Dharm

इंदिरा एकादशी

कुछ भक्तों ने महाराज जी से पूछा कि, महाराज जी पितृपक्ष में जो एकादशी मनाई जाती है उसके करने की विधि और कथा का श्रवण कराइए, सूना है कि इस एकादशी का कथा सुनने व पढ़ने से ही वाजपेयी यज्ञ का फल मिल जाता है. वाल व्यास सुमन जी महाराज  कहते है कि, आश्विन महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का नाम पुराणों में इंदिरा कहा गया है. इस वर्ष यह एकादशी 28 सितंबर 2024 को मनाया जाएगा.

वाल व्यास सुमन जी महाराज कहते है कि, पद्म पुराण में कहा गया है कि, श्राद्ध पक्ष में होने वाली इस एकादशी का पुण्य अगर पितृगणों को दिया जाय तो नरक में गए पितृगण. नरक से मुक्त होकर स्वर्ग चले जाते हैं. जो भी मनुष्य इस एकादशी का व्रत करता है उसे यमलोक की यातना का सामना नहीं करना पड़ता है. महाराज जी कहते है कि, पितृपक्ष की एकादशी होने के कारण यह एकादशी पितरों की मुक्ति के लिए उत्तम मानी जाती है. इस एकादशी का व्रत जो भी मनुष्य करता है उसके सभी पाप नाश हो जाते हैं और व्रत के प्रभाव से पितरों का दोष भी समाप्त हो जाता है.

पूजन सामाग्री: –

वेदी, कलश, सप्तधान, पंच पल्लव, रोली, गोपी चन्दन, गंगा जल, दूध, दही, गाय के घी का दीपक, सुपाड़ी, शहद, पंचामृत, मोगरे की अगरबत्ती, ऋतू फल, फुल, आंवला, अनार, लौंग, नारियल, नीबूं, नवैध, केला और तुलसी पत्र व मंजरी.

कथा: –  

सतयुग में महिष्मति नाम की एक नगरी थी, जिसका प्रतापी राजा इंद्रसेन धर्मपूर्वक अपनी प्रजा का पालन करते हुए शासन करते थे. वह राजा पुत्र, पौत्र और धन आदि से संपन्न और भगवान विष्णु का परम भक्त था. एक दिन जब राजा सुखपूर्वक अपनी सभा में बैठा था तो, आकाश मार्ग से महर्षि नारद उतरकर उसकी सभा में आए, और  राजा उन्हें देखते ही हाथ जोड़कर खड़े हो गये और विधिपूर्वक आसन व अर्घ्य दिया. सुख से बैठकर मुनि ने राजा से पूछा कि हे राजन? आपके सातों अंग तो कुशलपूर्वक हैं ना? तुम्हारी बुद्धि, धर्म में और तुम्हारा मन विष्णु भक्ति में तो लगा रहता है? देवर्षि नारद की ऐसी बातें सुनकर राजा ने कहा, हे महर्षि ? आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल है तथा मेरे यहाँ यज्ञ कर्मादि सुकृत हो रहे हैं. आप कृपा करके अपने आगमन का कारण बताइए, तब देवर्षि नारद ने कहा कि हे राजन ? आपको आश्चर्य देने वाले मेरे वचनों को ध्यानपूर्वक सुनो.

एक बार मैं, ब्रह्मलोक से यमलोक को गया, वहाँ श्रद्धापूर्वक यमराज से पूजित होकर मैंने धर्मशील और सत्यवान धर्मराज की प्रशंसा की. उसी यमराज की सभा में महान ज्ञानी और धर्मात्मा तुम्हारे पिता को एकादशी का व्रत भंग होने के कारण देखा, और उन्होंने संदेशा दिया है सो मैं तुम्हें कहता हूँ. उन्होंने कहा कि पूर्व जन्म में ‍कोई विघ्न हो जाने के कारण मैं यमराज के निकट रह रहा हूँ, सो हे पुत्र यदि तुम आश्विन महीने की कृष्ण पक्ष की इंदिरा एकादशी का व्रत मेरे निमित्त करो तो मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है. इतना सुनकर ही राजा कहने लगे कि, हे महर्षि, आप इस व्रत की विधि मुझसे कहिए. नारदजी कहते हैं कि,  आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन प्रात:काल श्रद्धापूर्वक स्नानादि से निवृत्त होकर, पुन: दोपहर को नदी आदि में जाकर स्नान करें, फिर श्रद्धापूर्व पितरों का श्राद्ध करें, और एक बार भोजन करें. प्रात:काल होने पर एकादशी के दिन दातून आदि करके स्नान करें, फिर व्रत के नियमों को भक्तिपूर्वक ग्रहण करते हुए प्रतिज्ञा करें कि ‘मैं आज संपूर्ण भोगों को त्याग कर निराहार एकादशी का व्रत करूँगा.

हे अच्युत, हे पुंडरीकाक्ष, मैं आपकी शरण हूँ, आप मेरी रक्षा कीजिए, इस प्रकार नियमपूर्वक शालिग्राम की मूर्ति के आगे विधिपूर्वक श्राद्ध करके योग्य ब्राह्मणों को फलाहार का भोजन कराएँ और दक्षिणा दें. पितरों के श्राद्ध से जो बच जाए उसको सूँघकर गौ को दें, तथा ध़ूप, दीप, गंध, ‍पुष्प, नैवेद्य आदि सब सामग्री से ऋषिकेश भगवान का पूजन करें. रात में भगवान के निकट जागरण करें, इसके पश्चात द्वादशी के दिन प्रात:काल होने पर भगवान का पूजन करके ब्राह्मणों को भोजन कराएँ तथा भाई-बंधुओं, स्त्री और पुत्र सहित आप भी मौन होकर भोजन करें. नारदजी कहते हैं कि हे राजन, इस विधि से यदि तुम आलस्य रहित होकर इस एकादशी का व्रत करोगे तो तुम्हारे पिता अवश्य ही स्वर्गलोक को जाएँगे, इतना कहकर ही नारदजी अंतर्ध्यान हो गए. नारदजी के कथनानुसार राजा ने अपने बाँधवों तथा दासों सहित व्रत करने से आकाश से पुष्पवर्षा हुई और उस राजा का पिता गरुड़ पर चढ़कर विष्णुलोक को गया. राजा इंद्रसेन भी एकादशी के व्रत के प्रभाव से निष्कंटक राज्य करके अंत में अपने पुत्र को सिंहासन पर बैठाकर स्वर्गलोक को गया.

ध्यान दें: –

वाल व्यास सुमन जी महाराज कहते है कि पूजा के लिए शालिग्राम की मूर्ति को स्थापित करना चाहिए. शालिग्राम की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराना चाहिए और फिर पूजा के दौरान भोग भी लगाना चाहिए. पूजा समाप्त होने पर शालिग्राम के मूर्ति की आरती भी करें और आरती के दौरान कहें ‘हे अच्युत, हे पुंडरीकाक्ष, मैं आपकी शरण हूं, आप मेरी रक्षा कीजिए, मेरे दुखों को दूर कीजिए.

एकादशी का फल: –

एकादशी प्राणियों के परम लक्ष्य, भगवद भक्ति, को प्राप्त करने में सहायक होती है. यह दिन प्रभु की पूर्ण श्रद्धा से सेवा करने के लिए अति शुभकारी एवं फलदायक माना गया है. इस दिन व्यक्ति इच्छाओं से मुक्त हो कर यदि शुद्ध मन से भगवान की भक्तिमयी सेवा करता है तो वह अवश्य ही प्रभु की कृपापात्र बनता है.

वाल व्यास सुमन जी महाराज, 

महात्मा भवन,श्रीरामजानकी मंदिर, 

राम कोट, अयोध्या. 8709142129.

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Indira Ekadashi…

Some devotees asked Maharaj Ji, Maharaj Ji, please tell us the method and story of Ekadashi which is celebrated in Pitru Paksha. It is heard that by listening and reading the story of this Ekadashi, one gets the fruits of Vajpayee Yagya. Val Vyas Suman Ji Maharaj says that the name of Ekadashi Tithi of Krishna Paksha of Ashwin month is called Indira in the Puranas. This year this Ekadashi will be celebrated on 28 September 2024.

Val Vyas Suman Ji Maharaj says that it is said in Padma Purana that, if the merit of this Ekadashi which occurs in Shraddha Paksha is given to the ancestors, then the ancestors who have gone to hell. Get free from hell and go to heaven. Any person who observes fast on this Ekadashi does not have to face the torture of Yamalok. Maharaj Ji says that being the Ekadashi of Pitru Paksha, this Ekadashi is considered best for the liberation of ancestors. Whoever observes the fast of this Ekadashi, all his sins are destroyed and due to the effect of the fast, the sins of the ancestors also end.

Worship Materials: –

Altar, Kalash, Saptadhan, Panch Pallav, Roli, Gopi Chandan, Ganga Jal, Milk, Curd, Cow Ghee Lamp, Betel Nut, Honey, Panchamrit, Mogra Incense Sticks, Seasonal Fruits, Flowers, Amla, Pomegranate, Cloves, Coconut, Lemon, Navaidh, Banana and Tulsi Leaf and Manjri.

Story: –

In Satyug, there was a city named Mahishmati, whose glorious king Indrasen ruled by taking care of his subjects righteously. That king was blessed with sons, grandsons wealth etc. and was a great devotee of Lord Vishnu. One day when the king was comfortably sitting in his court, Maharishi Narad descended from the sky and came to his court, and on seeing him, the king stood up with folded hands and offered him a seat and Arghya as per the rituals. Sitting comfortably, the sage asked the king, “O King? Are all your seven limbs well, right? Your intellect is focused on religion and your mind is focused on Vishnu Bhakti?” Hearing such words from Devrishi Narad, the king said, “O Maharshi? Due to your blessings, everything is well in my kingdom and yagya and other auspicious deeds are being performed here. Please tell me the reason for your visit.” Then Devrishi Narad said, “O King? Listen carefully to my words which will surprise you.

Once I went from Brahmaloka to Yamlok, there I was worshipped by Yamraj with devotion and I praised the righteous and truthful Dharmaraj. In the court of the same Yamraj, I saw your father, a great scholar and a pious soul, because of breaking the Ekadashi fast, and he has given a message, so I am telling you. He said that due to some problem in his previous life, I am living near Yamraj, so O son, if you observe the fast of Indira Ekadashi of Krishna Paksha of Ashwin month for me, then I can attain heaven. Hearing this, the king said, O Maharshi, please tell me the method of this fast. Narad ji says that, on the Dashami day of Krishna Paksha of Ashwin month, after taking a bath with devotion in the morning, again go to the river etc. in the afternoon and take bath, then perform the Shraddha of ancestors with devotion, and eat food once. In the morning, on the day of Ekadashi, brush your teeth etc. and take a bath, then accept the rules of the fast with devotion, take a pledge that ‘Today I will fast on Ekadashi without food, giving up all the pleasures. O Achyuta, O Pundarikaksha, I am in your refuge, please protect me, thus after performing the Shraddha in front of the idol of Shaligram as per the rules, feed fruits to the deserving Brahmins and give Dakshina. Smell whatever is left after the Shraddha of the ancestors and give it to the cow, and worship Lord Rishikesh with all the materials like incense, lamps, fragrance, flowers, offerings etc. Stay awake near the Lord at night, after this, in the morning on the day of Dwadashi, worship the Lord and feed the Brahmins and you too should eat silently along with your brothers, wife and son. Narad ji says O King, if you observe this Ekadashi fast without laziness in this way, then your father will go to heaven, saying this Naradji disappeared. As per the slaying of Narad ji, when the king fasted along with his relatives and slaves, flowers rained from the sky and the father of that king rode on Garuda and went to Vishnulok. King Indrasen also ruled without any trouble due to the effect of the Ekadashi fast and finally went to heaven by making his son sit on the throne.

Note: –

Val Vyas Suman Ji Maharaj says that the idol of Shaligram should be installed for worship. The idol of Shaligram should be bathed with Panchamrit and then food should also be offered during the worship. After the worship is over, also perform the Aarti of the idol of Shaligram and during the Aarti say ‘O Achyuta, O Pundarikaksha, I am in your refuge, please protect me, remove my sorrows.

Result of Ekadashi: –

Ekadashi helps in achieving the ultimate goal of living beings, Bhagwad Bhakti. This day is considered very auspicious.

Val Vyas Suman Ji Maharaj,

Mahatma Bhawan, Shri Ram Janaki Temple,

Ram Kot, Ayodhya. 8709142129.

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