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व्यक्ति विशेष

भाग – 171.

पार्श्वगायक हेमन्त कुमार

हेमन्त कुमार भारतीय संगीत जगत के एक पार्श्वगायक और संगीतकार थे.  हेमन्त का जन्म 16 जून 1920 को वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था और उनका निधन 26 सितम्बर 1989 को हुआ. उनका पूरा नाम हेमन्त कुमार मुखोपाध्याय था.

हेमन्त कुमार का विवाह बेला मुखर्जी से हुआ था, जो खुद भी एक गायिका थीं. उनके पुत्र जयंत मुखर्जी और पुत्री रानू मुखर्जी भी संगीत क्षेत्र से जुड़े हुए हैं.

हेमन्त ने अपने कैरियर में  हिंदी, बंगाली, मराठी, और कई अन्य भाषाओं में गाने गाए. उनकी आवाज में एक विशेष प्रकार की मिठास और भावनात्मकता थी जो आज भी श्रोताओं को बहुत प्रभावित करती है. वो एक सफल संगीतकार भी थे. उन्होंने कई फिल्मों में संगीत दिया.

प्रमुख फिल्में: –  नागिन (1954), बीस साल बाद (1962), अनुपमा (1966).

प्रमुख गाने:  –  “ये रात ये चांदनी फिर कहाँ”, “तुम पुकार लो”, “जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला” व  “है अपना दिल तो आवारा”.

हेमन्त को उनकी उत्कृष्ट गायकी और संगीत निर्देशन के लिए कई पुरस्कार मिले. उन्होंने फिल्मफेयर पुरस्कार भी जीता था. हेमन्त ने भारतीय संगीत जगत में अपने गायन और संगीत निर्देशन के माध्यम से अमूल्य योगदान दिया. उनके गाने आज भी श्रोताओं के बीच लोकप्रिय हैं और उनकी संगीत की धुनें आज भी जीवंत हैं. उनका नाम भारतीय संगीत के इतिहास में सदैव स्मरणीय रहेगा.

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अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती

मिथुन चक्रवर्ती भारतीय फिल्म उद्योग के एक प्रसिद्ध अभिनेता, गायक, निर्माता और राजनेता हैं. लोग उन्हें प्यार से ‘मिथुन दा’ भी कहते हैं. उनका वास्तविक नाम गौरांग चक्रवर्ती है.  उनका जन्म 16 जून 1950 को कलकत्ता में हुआ था.

मिथुन ने स्कॉटिश चर्च कॉलेज (कलकत्ता ) से रसायन विज्ञान में BSc स्नातक की डिग्री हासिल कर वे भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान, पुणे से भी स्नातक की डिग्री हासिल की. बताते चलें कि, फिल्म उद्योग में प्रवेश करने से पहले मिथुन चक्रवर्ती एक कट्टर नक्सली थे साथ ही मिथुन चक्रवर्ती ने मार्शल आर्ट में भी महारत हासिल की है.

मिथुन चक्रवर्ती का विवाह अभिनेत्री योगिता बाली से हुआ. उनके चार बच्चे -मिमोह, रिमोह, नामाशी, दिशानी.  मिथुन दा ने अपने कैरियर की शुरूआत फिल्म ‘मृगया’ से की थी जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था. मिथुन दा को बड़ी सफलता म्युजिकल फिल्म डिस्को डांसर से 1982 में मिली थी.

डिस्को डांसर की लोकप्रियता  के बाद मिथुन बड़े सितारों बन गए. इस फिल्म का गाना “आई एम ए डिस्को डांसर” बहुत ही प्रसिद्ध हुआ था.

प्रमुख फिल्में: –  “वर्दात”, “सुरक्षा”, “प्यार झुकता नहीं”, “प्यार का मंदिर” और “अग्निपथ” (1990) – इस फिल्म में उन्होंने “कृष्णन अय्यर एम.ए.” का यादगार किरदार निभाया. उन्होंने हिंदी के अलावा बंगाली, भोजपुरी, ओड़िया और पंजाबी फिल्मों में भी काम किया है. उन्होंने कई टेलीविजन शो में भी जज की भूमिका निभाई, जिनमें “डांस इंडिया डांस” सबसे प्रसिद्ध है.

मिथुन चक्रवर्ती को उनकी अदाकारी और योगदान के लिए कई अन्य पुरस्कार और सम्मान भी मिले हैं. मिथुन चक्रवर्ती तृणमूल कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए और 2014 में राज्यसभा के सदस्य बने.

मिथुन चक्रवर्ती का भारतीय सिनेमा में योगदान अमूल्य है. उनके डांस स्टाइल और अभिनय ने उन्हें एक आइकॉन बना दिया है. उनकी फिल्मों और गानों ने भारतीय पॉप कल्चर में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है.

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स्वतंत्रता सेनानी चित्तरंजन दास

चित्तरंजन दास जिन्हें “देशबंधु” (देश के मित्र) के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता और वकील थे. उनका जन्म 5 नवम्बर 1870 को हुआ और उनका निधन 16 जून 1925 को हुआ था.

चित्तरंजन दास का जन्म बंगाल में एक प्रसिद्ध परिवार में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता में प्राप्त की और बाद में उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गए, जहाँ उन्होंने कानून की पढ़ाई की. इंग्लैंड से लौटने के बाद, चित्तरंजन दास ने कलकत्ता उच्च न्यायालय में वकालत की शुरुआत की.

उन्होंने कई महत्वपूर्ण मामलों में काम किया, जिनमें से एक सबसे प्रसिद्ध मामला था, अरविंद घोष का बचाव करना, जो अलिपुर बम मामले में आरोपी थे. इस मामले में उन्होंने अपनी अद्वितीय वकालत कौशल का प्रदर्शन किया और अरविंद घोष को बरी कराया.

चित्तरंजन दास भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सक्रिय रूप से शामिल हुए और स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख नेता बने.1920 में उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया और अपनी वकालत की प्रैक्टिस को छोड़ दिया. उन्होंने स्वराज पार्टी की स्थापना की और इसके प्रथम अध्यक्ष बने. स्वराज पार्टी ने भारतीय विधान परिषदों में भारतीयों के अधिकारों की वकालत की.

चित्तरंजन दास ने भारतीय समाज में सुधारों के लिए भी काम किया. उन्होंने दलितों और गरीबों के उत्थान के लिए कई योजनाएँ बनाई. उन्होंने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी योगदान दिया. उन्होंने कई स्कूल और अस्पताल भी स्थापित किए.

चित्तरंजन दास एक उत्कृष्ट कवि और लेखक भी थे. उनकी कविताएँ और लेखन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोगों को प्रेरित करते थे. उन्होंने “नव शाक्ति” नामक पत्रिका की स्थापना की, जिसमें उन्होंने अपने विचारों और स्वतंत्रता संग्राम के मुद्दों को प्रकाशित किया.

चित्तरंजन दास का निधन 16 जून 1925 को हुआ. उनके निधन के बाद, उनकी विरासत को सम्मानित करने के लिए कलकत्ता में एक पार्क और एक अस्पताल का नाम उनके नाम पर रखा गया, जिसे चित्तरंजन नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट कहा जाता है.

चित्तरंजन दास का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान अमूल्य है. उनके निस्वार्थ सेवा, अद्वितीय वकालत और नेतृत्व के कारण उन्हें “देशबंधु” की उपाधि दी गई और वे भारतीय इतिहास में सदैव स्मरणीय रहेंगे.

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वैज्ञानिक प्रफुल्ल चंद्र राय

प्रफुल्ल चंद्र राय एक भारतीय रसायनज्ञ और शिक्षाविद् थे, जिन्हें भारत में आधुनिक रसायन विज्ञान के जनक के रूप में जाना जाता है. उनका जन्म 2 अगस्त 1861 को बंगाल प्रेसीडेंसी के एक छोटे से गांव रारूली-कटिपारा में हुआ था और उनका निधन 16 जून 1944 को हुआ था.

प्रफुल्ल चंद्र राय के पिता, हरिश्चंद्र राय, एक संपन्न ज़मींदार थे और उन्होंने अपने बच्चों को उच्च शिक्षा देने का महत्व समझा. प्रफुल्ल चंद्र ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गाँव में प्राप्त की और बाद में कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की. उन्होंने एडिनबर्ग विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान में डिग्री प्राप्त की, जहाँ उन्होंने अपनी शोध के दौरान कई महत्वपूर्ण खोजें कीं.

प्रफुल्ल चंद्र राय ने रसायन विज्ञान के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण शोध किए. उनकी सबसे प्रसिद्ध खोज मर्क्यूरस नाइट्रेट थी. उन्होंने “रसायन विज्ञान का इतिहास” नामक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने प्राचीन भारतीय रसायन विज्ञान के योगदान का वर्णन किया.

प्रफुल्ल चंद्र राय ने 1889 में प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता में रसायन विज्ञान के प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं शुरू कीं. उन्होंने अपने शिक्षण के माध्यम से कई भारतीय वैज्ञानिकों को प्रेरित किया और भारतीय विज्ञान की नींव मजबूत की.

वर्ष 1901 में उन्होंने बंगाल केमिकल एंड फार्मास्युटिकल वर्क्स की स्थापना की, जो भारत की पहली फार्मास्युटिकल कंपनी थी. इस कंपनी ने भारतीय उद्यमिता को एक नई दिशा दी और भारतीय उद्योग के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

प्रफुल्ल चंद्र राय को उनके योगदान के लिए कई सम्मान और पुरस्कार मिले. उन्हें “नाइट” की उपाधि से भी सम्मानित किया गया था. भारतीय रसायन विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान के कारण उन्हें “फादर ऑफ इंडियन केमिस्ट्री” के रूप में भी जाना जाता है.

प्रफुल्ल चंद्र राय ने अपना सारा जीवन शिक्षा और विज्ञान के प्रचार-प्रसार में समर्पित किया. वे एक साधारण जीवन जीते थे और अपने संसाधनों का उपयोग समाज की भलाई के लिए करते थे.

प्रफुल्ल चंद्र राय की वैज्ञानिक खोजों और शिक्षण के कारण उन्हें भारतीय विज्ञान में एक अद्वितीय स्थान प्राप्त है. उनके योगदान को सम्मानित करने के लिए, कई संस्थानों और पुरस्कारों का नाम उनके नाम पर रखा गया है.

प्रफुल्ल चंद्र राय की जीवन गाथा भारतीय वैज्ञानिक इतिहास में एक प्रेरणादायक अध्याय है. उनके कार्य और योगदान आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे.

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