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व्यक्ति विशेष

भाग - 107.

रोग विज्ञानी वी. आर. खानोलकर

वी. आर. खानोलकर भारत के प्रसिद्ध रोग विज्ञानी थे, जिन्होंने चिकित्सा विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने विशेष रूप से कैंसर और अन्य जटिल बीमारियों के अध्ययन में उल्लेखनीय काम किया. खानोलकर ने अपने शोध में बायोप्सी और पैथोलॉजी की तकनीकों को बढ़ावा दिया, जिससे रोगों की जांच और निदान में काफी सुधार हुआ.

वी. आर. खानोलकर का जन्म 13 अप्रैल, 1895 को गोमांतक मराठा परिवार में हुआ था और उनकी मृत्यु 29 अक्टूबर, 1978 को हुई थी. उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय से अपनी चिकित्सा की पढ़ाई की और 1923 में पैथोलॉजी में एम.डी. किया. मानवता के लिये उनकी विशिष्ट सेवा को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें साल 1955 में ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया था.

उनका कार्य भारतीय चिकित्सा शोध में एक मील का पत्थर माना जाता है, और उनकी विधियां आज भी कई पैथोलॉजिकल लैबोरेट्रीज में प्रयोग की जाती हैं. उन्होंने कई वैज्ञानिक पत्रिकाओं में अपने शोध प्रकाशित किए और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा के स्रोत बने.

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निर्माता-निर्देशक और पटकथा लेखक चन्दूलाल शाह

चंदूलाल शाह भारतीय सिनेमा के प्रारंभिक युग के एक प्रमुख निर्माता-निर्देशक और पटकथा लेखक थे. उन्होंने 1920 – 30 के दशक में अपने कैरियर की शुरुआत की और अपने समय के कुछ सबसे लोकप्रिय और सफल फिल्मों का निर्माण किया. चंदूलाल शाह का जन्म 1906 में हुआ था और उन्होंने अपना अधिकांश समय मुंबई में बिताया, जो उस समय भारतीय सिनेमा का केंद्र था.

चंदूलाल शाह ने रंजीत मूवीटोन स्टूडियो की स्थापना की, जो उस दौरान के सबसे प्रसिद्ध फिल्म स्टूडियोज में से एक बन गया. उनकी फिल्मों में भव्य सेट, विशाल कलाकार समूह और गहन भावनात्मक ड्रामा की विशेषताएं होती थीं, जो उस समय के दर्शकों को बहुत भाती थीं. उनकी कुछ प्रमुख फिल्मों में ‘गुणसुंदरी’, ‘बहार’ और ‘सुलोचना’ शामिल हैं, जिन्होंने बॉक्स ऑफिस पर खूब सफलता पाई.

चंदूलाल शाह का योगदान भारतीय सिनेमा के विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. उनकी फिल्में न केवल मनोरंजक थीं बल्कि समाज में व्याप्त मुद्दों पर प्रकाश डालने में भी सक्षम थीं, जिसने उन्हें एक जिम्मेदार फिल्म निर्माता के रूप में स्थापित किया.

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गीतकार वर्मा मलिक

वर्मा मलिक एक प्रसिद्ध भारतीय गीतकार थे, जिन्होंने 1960 – 80 के दशक के दौरान हिंदी सिनेमा में अपने गीतों से खास पहचान बनाई. वर्मा मलिक का जन्म पंजाब में हुआ था, और उन्होंने अपनी शैली और भावनाओं को गीतों के माध्यम से व्यक्त किया, जिसने उन्हें विशेष पहचान दिलाई.

वर्मा मलिक ने अपने कैरियर के दौरान कई प्रमुख संगीतकारों के साथ काम किया, जैसे कि लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और कल्याणजी-आनंदजी। उनके गीतों में गहराई, भावना और संवेदनशीलता का मिश्रण देखने को मिलता है. उनके कुछ प्रसिद्ध गीतों में “एक प्यार का नगमा है” (शोर), “मेरे देश की धरती” (उपकार), और “माँ तो माँ है” (प्यासा सावन) शामिल हैं.

वर्मा मलिक के गीत अक्सर समाज की विभिन्न स्थितियों को दर्शाते हैं और उनकी लेखनी में गहराई के साथ-साथ सरलता भी होती है, जो श्रोताओं को गहराई से छू जाती है. उनकी रचनाओं में जीवन के विविध पहलुओं की झलक मिलती है, जिसने उन्हें हिंदी फिल्म संगीत में एक अमिट स्थान दिलाया.

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व्यंग्यकार व लेखक के. पी. सक्सेना

के. पी. सक्सेना एक प्रसिद्ध भारतीय व्यंग्यकार और लेखक थे, जिनकी लेखनी में हास्य और व्यंग्य का बेहतरीन मिश्रण देखने को मिलता था. उनका जन्म 13 अप्रैल 1932 को लखनऊ में हुआ था, और उन्होंने अपने काम के माध्यम से समाज की विडंबनाओं को उजागर किया.

के. पी. सक्सेना ने न केवल समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में अपने व्यंग्यात्मक लेख प्रकाशित किए, बल्कि कई हिन्दी फिल्मों के लिए पटकथा भी लिखी. उनके सबसे प्रमुख फिल्मी कामों में “लगान”, “स्वदेस” और “हल्ला बोल” शामिल हैं. इन फिल्मों में उनकी लेखनी की गहराई और हास्य की अनूठी समझ देखने को मिलती है.

वे खास तौर पर अपने हास्य और व्यंग्य से भरपूर लेखों के लिए जाने जाते थे, जिसमें वे अपने अद्वितीय अंदाज में सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों की पड़ताल करते थे. उनकी लेखनी में विडंबना और मनोरंजन का ऐसा संयोजन था जो पाठकों को न केवल हंसाता था बल्कि उन्हें सोचने पर भी मजबूर करता था.

के. पी. सक्सेना का  निधन 31 अक्टूबर 2013 को  हुआ , लेकिन उनकी रचनाएँ आज भी हिंदी साहित्य में उनकी विरासत को जीवंत रखती हैं.

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राजनीतिज्ञ नजमा हेपतुल्ला

नजमा हेपतुल्ला एक भारतीय राजनीतिज्ञ हैं, जिन्होंने भारतीय राजनीति में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर काम किया है. उनका जन्म 13 अप्रैल 1940 को हुआ था, और वह एक प्रमुख मुस्लिम राजनीतिक व्यक्तित्व हैं. नजमा हेपतुल्ला ने भारतीय जनता पार्टी  के साथ लंबा कैरियर बनाया और विभिन्न सरकारी पदों पर सेवाएं प्रदान कीं.

वह राज्यसभा की उपाध्यक्ष के रूप में कई कार्यकाल के लिए चुनी गईं और उन्होंने इस पद को अद्वितीय गरिमा और कुशलता से संभाला. नजमा हेपतुल्ला ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी, युवा मामलों और खेलकूद तथा महिला और बाल विकास जैसे विभागों में भी मंत्री के रूप में कार्य किया।

2014 में उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री के रूप में सेवा दी, जहां उन्होंने अल्पसंख्यक मामलों का विभाग संभाला. बाद में वह मणिपुर की राज्यपाल के रूप में भी नियुक्त हुईं, जहां उन्होंने 2016 – 22 तक सेवा प्रदान की. नजमा हेपतुल्ला का विशेष योगदान भारतीय राजनीति में उनकी उत्कृष्ट प्रशासनिक क्षमता और सामाजिक समावेशी नीतियों के प्रति समर्थन में देखने को मिलता है.

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अभिनेता सतीश कौशिक

सतीश कौशिक एक भारतीय अभिनेता, निर्देशक, और पटकथा लेखक थे, जिन्होंने हिंदी सिनेमा में अपने विविध और मनोरंजक योगदान के लिए बड़ी पहचान बनाई. उनका जन्म 13 अप्रैल 1956 को हुआ था, और उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) से अपनी अभिनय की शिक्षा प्राप्त की थी.

सतीश कौशिक को विशेष रूप से उनके कॉमिक रोल्स के लिए जाने  जाते  थे. उन्होंने 1980 – 90 के दशक में कई हिट फिल्मों में काम किया जैसे कि “मिस्टर इंडिया”, जहाँ उन्होंने ‘कैलेंडर’ का यादगार किरदार निभाया था. उनकी अन्य प्रमुख फिल्में “राम लखन”, “साजन चले ससुराल” और “हम आपके दिल में रहते हैं” जैसी फिल्मों में उनके प्रदर्शन के लिए भी प्रशंसा की गई.

सतीश कौशिक ने निर्देशन में भी हाथ आजमाया और “रोजा”, “प्रेम”, और “तेरे नाम” जैसी फिल्मों के लिए पटकथा लिखी। उनकी निर्देशित फिल्मों में “तेरे नाम”, “मुझे कुछ कहना है”, और “कर्ज” शामिल हैं, जिन्होंने दर्शकों के बीच अच्छी प्रतिक्रिया प्राप्त की.

सतीश कौशिक का निधन 9 मार्च 2023 को हुआ, लेकिन उनका काम और उनकी फिल्में हिंदी सिनेमा में उनकी विशेष छाप छोड़ गई हैं, और वे अपनी उल्लेखनीय प्रतिभा के लिए हमेशा याद किए जाएंगे.

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23वें मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा

सुनील अरोड़ा भारत के 23वें मुख्य निर्वाचन आयुक्त थे, जिन्होंने इस पद पर 2 दिसंबर 2018 से 12 अप्रैल 2021 तक कार्य किया. उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा के राजस्थान कैडर से 1980 बैच के अधिकारी के रूप में अपनी व्यावसायिक यात्रा शुरू की थी. उनका कार्यकाल विभिन्न महत्वपूर्ण और चुनौती पूर्ण भूमिकाओं से भरा हुआ था.

सुनील अरोड़ा के नेतृत्व में, भारतीय चुनाव आयोग ने कई महत्वपूर्ण चुनावों का संचालन किया, जिसमें 2019 का लोकसभा चुनाव भी शामिल है. उन्होंने चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता बढ़ाने के लिए विभिन्न पहलों का समर्थन किया। उनके कार्यकाल में डिजिटलीकरण और टेक्नोलॉजी का उपयोग भी बढ़ा, जैसे कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों और वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) सिस्टम का व्यापक उपयोग.

सुनील अरोड़ा ने चुनाव सुधारों में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिसमें वोटर लिस्टों की शुद्धि और अपडेट, मतदान सुविधाओं का विस्तार और मतदाताओं की सुविधा के लिए नई प्रणालियों का विकास शामिल है. उनके प्रयासों ने भारतीय चुनाव प्रणाली को और अधिक दक्ष और जन-सहभागी बनाने में मदद की.

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वैज्ञानिक ऋतु करीधल

ऋतु करीधल एक भारतीय वैज्ञानिक हैं, जिन्हें उनके योगदान के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में “रॉकेट वुमन” के नाम से भी जानी जाती है. उन्होंने मंगलयान मिशन (मार्स ऑर्बिटर मिशन) के दौरान मिशन निदेशक के रूप में कार्य किया, जिससे वे विशेष रूप से प्रसिद्ध हुईं. इस मिशन के सफल संचालन ने भारत को पहले प्रयास में ही मंगल ग्रह की कक्षा में एक यान भेजने वाले पहले देश के रूप में स्थापित किया.

ऋतु करीधल का योगदान केवल मंगलयान तक सीमित नहीं है; वे अन्य अंतरिक्ष मिशनों में भी शामिल रही हैं. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत ISRO में 1997 में की थी, और तब से वे विभिन्न उपग्रह मिशनों में अपनी सेवाएं दे रही हैं. उनके काम में मिशन प्लानिंग, मिशन डिज़ाइन, मिशन इंटीग्रेशन और एनालिसिस शामिल हैं.

ऋतु करीधल को उनके उल्लेखनीय काम के लिए कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए हैं, और उनकी उपलब्धियाँ युवा पीढ़ी, विशेषकर युवा लड़कियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं. उनका काम न केवल भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान में बल्कि वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय में भी सराहा जाता है.

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साहित्यकार बाबू गुलाबराय

बाबू गुलाबराय एक हिंदी साहित्यकार थे, जिन्होंने आत्मकथा, निबंध, आलोचना, और इतिहास लेखन जैसी विविध विधाओं में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनका जन्म 17 जनवरी 1888 को हुआ था और उनका निधन 13 अप्रैल 1963 को हुआ. गुलाबराय को हिंदी साहित्य में व्यंग्य और आत्मकथात्मक लेखन के लिए विशेष रूप से जाना जाता है.

बाबू गुलाबराय की साहित्यिक शैली उनकी विद्वता और विचारशीलता को दर्शाती है. उनके निबंधों में भाषा की सरलता और प्रवाह के साथ-साथ गहरी अंतर्दृष्टि और मनोरंजन का तत्व भी शामिल होता है. उनकी कुछ प्रमुख कृतियों में ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’, ‘मानस का हंस’ और ‘आत्मकथा’ शामिल हैं. ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ एक व्यापक और गहन विश्लेषण प्रदान करता है जो हिंदी साहित्य के विकास को विस्तार से बताता है.

गुलाबराय की आत्मकथा भी उनके जीवन के विविध अनुभवों और साहित्यिक जगत के साथ उनके संबंधों का जीवंत चित्रण करती है. उनका व्यंग्य लेखन उनकी तीव्र बुद्धि और समाज के प्रति उनकी सूक्ष्म दृष्टि को प्रकट करता है, जिससे वे हिंदी साहित्य में एक अद्वितीय स्थान रखते हैं. बाबू गुलाबराय के काम ने हिंदी साहित्य की धारा को प्रभावित किया और उन्हें आज भी एक महत्वपूर्ण साहित्यिक हस्ती के रूप में याद किया जाता है.

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अभिनेता बलराज साहनी

बलराज साहनी भारतीय सिनेमा के एक प्रतिष्ठित अभिनेता थे, जिन्होंने 1940 के दशक से 1970 के दशक तक अपने गहन और यथार्थवादी अभिनय से हिंदी फिल्म उद्योग में अमिट छाप छोड़ी. उनका जन्म 1 मई 1913 को रावलपिंडी, पंजाब (अब पाकिस्तान में) में हुआ था. बलराज साहनी ने अपनी शिक्षा लाहौर में प्राप्त की और बाद में वे ब्रिटेन गए जहाँ उन्होंने अध्ययन किया और रंगमंच में सक्रिय रहे.

उनकी फिल्मी कैरियर की शुरुआत 1946 में फिल्म “इन्कलाब” से हुई थी, लेकिन उन्हें वास्तविक पहचान 1953 में आई फिल्म “दो बीघा जमीन” से मिली, जिसमें उनके द्वारा निभाए गए किसान के किरदार ने उन्हें विशेष पहचान दिलाई. यह फिल्म भारतीय सिनेमा के नव-यथार्थवादी आंदोलन का हिस्सा थी.

बलराज साहनी की अन्य प्रमुख फिल्मों में “काबुलीवाला”, “वक्त”, “गर्म हवा” और “धरती के लाल” शामिल हैं. “गर्म हवा” में उनकी अभिनय क्षमता की गहराई को विशेष रूप से सराहा गया, जहाँ उन्होंने एक मुस्लिम व्यापारी की भूमिका निभाई थी जो विभाजन के दौरान भारत में अपनी पहचान और अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा था.

बलराज साहनी की अभिनय शैली में गहराई, वास्तविकता और मानवीय भावनाओं की बारीक समझ थी, जिसने उन्हें हिंदी सिनेमा के सबसे आदरणीय कलाकारों में से एक बनाया. उनका निधन 13 अप्रैल 1973 को हुआ, लेकिन उनकी फिल्में और उनका अभिनय आज भी दर्शकों के बीच जीवित हैं.

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राजनीतिज्ञ बी. पी. मंडल

बी. पी. मंडल जिनका पूरा नाम बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल है, एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने विशेष रूप से समाजिक न्याय और ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) समुदायों के अधिकारों के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनका जन्म 25 अगस्त 1918 को बिहार में हुआ था और उन्होंने बिहार की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई.

बी. पी. मंडल को सबसे ज्यादा पहचान मिली मंडल आयोग के अध्यक्ष के रूप में, जिसे भारत सरकार ने 1979 में गठित किया था. मंडल आयोग का मुख्य उद्देश्य था समाज के पिछड़े वर्गों की आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति का आकलन करना और उनके लिए आरक्षण और अन्य सामाजिक उपाय सुझाना. इस आयोग की रिपोर्ट, जिसे मंडल रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है, ने भारतीय समाज में बड़े पैमाने पर बहस और चर्चा को जन्म दिया.

मंडल आयोग की सिफारिशों के अनुसार, 1990 में भारत सरकार ने ओबीसी के लिए 27% सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण का प्रावधान किया. इस फैसले ने भारतीय समाज में गहरी प्रतिक्रियाएं उत्पन्न कीं और बड़े स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन का कारण बना.

बी. पी. मंडल का निधन 13 अप्रैल 1982 को हुआ था, लेकिन उनका योगदान और मंडल आयोग की रिपोर्ट आज भी भारतीय समाज और राजनीति में एक महत्वपूर्ण संदर्भ बिंदु के रूप में याद की जाती है.

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हॉकी खिलाड़ी बलबीर सिंह जूनियर

बलबीर सिंह जूनियर एक प्रसिद्ध भारतीय हॉकी खिलाड़ी थे. उनका जन्म 2 मई 1936 को हुआ था और उनका निधन 13 अप्रैल  2021 को हुआ था. बलबीर सिंह जूनियर ने  भारतीय हॉकी टीम के सदस्य के रूप में  कई अंतर्राष्ट्रीय मैचों में भारत का प्रतिनिधित्व किया.

बलबीर सिंह जूनियर ने भारतीय हॉकी टीम के लिए कई महत्वपूर्ण टूर्नामेंटों में भाग लिया और उन्होंने अपने खेल कौशल से टीम को कई विजय दिलाईं. उनकी प्रमुख उपलब्धियों में एशियाई खेलों में भारत के लिए खेलना और कई राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीतना शामिल है.

उनके खेल कैरियर के दौरान उन्होंने जो समर्पण और लगन दिखाई, उसे खेल जगत में हमेशा सराहा गया. बलबीर सिंह जूनियर ने न केवल अपने खेल कौशल के लिए, बल्कि अपनी खेल भावना और टीम के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए भी प्रशंसा प्राप्त की.

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