प्रेम कहानी जो समाज के जातिगत भेदभाव और महिलाओं की स्थिति पर प्रकाश डालती है.

चरित्रहीन: – इस उपन्यास में उन्होंने समाज की नैतिकता और महिलाओं के प्रति समाज के दृष्टिकोण पर गहन प्रश्न उठाए हैं.

बिंदुर छेले और पथेर दाबी: – ये उनकी कुछ अन्य प्रमुख कृतियाँ हैं, जो समाज के उत्पीड़ित वर्ग और स्वतंत्रता संग्राम के संदर्भ में लिखी गई हैं.

शरतचंद्र की लेखन शैली सरल, सजीव और दिल को छूने वाली थी. वे अपने पात्रों के माध्यम से समाज के दबे-कुचले लोगों, विशेषकर महिलाओं, की समस्याओं और संघर्षों को उजागर करते थे. उनके पात्र मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत होते थे, और वे समाज के दोहरे मापदंडों और जातिगत भेदभाव का तीखा आलोचक थे.

शरतचंद्र का लेखन समाज सुधार की दिशा में एक सशक्त प्रयास था. उन्होंने अपने उपन्यासों और कहानियों में समाज में व्याप्त अन्याय, जातिगत भेदभाव, महिलाओं की दुर्दशा और अन्य सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार किया. उन्होंने अपने लेखन में महिलाओं के संघर्षों, उनकी भावनाओं और उनकी स्थिति को बहुत संवेदनशीलता के साथ चित्रित किया. वे भारतीय साहित्य के कुछ प्रमुख लेखकों में से थे, जिन्होंने महिलाओं के अधिकारों की बात की.

शरत चंद्र चट्टोपाध्याय की मृत्यु 16 जनवरी सन् 1938 ई. को हुई थी. शरतचंद्र चट्टोपाध्याय एक ऐसे साहित्यकार थे, जिन्होंने भारतीय समाज की समस्याओं को अपनी रचनाओं के माध्यम से व्यक्त किया और पाठकों को मानवीय संवेदनाओं से जुड़ने का अवसर प्रदान किया. उनके उपन्यास और कहानियाँ आज भी जनमानस में प्रासंगिक हैं और उनके लेखन का प्रभाव साहित्यिक जगत में अमिट है.

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साहित्यकार डॉ. रामकुमार वर्मा

डॉ. रामकुमार वर्मा (15 सितंबर 1905 – 1990) हिंदी साहित्य के एक प्रतिष्ठित नाटककार, कवि और आलोचक थे. वे हिंदी नाट्य साहित्य के प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं और उन्हें “हिंदी नाटक के शेक्सपियर” के रूप में भी जाना जाता है. उनकी रचनाओं में गहरी सामाजिक संवेदनाएं, मानवीय भावनाएं और व्यंग्य देखने को मिलते हैं.

डॉ. रामकुमार वर्मा का जन्म 15 सितंबर 1905 को मध्य प्रदेश के सागर जिले में हुआ था. उन्होंने साहित्य और कला में गहरी रुचि ली और शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे साहित्यिक क्षेत्र में सक्रिय हो गए. उन्होंने हिंदी साहित्य में अपनी रचनात्मकता और नाटककार के रूप में अपनी पहचान बनाई. उनका साहित्यिक कैरियर न केवल नाटक लेखन तक सीमित था, बल्कि वे एक उत्कृष्ट कवि और आलोचक भी थे.

डॉ. रामकुमार वर्मा ने अपने जीवनकाल में कई नाटक, कविताएं और आलोचनात्मक निबंध लिखे. उनके नाटक भारतीय साहित्य के क्षेत्र में विशेष स्थान रखते हैं.

 कृतियाँ: –

वीर अभिमन्यु: – यह उनका प्रसिद्ध नाटक है, जो महाभारत के पात्र अभिमन्यु की कहानी पर आधारित है. इसमें वीरता, साहस और मानवीय संघर्ष का सजीव चित्रण है.

विद्या-सुंदर: – यह नाटक प्रेम और त्याग की कहानी है, जिसमें पात्रों की भावनाओं को बड़ी कुशलता से चित्रित किया गया है.

संन्यासी: – इस नाटक में सामाजिक और धार्मिक मुद्दों का संवेदनशील चित्रण किया गया है.

दुर्गादास: – एक ऐतिहासिक नाटक, जिसमें भारतीय इतिहास के प्रसिद्ध राजपूत योद्धा दुर्गादास की वीरता को दिखाया गया है.

नाट्यलेख: – उन्होंने कई छोटे-बड़े नाटकों का सृजन किया, जिनमें समाज के विविध पहलुओं को उठाया गया है.

डॉ. वर्मा की लेखन शैली विशेष रूप से नाटकीय और व्यंग्यपूर्ण थी. उनके नाटकों में न केवल कथानक का गहराई से चित्रण होता है, बल्कि पात्रों के माध्यम से समाज की सच्चाइयों को भी उजागर किया गया है. उनकी रचनाओं में हास्य और व्यंग्य का एक खास स्थान है, जिसके माध्यम से उन्होंने समाज की कुरीतियों और विसंगतियों पर तीखा प्रहार किया.

डॉ. रामकुमार वर्मा हिंदी नाटक विधा के प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं. उन्होंने हिंदी नाट्य साहित्य को एक नई दिशा दी और उसे सामाजिक एवं सांस्कृतिक मुद्दों से जोड़ा. वर्मा ने साहित्यिक आलोचना के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने हिंदी साहित्य के विभिन्न पहलुओं पर गहन अध्ययन और चिंतन प्रस्तुत किया. उनके व्यंग्य साहित्य में गहरी सामाजिक और मानवीय संवेदनाएं झलकती हैं. उन्होंने समाज की बुराइयों और कमजोरियों को अपने व्यंग्य के माध्यम से उजागर किया.

डॉ. रामकुमार वर्मा को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए. वे हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे और उनके साहित्यिक कार्यों की सराहना साहित्यकारों और समीक्षकों द्वारा की गई.

डॉ. रामकुमार वर्मा हिंदी नाटक और साहित्य के एक महान स्तंभ थे. उनके नाटकों और कविताओं में सामाजिक समस्याओं, मानवीय भावनाओं और व्यंग्य का गहरा प्रभाव देखा जा सकता है. उन्होंने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी और अपनी अमूल्य कृतियों के माध्यम से साहित्यिक जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई.

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राजनीतिज्ञ अशोक सिंघल

अशोक सिंघल (1926–2015) एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ और हिंदू राष्ट्रवादी संगठन विश्व हिंदू परिषद (VHP) के वरिष्ठ नेता थे. वे हिंदू राष्ट्रवाद के समर्थक और अयोध्या में राम जन्मभूमि आंदोलन के मुख्य चेहरों में से एक थे. सिंघल का राजनीति और सामाजिक क्षेत्र में गहरा प्रभाव रहा है, खासकर हिंदुत्व से जुड़े आंदोलनों में.

अशोक सिंघल का जन्म 27 सितंबर 1926 को उत्तर प्रदेश के आगरा में एक संपन्न परिवार में हुआ था. उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की पढ़ाई की. बचपन से ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ गए थे और उनके विचारों से प्रभावित हुए. इसके बाद उन्होंने अपना जीवन हिंदुत्व के प्रचार-प्रसार में समर्पित कर दिया.

अशोक सिंघल वर्ष 1980 से VHP के साथ जुड़े थे और लंबे समय तक इसके अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे. उनके नेतृत्व में VHP ने हिंदू धर्म और संस्कृति के संरक्षण और पुनरुत्थान के लिए कई आंदोलनों की शुरुआत की. अयोध्या में राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान अशोक सिंघल का नेतृत्व बहुत महत्वपूर्ण था. वर्ष 1990 के दशक में बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद के समय, उन्होंने इस आंदोलन को गति दी और पूरे भारत में हिंदू संगठनों को एकजुट किया.06 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना के दौरान भी सिंघल की भूमिका अहम मानी जाती है. इस घटना के बाद राम मंदिर निर्माण की मांग और भी तेज हो गई.

सिंघल ने हिंदू धर्म, संस्कृति और परंपराओं के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे “घर वापसी” कार्यक्रमों के समर्थक थे, जिनके तहत ईसाई धर्म या इस्लाम में परिवर्तित हुए हिंदुओं की फिर से हिंदू धर्म में वापसी कराई जाती थी. उनके नेतृत्व में VHP का विस्तार भारत ही नहीं बल्कि विश्व भर में हुआ. उन्होंने हिंदू समुदाय को एकजुट करने के लिए कई देशों में हिंदू संगठनों की स्थापना की और उन्हें मजबूत किया.

अशोक सिंघल हिंदुत्व के प्रबल समर्थक थे. वे भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं के पुनरुत्थान के लिए समर्पित थे. उनका मानना था कि भारत को एक हिंदू राष्ट्र के रूप में पुनर्स्थापित करना चाहिए, जहाँ हिंदू धर्म और संस्कृति का वर्चस्व हो. उन्होंने हमेशा हिंदू समाज को संगठित और सशक्त बनाने की दिशा में काम किया.

सिंघल का नाम कई विवादों से भी जुड़ा रहा. बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद उन पर सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने के आरोप लगे. उनके हिंदुत्व आधारित कार्यक्रमों और विचारधाराओं की आलोचना कई धर्मनिरपेक्ष और वामपंथी संगठनों ने की. वे हमेशा अपने कट्टर हिंदू विचारों के कारण विवादों में रहे, लेकिन उन्होंने अपने विचारों और कार्यों से कभी पीछे नहीं हटे.

अशोक सिंघल का निधन 17 नवंबर 2015 को हुआ. वे अपने जीवन के अंतिम दिनों तक VHP के माध्यम से हिंदू समाज के उत्थान और राम मंदिर निर्माण की दिशा में सक्रिय रहे. उनके निधन के बाद भी, उनकी विचारधारा और नेतृत्व का प्रभाव VHP और हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है.

अशोक सिंघल भारतीय राजनीति और हिंदू राष्ट्रवाद के एक प्रभावशाली नेता थे. उन्होंने अपने जीवन को हिंदू समाज और संस्कृति के उत्थान के लिए समर्पित किया और हिंदुत्व के विचार को व्यापक जनसमुदाय तक पहुंचाया. राम जन्मभूमि आंदोलन और VHP के नेतृत्व में उनके योगदान को भारतीय इतिहास में लंबे समय तक याद किया जाएगा.

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अभिनेत्री राम्या कृष्णन

राम्या कृष्णन एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जिन्होंने तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, और हिंदी फिल्मों में काम किया है. उनका फिल्मी कैरियर चार दशकों से भी अधिक का है, और वे अपने बहुमुखी अभिनय के लिए जानी जाती हैं.

राम्या कृष्णन का जन्म 15 सितंबर 1970 को चेन्नई, तमिलनाडु में हुआ था. वे एक समृद्ध फिल्मी पृष्ठभूमि से नहीं थीं, लेकिन उनके अभिनय के प्रति जुनून और प्रतिभा ने उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में एक मजबूत पहचान दिलाई. उन्होंने भरतनाट्यम, कुचिपुड़ी, और पश्चिमी नृत्य में प्रशिक्षण प्राप्त किया, जो उनकी अभिनय यात्रा में सहायक साबित हुआ.

राम्या कृष्णन ने 13 साल की उम्र में फिल्मी कैरियर की शुरुआत की थी. उनकी पहली फिल्म तमिल में थी, लेकिन उन्हें असली पहचान और सफलता दक्षिण भारतीय फिल्मों में मिली. वे हर तरह के किरदार निभाने में सक्षम हैं, चाहे वह एक नायिका की भूमिका हो, नकारात्मक भूमिका हो, या फिर एक शक्तिशाली चरित्र भूमिका.

प्रमुख फिल्में: –

बाहुबली श्रृंखला (2015, 2017): – राम्या कृष्णन को सर्वाधिक प्रसिद्धि शिवगामी देवी के रूप में “बाहुबली” और “बाहुबली 2: द कन्क्लूजन” से मिली. इस फिल्म में उनके किरदार की सशक्त और दृढ़ भूमिका ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय ख्याति दिलाई.

पदयप्पा (1999): – रजनीकांत के साथ इस तमिल फिल्म में उनके नेगेटिव किरदार ने उन्हें तमिल सिनेमा में एक प्रतिष्ठित स्थान दिलाया. इस फिल्म के लिए उन्हें बहुत सराहना मिली.

अल्लारी प्रियुडु (1993): – इस तेलुगु फिल्म ने उन्हें तेलुगु सिनेमा में एक स्थापित अभिनेत्री के रूप में उभारा.

पंचतन्त्रम (2002): – यह एक और तेलुगु फिल्म है, जहां उनकी अभिनय प्रतिभा की सराहना की गई.

हिंदी फिल्में: –

राम्या कृष्णन ने हिंदी सिनेमा में भी काम किया है. उन्होंने खलनायक (1993), बड़े मियाँ छोटे मियाँ (1998), और चाहत (1996) जैसी फिल्मों में यादगार भूमिकाएँ निभाईं. उन्होंने फिल्मों के साथ-साथ राम्या ने टेलीविजन में भी काम किया. उन्होंने तमिल और तेलुगु धारावाहिकों में अभिनय किया और रियलिटी शो में जज के रूप में भी नज़र आईं.

राम्या कृष्णन को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड्स और नंदी अवॉर्ड्स शामिल हैं. उन्होंने दक्षिण भारतीय सिनेमा के साथ-साथ भारतीय सिनेमा में भी एक बड़ा योगदान दिया है.

राम्या कृष्णन ने निर्देशक कृष्णा वामसी से शादी की है और उनका एक बेटा भी है. वे अपने परिवार के साथ एक सुखी जीवन जी रही हैं और फिल्म इंडस्ट्री में सक्रिय बनी हुई हैं.

राम्या कृष्णन एक बहुमुखी और शक्तिशाली अभिनेत्री हैं, जिन्होंने अपने किरदारों के माध्यम से भारतीय सिनेमा में एक अमिट छाप छोड़ी है. चाहे वह तेलुगु सिनेमा हो, तमिल सिनेमा हो या हिंदी सिनेमा, उन्होंने हर जगह अपनी पहचान बनाई है और वे अपने अभिनय से दर्शकों का दिल जीतती आ रही हैं.

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अभिनेत्री हेजल क्राउनी

हेजल क्राउनी एक ब्रिटिश अभिनेत्री और मॉडल हैं, जिन्होंने भारतीय फिल्म उद्योग, खासकर बॉलीवुड में काम किया है. वे अपने आकर्षक व्यक्तित्व और अद्वितीय विदेशी लुक्स के कारण बॉलीवुड में लोकप्रिय हुईं.

हेजल क्राउनी का जन्म 15 सितंबर 1982 को इंग्लैंड के केंट में हुआ था. उनका परिवार ब्रिटिश है और वे इंग्लैंड में ही पली-बढ़ी हैं. भारतीय फिल्म उद्योग से जुड़ने से पहले हेजल ने मॉडलिंग की दुनिया में कदम रखा. हेजल क्राउनी का बॉलीवुड में प्रवेश एक संयोग था. वर्ष 2004 में वे भारत आईं और यहाँ की फिल्मों और संस्कृति से प्रभावित होकर बॉलीवुड में किस्मत आजमाने का फैसला किया. उन्हें शुरुआत में कई विज्ञापन अभियानों में काम मिला, जिसमें वे प्रमुख भारतीय ब्रांड्स का चेहरा बनीं.

फिल्में: –

एम.बी.ए. (मुंबई से ब्यारी) (2006): – हेजल क्राउनी की बॉलीवुड में एंट्री इस फिल्म से हुई थी. यह उनकी पहली हिंदी फिल्म थी, जिसमें उन्हें एक विदेशी किरदार निभाने का मौका मिला.

आप का सुरूर (2007): – हेजल को असली पहचान हिमेश रेशमिया के साथ इस फिल्म में मिली. फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन किया और हेजल के करियर को एक नई दिशा मिली.

धन धना धन गोल (2007): – इस फिल्म में हेजल ने एक छोटी लेकिन महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. यह एक स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्म थी जिसमें जॉन अब्राहम और बिपाशा बसु मुख्य भूमिकाओं में थे.

उल्लास (2012): – उन्होंने कुछ क्षेत्रीय फिल्मों में भी काम किया, जिसमें यह कन्नड़ फिल्म प्रमुख थी.

हेजल ने कुछ म्यूजिक वीडियो और विज्ञापनों में भी काम किया है. उन्होंने टाटा इंडिका, वीएलसीसी, और पिज़्ज़ा हट जैसे ब्रांड्स के लिए विज्ञापन किए. उनका ग्लैमरस लुक और मॉडलिंग बैकग्राउंड उन्हें विज्ञापन इंडस्ट्री में भी एक प्रमुख चेहरा बनाता है.

हेजल क्राउनी की खूबसूरती और विदेशी लुक्स ने उन्हें बॉलीवुड में एक खास जगह दी. वे हिंदी बोलने में भी अच्छी हैं, जो उन्हें भारतीय सिनेमा में और भी फिट बनाती है. हालांकि उन्होंने बहुत ज्यादा फिल्मों में काम नहीं किया, लेकिन अपने छोटे से कैरियर में वे बॉलीवुड दर्शकों के बीच एक जानी-मानी चेहरा बनी रहीं.

हेजल क्राउनी ने बॉलीवुड में एक विदेशी अभिनेत्री के रूप में अपनी पहचान बनाई है. उन्होंने फिल्मों के साथ-साथ मॉडलिंग में भी अच्छा काम किया है और भारत में अपने अभिनय के लिए सराही गई हैं. उनके योगदान ने बॉलीवुड में विदेशी अभिनेत्रियों की एक नई लहर को भी प्रेरित किया है.

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अभीनेत्री नेहा ओबरॉय

नेहा ओबेरॉय एक भारतीय फिल्म अभिनेत्री हैं, जिन्होंने मुख्य रूप से बॉलीवुड फिल्मों में काम किया है. नेहा अपने अभिनय और खूबसूरत व्यक्तित्व के लिए जानी जाती हैं. वे फिल्म निर्माता हरीश ओबेरॉय की बेटी हैं और अभिनेता संजय दत्त की भतीजी, जो बॉलीवुड में एक प्रमुख नाम हैं.

नेहा ओबेरॉय का जन्म एक फिल्मी परिवार में हुआ था/ उन्होंने फिल्मी माहौल में पली-बढ़ी और बचपन से ही अभिनय की ओर रुझान रखा/ उनके परिवार के कई सदस्य फिल्म उद्योग से जुड़े रहे हैं, जिससे उन्हें अभिनय की दुनिया में प्रवेश करना आसान हुआ. नेहा ने 2005 में फिल्म “इंसान” से बॉलीवुड में डेब्यू किया, जिसमें उन्होंने अजय देवगन, अक्षय कुमार और ईशा देओल जैसे बड़े सितारों के साथ काम किया. इसके बाद उन्होंने कुछ और फिल्मों में काम किया.

 प्रमुख फिल्में: –

इंसान (2005): – इस फिल्म से नेहा ने अपने करियर की शुरुआत की. फिल्म में उनका किरदार भले ही प्रमुख नहीं था, लेकिन इससे उन्होंने दर्शकों के बीच अपनी पहचान बनाई.

स्वामी (2007): – इस फिल्म में उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई, जिसमें उनके साथ अभिनेता मनोज बाजपेयी थे. यह एक पारिवारिक ड्रामा फिल्म थी, और नेहा के अभिनय की सराहना की गई.

दस कहानियां (2007): – यह एक एंथोलॉजी फिल्म थी, जिसमें दस अलग-अलग कहानियों को दिखाया गया था. नेहा ने एक कहानी में अभिनय किया और अपनी भूमिका के लिए ध्यान आकर्षित किया.

WOODSTOCK VILLA (2008): – इस फिल्म में उन्होंने सिकंदर खेर के साथ मुख्य भूमिका निभाई थी. हालांकि फिल्म बॉक्स ऑफिस पर खास नहीं चली, लेकिन उनके अभिनय की तारीफ हुई.

नेहा ओबेरॉय का निजी जीवन काफी शांत रहा है. वे अपनी फिल्मों और अभिनय से इतर लाइमलाइट से दूर रहती हैं. हालांकि उन्होंने बहुत ज्यादा फिल्मों में काम नहीं किया, लेकिन उनके अभिनय को समीक्षकों द्वारा सराहा गया है.

नेहा ओबेरॉय ने बॉलीवुड में कुछ फिल्मों के माध्यम से अपनी पहचान बनाई है. वे अपने संक्षिप्त फिल्मी कैरियर के दौरान दर्शकों को अपने अभिनय से प्रभावित करने में सफल रहीं. उनके योगदान ने उन्हें बॉलीवुड की अभिनेत्रियों में एक विशिष्ट स्थान दिलाया है.

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अभिनेत्री मोनिका शर्मा

मोनिका शर्मा एक भारतीय टेलीविज़न अभिनेत्री और मॉडल हैं, जिन्होंने हिंदी टीवी सीरियलों और फैशन इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाई है. अपने आकर्षक व्यक्तित्व और अभिनय प्रतिभा के कारण वे छोटे पर्दे पर लोकप्रिय हो चुकी हैं.

मोनिका शर्मा का जन्म 15 सितंबर 1992 को दिल्ली में हुआ था. उन्हें बचपन से ही मॉडलिंग और अभिनय में रुचि थी, जिसके कारण उन्होंने फैशन इंडस्ट्री में कदम रखा. उन्होंने मिस ग्रैंड इंडिया 2014 प्रतियोगिता में भाग लिया और वहाँ से अपनी मॉडलिंग कैरियर की शुरुआत की. मोनिका शर्मा ने मॉडलिंग से टेलीविज़न की दुनिया में कदम रखा और कई लोकप्रिय धारावाहिकों में काम किया. उनके अभिनय कैरियर की कुछ प्रमुख कड़ियाँ इस प्रकार हैं:

“सावधान इंडिया”: – इस क्राइम शो में उन्होंने विभिन्न कहानियों में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं, जो दर्शकों के बीच खासा लोकप्रिय हुआ.

“काला टीका”: – इस शो में उन्होंने मुख्य किरदार के रूप में अभिनय किया, और उनके अभिनय को काफी सराहना मिली. यह शो सामाजिक मुद्दों और परंपराओं पर आधारित था.

“नागिन 2”: – इस सुपरनैचुरल सीरियल में भी मोनिका ने एक प्रमुख भूमिका निभाई. नागिन श्रृंखला भारत के सबसे लोकप्रिय टीवी शोज में से एक है, और इसमें उनकी भूमिका ने उन्हें और लोकप्रियता दिलाई.

“बैरिस्टर बाबू”: – इस शो में भी उन्होंने अभिनय किया और अपनी भूमिकाओं के लिए तारीफें बटोरीं.

मोनिका शर्मा ने कई ब्रांड्स और फैशन शोज़ में हिस्सा लिया. उन्होंने कई विज्ञापन अभियानों में काम किया और फैशन वीक जैसे बड़े इवेंट्स में भी रैंप वॉक किया है. मिस ग्रैंड इंडिया प्रतियोगिता के बाद उन्हें मॉडलिंग में काफी सफलता मिली और वे कई बड़े ब्रांड्स का चेहरा बनीं.

मोनिका शर्मा एक उभरती हुई अभिनेत्री और मॉडल हैं, जिन्होंने अपने अभिनय और मॉडलिंग कैरियर में शानदार प्रदर्शन किया है. वे अपने खूबसूरत व्यक्तित्व और अभिनय प्रतिभा के बल पर छोटे पर्दे और फैशन इंडस्ट्री में अपनी पहचान बना चुकी हैं.

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पाँचवें सरसंघचालक के एस सुदर्शन

के एस सुदर्शन (कुप्पहल्ली सीतारमैया सुदर्शन) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के पाँचवें सरसंघचालक थे. उनका कार्यकाल 2000 – 09 तक रहा. सुदर्शन जी एक प्रमुख हिंदू राष्ट्रवादी विचारक और संघ के समर्पित कार्यकर्ता थे, जिन्होंने भारतीय संस्कृति, हिंदुत्व और राष्ट्रीय एकता के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए.

के एस सुदर्शन का जन्म 18 जून 1931 को रायपुर (तब मध्य प्रदेश, अब छत्तीसगढ़) में हुआ था. उनके परिवार का मूल रूप से कर्नाटक से संबंध था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा रायपुर में पूरी की और बाद में उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल की.

सुदर्शन के जीवन पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का बहुत गहरा प्रभाव था. उन्होंने 9 साल की उम्र में ही आरएसएस के साथ जुड़ गए थे और अपनी शिक्षा के साथ-साथ संघ के कार्यों में भी सक्रिय रूप से हिस्सा लेने लगे. के एस सुदर्शन ने 1954 में पूर्णकालिक प्रचारक के रूप में आरएसएस के साथ अपना करियर शुरू किया. उन्हें धीरे-धीरे संघ के विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर काम करने का मौका मिला. वे 1970 में आरएसएस के प्रचार विभाग में काम करने लगे और 1990 में उन्हें सह-सरकार्यवाह के पद पर नियुक्त किया गया.

सुदर्शन जी ने 2000 में बालासाहेब देवरस के बाद आरएसएस के पाँचवें सरसंघचालक के रूप में कार्यभार संभाला. उनके कार्यकाल में संघ ने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की धारा को और भी मजबूत किया. वे तकनीकी दृष्टिकोण और भारतीय सांस्कृतिक पुनर्जागरण पर बल देते थे.

स्वदेशी आंदोलन: – सुदर्शन जी ने स्वदेशी विचारधारा का समर्थन किया और देश के आर्थिक और औद्योगिक क्षेत्र में विदेशी कंपनियों के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ आवाज उठाई. वे स्वदेशी तकनीक और उद्योग को बढ़ावा देने के पक्षधर थे.

भारतीय संस्कृति और परंपराओं पर जोर: – सुदर्शन जी भारतीय संस्कृति, परंपराओं और हिंदू धर्म के गहरे समर्थक थे. उन्होंने भारतीय शिक्षा प्रणाली में सुधार और संस्कृत के अध्ययन को बढ़ावा देने पर जोर दिया.

तकनीकी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण: – अपने तकनीकी पृष्ठभूमि के कारण, सुदर्शन जी ने संघ के कार्यक्रमों में तकनीकी और वैज्ञानिक विकास पर भी ध्यान केंद्रित किया. वे आधुनिक विज्ञान और भारतीय परंपराओं को साथ में बढ़ाने की बात करते थे.

धर्मांतरण के खिलाफ: – सुदर्शन जी ने देश में चल रहे धर्मांतरण के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया और इसे भारतीय समाज के लिए खतरा बताया.

वर्ष 2009 में के एस सुदर्शन ने स्वास्थ्य कारणों से सरसंघचालक पद से इस्तीफा दे दिया और उनके स्थान पर मोहन भागवत को आरएसएस का नया सरसंघचालक नियुक्त किया गया. के एस सुदर्शन का निधन 15 सितंबर 2012 को हुआ. वे अपने कार्यों और विचारधारा के कारण आरएसएस और हिंदुत्व विचारधारा में एक प्रमुख व्यक्ति माने जाते हैं.

के एस सुदर्शन एक विचारशील और समर्पित नेता थे, जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान आरएसएस को मजबूत करने और भारतीय संस्कृति तथा हिंदू समाज के उत्थान के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनका जीवन संघ और देश सेवा के प्रति समर्पित था, और वे अपने विचारों और कार्यों के माध्यम से हमेशा याद किए जाते रहेंगे.

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