
चित्रकार के. एच. आरा
के. एच. आरा एक भारतीय चित्रकार थे, जिन्होंने भारतीय कला में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया. उनका पूरा नाम केखुशरू हरमनुज था. उनका जन्म 16 अप्रैल 1914 को सूरत, गुजरात में हुआ था. वे भारतीय कला में प्रगतिशील कलाकारों के एक प्रमुख सदस्य थे और भारतीय आधुनिक कला को नई दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
आरा का बचपन संघर्षपूर्ण रहा. उनका परिवार आर्थिक तंगी का सामना कर रहा था, जिसके चलते आरा को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी. वे एक गरीब परिवार से थे और बचपन में ही उन्होंने मुंबई आकर कई छोटे-मोटे काम किए. चित्रकला में उनकी रुचि बचपन से ही थी और उन्होंने इसे अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया.
के. एच. आरा ने 1947 में स्थापित प्रगतिशील कलाकार समूह (Progressive Artists’ Group – PAG) के संस्थापक सदस्यों में से एक थे. इस समूह ने भारतीय कला को एक नई दिशा दी और उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिलाई. अन्य सदस्यों में एफ. एन. सूजा, एम. एफ. हुसैन, एस. एच. रजा, और तैयब मेहता भी शामिल थे.
आरा की कला शैली में आधुनिकता और परंपरागत भारतीय तत्वों का मिश्रण देखने को मिलता है. उनके चित्रों में रंगों का प्रयोग और उनकी विशिष्ट शैली ने उन्हें अन्य कलाकारों से अलग बनाया. उनके चित्रों में मुख्य रूप से आम जनजीवन, विशेषकर गरीबों और मजदूरों का चित्रण होता था.
आरा की कला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली और उन्होंने कई प्रमुख कला प्रदर्शनियों में भाग लिया। उनकी कृतियों को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया.
आरा ने अनेक महत्वपूर्ण चित्र बनाए, जिनमें उनके सामाजिक और राजनीतिक विचार स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं.
प्रमुख कृतियाँ: –
“Still Life with Fish”: – यह चित्रण उनके करियर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, जिसमें उन्होंने जीवन के साधारण पहलुओं को अपने कला में उतारा.
“Nude Series”: – आरा ने नग्न चित्रण की एक श्रृंखला भी बनाई, जो अपने समय में काफी विवादास्पद रही, लेकिन इसे भारतीय कला में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ.
आरा का जीवन संघर्षों और कठिनाइयों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने अपनी कला के माध्यम से एक स्थायी प्रभाव छोड़ा. उनका निधन 30 जून 1985 को हुआ था. आरा ने भारतीय आधुनिक कला में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उनकी कृतियाँ आज भी कला प्रेमियों और इतिहासकारों के बीच अत्यधिक सम्मानित हैं. उनकी विरासत भारतीय कला के विकास और उसकी पहचान को मजबूती प्रदान करती है.
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मार्शल ऑफ द एयर फोर्स अर्जन सिंह
मार्शल ऑफ द इंडियन एयर फोर्स अर्जन सिंह, डीएफसी (डिस्टिंग्विश्ड फ्लाइंग क्रॉस) एक प्रतिष्ठित भारतीय वायुसेना अधिकारी थे, जिन्हें उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए वर्ष 2002 में मार्शल के पद पर पदोन्नति दी गई थी. वह 15 अप्रैल 1919 में पंजाब में जन्मे और 16 सितंबर 2017 में उनका निधन हुआ. अर्जन सिंह वर्ष 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान वायुसेना के चीफ थे, और उनके नेतृत्व में भारतीय वायुसेना ने कई महत्वपूर्ण युद्धाभियानों में सफलता प्राप्त की.
उनके नेतृत्व कौशल और साहस की वजह से वह भारतीय वायुसेना में एक आदरणीय और प्रेरणादायक व्यक्तित्व के रूप में सम्मानित किए गए. अर्जन सिंह ने अपनी सेवा के दौरान कई उच्च स्तरीय पदों पर काम किया और वायुसेना के साथ-साथ भारतीय सशस्त्र बलों की विभिन्न क्षमताओं को मजबूत करने में उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा.
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राजनीतिज्ञ राम नाईक
राम नाईक एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जिनका जन्म 16 अप्रैल 1934 को हुआ था. वे भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ सदस्य थे और उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के रूप में भी कार्य किया. राम नाईक ने भारतीय संसद में कई बार सांसद के रूप में सेवा की और पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री के रूप में भी कार्यभार संभाला.
उन्होंने विशेष रूप से ऊर्जा क्षेत्र में अपनी मंत्रालय के दौरान कई महत्वपूर्ण नीतियों की शुरुआत की, जिसमें तेल और गैस के खोज और उत्पादन के नियमन में सुधार शामिल हैं. राम नाईक की राजनीतिक यात्रा उनकी सक्रियता, समर्पण और नेतृत्व कौशल का प्रतिबिंब थी, और उन्होंने भारतीय राजनीति में अपने विविध योगदान के लिए व्यापक सम्मान प्राप्त किया.
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राजनीतिज्ञ बनवारीलाल पुरोहित
बनवारीलाल पुरोहित एक अनुभवी भारतीय राजनीतिज्ञ हैं, जिन्होंने विभिन्न राज्यपाल पदों पर सेवा की है. वे 16अप्रैल 1940 को जन्मे थे और मूलतः विधायक और सांसद के रूप में अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की. उन्होंने विशेष रूप से नागपुर से संसद सदस्य के रूप में सेवा की और बाद में वे तमिलनाडु और पंजाब के राज्यपाल भी रहे.
बनवारीलाल पुरोहित ने अपने कार्यकाल में शिक्षा और सामाजिक विकास पर विशेष ध्यान दिया. उनके शासन में विविध शैक्षणिक पहलों को प्रोत्साहन दिया गया और उन्होंने राज्यों में उच्च शिक्षण संस्थानों के संवर्धन में योगदान दिया. उनकी राजनीतिक दृष्टि और प्रशासनिक कौशल ने उन्हें एक सम्मानित और प्रभावशाली राजनीतिक व्यक्तित्व के रूप में स्थापित किया.
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गायिका एस. सौम्या
एस. सौम्या एक भारतीय कर्नाटक संगीत गायिका हैं, जो . उनका जन्म 16 अप्रैल 1979 में हुआ था और वे एक बहुत ही सम्मानित कलाकार हैं जिन्होंने कर्नाटक संगीत के क्षेत्र में विशेष पहचान बनाई है.
सौम्या ने अपनी संगीत शिक्षा बहुत ही कम उम्र से शुरू की थी और वे विद्यालय और कॉलेज के स्तर पर विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेकर अपनी प्रतिभा को निखारती गईं. उन्हें विशेष रूप से उनके तानपुरा के साथ की जाने वाली प्रस्तुतियों के लिए जाना जाता है, जिसमें वे भक्ति संगीत और क्लासिकल रागों का समावेश करती हैं.
सौम्या को उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं. उनकी गायन क्षमता और संगीत के प्रति समर्पण ने उन्हें कर्नाटक संगीत के प्रेमियों के बीच एक विशेष स्थान दिलाया है.
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अभिनेत्री लारा दत्ता
लारा दत्ता एक भारतीय अभिनेत्री और मॉडल हैं, जिन्होंने वर्ष 2000 में मिस यूनिवर्स का खिताब जीता था. उनका जन्म 16 अप्रैल 1978 को गाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था. लारा दत्ता ने अपने मॉडलिंग कैरियर के बाद भारतीय फिल्म उद्योग में प्रवेश किया और उन्होंने “अंदाज़” (2003) फिल्म से अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत की, जिसके लिए उन्हें फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ नई अभिनेत्री पुरस्कार भी प्राप्त हुआ.
उन्होंने कई सफल फिल्मों में अभिनय किया है जैसे कि “मस्ती” (2004), “नो एंट्री” (2005), “भागम भाग” (2006), और “पार्टनर” (2007)। लारा दत्ता ने अपनी विविध भूमिकाओं और सशक्त प्रदर्शन के लिए सराहना प्राप्त की है.
वह न केवल फिल्मों में अपने काम के लिए जानी जाती हैं बल्कि वह विभिन्न सामाजिक और दान के कार्यों में भी सक्रिय रही हैं. उन्होंने महिलाओं के अधिकारों और शिक्षा के क्षेत्र में विशेष रूप से काम किया है. उनकी प्रतिभा और व्यक्तित्व ने उन्हें भारतीय सिनेमा में एक विशेष स्थान दिलाया है.
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फ्रीस्टाइल पहलवान सरिता मोर
सरिता मोर एक उभरती हुई भारतीय फ्रीस्टाइल पहलवान हैं, जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के लिए कई पदक जीते हैं. वह मुख्य रूप से 59 किलोग्राम वर्ग में प्रतिस्पर्धा करती हैं. सरिता की उल्लेखनीय उपलब्धियों में एशियन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक शामिल है, जिसे उन्होंने 2020 में जीता था.
सरिता मोर का जन्म 16 अप्रैल, 1995 को गाँव बरोदा, जिला सोनीपत, हरियाणा में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम राम चंद्र मोर है. उनकी पहलवानी की शुरुआत उनके प्रारंभिक वर्षों में हुई थी, और वह अपनी कठोर ट्रेनिंग और दृढ़ संकल्प के लिए जानी जाती हैं.
सरिता मोर ने अपने कैरियर में न केवल तकनीकी कौशल का प्रदर्शन किया है, बल्कि उन्होंने अपनी लगन और धैर्य के द्वारा युवा खिलाड़ियों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत भी बनी हैं. उनका योगदान भारतीय महिला पहलवानी को एक नई दिशा देने में महत्वपूर्ण रहा है, और उनकी उपलब्धियां भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का कार्य करती हैं.
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चित्रकार नंदलाल बोस
नंदलाल बोस भारतीय आधुनिक कला के प्रमुख चित्रकारों में से एक थे. उनका जन्म 3 दिसंबर 1882 को हुआ था और उनका निधन 16 अप्रैल 1966 को हुआ था. नंदलाल बोस बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट के अग्रणी सदस्यों में से एक थे, जिसने भारतीय कला को एक नई दिशा दी. उन्होंने अभिव्यक्ति में लोक कला की सादगी और ईमानदारी को महत्व दिया और पारंपरिक भारतीय शैलियों को पुनर्जीवित किया.
नंदलाल बोस ने अपने चित्रों में भारतीय संस्कृति, इतिहास और ग्रामीण जीवन को विशेष रूप से दर्शाया. उनकी कलाकृतियाँ अक्सर भारतीय जनजीवन के अनेक पहलुओं को उजागर करती हैं. उन्होंने हरिपुरा पैनल्स बनाये जो वर्ष 1938 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के सत्र के लिए बनाये गए थे. ये पैनल्स ग्रामीण भारत के जीवन को बहुत ही सजीव तरीके से दर्शाते हैं.
नंदलाल बोस की कलाकृतियां उनके विस्तृत निरीक्षण और गहरी समझ को दर्शाती हैं. उनका काम भारतीय कला के इतिहास में एक महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है, और उनकी कला की प्रेरणा और महत्व आज भी अनगिनत कलाकारों और कला प्रेमियों के लिए बनी हुई है.
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ब्रिगेडियर भवानी सिंह
ब्रिगेडियर भवानी सिंह भारतीय सेना के एक अधिकारी थे और जयपुर के महाराजा भी रहे. उनका जन्म 22 अक्टूबर 1931 को हुआ था और निधन 16 अप्रैल 2011 को हुआ. भवानी सिंह को उनके सैन्य कैरियर के दौरान वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में उत्कृष्ट सेवाओं के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था. उन्होंने विशेष रूप से पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में संचालनों में नेतृत्व प्रदान किया था.
ब्रिगेडियर भवानी सिंह का राजस्थान के जयपुर राजघराने से भी गहरा संबंध था. वे जयपुर के शासक के रूप में भी जाने जाते थे और उन्होंने इस पद पर रहते हुए कई सामाजिक और आर्थिक पहलों का समर्थन किया। उनके शासनकाल में जयपुर शहर ने महत्वपूर्ण विकास के पथ पर अग्रसर होना शुरू किया।
ब्रिगेडियर भवानी सिंह ने अपनी सैन्य और राजनीतिक भूमिकाओं में विशेष योगदान दिया और उन्हें उनके विविध योगदानों के लिए व्यापक सम्मान प्राप्त हुआ. उनकी विरासत भारतीय सेना और जयपुर के इतिहास में स्थायी रूप से अंकित है.