स्वतंत्रता सेनानी अरुणा आसफ अली
अरुणा आसफ अली एक स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्हें उनके साहसिक और प्रेरणादायक कार्यों के लिए याद किया जाता है. उनका जन्म 16 जुलाई 1909 को पंजाब (अब हरियाणा) के कालका में हुआ था. उनके पिता का नाम उपेंद्रनाथ गांगुली था, जो एक ब्राह्मण परिवार से थे, और उनकी माता अंबालिका देवी का संबंध एक समृद्ध बंगाली परिवार से था.
वर्ष 1942 में जब महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया, अरुणा आसफ अली ने मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराकर इस आंदोलन की शुरुआत की. यह घटना ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण मानी जाती है.
अंग्रेजों द्वारा उनकी गिरफ्तारी के प्रयासों के बावजूद, अरुणा आसफ अली भूमिगत होकर स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहीं. उन्होंने भूमिगत प्रेस और पर्चों के माध्यम से आंदोलन को सक्रिय बनाए रखा.
स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ अरुणा आसफ अली ने समाजवाद और महिला अधिकारों के लिए भी संघर्ष किया. वे अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की सदस्य रहीं और उन्होंने भारतीय महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए काम किया.
अरुणा आसफ अली ने ‘इंकलाब’ नामक समाचार पत्र का संपादन भी किया, जो स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर केंद्रित था. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी अरुणा आसफ अली ने राजनीति और समाज सेवा में सक्रिय रहीं. वे दिल्ली की पहली मेयर बनीं और उन्होंने गरीबों और वंचितों के लिए काम किया.
अरुणा आसफ अली को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें 1992 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ शामिल है. उनका निधन 29 जुलाई 1996 को हुआ था.
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हॉकी कप्तान धनराज पिल्ले
धनराज पिल्ले एक हॉकी खिलाड़ी और पूर्व कप्तान हैं. उनका जन्म 16 जुलाई 1968 को महाराष्ट्र के खड़की में हुआ था. उन्होंने भारतीय हॉकी को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और अपनी तेज़ गति, ड्रिब्लिंग कौशल और गोल स्कोरिंग क्षमताओं के लिए मशहूर हैं.
धनराज पिल्ले का कैरियर बहुत ही शानदार और प्रेरणादायक रहा है. उन्होंने भारतीय हॉकी टीम के लिए चार ओलंपिक खेलों (1992, 1996, 2000, 2004), चार विश्व कप (1990, 1994, 1998, 2002), चार एशियाई खेलों (1990, 1994, 1998, 2002) और चार चैंपियंस ट्रॉफी में भाग लिया. उन्होंने अपने कैरियर में 339 अंतर्राष्ट्रीय मैच खेले और 170 गोल किए. धनराज पिल्ले ने भारतीय हॉकी टीम की कप्तानी की और उनकी नेतृत्व में टीम ने कई महत्वपूर्ण जीत दर्ज कीं. उनकी कप्तानी में भारत ने 1998 में बैंकॉक एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता और 2003 में एशिया कप भी जीता.
धनराज पिल्ले को उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन और योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उन्हें 1995 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ और 2000 में ‘राजीव गांधी खेल रत्न’ से सम्मानित किया गया। 2001 में उन्हें ‘पद्म श्री’ से भी नवाजा गया.
राष्ट्रीय टीम के अलावा, धनराज पिल्ले ने कई घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय क्लबों के लिए भी खेला. उन्होंने भारत में कई क्लबों और यूरोप में भी खेला, जहां उन्होंने अपनी टीमों को कई खिताब जीतने में मदद की. धनराज पिल्ले की पहचान एक अंतर्राष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी के रूप में भी स्थापित हुई. उन्हें दुनिया भर में उनके खेल और उनकी खेल भावना के लिए सराहा गया.
धनराज पिल्ले ने भारतीय हॉकी को एक नई दिशा दी और उनकी उपलब्धियाँ आज भी नए खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं. वे न केवल एक उत्कृष्ट खिलाड़ी थे बल्कि एक महान कप्तान और नेता भी थे. उनकी मेहनत और समर्पण ने भारतीय हॉकी को वैश्विक मंच पर सम्मान दिलाया.
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अभिनेत्री कटरीना कैफ
कटरीना कैफ भारतीय फिल्म उद्योग की एक प्रसिद्ध अभिनेत्री और मॉडल हैं. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग से की थी और जल्द ही बॉलीवुड में अपनी पहचान बनाई. उनका जन्म 16 जुलाई 1983 को हांगकांग में हुआ था. कटरीना के पिता मोहम्मद कैफ कश्मीरी हैं और उनकी माता सुजैन टरकॉट अंग्रेज़ हैं. उनके माता-पिता का तलाक हो चुका है, और उनकी माँ ने ही उनका पालन-पोषण किया है.
कटरीना कैफ ने अपने कैरियर की शुरुआत 2003 में फिल्म “बूम” से की, जो बॉक्स ऑफिस पर असफल रही. लेकिन उनकी खूबसूरती और अभिनय क्षमता ने उन्हें जल्द ही ध्यान आकर्षित करने में मदद की.
वर्ष 2005 में, उन्होंने तेलुगु फिल्म “मल्लीस्वारी” में काम किया और उसके बाद 2005 में आई फिल्म “सरकार” में एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण रोल निभाया. लेकिन उनकी पहली बड़ी हिट फिल्म “मैंने प्यार क्यूँ किया?”(2005) थी. जिसमें उन्होंने सलमान खान के साथ मुख्य भूमिका निभाई.
कटरीना ने कई हिट फिल्मों में काम किया है, जैसे “नमस्ते लंदन” (2007), “पार्टनर” (2007), “वेलकम” (2007), “सिंह इज़ किंग” (2008), “न्यू यॉर्क” (2009), “राजनीति” (2010), “ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा” (2011), “एक था टाइगर” (2012), “धूम 3” (2013), और “टाइगर ज़िंदा है” (2017).
कटरीना ने विभिन्न प्रकार की भूमिकाओं में काम किया है, जिनमें रोमांटिक, कॉमेडी, एक्शन और ड्रामा शामिल हैं. उनकी अभिनय क्षमता और डांस स्किल्स के लिए भी उन्हें सराहा गया है. कटरीना के सात भाई-बहन हैं. उनकी माँ एक सामाजिक कार्यकर्ता और वकील हैं, जिन्होंने भारत और अन्य देशों में चैरिटी का काम किया है. कटरीना का नाम कई बॉलीवुड अभिनेताओं के साथ जुड़ा है, जिनमें सलमान खान और रणबीर कपूर प्रमुख हैं. वर्ष 2021 में उन्होंने अभिनेता विक्की कौशल से शादी की.
कटरीना ने अपने कैरियर में कई पुरस्कार जीते हैं, जिनमें फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार और ज़ी सिने पुरस्कार शामिल हैं. कटरीना कई प्रमुख ब्रांड्स की ब्रांड एंबेसडर रही हैं, जिनमें लक्स, नक्षत्र, पैंटीन और लोरियल शामिल हैं. कटरीना ने सामाजिक कार्यों में भी हिस्सा लिया है और कई चैरिटी प्रोजेक्ट्स का समर्थन किया है, खासकर अपनी मां की चैरिटी संस्था के माध्यम से.
कटरीना कैफ ने भारतीय फिल्म उद्योग में अपनी जगह बनाई है और आज भी वे प्रमुख अभिनेत्रियों में से एक मानी जाती हैं.
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अभिनेत्री अंशा सैयद
अंशा सैयद एक अभिनेत्री और मॉडल हैं, जिन्हें मुख्य रूप से टेलीविजन धारावाहिकों और फिल्मों में उनके काम के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत टेलीविजन से की और जल्द ही दर्शकों के बीच अपनी पहचान बनाई.
अंशा सैयद का जन्म 16 जुलाई 1988 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. उनका असली नाम प्रीतो सैयद है, लेकिन वे अंशा सैयद के नाम से जानी जाती हैं. उन्होंने मुंबई से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की और बाद में अभिनय की दुनिया में कदम रखा.
अंशा सैयद ने कई लोकप्रिय टेलीविजन धारावाहिकों में काम किया है, लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा पहचान सीआईडी (CID) शो से मिली. सीआईडी में उन्होंने इंस्पेक्टर पुरवी की भूमिका निभाई, जो दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय हुई. उनके अभिनय की सराहना की गई और उन्होंने शो में अपनी खास जगह बनाई.
टेलीविजन के अलावा, अंशा ने कुछ फिल्मों में भी काम किया है, हालांकि उनका मुख्य फोकस टेलीविजन ही रहा है. अंशा सैयद अपने निजी जीवन को बहुत निजी रखना पसंद करती हैं और उन्होंने अपने परिवार और व्यक्तिगत जीवन के बारे में बहुत कम जानकारी सार्वजनिक रूप से साझा की है.
अंशा सैयद ने अपने अभिनय और प्रतिभा के दम पर टेलीविजन उद्योग में एक खास जगह बनाई है. उनका किरदार इंस्पेक्टर पुरवी आज भी दर्शकों के बीच लोकप्रिय है. उन्होंने अपने अभिनय कौशल से यह साबित किया है कि वे किसी भी भूमिका को बखूबी निभा सकती हैं, चाहे वह एक पुलिस अधिकारी की हो या किसी और किरदार की.
अंशा सैयद भारतीय टेलीविजन इंडस्ट्री की एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक हस्ती हैं, जिन्होंने अपने काम से लोगों के दिलों में जगह बनाई है.
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इतिहासकार बरुण डे
बरुण डे एक भारतीय इतिहासकार थे, जिन्हें भारतीय इतिहास, खासकर औपनिवेशिक और आधुनिक भारतीय इतिहास के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जाना जाता है. उनका जन्म 30 अक्टूबर 1932 को हुआ था और उनकी मृत्यु 16 जुलाई 2013 को हुई.
बरुण डे ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से प्राप्त की. इसके बाद उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से इतिहास में उच्च शिक्षा प्राप्त की, जहाँ उन्होंने प्रतिष्ठित विद्वानों के साथ अध्ययन किया. बरुण ने अपने शैक्षणिक करियर की शुरुआत एक प्रोफेसर के रूप में की और विभिन्न भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़ाया. वे इतिहास के एक प्रमुख विद्वान थे और उनकी पढ़ाई और शोध ने भारतीय इतिहास के विभिन्न पहलुओं पर महत्वपूर्ण प्रकाश डाला.
बरुण डे इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च (ICHR) के संस्थापक निदेशक थे. उन्होंने ICHR को एक प्रतिष्ठित शोध संस्थान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. बरुण ने कोलकाता के सेंटर फॉर स्टडीज़ इन सोशल साइंसेज (CSSS) के निदेशक के रूप में भी सेवा की, जहाँ उन्होंने सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण शोध और शिक्षण कार्य किया.
बरुण डे ने भारतीय इतिहास के औपनिवेशिक और आधुनिक काल पर व्यापक शोध किया. उनकी किताबें और लेख इन विषयों पर गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं और उन्हें इतिहासकारों और छात्रों के बीच सम्मानित किया जाता है. बरुण डे ने कई शोध पत्र और किताबें लिखीं, जो भारतीय इतिहास के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं. उनके कार्यों में ऐतिहासिक तथ्यों का विस्तृत विश्लेषण और नए दृष्टिकोण शामिल हैं.
बरुण डे को उनके उत्कृष्ट शैक्षणिक और शोध कार्य के लिए कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए. उनके योगदान को भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक समुदाय में व्यापक रूप से सराहा गया. बरुण अपने व्यक्तिगत जीवन को बहुत निजी रखना पसंद करते थे. वे अपने समर्पण और शैक्षणिक उत्कृष्टता के लिए जाने जाते थे और उनके विद्यार्थी और सहकर्मी उन्हें एक प्रेरणादायक शिक्षक और विद्वान मानते थे.
बरुण डे की मृत्यु के बाद भी, उनके कार्य और योगदान भारतीय इतिहास के अध्ययन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. उनके शोध और शिक्षण ने भारतीय इतिहास की समझ को गहरा किया और उन्हें एक सम्मानित और प्रेरणादायक इतिहासकार के रूप में स्थापित किया.
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अभिनेत्री और टेलीविजन कलाकार सुरेखा सीकरी
सुरेखा सीकरी भारतीय फिल्म, टेलीविजन और रंगमंच की एक अभिनेत्री थीं. उनका जन्म 19 अप्रैल 1945 को हुआ था और उनका निधन 16 जुलाई 2021 को हुआ. उन्होंने अपने लंबे और सफल कैरियर में कई यादगार भूमिकाएं निभाई और अपने अद्वितीय अभिनय कौशल से दर्शकों के दिलों में एक विशेष स्थान बनाया.
सुरेखा सीकरी का जन्म उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा में हुआ था. उनका परिवार बाद में नैनीताल में बस गया. उन्होंने दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) से ग्रेजुएशन किया और वहां से अभिनय की बारीकियां सीखीं। NSD में उनके प्रशिक्षण ने उनके अभिनय कैरियर को संवारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
सुरेखा सीकरी ने अपने कैरियर की शुरुआत रंगमंच से की और भारतीय रंगमंच में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने विभिन्न नाटकों में काम किया और अपने उत्कृष्ट अभिनय के लिए प्रसिद्ध हुईं. सुरेखा सीकरी ने 1978 में फिल्म “किस्सा कुर्सी का” से बॉलीवुड में डेब्यू किया. इसके बाद उन्होंने कई महत्वपूर्ण फिल्मों में काम किया, जिनमें “तमस” (1988), “सलीम लंगड़े पे मत रो” (1989), “सरदारी बेगम” (1996), “ज़ुबैदा” (2001), “रेनकोट” (2004), और “बधाई हो” (2018) शामिल हैं.
“बधाई हो” (2018)फिल्म में दादी की भूमिका के लिए सुरेखा सीकरी को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार सहित कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. सुरेखा सीकरी ने टेलीविजन पर भी अपनी खास पहचान बनाई. वे “बालिका वधू” में ‘दादी सा’ की भूमिका के लिए खासतौर पर जानी जाती हैं. इस भूमिका ने उन्हें घर-घर में मशहूर कर दिया और उन्हें कई पुरस्कार भी मिले.
सुरेखा सीकरी को तीन बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उन्हें 1988 में “तमस” के लिए, 1995 में “मम्मो” के लिए और 2018 में “बधाई हो” के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. सुरेखा सीकरी ने अपने शानदार अभिनय के लिए कई अन्य पुरस्कार भी जीते, जिनमें फिल्मफेयर पुरस्कार, स्क्रीन पुरस्कार, और इंडियन टेली अवार्ड्स शामिल हैं.
सुरेखा सीकरी का विवाह हेमंत रेगे से हुआ था, और उनका एक पुत्र है, राहुल सीकरी. वे अपने अंतिम समय तक अभिनय से जुड़ी रहीं और अपने काम के प्रति उनकी निष्ठा और समर्पण अद्वितीय था. सुरेखा सीकरी का निधन 16 जुलाई 2021 को हुआ. उनके निधन से भारतीय फिल्म और टेलीविजन उद्योग ने एक महान कलाकार को खो दिया. उनके योगदान और यादगार भूमिकाएं हमेशा दर्शकों के दिलों में जीवित रहेंगी.
सुरेखा सीकरी ने अपने अभिनय के माध्यम से भारतीय सिनेमा और टेलीविजन में अमिट छाप छोड़ी है और वे हमेशा एक प्रेरणा स्रोत बनी रहेंगी.