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व्यक्ति विशेष

भाग - 123.

भामाशाह

भामाशाह एक उदार दानवीर थे. वे मेवाड़ के महाराणा प्रताप के मित्र, सहयोगी और विश्वासपात्र सलाहकार थे. भामाशाह का जन्म 29 अप्रैल, 1547 को मेवाड़, राजस्थान में हुआ था और उनकी मृत्यु 1600 में हुई थी.

भामाशाह ने मेवाड़ के उद्धार के लिए महाराणा प्रताप को बड़ी मात्रा में धन सम्पत्ति दान कर दिया था. जिससे महाराणा को अपनी सेना को फिर से संगठित करने और अपने राज्य को मुगलों से बचाने में मदद मिली.

भामाशाह ने न केवल आर्थिक सहायता प्रदान की, बल्कि वह खुद भी एक साहसी योद्धा थे और उन्होंने कई युद्धों में भाग लिया. उनका यह उदार कार्य महाराणा प्रताप के प्रति उनकी वफादारी और समर्पण का प्रतीक है. आज भी भामाशाह को एक महान दानी के रूप में याद किया जाता है.

भामाशाह के नाम पर छत्तीसगढ़ सरकार ने ‘दानवीर भामाशाह सम्मान’ स्थापित किया है साथ ही उनके नाम पर कई सामाजिक और शैक्षणिक संस्थानों के नाम रखे गए हैं.

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चित्रकार राजा रवि वर्मा

राजा रवि वर्मा भारतीय चित्रकारी के क्षेत्र में एक अत्यंत प्रतिष्ठित नाम हैं. उनका जन्म 1848 में केरल के किलिमनूर में हुआ था और उन्होंने 19वीं शताब्दी के दौरान भारतीय चित्रकला में नवीन योगदान दिया. रवि वर्मा को विशेष रूप से उनकी विशद और भावपूर्ण शैली के लिए जाना जाता है जिसमें उन्होंने भारतीय पौराणिक कथाओं और एपिक्स के पात्रों को चित्रित किया.

उनके चित्रों में हिन्दू देवी-देवताओं को मानवीय रूप में दर्शाया गया है, जिसे देखकर दर्शकों को उनसे एक विशेष आत्मीयता महसूस होती है. रवि वर्मा ने यूरोपीय तकनीकों और भारतीय विषय-वस्तु का मिश्रण किया, जिससे उनके चित्र न केवल कलात्मक रूप से सुंदर थे, बल्कि उनमें गहरी सांस्कृतिक समझ भी निहित थी.

रवि वर्मा ने अपने कला कौशल से भारतीय कला को एक नई पहचान दी और उन्हें ‘कला का राजकुमार’ भी कहा जाता है. उनके कार्यों में शक्तिशाली भावाभिव्यक्ति और सूक्ष्म विस्तार देखने को मिलते हैं, जो उन्हें अपने समकालीनों से अलग करता है. आज भी उनकी कलाकृतियाँ दुनिया भर के कला संग्रहालयों में प्रदर्शित की जाती हैं और कला प्रेमियों द्वारा उन्हें बहुत सराहा जाता है.

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तबला वादक अल्ला रक्खा ख़ाँ

उस्ताद अल्ला रक्खा ख़ाँ पंजाब घराने के एक तबला वादक थे. उनका पूरा नाम  क़ुरैशी अल्ला रक्खा ख़ाँ है. अल्ला रक्खा ख़ाँ  का जन्म 29 अप्रैल 1919 को  जम्मू शहर (भारत) के फगवाल नामक जगह पर हुआ था. उन्होंने अपने संगीतिक करियर में तबला वादन की कई नई तकनीकें विकसित कीं थी.

उस्ताद अल्ला रक्खा का संगीत में योगदान इस बात में निहित है कि उन्होंने तबला को एक साथी वाद्य यंत्र से बढ़ाकर एक प्रमुख सोलो वाद्य यंत्र के रूप में स्थापित किया. उनकी विलक्षण लयकारी और तकनीकी कौशल ने उन्हें विश्वव्यापी प्रसिद्धि दिलाई. उनकी प्रस्तुतियाँ न केवल भारतीय संगीत प्रेमियों के बीच, बल्कि अंतरराष्ट्रीय संगीत समुदाय में भी उन्हें एक आदरणीय स्थान दिलाती हैं.

उन्होंने अपने बेटे, उस्ताद जाकिर हुसैन, को भी तबला वादन में प्रशिक्षित किया, जो आज एक विश्व प्रसिद्ध तबला वादक हैं. उस्ताद अल्ला रक्खा की विरासत उनके शिष्यों और उनकी संगीत शैली के माध्यम से जीवित है, और उनका योगदान भारतीय क्लासिकल म्यूजिक को नई दिशा और आयाम प्रदान करता है.

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संगीत निर्देशक ज़ुबिन मेहता

ज़ुबिन मेहता एक प्रसिद्ध भारतीय मूल के संगीत निर्देशक हैं, जिनका जन्म 29 अप्रैल 1936 को मुंबई में हुआ था. वे विशेष रूप से वेस्टर्न क्लासिकल संगीत में उनके योगदान के लिए जाने जाते हैं. ज़ुबिन मेहता के पिता, मेहली मेहता, भी एक प्रसिद्ध संगीतकार थे और उन्होंने मुंबई के बॉम्बे सिम्फनी ऑर्केस्ट्रा की स्थापना की थी. ज़ुबिन ने वियना में अपनी संगीत की शिक्षा प्राप्त की और विशेष रूप से अपने ऑर्केस्ट्रल निर्देशन के कौशल के लिए प्रसिद्ध हुए.

उनका कैरियर बहुत विशिष्ट रहा है, जिसमें उन्होंने दुनिया भर के कई प्रसिद्ध ऑर्केस्ट्रास का नेतृत्व किया है. वे लॉस एंजेलिस फिलहारमोनिक और इज़राइल फिलहारमोनिक ऑर्केस्ट्रा के संगीत निर्देशक रह चुके हैं. मेहता ने विशेष रूप से इज़राइल फिलहारमोनिक के साथ अपने लंबे कार्यकाल के दौरान अंतरराष्ट्रीय संगीत जगत में अपनी एक विशेष पहचान बनाई.

उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं, जिसमें पद्म विभूषण और नाइटहुड भी शामिल हैं. ज़ुबिन मेहता का योगदान विशेष रूप से उनकी विविधतापूर्ण संगीत शैली और उनकी संगीत निर्देशन क्षमता में दिखाई देता है, जिसने उन्हें विश्व संगीत मंच पर एक विशेष स्थान दिलाया है.

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राजनीतिज्ञ ई. अहमद

ई. अहमद एक प्रसिद्ध भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जो केरल के मलप्पुरम लोकसभा क्षेत्र से सांसद रहे. उनका पूरा नाम इराकलीमुट्टिल अहमद था, और वे भारतीय राष्ट्रीय लीग (Indian Union Muslim League – IUML) के एक प्रमुख सदस्य थे. उनका जन्म 29 अप्रैल 1938 को केरल में हुआ था, और उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा कई दशकों तक जारी रखी.

ई. अहमद ने केरल राज्य विधानसभा में भी सेवा की और 1991 से 1995 तक राज्य के वित्तीय मंत्री के रूप में काम किया. उन्होंने राज्य के विकास के लिए कई योजनाओं और प्रोजेक्ट्स का संचालन किया.

लोकसभा में, वे विदेश मामलों की समिति के सदस्य भी रहे और भारत की विदेश नीति के प्रति अपना योगदान दिया. उनकी दिप्लोमैटिक क्षमताओं का उपयोग करते हुए उन्होंने भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को मजबूती प्रदान की.

ई. अहमद की मृत्यु 1 फरवरी 2017 को हुई जब वे संसद में थे. उनका निधन भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण शख्सियत के रूप में उनकी अहमियत को दर्शाता है. वे अपनी समझदारी, समर्पण और राजनीतिक सूझ-बूझ के लिए याद किए जाते हैं.

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राजनीतिज्ञ अजीत जोगी

अजीत जोगी का जन्म 29 अप्रैल 1946 को हुआ था और वे भारतीय नौकरशाही से राजनीति में आए. वे छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री थे और उन्होंने 2000 – 2003 तक इस पद पर कार्य किया. अजीत जोगी को छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना के समय उनकी राजनीतिक दूरदर्शिता और प्रशासनिक कौशल के लिए विशेष रूप से सराहना मिली थी.

राजनीतिक कैरियर में उनकी प्रमुख उपलब्धियों में से एक उनकी क्षमता थी नवगठित राज्य के विकास के लिए नीतियां और योजनाएं बनाना. उन्होंने छत्तीसगढ़ को एक नई पहचान देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उनके नेतृत्व में, राज्य ने कई विकासात्मक परियोजनाएँ शुरू कीं, जिसमें कृषि, शिक्षा और औद्योगिक विकास शामिल थे.

हालांकि, उनका कैरियर कई विवादों से भी घिरा रहा, जिसमें जाति प्रमाणपत्र विवाद प्रमुख था, जिसने उनकी राजनीतिक छवि को प्रभावित किया. उनके जीवन का अंतिम चरण कुछ राजनीतिक उथल-पुथल और पार्टी से अलगाव में गुजरा.

अजीत जोगी का निधन 29 मई 2020 को हुआ. वे अपने पीछे एक मिश्रित विरासत छोड़ गए हैं, जिसमें उनके द्वारा किए गए विकासात्मक कार्य और राजनीतिक विवाद दोनों शामिल हैं. उन्हें एक कुशल प्रशासक और एक जटिल राजनीतिज्ञ के रूप में याद किया जाता है.

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अभिनेत्री दीपिका चिखालिया

 दीपिका चिखालिया एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जिन्हें मुख्य रूप से 1980 के दशक में टेलीविजन श्रृंखला ‘रामायण’ में देवी सीता की भूमिका के लिए जाना जाता है. इस भूमिका के माध्यम से वे घर-घर में पहचानी जाने वाली व्यक्तित्व बन गईं और उनकी इस भूमिका ने उन्हें व्यापक लोकप्रियता दिलाई.

दीपिका चिखालिया का जन्म 29 अप्रैल 1965 को गुजरात में हुआ था. ‘रामायण’ के अलावा, उन्होंने विभिन्न हिंदी और भारतीय क्षेत्रीय फिल्मों में भी काम किया है. उनका कैरियर विविधतापूर्ण रहा है, जिसमें उन्होंने टेलीविजन, फिल्म और यहाँ तक कि राजनीति में भी अपने हाथ आजमाए हैं.

1990 के दशक में, दीपिका ने राजनीति में प्रवेश किया और वे भारतीय जनता पार्टी (BJP) की टिकट पर बड़ौदा से लोकसभा सदस्य चुनी गईं. हालांकि, उनका राजनीतिक कैरियर ज्यादा लंबा नहीं चला.

उनके अभिनय कैरियर और रामायण में उनकी भूमिका को आज भी भारतीय टेलीविजन इतिहास के सबसे यादगार प्रदर्शनों में गिना जाता है. वे अपनी गरिमामयी उपस्थिति और शालीनता के लिए सम्मानित की जाती हैं.

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क्रिकेट खिलाड़ी आशीष नेहरा

आशीष नेहरा भारतीय क्रिकेट के एक पूर्व तेज गेंदबाज हैं, जिन्होंने अपने कैरियर में भारतीय राष्ट्रीय टीम के लिए अनेक महत्वपूर्ण मैचों में भाग लिया. उनका जन्म 29 अप्रैल 1979 को दिल्ली में हुआ था. नेहरा ने वर्ष 1999 में अपने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कैरियर की शुरुआत की और तेजी से अपनी गेंदबाजी के लिए प्रसिद्ध हो गए.

उन्होंने अपनी गेंदबाजी की विशेष क्षमता से भारतीय टीम को कई महत्वपूर्ण जीत दिलाईं. आशीष नेहरा विशेष रूप से 2003 क्रिकेट विश्व कप में अपने प्रदर्शन के लिए जाने जाते हैं, जहाँ उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ 6 विकेट लेकर भारत को एक महत्वपूर्ण जीत दिलाई थी.

नेहरा का कैरियर चोटों से भरा रहा, जिसने उनके खेलने की समयावधि को प्रभावित किया, लेकिन उन्होंने हमेशा अपनी चोटों से उबर कर वापसी क. वे विशेष रूप से अपनी दृढ़ता और उच्च स्तर की फिटनेस के लिए भी प्रसिद्ध थे.

नेहरा ने 2017 में अपने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कैरियर से संन्यास ले लिया था, और तब से वह क्रिकेट के कोचिंग और कमेंटरी के क्षेत्र में सक्रिय हैं. उनकी गेंदबाजी तकनीक और खेल के प्रति समर्पण युवा क्रिकेटरों के लिए प्रेरणा का स्रोत रही है.

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क्रांतिकारी गोपबन्धु चौधरी

गोपबन्धु चौधरी, जिन्हें अक्सर “उत्कल माणिक” के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रमुख भारतीय समाज सेवक, क्रांतिकारी, राजनीतिज्ञ, पत्रकार और कवि थे. उनका जन्म 1877 में ओडिशा के पुरी जिले में हुआ था. गोपबन्धु चौधरी ने भारतीय समाज में गहरा प्रभाव डाला, विशेष रूप से ओडिशा के शिक्षा और समाज सुधार के क्षेत्र में उनका योगदान सराहनीय है.

उन्होंने “सत्यबादी” नामक एक स्कूल की स्थापना की जो अपने नैतिक शिक्षा और समाज सेवा के उच्च मानकों के लिए जाना जाता था. इस स्कूल ने शिक्षा के माध्यम से समाज सुधार की दिशा में कई पहल की. चौधरी ने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया, उन्होंने ‘संबाद कहां’ नामक एक समाचार पत्र का संचालन किया जो सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता फैलाने में सक्रिय था.

गोपबन्धु चौधरी का राजनीतिक कैरियर भी उल्लेखनीय था. वे ओडिशा लेजिस्लेटिव असेंबली के सदस्य रहे और उन्होंने कई सामाजिक विधेयकों को प्रोत्साहित किया और समर्थन दिया. उनका निधन 1928 में हुआ, लेकिन उनके कार्यों का प्रभाव आज भी ओडिशा और भारत के सामाजिक ढांचे में महसूस किया जाता है.

गोपबन्धु चौधरी की विरासत एक ऐसे व्यक्ति के रूप में है जिसने अपने जीवन को समाज की भलाई के लिए समर्पित किया था. उन्हें उनकी कविता, सामाजिक सेवा और शिक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के लिए याद किया जाता है.

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साहित्यकार बालकृष्ण शर्मा नवीन

बालकृष्ण शर्मा नवीन एक प्रमुख भारतीय कवि, साहित्यकार और राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने हिंदी साहित्य में अपना एक विशेष स्थान बनाया. उनका जन्म 8 दिसंबर 1897 को मध्य प्रदेश के जबलपुर में हुआ था. नवीन जी को उनके साहित्यिक कार्यों के लिए व्यापक रूप से सराहा गया, और वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के भी एक सक्रिय सदस्य थे.

उनकी कविताओं में भावनात्मक गहराई के साथ-साथ राष्ट्रीयता की भावना स्पष्ट रूप से झलकती है. उन्होंने अपनी कविताओं में प्रेम, प्रकृति, देशभक्ति और सामाजिक मुद्दों को उठाया. उनकी कुछ प्रसिद्ध रचनाओं में “उन्मादिनी,” “पल्लव,” “अंजलि,” और “गीति गंगा” शामिल हैं. इन कृतियों के माध्यम से नवीन ने हिंदी कविता में अपनी अनूठी शैली और संवेदनशीलता को प्रदर्शित किया.

बालकृष्ण शर्मा नवीन का राजनीतिक कैरियर भी काफी सक्रिय था. वे भारतीय संविधान सभा के सदस्य थे और बाद में राज्यसभा के सदस्य भी रहे. उन्होंने अपनी राजनीतिक और साहित्यिक प्रतिबद्धताओं के माध्यम से भारतीय समाज में सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में काम किया.

उनकी मृत्यु 29 अप्रैल 1960 को हुई थी। उनकी साहित्यिक और राजनीतिक विरासत आज भी भारतीय साहित्य और इतिहास में सम्मानित और प्रेरणादायक बनी हुई है.

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क्रान्तिकारी राजा महेन्द्र प्रताप

राजा महेन्द्र प्रताप सिंह एक प्रमुख भारतीय क्रांतिकारी, समाज सुधारक, और शिक्षाविद् थे, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनका जन्म 1 दिसंबर 1886 को अलीगढ़ के पास मुरसान में हुआ था. राजा महेन्द्र प्रताप की पहचान एक राजनीतिक क्रांतिकारी के रूप में होती है, जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए विदेशी धरती पर भी संघर्ष किया.

1915 में उन्होंने अफगानिस्तान में भारतीय स्वतंत्रता के लिए एक अस्थायी सरकार की स्थापना की, जिसे वह खुद राष्ट्रपति के रूप में और महाराजा भूपिंदर सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में चुने गए थे. यह प्रयास अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय स्वाधीनता की मांग को एक नई दिशा प्रदान करने के लिए उल्लेखनीय था.

राजा महेन्द्र प्रताप सिंह ने विश्व यात्रा की और कई देशों में भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्थन मांगा. वे अपने विचारों के लिए विश्वभर में जाने जाते थे और उन्होंने विभिन्न देशों के नेताओं से मुलाकात की थी.

राजा महेन्द्र प्रताप की शिक्षा के प्रति भी गहरी रुचि थी. उन्होंने वृंदावन में प्रेम महाविद्यालय की स्थापना की, जिसमें छात्रों को विभिन्न धर्मों और समुदायों की शिक्षा दी जाती थी. उन्होंने अपनी संपत्ति और संसाधनों का उपयोग शिक्षा और समाज सेवा के लिए किया.

राजा महेन्द्र प्रताप सिंह का निधन 29 अप्रैल 1979 को हुआ था. उनकी विरासत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक विशेष स्थान रखती है, और वे अपने दूरदर्शी विचारों और समर्पण के लिए आज भी सम्मानित किए जाते हैं.

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पटकथा लेखक केदार शर्मा

केदार शर्मा भारतीय सिनेमा में एक प्रमुख पटकथा लेखक, निर्देशक, और निर्माता थे, जिन्होंने हिंदी फिल्म उद्योग में अपनी अनूठी शैली और गहराई से भरपूर कहानियों के माध्यम से एक विशेष स्थान बनाया. उनका जन्म 1912 में पंजाब के नरोवाल में हुआ था. केदार शर्मा को अपने कैरियर में कई महत्वपूर्ण फिल्में बनाने का श्रेय जाता है, जैसे कि “नीलकमल” (1947), “बवरे नैन” (1950), और “जोगन” (1950).

उनकी पट कथाएँ अक्सर सामाजिक मुद्दों को छूती थीं और उन्होंने अपनी फिल्मों में पात्रों की मानवीय भावनाओं और जटिलताओं को बड़ी सफाई से दर्शाया. उन्होंने अपने दौर के कई प्रमुख कलाकारों की प्रतिभा को निखारने में मदद की, जिसमें राज कपूर, मधुबाला, और गीता बाली जैसे नाम शामिल हैं. केदार शर्मा ने राज कपूर को उनकी पहली फिल्म “नीलकमल” में मौका दिया था, जिससे राज कपूर के फिल्मी कैरियर की शुरुआत हुई.

उनके निर्देशन में बनी फिल्में न केवल कहानी की दृष्टि से समृद्ध थीं, बल्कि इनमें संगीत का भी बड़ा महत्व था. केदार शर्मा की फिल्मों में गाने भी बहुत लोकप्रिय हुए. उन्होंने अपने कैरियर में विविध शैलियों की फिल्में बनाईं और भारतीय सिनेमा के विकास में उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है.

केदार शर्मा का निधन 1999 में हुआ, लेकिन उनके द्वारा छोड़ी गई फिल्मी विरासत आज भी उन्हें भारतीय सिनेमा के महान फिल्म निर्माताओं में एक के रूप में स्थान दिलाती है.

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अभिनेता इरफ़ान ख़ान

इरफ़ान ख़ान जिनका पूरा नाम साहबज़ादे इरफ़ान अली ख़ान था, भारतीय सिनेमा के सबसे प्रतिभाशाली और विविधतापूर्ण अभिनेताओं में से एक थे. उनका जन्म 7 जनवरी 1967 को जयपुर, राजस्थान में हुआ था. इरफ़ान ने अपनी अभिनय क्षमता से न केवल भारतीय सिनेमा बल्कि अंतरराष्ट्रीय सिनेमा में भी अपनी खास पहचान बनाई.

उन्होंने दिल्ली में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से अभिनय की शिक्षा प्राप्त की और अपने कैरियर की शुरुआत टेलीविजन इंडस्ट्री से की, जहां उन्होंने कई लोकप्रिय धारावाहिकों में काम किया. बाद में, उन्होंने फिल्मों में कदम रखा और “हासिल” (2003) और “मकबूल” (2004) जैसी फिल्मों के लिए उन्हें काफी प्रशंसा मिली.

इरफ़ान ने “पान सिंह तोमर” (2012) में मुख्य भूमिका निभाई, जिसके लिए उन्हें नेशनल फिल्म अवार्ड से सम्मानित किया गया. इसके अलावा, उन्होंने “द लंचबॉक्स”, “पीकू”, और “हिंदी मीडियम” जैसी फिल्मों में भी अभिनय किया, जिन्होंने उन्हें व्यापक स्तर पर पहचान दिलाई.

इरफ़ान ने अंतरराष्ट्रीय सिनेमा में भी अपनी छाप छोड़ी, जिसमें “स्लमडॉग मिलियनेयर”, “लाइफ ऑफ पाई”, और “जुरासिक वर्ल्ड” जैसी फिल्में शामिल हैं. उनकी अभिनय क्षमता और गहराई ने उन्हें दुनिया भर के दर्शकों के दिलों में एक खास जगह दिलाई.

दुर्भाग्यवश, इरफ़ान ख़ान का निधन 29 अप्रैल 2020 को न्यूरोएन्डोक्राइन ट्यूमर से लड़ते हुए हुआ. उनकी मृत्यु से सिनेमा जगत में एक बड़ी क्षति हुई, पर उनकी फिल्में और उनकी अभिनय शैली उन्हें सदा यादगार बनाए रखेंगी.

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