आचार्य प्यारे मोहन
आचार्य प्यारे मोहन एक प्रमुख भारतीय शिक्षाविद् और आध्यात्मिक गुरु थे. वे अपने समय के प्रतिष्ठित विद्वानों में से एक माने जाते थे और शिक्षा के क्षेत्र में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है.
प्यारे मोहन का जन्म 05 अगस्त 1852 को उड़ीसा राज्य के कटक ज़िले में कौनपा नामक गांव में हुआ था. प्यारे मोहन को पढ़ाई में मन नहीं लगता था परन्तु वे सामाजिक कार्यों में ज्यादा समय देते थे. पढ़ाई के दौरान ही प्यारे ने ‘उत्कल पुत्र’ नामक एक समाचार पत्र का प्रकाशन भी आरंभ किया.
इस पत्रिका में अपने विचार निर्भयतापूर्वक रखते थे. उनके विचारों से नाराज होकर कटक के ज़िला मजिस्ट्रेट ने कॉलेज के प्रिंसिपल को आदेश दिया कि प्यारे मोहन आचार्य को विद्यालय से निकाल दिया जाए. प्यारे मोहन के प्रिंसिपल चाहते थे कि, उनका विद्यार्थी ज़िला मजिस्ट्रेट से क्षमा माँग ले परन्तु प्यारे मोहन इसके लिए तैयार नहीं हुए और उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया.
प्यारे मोहन समाज सेवा में भी गए और लोगों को अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध प्रेरित करते रहे. उन्होंने अपने प्रयास से वर्ष 1875 में एक हाई स्कूल की स्थापना हुई, जो अब ‘प्यारे मोहन एकेडमी’ के नाम से प्रसिद्ध है. प्यारे मोहन का निधन दिसंबर, 1881 में हुआ था.
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मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्रा
द्वारका प्रसाद मिश्रा (1901-1991) मध्य प्रदेश के एक प्रमुख राजनीतिज्ञ थे और उन्होंने दो बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा की. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे और स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय रहे.
द्वारका प्रसाद मिश्रा का जन्म 5 अगस्त 1901 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले में पढरी नामक ग्राम में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम पण्डित अयोध्या प्रसाद और माता का नाम रमा देवी था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय से जुड़े, जहाँ से उन्होंने कानून की डिग्री प्राप्त की.
वर्ष 1920 में द्वारका प्रसाद मिश्रा महात्मा गाँधी के आह्वान पर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े. उन्होंने कई आंदोलनों में भाग लिया और कई बार जेल भी गए. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, द्वारका प्रसाद मिश्रा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सक्रिय हो गए. वे 1963 – 67 और फिर 1969 – 72 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे.
अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान, उन्होंने शिक्षा, कृषि, और औद्योगिक विकास पर ध्यान केंद्रित किया। उनके नेतृत्व में मध्य प्रदेश में कई विकास कार्य और नीतियाँ लागू की गईं.
वर्ष 1942 में जेल में रहते हुए द्वारका प्रसाद मिश्रा जी ने ‘कृष्णायन’ महाकाव्य की रचना की थी. द्वारका प्रसाद मिश्रा ने वर्ष 1954-64 तक ‘सागर विश्वविद्यालय’ के कुलपति के रूप में व्यतीत किया. वर्ष 1971 में राजनीति से अवकाश लेकर उन्होंने सारा समय साहित्य को समर्पित कर दिया था.
द्वारका प्रसाद मिश्रा का निधन 31 मई 1988 को हुआ था. उनके योगदान के लिए हमेशा याद किया जाएगा और भारतीय राजनीति में उनके योगदान को सम्मानित किया जाता है.
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कवि शिवमंगल सिंह सुमन
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ (1915-2002) हिंदी साहित्य के एक प्रमुख कवि और लेखक थे. उनका साहित्यिक योगदान और कविताएँ भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं.
शिवमंगल सिंह सुमन का जन्म 5 अगस्त 1915 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय विद्यालय से प्राप्त की और उच्च शिक्षा के लिए कानपुर और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन किया. सुमन जी ने अपने जीवन में कई प्रसिद्ध कविताएँ लिखीं. उनकी कविताएँ समाज, देशभक्ति, और मानवता पर आधारित होती थीं. उनकी काव्य शैली सरल, प्रभावी और भावनाओं से भरपूर होती थी.
प्रमुख कृतियों: – “मिट्टी की बारात”, “हिल्लोल”, “जीवन के गान”, “विनोबा”, “युग की गंगा”, और “विराम चिन्ह” शामिल हैं. उनकी रचनाओं ने हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है.
शिवमंगल सिंह सुमन को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए. उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्मश्री, और पद्मभूषण जैसे प्रतिष्ठित सम्मान प्रदान किए गए. सुमन जी एक उत्कृष्ट शिक्षक भी थे. उन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में प्रोफेसर और कुलपति के रूप में सेवा की. उनके निर्देशन में कई छात्रों ने हिंदी साहित्य में शोध कार्य किए.
कवि सुमन समाज सेवा में भी सक्रिय रहे और उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से समाज को जागरूक करने का प्रयास किया. शिवमंगल सिंह सुमन का निधन 27 नवंबर 2002 को हुआ. उनके निधन के बाद भी उनकी कविताएँ और रचनाएँ साहित्य प्रेमियों द्वारा पढ़ी और सराही जाती हैं.
शिवमंगल सिंह सुमन का साहित्यिक योगदान और उनकी कविताएँ हिंदी साहित्य के समृद्ध इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं.
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कवि वीरेन डंगवाल
वीरेन डंगवाल (1947-2015) हिंदी के एक प्रमुख कवि और साहित्यकार थे. उनकी कविताएँ सादगी, संवेदनशीलता और गहराई से भरी होती थीं, और उन्होंने हिंदी साहित्य में अपनी विशेष पहचान बनाई.
वीरेन डंगवाल का जन्म 5 अगस्त 1947 को कीर्तिनगर, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा देहरादून से प्राप्त की और उच्च शिक्षा के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन किया, जहाँ से उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की. डंगवाल जी की कविताओं में सामाजिक और राजनीतिक विषयों की गहरी समझ होती थी. उनकी रचनाएँ आम जनता की समस्याओं और भावनाओं को प्रभावी ढंग से व्यक्त करती थीं.
प्रमुख कृतियाँ: – “इसी दुनिया में,” “दुश्चक्र में सृष्टा,” और “स्याही ताल” शामिल हैं. इन संग्रहों में उनकी संवेदनशीलता, सामाजिक चेतना, और मानवीयता की झलक मिलती है. वीरेन डंगवाल को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए. उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो उनके साहित्यिक योगदान का प्रमाण है.
डंगवाल जी ने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी काम किया और लंबे समय तक हिंदी दैनिक “अमर उजाला” में कार्य किया. इसके अलावा, उन्होंने बरेली कॉलेज, बरेली में अंग्रेजी के प्रोफेसर के रूप में भी सेवाएँ दीं. वीरेन डंगवाल समाज सेवा और साहित्यिक सक्रियता में भी भागीदारी रखते थे. उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों में भी हिस्सा लिया और हमेशा समाज के कमजोर वर्गों के लिए आवाज उठाई.
वीरेन डंगवाल का निधन 28 सितंबर 2015 को हुआ. उनके निधन से हिंदी साहित्य को अपूरणीय क्षति हुई, लेकिन उनकी कविताएँ और रचनाएँ हमेशा साहित्य प्रेमियों के बीच जीवित रहेंगी.
वीरेन डंगवाल का साहित्यिक योगदान और उनकी कविताएँ हिंदी साहित्य में हमेशा याद की जाएंगी. उनकी रचनाएँ समाज की सच्चाई और मानवीयता को सजीव रूप में प्रस्तुत करती हैं.
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क्रिकेटर वेंकटेश प्रसाद
वेंकटेश प्रसाद एक भारतीय क्रिकेटर और कोच हैं, जिन्होंने 1990 – 2000 के दशक में भारतीय क्रिकेट टीम के लिए खेला. उनका पूरा नाम बापू कृष्णराव वेंकटेश प्रसाद है और वे मुख्य रूप से अपनी मध्यम गति की गेंदबाजी के लिए जाने जाते हैं.
वेंकटेश प्रसाद का जन्म 5 अगस्त 1969 को बेंगलुरु, कर्नाटक में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बेंगलुरु में पूरी की. वेंकटेश प्रसाद ने 1994 में न्यूजीलैंड के खिलाफ अपना वनडे डेब्यू किया और 1996 में इंग्लैंड के खिलाफ अपना टेस्ट डेब्यू किया. वे एक मध्यम गति के गेंदबाज थे और उनकी स्विंग और सटीक लाइन-लेंथ के लिए प्रसिद्ध थे. वर्ष 1996 विश्व कप में उनके प्रदर्शन को विशेष रूप से याद किया जाता है, खासकर पाकिस्तान के खिलाफ क्वार्टरफाइनल मैच में, जहां उन्होंने आमिर सोहेल को आउट किया था. वेंकटेश प्रसाद ने 33 टेस्ट मैचों में 96 विकेट और 161 वनडे मैचों में 196 विकेट लिए.
क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद, वेंकटेश प्रसाद ने कोचिंग में कदम रखा. वे भारतीय टीम के गेंदबाजी कोच बने और इसके अलावा कई आईपीएल टीमों के साथ भी काम किया. उन्होंने 2007-09 के बीच भारतीय क्रिकेट टीम के गेंदबाजी कोच के रूप में कार्य किया और 2007 के T20 विश्व कप जीतने वाली टीम के कोचिंग स्टाफ का हिस्सा थे. वेंकटेश प्रसाद को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए. वे अपनी खेल भावना और खेल के प्रति निष्ठा के लिए जाने जाते हैं.
वेंकटेश प्रसाद का व्यक्तिगत जीवन भी संतुलित रहा है. वे अपने परिवार के साथ समय बिताना पसंद करते हैं और क्रिकेट के अलावा अन्य सामाजिक कार्यों में भी हिस्सा लेते हैं. वेंकटेश प्रसाद का कैरियर भारतीय क्रिकेट के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है. उनके गेंदबाजी कौशल और कोचिंग में योगदान ने भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है.
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अभिनेत्री काजोल
काजोल (पूरा नाम काजोल मुखर्जी देवगन) एक प्रसिद्ध भारतीय फिल्म अभिनेत्री हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी सिनेमा में अपने काम के लिए जानी जाती हैं. वे भारतीय फिल्म उद्योग की सबसे सफल और सम्मानित अभिनेत्रियों में से एक हैं.
काजोल का जन्म 5 अगस्त 1974 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. उनके पिता, शोमू मुखर्जी, फिल्म निर्माता थे और माँ, तनुजा, एक प्रतिष्ठित फिल्म अभिनेत्री हैं। उनकी बहन तनीषा मुखर्जी भी एक अभिनेत्री हैं. काजोल का विवाह 1999 में प्रसिद्ध अभिनेता अजय देवगन से हुआ और उनके दो बच्चे हैं: बेटी न्यासा और बेटा युग.
काजोल ने 1992 में फिल्म “बेखुदी” से अपने कैरियर की शुरुआत की, लेकिन उन्हें प्रमुख पहचान 1993 में फिल्म “बाज़ीगर” से मिली.
प्रमुख फिल्में: – “दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे” (1995), “कुछ कुछ होता है” (1998), “कभी खुशी कभी ग़म” (2001), “फना” (2006), और “माय नेम इज खान” (2010) शामिल हैं.
काजोल ने अपने कैरियर में कई पुरस्कार जीते हैं, जिनमें 6 फिल्मफेयर अवार्ड्स शामिल हैं. उन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार कई बार जीता है, जो उन्हें बॉलीवुड की शीर्ष अभिनेत्रियों में से एक बनाता है.
काजोल अपनी बेहतरीन अभिनय क्षमताओं और स्वाभाविक अभिनय शैली के लिए जानी जाती हैं. उनकी ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री शाहरुख खान के साथ विशेष रूप से प्रशंसनीय रही है. उन्होंने न केवल रोमांटिक भूमिकाओं में बल्कि गंभीर और नकारात्मक भूमिकाओं में भी खुद को साबित किया है.
काजोल सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय हैं और कई चैरिटेबल संस्थाओं से जुड़ी हुई हैं. वे बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दों पर काम करती हैं. काजोल अब भी फिल्मों में सक्रिय हैं और समय-समय पर विभिन्न परियोजनाओं में दिखाई देती हैं. इसके अलावा, वे ब्रांड एंबेसडर के रूप में भी कई ब्रांड्स से जुड़ी हुई हैं.
काजोल की फिल्मों और उनके अभिनय ने उन्हें भारतीय सिनेमा में एक विशिष्ट स्थान दिलाया है. वे न केवल एक सफल अभिनेत्री हैं, बल्कि एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व भी हैं, जिन्होंने अपने कैरियर में विविधता और गहराई को प्रस्तुत किया है.
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अभिनेता वत्सल सेठ
वत्सल सेठ एक भारतीय अभिनेता, मॉडल और व्यवसायी हैं, जिन्होंने टेलीविजन और फिल्म दोनों में काम किया है. वत्सल सेठ का जन्म 5 अगस्त 1980 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा गोकुलधाम हाई स्कूल, मुंबई से पूरी की और बाद में मितीबाई कॉलेज, मुंबई से कंप्यूटर साइंस में डिग्री प्राप्त की.
वत्सल ने अपने कैरियर की शुरुआत टेलीविजन धारावाहिक “जस्ट मोहब्बत” (1996-2000) से की, जिसमें उन्होंने जय के किरदार को निभाया. यह शो बहुत लोकप्रिय हुआ और वत्सल को पहचान मिली.
वर्ष 2004 में वत्सल ने फिल्म “टार्ज़न: द वंडर कार” से बॉलीवुड में डेब्यू किया, जिसमें उन्होंने अजय देवगन के साथ मुख्य भूमिका निभाई. इसके बाद उन्होंने कई फिल्मों और टीवी शो में काम किया, जिनमें “नन्हे जैसलमेर” (2007), “हीरोज” (2008), और टीवी शो “एक हसीना थी” (2014) और “हासिल” (2017-2018) शामिल हैं.
वत्सल सेठ ने 2017 में अभिनेत्री इशिता दत्ता से शादी की. इशिता दत्ता भी एक प्रसिद्ध अभिनेत्री हैं और दोनों की शादी ने मीडिया में काफी ध्यान आकर्षित किया. वत्सल एक बहुमुखी व्यक्ति हैं और अभिनय के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी सक्रिय हैं. वे विभिन्न ब्रांड्स के लिए मॉडलिंग भी करते हैं. उन्हें फिटनेस और खेल में भी रुचि है और वे अपने फिटनेस रूटीन को काफी गंभीरता से लेते हैं.
वत्सल को उनके अभिनय के लिए कई नामांकन और पुरस्कार मिले हैं. विशेष रूप से, उनके टीवी शो “एक हसीना थी” में उनके प्रदर्शन के लिए उन्हें काफी सराहना मिली.
वत्सल सेठ ने अपने अभिनय कैरियर में विविधता और क्षमता का प्रदर्शन किया है और भारतीय टेलीविजन और फिल्म उद्योग में अपनी एक विशेष पहचान बनाई है. वे लगातार नए और चुनौतीपूर्ण भूमिकाओं की तलाश में रहते हैं और अपने प्रशंसकों के बीच लोकप्रिय बने हुए हैं.
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अभिनेत्री जेनेलिया डिसूजा
जेनेलिया डिसूजा एक भारतीय फिल्म अभिनेत्री और मॉडल हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी, तमिल, तेलुगु, और कन्नड़ फिल्मों में अपने काम के लिए जानी जाती हैं. जेनेलिया डिसूजा का जन्म 5 अगस्त 1987 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. उनके पिता, नील डिसूजा, एक वरिष्ठ अधिकारी हैं और माँ, जीनत डिसूजा, मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत थीं. जेनेलिया ने अपनी स्कूली शिक्षा मुंबई के एप्सकोपल स्कूल से प्राप्त की और सेंट एंड्रूज कॉलेज से कॉमर्स में स्नातक की डिग्री प्राप्त की.
जेनेलिया ने अपने कैरियर की शुरुआत 2003 में फिल्म “तुझे मेरी कसम” से की, जिसमें उनके सह-कलाकार रितेश देशमुख थे. यह फिल्म सफल रही और उन्हें लोकप्रियता मिली. उन्होंने तेलुगु फिल्म उद्योग में भी अपनी पहचान बनाई, जहां उन्होंने “बॉम्मारिलु” (2006) और “सत्याम” (2003) जैसी हिट फिल्मों में काम किया.
जेनेलिया ने तमिल फिल्मों में भी काम किया और “सचिन” (2005) और “संतोष सुब्रमण्यम” (2008) जैसी फिल्मों में नजर आईं. उन्होंने हिंदी फिल्म उद्योग में उनकी प्रमुख फिल्मों में “जाने तू… या जाने ना” (2008), “लाइफ पार्टनर” (2009), और “फोर्स” (2011) शामिल हैं.
जेनेलिया डिसूजा ने 2012 में अभिनेता रितेश देशमुख से शादी की. दोनों की मुलाकात उनकी पहली फिल्म “तुझे मेरी कसम” के दौरान हुई थी और उनके बीच लंबे समय से संबंध थे. उनके दो बेटे हैं, राहिल और रियान. जेनेलिया ने कई विज्ञापनों और ब्रांड्स के लिए मॉडलिंग भी की है. वे विभिन्न सामाजिक और चैरिटेबल कार्यों में भी सक्रिय हैं. उन्हें स्पोर्ट्स में भी रुचि है और वे एक अच्छी एथलीट रह चुकी हैं.
जेनेलिया को उनके अभिनय के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं, जिनमें फिल्मफेयर पुरस्कार, आईफा पुरस्कार और नंदी पुरस्कार शामिल हैं. जेनेलिया डिसूजा की कैरियर यात्रा उनकी प्रतिभा, मेहनत और समर्पण का प्रतीक है. वे अपनी मासूमियत और प्राकृतिक अभिनय शैली के लिए जानी जाती हैं और उन्होंने भारतीय फिल्म उद्योग में अपनी एक विशेष पहचान बनाई है.
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स्वतंत्रता सेनानी गोपीनाथ बोरदोलोई
गोपीनाथ बोरदोलोई (1890-1950) एक प्रमुख भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और असम के पहले मुख्यमंत्री थे. वे स्वतंत्रता संग्राम में अपने योगदान और असम के विकास में उनके महत्वपूर्ण कार्यों के लिए जाने जाते हैं.
गोपीनाथ बोरदोलोई का जन्म 6 जून 1890 को असम के नागांव जिले के राहा गाँव में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज से पूरी की और बाद में कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी.ए. और लॉ की डिग्री प्राप्त की.
बोरदोलोई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए और महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लिया. वे 1922 में असहयोग आंदोलन में शामिल हुए और जेल भी गए. उन्होंने 1930 और 1942 के आंदोलनों में भी भाग लिया और कई बार जेल गए. उन्होंने असम में कांग्रेस पार्टी को मजबूत किया और वहाँ के किसानों और मजदूरों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया.
गोपीनाथ बोरदोलोई असम के पहले मुख्यमंत्री बने और 1946 -50 तक इस पद पर रहे. उनके नेतृत्व में असम का आर्थिक और सामाजिक विकास हुआ. उन्होंने असम की भाषाई और सांस्कृतिक एकता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए और असम को भारत का एक अभिन्न हिस्सा बनाए रखा.
बोरदोलोई ने असम में शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए कई योजनाएँ लागू कीं. उन्होंने असम में विश्वविद्यालयों और अन्य शैक्षिक संस्थानों की स्थापना की और असमिया भाषा और संस्कृति को संरक्षित करने के लिए प्रयास किए. गोपीनाथ बोरदोलोई को 1999 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया, जो भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है. उनके योगदान को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली.
गोपीनाथ बोरदोलोई का निधन 5 अगस्त 1950 को हुआ. उन्हें “लोकप्रिय” के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है “लोगों का नेता”. उनके सम्मान में कई स्थानों और संस्थानों के नाम रखे गए हैं, जैसे कि गुवाहाटी का गोपीनाथ बोरदोलोई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा.
गोपीनाथ बोरदोलोई का जीवन और कार्य असम और भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. उनके नेतृत्व और समर्पण ने असम को समृद्ध और एकीकृत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
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क्रिकेटर लाला अमरनाथ
लाला अमरनाथ (1911-1996) भारतीय क्रिकेट के एक महान खिलाड़ी और क्रिकेट इतिहास के महत्वपूर्ण व्यक्तित्व थे. वे भारतीय क्रिकेट के पहले सुपरस्टार और एक उत्कृष्ट आलराउंडर के रूप में जाने जाते हैं.
लाला अमरनाथ का जन्म 11 सितंबर 1911 को लुधियाना, पंजाब में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लुधियाना में प्राप्त की और क्रिकेट में अपनी प्रतिभा को निखारने के लिए युवा उम्र से ही खेलना शुरू किया. लाला अमरनाथ ने 1933 में इंग्लैंड के खिलाफ भारत के लिए टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण किया। यह भारत की पहली टेस्ट सीरीज़ थी.
उन्होंने 1936 में इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट क्रिकेट में अपने करियर का बेहतरीन प्रदर्शन किया, जिसमें उन्होंने तीन शतकीय पारियां खेलीं और भारत को पहली बार एक टेस्ट मैच जीतने में मदद की. अमरनाथ एक प्रमुख आलराउंडर थे. उन्होंने बल्लेबाजी और गेंदबाजी दोनों में उत्कृष्टता दिखाई. वे मध्यम गति की गेंदबाजी भी करते थे और शानदार बैटिंग तकनीक के लिए प्रसिद्ध थे. उन्होंने 1947-48 के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर शानदार प्रदर्शन किया, जिसमें उन्होंने अपने प्रदर्शन के लिए विशेष रूप से सराहना प्राप्त की.
लाला अमरनाथ ने 1940 – 50 के दशक में भारत की पहली वनडे टीम का भी हिस्सा बने. क्रिकेट के अलावा, लाला अमरनाथ ने भारतीय क्रिकेट के विकास के लिए भी काम किया. वे भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के सदस्य और अध्यक्ष के रूप में भी कार्यरत रहे. उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम के कोच के रूप में भी कार्य किया और कई युवा क्रिकेटरों को प्रशिक्षण दिया.
लाला अमरनाथ का विवाह 1938 में सायरा अमरनाथ से हुआ और उनके तीन संतानें हैं, जिनमें एक बेटा मोहिंदर अमरनाथ और दो बेटियां शामिल हैं. लाला अमरनाथ का निधन 5 अगस्त 1996 को हुआ. उन्हें भारतीय क्रिकेट के इतिहास में उनकी उत्कृष्टता और योगदान के लिए हमेशा याद किया जाएगा. उन्हें उनकी क्रिकेट की उपलब्धियों के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले, और उनका नाम भारतीय क्रिकेट के महान खिलाड़ियों की सूची में अमर रहेगा.
लाला अमरनाथ की क्रिकेट यात्रा और उनके योगदान ने भारतीय क्रिकेट को महत्वपूर्ण दिशा दी और उन्हें भारतीय क्रिकेट का एक अनमोल रत्न बना दिया.