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संवाद…

तुम्हें जीना है एक अच्छी जिंदगी, तो जरूरी है निष्पक्ष असहमति, 

तुम्हारा विरोध इतना मुखर हो, इतना प्रखर हो कि,

तुम बहिष्कृत तक किये जा सको, लेकिन यदि तुम नहीं हुए पराजित,

अपने आप से तो तय है फिर लौटोगे बार-बार, भविष्य के पन्नों में बेहद जरूरी है, 

सार्थक संवाद की, अपनी एक समर्थ भाषा, एक खूबसूरत

और चमकदार जिंदगी के लिए, संभव नहीं एक सार्थक संवाद,

असहमति के बिना, हाँ में हाँ से तो मर जाती है संभावना,

प्रगति के धारदार सोच की, और याद रखो यही से उदय होता है,

किसी दुर्दांत तानाशाह का, इतिहास की किसी भयावह तिमिरावृत खोह से,

यहीं से होती है शुरुवात गला घोंटने की किसी सच का…

प्रभाकर कुमार.

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