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नर्क या रूप चतुर्दशी…

देवी श्वेताम्बरा

हिन्दू धर्म के अनुसार कार्तिक मास को बड़ा ही पवित्र माना जाता है, कार्तिक मास में तुलसी पूजन, गौ सेवा व तीर्थ नदियों में स्नान का बड़ा महत्व हैं,संत सेवा व दान इत्यादि का भी महत्व हैं। यह महीना  भक्ति और साधना का महीना माना जाता है,इस मास के विश्राम में पंच दिवसीय दीपावली का पर्व शुरू होता है यह पर्व 2 युगों का पर्व हैं,समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी जी प्रकट हुई थी व प्रभु श्री राम रावण का वध कर के अयोध्या  लौटे थे,कुछ साधक व तांत्रिक भी दीपावली की रात्रि  माँ काली की अराधना करते हैं. दीपावली पर्व की शुरुआत कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से शुरू होती है, त्रयोदशी के दिन धन्वंतरी की पूजा अराधना होती है, जबकि चतुर्दशी को नर्क चतुर्दशी या यूँ कहें “छोटी दीपावली” की पूजा होती है, इसके अतिरिक्त इस चतुर्दशी को ‘नरक चौदस’, ‘रूप चौदस’, ‘रूप चतुर्दशी’, ‘नर्क चतुर्दशी’ या ‘नरका पूजा’ के नाम से भी जाना जाता है. नर्क चतुर्दशी के दिन भगवान यमराज की पूजा की जाती है. मान्यता है कि, नर्क चतुर्दशी की संध्या (शाम) के बाद चतुर्दशी का पूजन कर अकाल मृत्यु से मुक्ति तथा स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए यमराज जी की पूजा व उपासना की जाती है.

कहा जाता है कि, कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को प्रात: सूर्योदय से पूर्व तिल का तेल लगाकर अपामार्ग (चिचड़ी) की पत्तियाँ जल में डालकर स्नान करने से नरक से मुक्ति मिलती है, साथ ही शाम को यमराज के लिए दीपदान भी किया जाता है. अगर साधक विधि-विधान से पूजा करता है तो वह समस्त पापों से मुक्त होकर स्वर्ग जाता है. नर्क चतुर्दशी को ही रूप चतुर्दशी भी कहते हैं. पद्म पुराण के अनुसार, कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन दिन तेल की मालिश करने के बाद अप्मार्गा और लौकी के टुकड़े को अपने सर के चारो ओर मन्त्र का जाप करते हुए सात बार सर के वचारो ओर घुमाकर स्नान करें, उसके बाद लौकी और अप्मार्गा को दक्षिण  दिशा में विसर्जित कर दें.

मन्त्र: –

“सितालोष्ठसमायुक्तं संकटकदलान्वितम।

हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाण: पुन: पुन:॥”

पद्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति सूर्योदय के पूर्व स्नान करता है वह “यमलोक” नही जाता है, और नर्क का भागी भी नहीं होता है, जबकि भविष्य पुराण के अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को जो व्यक्ति सूर्योदय के बाद स्नान करता है, उसके पिछले एक साल के समस्त पुण्य समाप्त हो जाते हैं. मान्यता है कि, नर्क चतुर्दशी को माँ लक्ष्मी का निवास तिल के तेल में होता है जबकि, माँ गंगा का निवास जल(पानी) में होता है.

कथा: –

प्राचीन समय में रन्ति देव नामक पुण्यात्मा व धर्मात्मा राजा थे जिन्होंने, अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था, लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके सामने यमदूत आकर खड़े हुए. यमदूत को सामने देखकर राजा अचंभित हुए और बोले, मैंने तो कभी कोई पाप कर्म किया ही नहीं, फिर भी आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो, क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क में जाना होगा, आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है? पुण्यात्मा राजा की अनुनय भरी वाणी सुनकर यमदूत ने कहा, हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक भूखा ब्राह्मण लौट गया है यह उसी पापकर्म का फल है? दूतों के इस प्रकार कहने पर राजा ने यमदूतों से कहा कि, मैं आपसे विनती करता हूं कि मुझे एक वर्ष का और समय दे दें. यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत देकर लौट गये. इधर राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचें और उन्हें सारी कहानी बताई, और अंत में उनसे पूछा कि, कृपया इस पाप से मुक्ति का कोई उपाय हमे बताइए है. ऋषि बोले, हे राजन्, आप कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और, ब्रह्मणों को भोजन करवा कर उनसे अनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें. ऋषियों ने राजा को जैसा बताया तह राजा ने भी वैसा ही किया और पाप से मुक्त होकर विष्णु लोक चले गये. उसके बाद इस भूलोक में पाप और नर्क से मुक्ति हेतु कार्तिक चतुर्दशी व्रत  शुरू हुआ.

देवी श्वेताम्बरा (मथुरा) .

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