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व्यक्ति विशेष

भाग – 445.

होल्कर वंश के प्रवर्तक मल्हारराव होल्कर

मल्हारराव होल्कर होल्कर वंश के प्रवर्तक और एक प्रमुख मराठा सरदार थे, जिन्होंने 18वीं सदी के दौरान मालवा क्षेत्र में अपना राज्य स्थापित किया था. उनका जन्म 16 मार्च 1693 को हुआ था और उन्होंने मराठा साम्राज्य के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

मल्हारराव होल्कर ने अपने वीरता और कुशल रणनीतिक योगदानों के चलते मराठा साम्राज्य के पेशवा बाजीराव प्रथम का विश्वास जीता. उन्होंने मराठा सेना के विभिन्न अभियानों में भाग लिया और उत्तर भारत में मराठा प्रभाव को मजबूत किया. मल्हारराव ने मालवा, राजपूताना और गुजरात के क्षेत्रों में मराठा उपस्थिति का विस्तार किया और इन क्षेत्रों में मराठा प्रभुत्व स्थापित किया.

उनके नेतृत्व में होल्कर वंश ने इंदौर को अपना मुख्यालय बनाया और वहाँ से विभिन्न राजनीतिक और सैन्य अभियानों का संचालन किया. मल्हारराव की मृत्यु 20 मई 1766 को हुई थी. उनके जीवन और कैरियर ने मराठा साम्राज्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ा और होल्कर वंश को मजबूत आधार प्रदान किया.

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स्वतन्त्रता सेनानी पोट्टि श्रीरामुलु

पोट्टि श्रीरामुलु भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने भारत की आजादी के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया. वे विशेष रूप से दक्षिण भारत में आंध्र प्रदेश राज्य के निर्माण के लिए अपने अनशन और अहिंसात्मक प्रदर्शनों के लिए जाने जाते हैं. पोट्टि श्रीरामुलु का जन्म 16 मार्च 1901 को हुआ था और उन्होंने अपने जीवन के दौरान भारतीय समाज में विभिन्न सामाजिक सुधारों के लिए काम किया.

उन्होंने आदिवासी और अन्य पिछड़े समूहों के उत्थान के लिए काम किया और छुआछूत के खिलाफ संघर्ष किया. उनका सबसे प्रसिद्ध आंदोलन आंध्र प्रदेश के लिए अलग राज्य की मांग के लिए उनका अनशन था, जो उनकी मृत्यु के बाद ही पूरा हुआ. उनकी मृत्यु ने भारतीय राजनीति में बड़ी प्रतिध्वनि उत्पन्न की और अंततः आंध्र प्रदेश के निर्माण की ओर अग्रसर की.

पोट्टि श्रीरामुलु का निधन 15 दिसम्बर 1952 को हुआ था. पोट्टि श्रीरामुलु को भारतीय इतिहास में एक महान स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक के रूप में याद किया जाता है.

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साहित्यकार अम्बिका प्रसाद दिव्य

अम्बिका प्रसाद दिव्य एक हिंदी साहित्यकार थे, जिन्होंने 20वीं शताब्दी के प्रारंभिक दौर में हिंदी साहित्य में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई. उन्हें विशेष रूप से उनकी कविताओं और निबंधों के लिए जाना जाता है. उनका लेखन राष्ट्रवादी भावनाओं और सामाजिक मुद्दों की प्रतिध्वनि करता है.

अम्बिका प्रसाद दिव्य का जन्म 16 मार्च 1906 को  अजयगढ़, पन्ना ज़िला (मध्य प्रदेश) के एक सुसंस्कृत कायस्थ परिवार में हुआ था. दिव्य जी ने मध्य प्रदेश शिक्षा विभाग से सेवा कार्य प्रारंभ किया, जहाँ से वे प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त हुए थे. अम्बिका प्रसाद दिव्य क निधन 5 सितम्बर1986 को हुआ था.

अम्बिका प्रसाद दिव्य की रचनाएँ उस समय की सामाजिक और राजनीतिक स्थितियों का चित्रण करती हैं और हिंदी साहित्य में उनका महत्वपूर्ण स्थान है. उनके कार्यों ने हिंदी साहित्य को नई दिशाएँ प्रदान कीं और उन्होंने साहित्यिक प्रवृत्तियों में नवीनता और मौलिकता को बढ़ावा दिया. उनके कार्यों में उनकी गहरी सोच और भावनाओं का समावेश होता है, जिसने पाठकों और समीक्षकों का गहरा ध्यान आकर्षित किया.

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फ़िल्म निर्माता दयाकिशन सप्रू

दयाकिशन सप्रू, जिन्हें आमतौर पर ‘सप्रू’ के नाम से जाना जाता है, उनका जन्म 16 मार्च 1916 को कश्मीर, भारत में हुआ था. उनके पिता कश्मीर के महाराजा के दरबार में वित्त विभाग में उच्च पद पर थे. दयाकिशन ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत वर्ष 1944 में मुंबई में की और वी. शांताराम ने उन्हें अपनी फिल्म ‘रामशास्त्री’ में कास्ट किया. इस फिल्म में उन्होंने पेशवा का छोटा सा रोल किया, जो अपने समय की हिट फिल्म थी.

सप्रू ने वर्ष 1960 – 70 के दशक में कई फिल्मों में खलनायक के रूप में काम किया, जिससे उन्हें काफी ख्याति प्राप्त हुई. लेकिन, उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत में कई चरित्र भूमिकाएं भी निभाईं. उनकी प्रमुख फिल्मों में ‘कुदरत’, ‘क्रोधी’, ‘ज्योति बने ज्वाला’, ‘नया दौर’, ‘दीवार’, और ‘पाकीजा’ शामिल हैं. सप्रू के बच्चे तेज सप्रू और प्रीती सप्रू भी हैं, जो खुद फिल्म जगत में सक्रिय हैं​. दयाकिशन सप्रू का निधन अक्टूबर, 1979 को हुआ था.

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शास्त्रीय नर्तकी तनुश्री शंकर

तनुश्री शंकर एक भारतीय समकालीन नर्तकी और कोरियोग्राफर हैं. उनका जन्म 16 मार्च 1956 को कोलकाता में हुआ था. वर्ष 1970 – 80 के दशक में उन्होंने आनंद शंकर सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स की प्रमुख नर्तकी के रूप में अपनी ख्याति अर्जित की.

उन्होंने ‘द नेमसेक’ जैसी विभिन्न फिल्मों में भी अभिनय किया है. तनुश्री की शादी संगीतकार आनंद शंकर से हुई थी, जो नर्तक पंडित उदय शंकर और अमला शंकर के पुत्र थे.. वह वर्तमान में एक डांस कंपनी की संचालन कर रही हैं जो भारत में समकालीन नृत्य रूपों का एक प्रतिपादक है.

उन्होंने अपने आधुनिक भावों के साथ पारंपरिक भारतीय नृत्यों का मेल करके एक आधुनिक नृत्य को विकसित किया है. उन्हें “थांग-टा” (मणिपुरी तलवार नृत्य) जैसी समृद्ध स्थानीय भारतीय परंपराओं से भी प्रेरणा मिली है. उनकी उल्लेखनीय प्रस्तुतियों में ‘उतरन’ (आत्मा का उत्थान) और ‘चिरंतन’ (शाश्वत) शामिल हैं, जो रबींद्रनाथ टैगोर के संगीत पर आधारित हैं.

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साहित्यकार अयोध्या सिंह उपाध्याय

अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, एक प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार थे, जिनका जन्म 15 अप्रैल 1865 में उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के निजामाबाद में हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा निजामाबाद और आजमगढ़ में हुई थी और बाद में उन्होंने घर पर ही संस्कृत, उर्दू, फारसी और अंग्रेजी जैसी विभिन्न भाषाओं में शिक्षा प्राप्त की. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत मध्य विद्यालय के प्रधानाध्यापक के रूप में की और बाद में कानूनगो के रूप में कार्य किया। खड़ी बोली हिंदी के काव्य भाषा के रूप में स्थापना में उनका योगदान महत्वपूर्ण रहा.

हरिऔध की सर्वाधिक प्रसिद्धि उनकी कृति ‘प्रिय प्रवास’ से मिली, जिसे खड़ी बोली का पहला महाकाव्य माना जाता है. उनके काव्य और गद्य विधाओं में की गई रचनाएँ उन्हें हिंदी साहित्य के आधार-स्तंभों में से एक बनाती हैं. उन्होंने नाटक और उपन्यास विधाओं में भी योगदान दिया, लेकिन उनकी प्रतिभा मूलतः कवि के रूप में अधिक प्रकट हुई. हरिऔध ने हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति के रूप में भी कार्य किया और उन्हें ‘प्रिय प्रवास’ के लिए मंगला प्रसाद पारितोषिक से सम्मानित किया गया था.

उनकी मृत्यु 16 मार्च 1947 को उनके जन्मस्थान निजामाबाद में हुई. हरिऔध ने हिंदी साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण ययोगदान दिया। उनकी विविध रचनाएँ और उनका साहित्यिक जीवन आज भी हिंदी साहित्य में उन्हें एक विशिष्ट स्थान दिलाते हैं.

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साहित्यकार  विजयानन्द त्रिपाठी

साहित्यकार विजयानन्द त्रिपाठी एक हिंदी साहित्यकार थे. उन्होंने ‘संमार्ग’ पत्रिका का सम्पादन किया था और ‘हिन्दू कोड बिल’ और गौ हत्या के विरोध में महत्वपूर्ण लेखन किय. वे योगत्रयानन्द शिवराम किंकर से योगविद्या के ज्ञानी भी थे. उनका निधन 16 मार्च, 1955 को हुआ​​。

उन्होंने कविता में अपना नाम ‘श्री कवि’ के रूप में लिखा और बाबू हरिश्चंद्र की ‘रत्नावली नाटिका’ को पूरा किया। ‘रणधीर प्रेममोहिनी’ नाटक का उन्होंने संस्कृत में अनुवाद किया. उनका लेखन अपूर्व और प्रौढ़ भाषा में था जिसे पढ़ने वाले हमेशा याद रखते हैं​​.

उनके द्वारा रचित ‘महाअंधेर नगरी’ नाटक अपने आप में अनूठा था और इसमें विभिन्न रसों की प्राप्ति होती है. उनके कथाशिल्प, काव्यरूप, अलंकार संयोजना, छंदनियोजना और लोक संस्कृति पर उनकी गहरी पकड़ थी. उन्होंने महाकवि कालिदास कृत ‘मालविकाग्निमित्रम’ नाटक का भी गद्यमय अनुवाद किया, जिसे नाट्य साहित्य में एक वैभवशाली कार्य माना जाता है. त्रिपाठी जी को ‘मानसहरेजा’ की सम्माननीय उपाधि से भी सम्मानित किया गया था​​。

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