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व्यक्ति विशेष

भाग - 106.

जैन धर्म के संस्थापक महावीर

जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर और महान धार्मिक सुधारक महावीर स्वामी को अक्सर इस धर्म के संस्थापक के रूप में माना जाता है, हालांकि तकनीकी रूप से वे इसके पुनर्स्थापक थे क्योंकि जैन धर्म की परंपरा उनसे कहीं पहले से मौजूद थी. महावीर स्वामी का जन्म लगभग 599 ईसा पूर्व में बिहार के कुण्डग्राम में हुआ था और उन्होंने लगभग 30 वर्ष की उम्र में घर छोड़ दिया था ताकि वे आत्म-ज्ञान और मोक्ष प्राप्त कर सकें।

उन्होंने 12 वर्षों तक कठोर तपस्या की और अंत में कैवल्य ज्ञान (पूर्ण ज्ञान) प्राप्त किया। महावीर स्वामी ने अहिंसा (हिंसा न करने का सिद्धांत), सत्य (सच बोलना), अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (कामुक संयम) और अपरिग्रह (संपत्ति के प्रति आसक्ति न रखने का सिद्धांत) के पांच महाव्रतों का प्रचार किया. उनके उपदेश जीवों के प्रति करुणा, और एक साधारण, वैराग्य जीवन जीने की शिक्षा पर केंद्रित थे.

महावीर स्वामी के निर्वाण के बाद, उनके उपदेशों को उनके अनुयायियों ने संग्रहित किया और उसे आगे बढ़ाया, जो आज हमें जैन धर्म के रूप में जाना जाता है. उनकी शिक्षाएँ आज भी दुनिया भर में लाखों जैन धर्मावलंबियों द्वारा अनुसरण की जाती हैं.

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सिख गुरु तेग बहादुर

सिख धर्म के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर जी, सिखों के बीच उनकी धार्मिक स्वतंत्रता और मानवता के प्रति उनकी अदम्य भक्ति के लिए विशेष रूप से सम्मानित हैं. उनका जन्म 1621 में हुआ था और उन्होंने 1665 में गुरु का पद संभाला. गुरु तेग बहादुर जी ने अपने जीवन में धार्मिक सहिष्णुता और मानवाधिकारों के लिए महान बलिदान दिया.

उन्होंने मुगल सम्राट औरंगजेब के धर्मांतरण के प्रयासों का विरोध किया, जिसने भारत में हिंदुओं पर अपने धर्म को छोड़ने और इस्लाम को अपनाने का दबाव डाला था. गुरु तेग बहादुर जी ने हिंदुओं की रक्षा की और उनके धार्मिक अधिकारों की रक्षा के लिए खड़े हुए. इस कारण, उन्हें “धर्म की रक्षा में शहीद” के रूप में जाना जाता है.

उनका बलिदान 1675 में हुआ जब उन्होंने धर्म के लिए मरने की इच्छा व्यक्त की थी बजाय इसके कि वे औरंगजेब के दबाव में आकर अपना धर्म परिवर्तित करें. दिल्ली में चांदनी चौक में उनके शहादत स्थल पर गुरुद्वारा शीशगंज साहिब का निर्माण किया गया, जो आज भी उनकी याद में एक पवित्र स्थल है.

गुरु तेग बहादुर जी का जीवन और शहादत सिख धर्म में अत्यधिक सम्मानित है और वह साहस, धार्मिक स्वतंत्रता, और त्याग के प्रतीक के रूप में याद किए जाते हैं.

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पुरातत्त्ववेत्ता राखालदास बंद्योपाध्याय

राखालदास बंद्योपाध्याय एक भारतीय पुरातत्त्ववेत्ता थे, जिन्होंने 1920 के दशक में सिंधु घाटी सभ्यता के मोहनजोदड़ो स्थल की खोज की थी. उनका जन्म 12 अप्रैल, 1885 को हुआ था, और उन्होंने भारतीय पुरातत्व में अपने कार्यों के माध्यम से एक अमिट छाप छोड़ी.

राखालदास बंद्योपाध्याय ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा प्राप्त की और बाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में शामिल हो गए. उनके काम ने उन्हें भारत में पुरातत्विक खोजों के अग्रणी के रूप में स्थापित किया. मोहनजोदड़ो की खोज से पहले, सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में बहुत कम जाना जाता था, और इसे विश्व इतिहास के महत्वपूर्ण अध्यायों में से एक माना जाता है.

उनकी खोजों ने न केवल भारतीय पुरातत्व के क्षेत्र में एक नई दिशा प्रदान की, बल्कि यह भी दिखाया कि भारतीय सभ्यता के इतिहास में गहराई है और यह विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है. राखालदास बंद्योपाध्याय की मृत्यु 23 जुलाई, 1930 को हुई थी, लेकिन उनकी खोजें और कार्य आज भी पुरातत्व शास्त्र के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के रूप में याद किए जाते हैं.

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ऑलराउंडर वीनू मांकड़

वीनू मांकड़ भारतीय क्रिकेट के सबसे प्रतिष्ठित ऑलराउंडरों में से एक थे.  उनका जन्म 12 अप्रैल 1917 को हुआ था. उनका पूरा नाम मुलवंत राय मांकड़ था, लेकिन वे वीनू मांकड़ के नाम से अधिक प्रसिद्ध हैं. उन्होंने बाएं हाथ के बल्लेबाज के रूप में और धीमे बाएं हाथ के गेंदबाज के रूप में भारत के लिए अपनी सेवाएँ प्रदान कीं.

मांकड़ ने 1946 – 59 तक भारतीय टेस्ट क्रिकेट टीम के लिए 44 टेस्ट मैच खेले, जिसमें उन्होंने बल्लेबाजी में 2109 रन बनाए और 162 विकेट लिए. उनका सर्वोच्च स्कोर 231 रन था, जो उन्होंने 1952 में मद्रास (अब चेन्नई) में न्यूज़ीलैंड के खिलाफ बनाया था. इस प्रदर्शन के साथ, वे और पंकज रॉय ने उस समय के लिए टेस्ट क्रिकेट में पहले विकेट के लिए सर्वोच्च साझेदारी (413 रन) की रिकॉर्ड स्थापित किया था, जो लंबे समय तक नहीं टूटा.

वीनू मांकड़ का नाम एक विशेष क्रिकेट नियम, ‘मांकड़िंग’ से भी जुड़ा है. यह तब होता है जब नॉन-स्ट्राइकर एंड पर खड़ा बल्लेबाज गेंदबाज के गेंद फेंकने से पहले ही क्रीज छोड़ देता है, और गेंदबाज उसे रन आउट कर देता है. इसे ‘मांकड़’ कहा जाता है क्योंकि मांकड़ ने 1947-48 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ इसी तरह से बिल ब्राउन को आउट किया था.

वीनू मांकड़ का क्रिकेट कैरियर उनके बहुमुखी प्रतिभा और क्रिकेट के प्रति उनकी समर्पण भावना का प्रतीक है. उनके योगदान को क्रिकेट इतिहास में उच्च सम्मान के साथ याद किया जाता है.

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निर्देशक, निर्माता केदार शर्मा

केदार शर्मा जिन्हें बृज केदार शर्मा के नाम से जानते हैं. केदार शर्मा  भारतीय सिनेमा के एक प्रतिष्ठित निर्देशक, निर्माता, और पटकथा लेखक थे. उनका जन्म 12 अप्रैल 1910 में हुआ था। केदार शर्मा को हिंदी सिनेमा के उन महत्वपूर्ण व्यक्तियों में गिना जाता है जिन्होंने 1940-50 के दशक में फिल्म निर्माण की दिशा और दशा को आकार दिया.

उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत सहायक निर्देशक के रूप में की थी और धीरे-धीरे उन्होंने खुद को एक प्रतिष्ठित निर्देशक और निर्माता के रूप में स्थापित किया. उन की फिल्मों में अक्सर सामाजिक मुद्दों को उठाया जाता था, और वे अपनी कहानियों को बहुत ही सरल लेकिन प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने के लिए जाने जाते थे.

केदार शर्मा ने राज कपूर, मधुबाला, गीता बाली और तनुजा जैसे कई प्रतिभाशाली कलाकारों को बॉलीवुड में परिचय कराया. उनकी सबसे प्रसिद्ध फिल्मों में ‘नीलकमल’ (1947), जिसमें राज कपूर ने पहली बार मुख्य भूमिका निभाई थी, और ‘जोगन’ (1950), जिसमें दिलीप कुमार और नरगिस ने अभिनय किया था, शामिल हैं.

केदार शर्मा का योगदान भारतीय सिनेमा के विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है, और उनकी रचनात्मकता और नवीनता ने उन्हें एक अमर विरासत के रूप में स्थापित किया है. उनके काम ने न केवल समकालीन फिल्म निर्माताओं को प्रेरित किया है बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी एक उदाहरण स्थापित किया है.

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राजनीतिज्ञ सुन्दर सिंह भण्डारी

सुन्दर सिंह भण्डारी भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नेताओं में से एक थे. उनका जन्म 12 अप्रैल 1921 को हुआ था. भण्डारी ने अपने राजनीतिक कैरियर के दौरान विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया और उन्हें विशेष रूप से राजस्थान और गुजरात में उनकी सेवाओं के लिए जाना जाता है.

भण्डारी ने गुजरात के राज्यपाल के रूप में कार्य किया और बाद में उत्तरांचल (अब उत्तराखंड) के राज्यपाल भी बने. उनका कार्यकाल उनके प्रशासनिक कौशल और सामाजिक विकास के प्रति उनके समर्पण के लिए प्रसिद्ध था.

भण्डारी एक ऐसे नेता थे जिन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों के बीच समन्वय और सद्भावना को बढ़ावा दिया. वे अपनी विनम्रता, सादगी और लोगों के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते थे. उनकी राजनीतिक यात्रा भारतीय राजनीति में उनके उच्च नैतिक मानदंडों और ईमानदारी का परिचायक है. सुन्दर सिंह भण्डारी का निधन 22 जून 2005 को हुआ था.

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राजनीतिज्ञ लालजी टंडन

लालजी टंडन एक वरिष्ठ भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए काम किया और उत्तर प्रदेश के लखनऊ से लंबे समय तक सेवा की. उनका जन्म 12 अप्रैल 1935 को हुआ था. टंडन ने अपने राजनीतिक कैरियर में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया, जिसमें विधायक, राज्यसभा सदस्य, और मध्य प्रदेश, बिहार, और छत्तीसगढ़ के राज्यपाल के रूप में उनकी सेवाएं शामिल हैं.

लालजी टंडन को विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में उनके राजनीतिक कौशल और लोगों से जुड़ने की उनकी क्षमता के लिए जाना जाता था. वे अपनी जनसेवा और सामाजिक कार्यों के लिए भी प्रसिद्ध थे. लखनऊ से उनका गहरा संबंध था और वे इस शहर के विकास में उनके योगदान के लिए सम्मानित किए गए.

राज्यपाल के रूप में उनका कार्यकाल सद्भावना, समझौता, और शिक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के लिए सराहा गया. उन्हें उनकी विनम्रता, आत्मीयता, और जनसेवा के प्रति समर्पण के लिए याद किया जाता है.

लालजी टंडन का निधन 21 जुलाई 2020 को हुआ. उनके निधन पर, राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में व्यापक शोक व्यक्त किया गया था, और उन्हें एक प्रेरणादायक नेता और समर्पित जन सेवक के रूप में सम्मानित किया गया.

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राजनीतिज्ञ सुमित्रा महाजन

सुमित्रा महाजन जिन्हें स्नेह और सम्मान से ‘ताई’ के नाम से जाना जाता है, एक अनुभवी भारतीय राजनीतिज्ञ हैं और भारतीय जनता पार्टी (BJP) की प्रमुख सदस्य हैं. उनका जन्म 12 अप्रैल 1943 को हुआ था. महाजन ने भारतीय संसद के निचले सदन लोक सभा, की अध्यक्षा के रूप में सेवा की, जो 16वीं लोक सभा के दौरान था (2014 से 2019 तक). वे इस पद पर आसीन होने वाली दूसरी महिला थीं.

सुमित्रा महाजन ने इंदौर, मध्य प्रदेश से आठ बार लोक सभा सांसद के रूप में कार्य किया, जो उनकी लोकप्रियता और जनता के प्रति उनकी सेवाओं का प्रमाण है. उनके कार्यकाल में विभिन्न विकासात्मक परियोजनाओं और सामाजिक कार्यक्रमों का संचालन शामिल है, जिससे इंदौर क्षेत्र का काफी विकास हुआ.

उनकी नेतृत्व शैली उनकी सादगी, स्पष्टवादिता, और संवादात्मक क्षमता के लिए जानी जाती है. लोक सभा अध्यक्षा के रूप में उनका कार्यकाल उनके निष्पक्ष और समावेशी दृष्टिकोण के लिए प्रशंसित था. वे संसदीय प्रक्रियाओं और चर्चाओं को सुचारू रूप से संचालित करने में सक्षम थीं, जिससे सदन की कार्यवाही में सुधार हुआ.

सुमित्रा महाजन का योगदान भारतीय राजनीति और विशेष रूप से महिला सशक्तिकरण में उल्लेखनीय है. वे महिलाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत हैं और उनकी उपलब्धियाँ भारतीय लोकतंत्र में महिलाओं की बढ़ती भूमिका को दर्शाती हैं.

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शास्त्रीय गायक ऋत्विक सान्याल

ऋत्विक सान्याल एक प्रतिष्ठित भारतीय शास्त्रीय गायक हैं, जिन्हें उनके ध्रुपद गायन के लिए विशेष रूप से जाना जाता है. ध्रुपद, भारतीय शास्त्रीय संगीत की सबसे पुरानी और सम्मानित शैलियों में से एक है, मुख्य रूप से गंभीरता और ध्यान गहराई के लिए जानी जाती है. ऋत्विक सान्याल ने इस शैली में अपनी महारत हासिल की और उनका काम उन्हें इस क्षेत्र के शीर्ष कलाकारों में से एक बनाता है.

उन्होंने अपनी गायन शैली में गहराई और तकनीकी कुशलता के साथ-साथ भावनात्मक अभिव्यक्ति को भी शामिल किया, जिससे उनके प्रदर्शन में एक विशिष्ट व्यक्तित्व और आत्मीयता का संचार होता है. उनकी गायकी ने शास्त्रीय संगीत के प्रेमियों को गहराई से प्रभावित किया है और उन्हें व्यापक रूप से सराहना प्राप्त हुई है.

ऋत्विक सान्याल ने अपने कैरियर में न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कई प्रदर्शन किए हैं, जिससे उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को विश्व स्तर पर प्रस्तुत किया. उनके योगदान को विभिन्न सम्मानों और पुरस्कारों के माध्यम से मान्यता दी गई है, जिससे उनकी कला के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और उत्कृष्टता को स्वीकार किया गया है.

उनके कार्य और प्रदर्शनों ने ध्रुपद गायन की परंपरा को जीवंत रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे आगामी पीढ़ियों के कलाकारों और श्रोताओं को इस गहरे और प्रेरणादायक संगीत शैली के प्रति आकर्षित किया गया है. उनकी कलात्मक यात्रा और उपलब्धियां उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत के सच्चे दूत के रूप में स्थापित करती हैं.

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सफ़दर हाशमी

सफदर हाशमी एक भारतीय नाटककार, गीतकार, और नाट्य निर्देशक थे, जिन्हें उनके सामाजिक और राजनीतिक रंगमंच के लिए जाना जाता है. उनका जन्म 12 अप्रैल 1954 को हुआ था. हाशमी ने ‘जन नाट्य मंच’ (जनम) की स्थापना की, जो एक सामाजिक यथार्थवादी रंगमंच समूह है, जिसका उद्देश्य सामाजिक विषयों पर प्रकाश डालना और जनता के बीच जागरूकता फैलाना था. उनके नाटकों और प्रदर्शनों में अक्सर श्रमिक वर्ग के अधिकारों, न्याय, और सामाजिक असमानताओं के विषय शामिल होते थे.

सफदर हाशमी की कला और राजनीति के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें एक अत्यंत प्रभावशाली और चर्चित व्यक्तित्व बना दिया. उनका मानना था कि रंगमंच को सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं होना चाहिए बल्कि इसे समाज में परिवर्तन लाने के एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए.

दुर्भाग्यवश, सफदर हाशमी की जिंदगी एक त्रासदी से भरी थी.1 जनवरी 1989 को, नई दिल्ली के सहीबाबाद इलाके में एक सड़क नाटक प्रदर्शन के दौरान, वे और उनके समूह पर हमला किया गया. सफदर हाशमी को गंभीर रूप से चोटें आईं, और अगले दिन, 2 जनवरी को, उनकी मृत्यु हो गई. उनकी मृत्यु ने भारतीय सामाजिक और राजनीतिक रंगमंच में गहरा प्रभाव छोड़ा और उनके जीवन और कार्य को सामाजिक न्याय और लोकतंत्र के लिए संघर्ष के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है.

सफदर हाशमी की विरासत आज भी जीवित है, जन नाट्य मंच और अन्य सामाजिक रंगमंच समूह उनकी भावना और उद्देश्यों को जीवित रखते हुए उनके पदचिह्नों पर चल रहे हैं.

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गीतकार  गुलशन बावरा

गुलशन बावरा, जिनका असली नाम गुलशन कुमार मेहता था, एक प्रसिद्ध भारतीय गीतकार और कवि थे जिन्होंने हिंदी सिनेमा में अपने अमिट योगदान के लिए व्यापक पहचान प्राप्त की. उनका जन्म 12 अप्रैल 1937 को हुआ था. बावरा ने अपने कैरियर में कई यादगार और लोकप्रिय गीत लिखे, जिनमें “मेरे देश की धरती” (उपकार), “यारी है ईमान मेरा” (ज़ंजीर), और “कसमें वादे प्यार वफा” (उपकार) शामिल हैं.

गुलशन बावरा की लेखनी में विविधता और गहराई थी, उन्होंने प्रेम गीतों से लेकर देशभक्ति के गीतों तक, हर प्रकार के गीत लिखे. उनके गीतों में सरलता और गहरी भावनाएं होती थीं, जो आसानी से श्रोताओं के दिलों तक पहुँच जाती थीं. उनके गीतों में जीवन के विविध पहलुओं का चित्रण किया गया था, जिससे वे लोगों के बीच लोकप्रिय हुए.

उनका संगीत में योगदान सिर्फ गीत लिखने तक सीमित नहीं था; उन्होंने कई महान संगीतकारों के साथ काम किया और उनके गीतों को उनकी धुनों से सजाया. गुलशन बावरा का निधन 07 अगस्त 2009 को हुआ, लेकिन उनके गीत आज भी हिंदी सिनेमा के सबसे यादगार गीतों में से एक के रूप में याद किए जाते हैं. उनकी विरासत हिंदी फिल्म संगीत में उनके अद्वितीय योगदान के रूप में जीवित है.

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अभिनेत्री अलका गुप्ता

अलका गुप्ता एक अभिनेत्री हैं, जिन्होंने टेलीविजन और फिल्म उद्योग में अपनी खास पहचान बनाई है. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत टीवी सीरियल ‘झांसी की रानी’ से की थी, जिसमें उन्होंने मनु (युवा रानी लक्ष्मीबाई) का किरदार निभाया था. इसके अलावा, वह ‘सात फेरे: सलोनी का सफर’, ‘देवो के देव…महादेव’, ‘शक्तिपीठ के भैरव’ और ‘बन्नी चाउ होम डिलीवरी’ जैसे कई अन्य टीवी सीरियलों में नजर आई हैं. अलका ने फिल्मों में भी अपनी प्रतिभा दिखाई है और ‘आंध्र पोरी’, ‘ट्रैफ़िक’, और ‘सिम्बा’ जैसी फिल्मों में काम किया है.

अलका का जन्म और पालन-पोषण सहरसा, बिहार में हुआ था. उनके परिवार में उनके पिता गगन गुप्ता, माँ मंजू गुप्ता, भाई जनमेजय गुप्ता और बहन गोया गुप्ता हैं. अलका ने ‘खतरों के खिलाड़ी 13’ में भाग लेने का ऑफर मिलने की बात कही थी, लेकिन व्यस्त शेड्यूल के कारण वह इसमें हिस्सा नहीं बन पाईं. फिर भी, वह भविष्य में इस शो का हिस्सा बनने की इच्छा रखती हैं, क्योंकि उन्हें एक्शन पसंद है और वह देखना चाहती हैं कि वह सारे टास्क कर पाएंगी या नहीं.

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