
महात्मा हंसराज
महात्मा हंसराज पंजाब के प्रसिद्ध आर्य समाजी नेता, समाज सुधारक और शिक्षाविद थे. हंसराज का जन्म 19 अप्रैल, 1864 को होशियारपुर, पंजाब में हुआ था और उनका निधन 15 नवम्बर 1938 को हुआ था.
हंसराज ने 19वीं और 20वीं सदी में भारतीय समाज के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया था. वे खास तौर से शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय थे और उन्होंने दयानंद एंग्लो-वैदिक (डी.ए.वी.) स्कूल और कॉलेज सिस्टम की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. यह संस्थान आर्य समाज के सिद्धांतों पर आधारित था, जो वैदिक शिक्षा के प्रचार और प्रसार में लगा हुआ था.
महात्मा हंसराज ने शिक्षा के माध्यम से समाज में उचित नैतिकता और आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ावा देने की कोशिश की थी. उनका मानना था कि शिक्षा समाज को सुधारने का एक मुख्य उपकरण है और इसे सभी वर्गों तक पहुंचाया जाना चाहिए.
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अभिनेत्री और टेलीविजन कलाकार सुरेखा सीकरी
सुरेखा सीकरी भारतीय फिल्म, टेलीविजन और रंगमंच की एक अभिनेत्री थीं. उनका जन्म 19 अप्रैल 1945 को हुआ था. उन्होंने अपने लंबे और सफल कैरियर में कई यादगार भूमिकाएं निभाई और अपने अद्वितीय अभिनय कौशल से दर्शकों के दिलों में एक विशेष स्थान बनाया.
सुरेखा सीकरी का जन्म उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा में हुआ था. उनका परिवार बाद में नैनीताल में बस गया. उन्होंने दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) से ग्रेजुएशन किया और वहां से अभिनय की बारीकियां सीखीं। NSD में उनके प्रशिक्षण ने उनके अभिनय कैरियर को संवारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
सुरेखा सीकरी ने अपने कैरियर की शुरुआत रंगमंच से की और भारतीय रंगमंच में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने विभिन्न नाटकों में काम किया और अपने उत्कृष्ट अभिनय के लिए प्रसिद्ध हुईं. सुरेखा सीकरी ने 1978 में फिल्म “किस्सा कुर्सी का” से बॉलीवुड में डेब्यू किया. इसके बाद उन्होंने कई महत्वपूर्ण फिल्मों में काम किया, जिनमें “तमस” (1988), “सलीम लंगड़े पे मत रो” (1989), “सरदारी बेगम” (1996), “ज़ुबैदा” (2001), “रेनकोट” (2004), और “बधाई हो” (2018) शामिल हैं.
“बधाई हो” (2018)फिल्म में दादी की भूमिका के लिए सुरेखा सीकरी को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार सहित कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. सुरेखा सीकरी ने टेलीविजन पर भी अपनी खास पहचान बनाई. वे “बालिका वधू” में ‘दादी सा’ की भूमिका के लिए खासतौर पर जानी जाती हैं. इस भूमिका ने उन्हें घर-घर में मशहूर कर दिया और उन्हें कई पुरस्कार भी मिले.
सुरेखा सीकरी को तीन बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उन्हें 1988 में “तमस” के लिए, 1995 में “मम्मो” के लिए और 2018 में “बधाई हो” के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. सुरेखा सीकरी ने अपने शानदार अभिनय के लिए कई अन्य पुरस्कार भी जीते, जिनमें फिल्मफेयर पुरस्कार, स्क्रीन पुरस्कार, और इंडियन टेली अवार्ड्स शामिल हैं.
सुरेखा सीकरी का विवाह हेमंत रेगे से हुआ था, और उनका एक पुत्र है, राहुल सीकरी. वे अपने अंतिम समय तक अभिनय से जुड़ी रहीं और अपने काम के प्रति उनकी निष्ठा और समर्पण अद्वितीय था. सुरेखा सीकरी का निधन 16 जुलाई 2021 को हुआ. उनके निधन से भारतीय फिल्म और टेलीविजन उद्योग ने एक महान कलाकार को खो दिया. उनके योगदान और यादगार भूमिकाएं हमेशा दर्शकों के दिलों में जीवित रहेंगी.
सुरेखा सीकरी ने अपने अभिनय के माध्यम से भारतीय सिनेमा और टेलीविजन में अमिट छाप छोड़ी है और वे हमेशा एक प्रेरणा स्रोत बनी रहेंगी.
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19वें मुख्य चुनाव आयुक्त एच.एस. ब्रह्मा
हरिशंकर ब्रह्मा जिनका जन्म 19 अप्रैल, 1950 को गोसाईगांव, कोकराझार, असम में हुआ था. वो एक प्रतिष्ठित पूर्व सिविल सेवक हैं और भारत के 19वें मुख्य चुनाव आयुक्त थे. उन्होंने 16 जनवरी 2015 से 18 अप्रैल 2015 तक इस भूमिका में कार्य किया. ब्रह्मा भारत में चुनाव आयुक्त का पद संभालने वाले बोडो समुदाय के पहले व्यक्ति और पूर्वोत्तर क्षेत्र से दूसरे व्यक्ति होने का गौरव प्राप्त हैं.
मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में अपने कार्यकाल से पहले, ब्रह्मा का भारतीय प्रशासनिक सेवा में एक लंबा और प्रतिष्ठित कैरियर था, जिसकी शुरुआत 1975 में उनके चयन के साथ हुई थी. उन्होंने केंद्रीय ऊर्जा सचिव और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और सीमा के भीतर पदों सहित विभिन्न महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं. प्रबंधन प्रभाग, जहां वह पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ भारत की सीमाओं पर बुनियादी ढांचे के काम में महत्वपूर्ण रूप से शामिल थे.
मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में ब्रह्मा का कार्यकाल स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के प्रयासों द्वारा चिह्नित किया गया था, जो भारत की चुनावी प्रक्रिया की अखंडता को बनाए रखने के लिए उनकी प्रतिबद्धता को उजागर करता है.
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खिलाड़ी अंजू बॉबी जॉर्ज
अंजू बॉबी जॉर्ज भारतीय एथलेटिक्स और लंबी कूद की विशेषज्ञ हैं. उनका जन्म 19 अप्रैल 1977 को हुआ था. उन्होंने भारतीय खेलों में उनकी उपलब्धियों का एक विशेष स्थान है. वर्ष 2003 में, अंजू ने पेरिस में आयोजित विश्व एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया था. यह भारतीय ट्रैक और फील्ड इतिहास में पहली बार था जब किसी ने विश्व चैम्पियनशिप में मेडल जीता था. इसके अलावा, उन्होंने कई एशियाई खेलों और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी पदक जीते हैं.
अंजू की उपलब्धियां भारत में खेलों, विशेषकर एथलेटिक्स में महिलाओं की भागीदारी को प्रेरित करने में महत्वपूर्ण रही हैं. उनके योगदान के लिए उन्हें कई सम्मान से नवाजा गया है, जिसमें अर्जुन पुरस्कार और पद्म श्री शामिल हैं. अंजू ने न केवल खेल में बल्कि समाज में भी एक प्रेरक उदाहरण स्थापित किया है.
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अभिनेता अरशद वारसी
अरशद वारसी एक भारतीय अभिनेता हैं. जिन्हें मुख्य रूप से उनकी कॉमेडी फिल्मों में किये गए काम के लिए जाना जाता है. वारसी का जन्म 19 अप्रैल 1968 को हुआ था और उन्होंने वर्ष 1996 में फिल्म “तेरे मेरे सपने” से बॉलीवुड में अपना अभिनय कैरियर शुरू किया था. उन्होंने बहुत जल्दी अपनी विशिष्ट कॉमिक टाइमिंग और नेचुरल परफॉरमेंस के लिए पहचान बनाई.
अरशद वारसी को विशेष रूप से फिल्म “मुन्नाभाई एम.बी.बी.एस.” (2003) और इसकी सीक्वल “लगे रहो मुन्नाभाई” (2006) में उनके किरदार सर्किट के लिए व्यापक रूप से सराहना मिली. इन फिल्मों में उनकी प्रदर्शन ने उन्हें बॉलीवुड में एक प्रमुख कॉमिक अभिनेता के रूप में स्थापित किया. इसके अलावा, उन्होंने “गोलमाल” सीरीज में भी काम किया है और उन्हें उनकी विविध भूमिकाओं के लिए प्रशंसा मिली है.
अरशद का कैरियर न केवल कॉमेडी में, बल्कि थ्रिलर और ड्रामा जैसी अन्य शैलियों में भी सफल रहा है. उनकी फिल्मोग्राफी में विविधता और उनकी प्रतिभा का प्रमाण है कि वे किसी भी तरह की भूमिका को बखूबी निभा सकते हैं.