
निबंधकार सरदार पूर्णसिंह
सरदार पूर्णसिंह हिंदी साहित्य के एक प्रमुख निबंधकार थे, जिन्हें हिंदी निबंध लेखन में विशेष स्थान प्राप्त है. वे मूल रूप से पंजाबी भाषा के साहित्यकार थे, लेकिन हिंदी में भी उन्होंने अत्यंत प्रभावशाली लेखन किया। उनके निबंधों में गहरी संवेदनशीलता, दार्शनिकता, और मानवतावादी दृष्टिकोण देखने को मिलता है.
पूर्णसिंह का जन्म 17 फ़रवरी 1881को पश्चिम सीमाप्रांत (अब पाकिस्तान में) के हज़ारा ज़िले के मुख्य नगर एबटाबाद के समीप सलहद ग्राम में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा रावलपिंडी और लाहौर में प्राप्त की. वे एक वैज्ञानिक भी थे और टोकियो विश्वविद्यालय में रसायन विज्ञान का अध्ययन कर चुके थे.
पूर्णसिंह मुख्य रूप से अपने निबंधों के लिए प्रसिद्ध हैं. उनके निबंधों में भावनात्मकता और गंभीर विचारधारा का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है. उन्होंने हिंदी साहित्य को भावनात्मक प्रवाह और आत्मचिंतन से भरपूर निबंध दिए. उनके निबंधों में “सच्ची वीरता”, “महापुरुषों का संग”, “गृहस्थ का मार्ग”, “किसान” आदि विशेष रूप से चर्चित हैं.
सरदार पूर्णसिंह के निबंधों में एक गहरी मानवीय संवेदनशीलता देखने को मिलती है. वे अपने निबंधों में गहरे दार्शनिक विचार प्रस्तुत करते हैं. उनकी भाषा सहज, प्रभावशाली और प्रवाहमयी होती थी. उन्होंने अपने लेखन में मानवता, प्रेम और समाज सुधार को प्राथमिकता दी.
पूर्णसिंह हिंदी निबंध साहित्य के एक महत्वपूर्ण स्तंभ थे. उनकी लेखनी आज भी प्रेरणादायक मानी जाती है. उनका साहित्य, भावनाओं की गहराई और विचारों की ऊँचाई का बेहतरीन उदाहरण है.सरदार पूर्ण सिंह का निधन 31 मार्च, 1931 को देहरादून में हुआ था.
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क्रांतिकारी बुधु भगत
क्रांतिकारी बुधु भगत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व थे. वे झारखंड के आदिवासी नेता थे जिन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ विद्रोह किया था. बुधु भगत ने कोल विद्रोह का नेतृत्व किया, जो 1831-32 में हुआ था. यह विद्रोह आदिवासी समुदायों द्वारा ब्रिटिश राज और उनके जमींदारी प्रथा के खिलाफ किया गया था. इस विद्रोह का मुख्य कारण जमीन के मालिकाना हक को लेकर था, जहाँ आदिवासी समुदायों की जमीनें जबरन छीनी जा रही थीं.
बुधु भगत का जन्म आज के झारखण्ड राज्य में राँची ज़िले के सिलागाई नामक ग्राम में 17 फ़रवरी 1792 को हुआ था और उनका निधन 13 फ़रवरी 1832 को हुआ.
बुधु भगत ने अपने साथियों के साथ मिलकर आदिवासी समाज को एकजुट किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया. उनका विद्रोह आदिवासी अधिकारों और स्वायत्तता की मांग पर आधारित था. बुधु भगत और उनके साथियों ने ब्रिटिश फौजों के खिलाफ कई लड़ाइयाँ लड़ीं. उनके साहस और वीरता के कारण, वे झारखंड के लोगों के बीच एक हीरो के रूप में जाने जाते हैं.
उनके नेतृत्व में किए गए विद्रोह ने आदिवासी समुदायों के बीच जागरूकता और एकता की भावना को मजबूत किया. हालांकि ब्रिटिश सेना ने उनके विद्रोह को कुचल दिया, लेकिन बुधु भगत की वीरता और त्याग की कहानियाँ आज भी प्रेरणादायक हैं. उनका जीवन और संघर्ष भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है.
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फ़िल्म निर्देशक रवि टंडन
रवि टंडन एक प्रसिद्ध भारतीय फिल्म निर्देशक और निर्माता थे, जिन्होंने वर्ष 1970 – 80 के दशक में बॉलीवुड में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई. उन्होंने कई सफल फिल्मों का निर्देशन किया जिसमें विविध शैलियों की फिल्में शामिल हैं, जैसे कि रोमांस, ड्रामा, और एक्शन. रवि टंडन की फिल्मों में अक्सर मानवीय भावनाओं और संबंधों की गहराई को बड़े पर्दे पर उतारा गया है, जिसने दर्शकों के दिलों को छू लिया.
रवि टंडन का जन्म 17 फ़रवरी, 1935 को उत्तर प्रदेश में आगरा शहर के माइथान में एक पंजाबी फैमिली में हुआ था. उनकी कुछ लोकप्रिय फिल्मों में लव इन शिमला, ये रस्ते हैं प्यार के, अनहोनी, मजबूर, जिंदगी, झूठा कहीं का, वक्त की दीवार, आन और शान और नजराना शामिल हैं. रवि टंडन की फिल्में उनकी निर्देशन कला, कहानी कहने की शैली और किरदारों के चित्रण के लिए प्रसिद्ध हैं. उन्होंने अपने कैरियर में उस समय के कई प्रमुख अभिनेताओं और अभिनेत्रियों के साथ काम किया, जिनमें राजेश खन्ना, विनोद मेहरा, रेखा, और अमिताभ बच्चन जैसे नाम शामिल हैं.
रवि टंडन ने अपनी फिल्मों के माध्यम से न केवल मनोरंजन प्रदान किया बल्कि सामाजिक संदेश देने की कोशिश भी की. उनकी फिल्में अक्सर उस समय के सामाजिक परिदृश्य को दर्शाती थीं और दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती थीं. रवि टंडन का निर्देशन कैरियर उन्हें भारतीय सिनेमा के महत्वपूर्ण योगदानकर्ताओं में से एक के रूप में स्थापित करता है. रवि टंडन की मृत्यु 11 फ़रवरी, 2022 को मुम्बई में हुई थी.
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राजनीतिज्ञ के. चन्द्रशेखर राव
के. चंद्रशेखर राव (KCR) भारत के एक प्रमुख राजनीतिज्ञ हैं, जो तेलंगाना राज्य के गठन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए जाने जाते हैं. वे तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) के संस्थापक हैं और वर्ष 2014 में तेलंगाना के पहले मुख्यमंत्री बने थे. के. चंद्रशेखर राव का जन्म 17 फरवरी 1954 को आंध्र प्रदेश (अब तेलंगाना) के मेदक जिले में हुआ था. उन्होंने उस्मानिया विश्वविद्यालय से अपनी स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षा पूरी की.
केसीआर ने वर्ष 1983 में तेलुगु देशम पार्टी (TDP) से अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की और विधायक बने. वर्ष 2001 में उन्होंने तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य आंध्र प्रदेश से अलग तेलंगाना राज्य बनाना था. लंबे संघर्ष और राजनीतिक रणनीतियों के बाद 2 जून 2014 को तेलंगाना एक अलग राज्य बना, और केसीआर इसके पहले मुख्यमंत्री बने.
उन्होंने वर्ष 2014 – 23 तक तेलंगाना के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया और कई कल्याणकारी योजनाएँ शुरू कीं, जैसे कि “रायतु बंधु योजना” (किसानों के लिए आर्थिक सहायता) और “कल्लेश्वरम प्रोजेक्ट” (सिंचाई परियोजना). के. चंद्रशेखर राव ने तेलंगाना में बुनियादी ढांचे और औद्योगिकीकरण को बढ़ावा दिया. किसानों और गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाएँ लागू कीं. हैदराबाद को एक प्रमुख टेक और बिजनेस हब के रूप में विकसित किया.
के. चंद्रशेखर राव भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण नेता हैं, जिन्होंने तेलंगाना राज्य के निर्माण में ऐतिहासिक भूमिका निभाई. उनके नेतृत्व में तेलंगाना ने कई सामाजिक और आर्थिक सुधार देखे.
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अभिनेत्री सदा मोहम्मद सैयद
सदा मोहम्मद सैयद, जिन्हें आमतौर पर सदा के नाम से जाना जाता है, भारतीय सिनेमा की एक प्रसिद्ध अभिनेत्री हैं. वह मुख्य रूप से तेलुगु और तमिल फिल्म उद्योग में सक्रिय हैं, हालांकि उन्होंने हिंदी, कन्नड़ और मलयालम फिल्मों में भी काम किया है. सदा अपनी खूबसूरती और उत्कृष्ट अभिनय कौशल के लिए जानी जाती हैं.
सदा मोहम्मद सैयद का जन्म 17 फरवरी 1984 को रत्नागिरी, महाराष्ट्र में हुआ था. सदा ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत 2002 में तेलुगु फिल्म “जयम” से की थी, जो एक बड़ी हिट साबित हुई. इस फिल्म के लिए उन्हें व्यापक पहचान मिली और उन्हें क्रिटिक्स और दर्शकों की ओर से सराहना प्राप्त हुई. इसके बाद, उन्होंने “आनंद”, “नुव्वोस्तानांते नेनोद्दंताना” और “प्रियामानवले” जैसी कई सफल फिल्मों में अभिनय किया. उन्होंने हिन्दी फिल्म खिचड़ी और लव में भी काम किया है.
सदा की अभिनय प्रतिभा ने उन्हें विविध भूमिकाएँ निभाने का अवसर दिया, जिसमें रोमांटिक, ड्रामा, और कॉमेडी जैसी विभिन्न शैलियों में काम किया। उनकी उपस्थिति और प्रदर्शन ने उन्हें दक्षिण भारतीय सिनेमा की सबसे चर्चित अभिनेत्रियों में से एक बना दिया।
अपने अभिनय कैरियर के अलावा, सदा ने विभिन्न फैशन शोज में भी भाग लिया है और विज्ञापन अभियानों में दिखाई दी हैं. उनकी खूबसूरती और आकर्षण ने उन्हें फैशन और सौंदर्य प्रसाधनों के ब्रांड एंबेसडर के रूप में भी पहचान दिलाई है.सदा का योगदान दक्षिण भारतीय सिनेमा को एक नई पहचान देने में महत्वपूर्ण रहा है.
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पार्श्व गायिका नीति मोहन
नीति मोहन भारतीय फिल्म संगीत की प्रसिद्ध पार्श्व गायिका हैं, जो अपनी सुरीली आवाज़ और विविधता भरे गानों के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने बॉलीवुड, तेलुगु, तमिल और अन्य भाषाओं में कई सुपरहिट गाने गाए हैं. नीति मोहन का जन्म 18 नवंबर 1979 को दिल्ली में हुआ था. उनका पूरा नाम नीति मोहन शर्मा है. उनके पिता बृज मोहन शर्मा और माता कुसुम मोहन हैं. उनकी तीन बहनें हैं—शक्ति मोहन (डांसर), मुक्ति मोहन (डांसर और अभिनेत्री), और कृति मोहन.
उन्होंने अपनी शिक्षा दिल्ली के बिरला बालिका विद्यालय और फिर मिरांडा हाउस कॉलेज से पूरी की. संगीत में रुचि होने के कारण उन्होंने युवा अवस्था में ही शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेना शुरू कर दिया था.
नीति मोहन को प्रसिद्धि वर्ष 2012 में आई फिल्म “स्टूडेंट ऑफ द ईयर” के सुपरहिट गाने “इश्क़ वाला लव” से मिली. इसके बाद उन्होंने कई हिट गाने गाए और बॉलीवुड की प्रमुख गायिकाओं में शामिल हो गईं.
प्रसिद्ध गाने: –
“इश्क़ वाला लव” – स्टूडेंट ऑफ द ईयर (2012),
“जिया रे” – जब तक है जान (2012),
“नैनों वाले ने” – पद्मावत (2018),
“मनवा लागे” – हैप्पी न्यू ईयर (2014),
“तूने मारी एंट्रियां” – गुंडे (2014),
“सौ आसमान” – बार बार देखो (2016),
“मेरे यारा” – सूर्यवंशी (2021).
नीति मोहन ने “पॉपस्टार्स” (2003) रियलिटी शो जीता, जिससे वे एक म्यूजिक ग्रुप “आसमा” का हिस्सा बनीं. वे “द वॉयस इंडिया” और “राइजिंग स्टार” में बतौर जज नजर आईं. नीति मोहन ने 15 फरवरी 2019 को निहार पांड्या से शादी की, जो एक अभिनेता और मॉडल हैं.
नीति मोहन अपनी मधुर आवाज़ और बहुमुखी प्रतिभा के कारण भारतीय संगीत उद्योग की लोकप्रिय गायिकाओं में गिनी जाती हैं. उनके गाने युवा पीढ़ी के बीच खासे पसंद किए जाते हैं और वे अपनी संगीत यात्रा में लगातार नई ऊँचाइयाँ छू रही हैं.
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क्रांतिकारी वासुदेव बलवंत फड़के
वासुदेव बलवंत फड़के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान क्रांतिकारी थे. वे भारत में सशस्त्र क्रांति के प्रणेता माने जाते हैं और उन्हें भारतीय स्वाधीनता संग्राम के पहले बड़े विद्रोही के रूप में पहचाना जाता है. फड़के का जन्म महाराष्ट्र में हुआ था और उन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ लड़ाई में महाराष्ट्र के किसानों और मजदूरों को संगठित किया.
क्रांतिकारी वासुदेव बलवंत फड़के का जन्म जन्म 04 नवंबर 1845 को शिरधों (वर्तमान महाराष्ट्र) में बलवंतराव और सरस्वतीबाई के घर हुआ था और उनका निधन 17 फरवरी 1883 को हुआ. फड़के ने ब्रिटिश राज के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का आयोजन किया, जिसे “फड़के का विद्रोह” के नाम से जाना जाता है. उनका उद्देश्य भारत से ब्रिटिश शासन को समाप्त करना और एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना करना था. वे भूमि राजस्व प्रणाली और ब्रिटिश नीतियों से प्रेरित गरीबी और अकाल से पीड़ित किसानों की दयनीय स्थिति से बहुत दुखी थे.
फड़के ने अपने विद्रोही गतिविधियों के लिए धन और संसाधन जुटाने के लिए कई रणनीतियाँ अपनाईं, जिसमें बैंकों और सरकारी खजानों पर हमला करना शामिल था. हालांकि, उनके विद्रोह को ब्रिटिश सेना ने कुचल दिया, और फड़के को पकड़ लिया गया. उन्हें आदेन में कैद किया गया, जहाँ उनकी मृत्यु हो गई.
वासुदेव बलवंत फड़के का जीवन और संघर्ष भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआती लड़ाइयों में से एक है. उनकी बहादुरी और समर्पण ने बाद के कई क्रांतिकारियों को प्रेरित किया और उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान नायक के रूप में स्मरण किया जाता है. उनकी वीरता और त्याग की कहानियाँ आज भी भारतीय इतिहास में एक प्रेरणास्रोत हैं.
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क्रांतिकारी पेरीन बेन
पेरीन बेन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक प्रमुख महिला क्रांतिकारी थीं. उनका पूरा नाम पेरीन फर्दूनजी कैप्टन था, और वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी पारसी महिला क्रांतिकारियों में से एक थीं. पेरीन बेन महात्मा गांधी की करीबी अनुयायी थीं और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से शामिल थीं.
पेरीन बेन का जन्म 12 अक्तूबर 1888 को कच्छ रियासत के मांडवी कस्बे के एक संपन्न पारसी परिवार में हुआ था. उनकी शिक्षा विदेश में हुई, और यूरोप से लौटने के बाद वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ीं. गांधीजी के सिद्धांतों और विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन, और विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार जैसे आंदोलनों में भाग लिया. वे न केवल राजनीतिक रूप से सक्रिय थीं, बल्कि महिलाओं को भी स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कई आंदोलनों में हिस्सा लेने के साथ-साथ समाज सुधार के कार्यों में भी जुटी रहीं.
पेरीन बेन का योगदान न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण है, बल्कि वे भारतीय नारी शक्ति का भी प्रतीक हैं. उनके संघर्ष और साहस ने कई महिलाओं को प्रेरित किया, और वे एक सशक्त महिला क्रांतिकारी के रूप में याद की जाती हैं. पेरीन बेन का निधन 17 फरवरी 1958 को हुआ था.
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स्वतंत्रता सेनानी कर्पूरी ठाकुर
कर्पूरी ठाकुर भारतीय राजनीति के एक प्रमुख व्यक्तित्व थे, जिन्हें उनके समर्पण और जनसेवा के लिए याद किया जाता है. वे बिहार के एक गरीब परिवार में जन्मे थे और बाद में बिहार के मुख्यमंत्री भी बने. कर्पूरी ठाकुर को उनके सामाजिक न्याय और गरीबों, वंचितों, और पिछड़े वर्गों के उत्थान के प्रयासों के लिए जाना जाता है.
कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी, 1924 को समस्तीपुर के पितौंझिया (अब कर्पूरीग्राम) में हुआ था उनका निधन 17 फरवरी, 1988 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ था. वे स्वतंत्रता सेनानी के रूप में भी सक्रिय रहे थे और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया. उन्होंने अंग्रेजी राज से भारत की आजादी के लिए लड़ाई में हिस्सा लिया और इस दौरान वे कई बार जेल गए. कर्पूरी ठाकुर ने भारतीय राजनीति में गरीबों और वंचितों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई. उन्हें विशेष रूप से शिक्षा और रोजगार में सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए याद किया जाता है. उनके कार्यकाल में कई सामाजिक सुधारों की शुरुआत हुई थी.
कर्पूरी ठाकुर की विरासत आज भी बिहार और पूरे भारत में जीवित है, और उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने समाज के हर वर्ग की भलाई के लिए काम किया.
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साहित्यकार पण्डित सीताराम चतुर्वेदी
पंडित सीताराम चतुर्वेदी भारतीय साहित्य जगत में एक प्रतिष्ठित नाम हैं. वे एक विद्वान, कवि, लेखक और आलोचक थे जिन्होंने हिंदी साहित्य को अपने विशिष्ट कार्यों के माध्यम से समृद्ध किया. उनका जन्म और जीवन विवरण विशेष रूप से उपलब्ध नहीं हो सकता है, लेकिन उनके कार्यों ने हिंदी साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.
पण्डित सीताराम चतुर्वेदी का जन्म 27 फ़रवरी 1907 को ‘छोटी पियरी’, वाराणसी (भूतपूर्व काशी) में हुआ था और उनका निधन 17 फ़रवरी 2005 को बरेली के निकट हुआ. पंडित सीताराम चतुर्वेदी की रचनाएँ विभिन्न विधाओं में फैली हुई हैं, जिसमें कविता, निबंध, आलोचना, और अनुवाद शामिल हैं. उन्होंने हिंदी साहित्य में भाषा, संस्कृति, और इतिहास पर गहराई से शोध किया और अपने लेखन के माध्यम से इन विषयों को समृद्ध किया. उनके आलोचनात्मक लेख और समीक्षाएँ भी काफी प्रशंसित हैं.
पंडित सीताराम चतुर्वेदी ने हिंदी साहित्य की परंपराओं और आधुनिकता के बीच सेतु का काम किया. उनके कार्य ने हिंदी साहित्य की विविधता और गहराई को उजागर किया है. वे हिंदी साहित्यिक समाज में एक प्रेरणादायक आकृति के रूप में याद किए जाते हैं, और उनका कार्य आज भी पढ़ने वालों को प्रेरित करता है.
हालांकि, उनके विस्तृत जीवन वृत्त और सभी कृतियों की जानकारी के लिए विशिष्ट स्रोतों की जांच करनी पड़ सकती है, क्योंकि समय के साथ उनके बारे में कई विवरण अधिक संकलित और सुलभ हो गए हैं. उनका कार्य और विचार आज भी हिंदी साहित्य के छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए महत्वपूर्ण हैं.
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उपन्यासकार वेद प्रकाश शर्मा
वेद प्रकाश शर्मा एक प्रसिद्ध भारतीय उपन्यासकार थे जिन्होंने हिंदी साहित्य में अपने थ्रिलर और जासूसी उपन्यासों के लिए विशेष पहचान बनाई. उनका जन्म 08 जून 1995 को उत्तर प्रदेश के मेरठ में हुआ था. वेद प्रकाश शर्मा ने हिंदी लेखन की दुनिया में अपना एक अलग स्थान बनाया, और उनके नाम कई लोकप्रिय और बेस्टसेलिंग पुस्तकें हैं.
उन्होंने अपने कैरियर में 170 से अधिक नॉवेल्स लिखे, जिनमें से “वर्दी वाला गुंडा” और “बोरा वाला जासूस” जैसे उपन्यास अत्यधिक लोकप्रिय हुए. उनकी कहानियाँ अक्सर रहस्य, रोमांच, और जासूसी के गिर्द घूमती थीं, जिन्हें पाठकों ने बहुत पसंद किया। वेद प्रकाश शर्मा की रचनाएं न केवल मनोरंजक थीं बल्कि कई बार सामाजिक मुद्दों पर भी प्रकाश डालती थीं.
वेद प्रकाश शर्मा की लेखनी ने हिंदी साहित्य में जासूसी और थ्रिलर विधा को नई पहचान दी. उनके उपन्यासों की भाषा सरल और सुगम थी, जिससे सामान्य पाठक भी उनकी कहानियों से जुड़ पाते थे. उनकी कृतियों में पात्रों का चित्रण और कथानक की गति पाठकों को अंत तक बांधे रखती थी.
वेद प्रकाश शर्मा का 17 फरवरी 2017 को निधन हुआ था, लेकिन उनकी रचनाएं आज भी हिंदी साहित्य के प्रेमियों के बीच उतनी ही लोकप्रिय हैं. उनका काम हिंदी जासूसी और थ्रिलर साहित्य को एक नई दिशा और ऊंचाई प्रदान करता है.
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कृषि वैज्ञानिक संजय राजाराम
संजय राजाराम एक विश्वविख्यात कृषि वैज्ञानिक थे जिन्होंने गेहूं की खेती में क्रांतिकारी बदलाव लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनका जन्म 1943 में भारत में हुआ था, और उन्होंने अपने जीवन को गेहूं की बेहतर किस्मों के विकास और अनुसंधान में समर्पित कर दिया.
राजाराम को खासतौर पर उनके उस काम के लिए जाना जाता है, जिसमें उन्होंने नॉर्मन बोरलॉग के साथ मिलकर काम किया. नॉर्मन बोरलॉग, जिन्हें “हरित क्रांति” के पिता के रूप में जाना जाता है, के मार्गदर्शन में राजाराम ने गेहूं की ऐसी किस्में विकसित कीं, जो विभिन्न पर्यावरणीय स्थितियों में उग सकती हैं और बीमारियों के प्रति अधिक प्रतिरोधी होती हैं.
उनके द्वारा विकसित की गई गेहूं की किस्मों का प्रयोग दुनिया भर के लगभग 40% गेहूं उत्पादन क्षेत्रों में किया जाता है, जिससे वैश्विक खाद्य सुरक्षा में उल्लेखनीय योगदान मिला है. उनके इस अभूतपूर्व योगदान के लिए उन्हें कई अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों से नवाजा गया, जिसमें 2014 में वर्ल्ड फूड प्राइज भी शामिल है.
संजय राजाराम का निधन 17 फरवरी 2021 को हुआ, लेकिन उनके काम का प्रभाव आज भी दुनिया भर के कृषि विज्ञान और खाद्य सुरक्षा क्षेत्रों में महसूस किया जाता है. उनके योगदान ने न केवल गेहूं की उपज में सुधार किया है बल्कि खाद्य सुरक्षा के लिए भी नई राहें खोली हैं.