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रक्षासूत्र…

रक्षिष्ये सर्वतोहं त्वां सानुगं सपरिच्छिदम्।
सदा सन्निहितं वीरं तत्र मां दृक्ष्यते भवान्॥

हिन्दू परम्परा में हर एक दिन कोई ना कोई पर्व या त्यौहार होता है जो मानव जीवन को एक नई दिशा प्रदान करता है. वर्तमान समय में श्रावण का पावन और पवित्र महीना अपने अंतिम चरण में चल रहा है. इस महीने में देवों के देव महादेव की पूजा अर्चना की जाती है लेकिन श्रावण महीने के पूर्णिमा के दिन जो श्रावण महिना का अंतिम दिन भी कहा जाता है और इस दिन की समाप्ति रक्षा सूत्र बांध कर किया जाता है.

रक्षा सूत्र या यूँ कहें रक्षा बंधन पर्व की शरुआत कब हुई यह कोई नहीं जानता है लेकिन, हमारे पौराणिक ग्रंथों जैसे स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्दभागवत महापुराण में वामनावतार नामक कथा में रक्षा बंधन का प्रसंग मिलता है. बताते चलें कि, भविष्य पुराण में भी रक्षा सूत्र बाँधने का प्रसंग मिलता है लेकिन यहां पर जिस कथा का जिक्र होता है वो कुछ इस प्रकार है… जब धरती का पार्दुभाव हुआ था तब इस धरती पर देव और दानव रहा करते थे और उन दोनोंके साथ हमेशा ही किसी ना किसी बात की लड़ाई होती ही रहती थी. एक बार की घटना है कि, दानव देवताओं पर भारी पड़ रहे थे और देवताओं के राजा इंद्र घबराकर देव गुरु वृहस्पति के पास गये और सारा वृतांत देव गुरु को बताया. देव गुरु के पास ही राजा इंद्र की पत्नी बैठी हुई थी और वो राजा इंद्र की सारी बातें भी सुन रही थी. इन्द्रानी ने सारी बातें सुनने के बाद एक रेशम के धागे को मंत्र शक्ति से पवित्र कर अपने पति के हाथों में बांध दिया. संयोग की बात है कि, उस दिन भी श्रावण पूर्णिमा का ही दिन था.

जबकि, स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्दभागवत महापुराण में जिस कथा का प्रसंग आता है वो इस प्रकार है. राजा बलि जिन्हें दानवेन्द्र भी कहा जाता है जब वो सौ (100) यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग को अपना बनाने का प्रयत्न कर रहे थे तब देवताओं के राजा इंद्र अपने सभासद देवताओं के साथ मिलकर भगवान विष्णु से प्राथना की, भगवान विष्णु ने वामन के अवतार में एक ब्राह्मण का वेश धारण कर राजा बलि के पास भिक्षा मांगने पहुंचे और ऊन्होंने तीन पग भूमि दान में मांगी. गुरु के मना करने पर भी राजा बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी. भगवान विष्णु ने भी तीन पग में सारा आकाश, धरती और पताल को नापकर राजा बलि को रसातल भेज दिया. राजा बलि के दान से प्रभावित होकर भगवान ने वरदान मांगने कहा तब राजा बलि ने भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया.

भगवान के घर ना पहुंचने पर माता लक्ष्मी बहुत ही परेशान हो रही थी, तब नारदजी ने माता लक्ष्मी को उपाय बताया. उस उपाय का पालन करते हुए माता लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षा सूत्र  बांधकर उसे अपना भाई बना लिया. जिस दिन माता लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा था उस दिन भी श्रावण पूर्णिमा का ही दिन था. रक्षा सूत्र बांधकर माता लक्ष्मी ने अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ घर ले आईं. वही विष्णु पुराण के एक प्रसंग में कहा गया है कि श्रावण पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने ह्यग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिए फिर से प्राप्त किया था. ह्यग्रीव को विद्या और बद्धि का प्रतीक भी माना जाता है.

पुरानों में एक पुराण महाभारत भी है, कई लोग ऐसे हैं जो महाभारत को पढ़ा भी है और सीरियल में देखा भी है. महाभारत में भी कई ऐसे प्रसंग है जहां रक्षा सूत्र बाँधने का प्रसंग आया है. एक प्रसंग है कृष्ण और शिशुपाल बध का. इस प्रसंग में जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का बध किया था था तब उनकी अंगुली से खून निकलने लगा था उस दौरान द्रौपदी ने अपनी साडी फाड़ क्र उनकी अंगुली में पट्टी बाँध दी थी. जिस दिन द्रौपदी ने कृष्ण की अंगुली में पट्टी बाँधी थी उस दिन भी श्रावण पूर्णिमा का ही दिन था. कृष्ण ने भी इस उपकार का बदला बाद में चीरहरण के समय उनकी साड़ी को बढाकर चुकाया था. बताते चलें कि, एक-दुसरे की रक्षा और सहयोग की भावना ही रक्षाबंधन की मूल भावना है और इसी दिन से रक्षा सूत्र बाँधने की परम्परा प्रारंभ हुई.

भारतीय इतिहास में भी ऐसी कई घटनाओं का वर्णन है जिसमें रक्षा सूत्र बाँधने का जिक्र हुआ है. जैसे… जब देश में राजाओं का शासन हुआ करता था तब लड़ाई पर जाने के दौरान रानियाँ अपने पति के माथे पर कुमकुम का तिलक लगाने के साथ-साथ हाथों में रेशम का धागा भी बांधती थी. उन्हें ऐसा विश्वास था कि, यह धागा उन्हें विजयश्री के साथ वापस लाएगा. इतिहास की कई घटनाओं में एक घटना का प्रसंग है कि, मेवाड़ की रानी कर्मावती को बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्व सुचना मिली और मेवाड़ की रानी लड़ाई लड़ने में असमर्थ थी, तब उन्होंने मुगल बादशाह हुमायूं को राखी भेजकर रक्षा की याचना की. हुमायूं मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखते हुए मेवाड़ पहुंचकर बहादुरशाह के विरुद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मावती व उनके राज्य की रक्षा की.

बताते चलें कि, रक्षाबंधन का त्यौहार श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है और यह पर्व हिन्दू व जैन इसे प्रतिवर्ष बड़ी ही धूम-धाम से मनाते हैं. श्रावन में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी या सलूनो भी कहते हैं. रक्षाबंधन के इस महापर्व में रक्षा सूत्र या यूँ कहें कि राखी का बहुत ही महत्व होता है. रक्षा सूत्र या राखी जो कच्चे सुत से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे या सोने-चांदी के बने होते हैं. आमतौर पर राखी प्राय: बहने अपने भाई को बांधती है लेकिन ब्रहामन, गुरु और परिवार की छोटी बच्चियों द्वारा सम्मानित सम्बन्धियों जैसे कि पुत्री द्वारा अपने पिता को या सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्तियों को भी राखी बांधा जाता है. वर्तमान समय में प्रकृति संरक्षण हेतु पेड़-पौधों को भी राखी बाँधने की परम्परा की शुरुआत हो चुकि है. बताते चलें कि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरुष सदस्य परस्पर भाईचारे के लिए एक-दुसरे को भगवा रंग की राखी बांधते हैं. हिन्दू धर्म के किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में भी रक्षासूत्र बांधते हुए श्लोक का उच्चारण किया जाता है.

येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:।

तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥

इस मंत्र का अर्थ है कि, “जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी सूत्र से मै तुझे भी बांधता हूँ. हे रक्षे तुम अडिग रहना और अपने संकल्प से कभी विचलित मत होना.

बताते चलें कि, आजादी से पहले भारत में जब अंग्रेजों की शासन हुआ करती थी तब, स्वतन्त्रता संग्राम में जन-जागरण के लिए भी इस पर्व का सहारा लिय गया था. बंग-भंग का विरोध करते समय रक्षाबंधन के इस महापर्व के दौरान श्री रविन्द्रनाथ ठाकुर ने एक कविता लिखी जिसका प्रकाशन सन 1905 में उनकी प्रसिद्ध कविता “मातृभूमि वन्दना” में हुआ था. ज्ञात है कि, सन 1905 में लार्ड कर्जन ने बंग भंग करके ‘वन्दे मातरम्’ के आन्दोलन से भडकी चिंगारी को शोलों में बदल दिया था. 16 अक्टूबर 1905 को बंग भंग की घोषणा के दिन आमावाम गंगा स्नान करके सडकों पर एक श्लोक कहते हुए उतर आए.

सप्त कोटि लोकर करुण क्रन्दन,सुनेगा सुनिल कर्जन दुर्जन’.

ताइ निते प्रतिशोध मनेर मतन करिल,आमि स्वजने राखी बन्धन

वर्तमान समय में कई घरों में वैदिक राखी का प्रयोग किया जाता है. आखिर वैदिक राखी है क्या? इसे कैसे बनाया जाता है? आइये जानते हैं वैदिक राखी बनाने की विधि:-

सामाग्री:-

दुर्वा यानी दूब, अक्षत, चंदन, सरसों, केसर, कौड़ी, गोमती चक्र और पीले रंग का रेशम का कपड़ा.

सर्वप्रथम पीले रंग के रेशमी कपड़े ले लें. उसमे इन सभी सामाग्री को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में डालकर सिलाई कर दें. सिलाई करने के बाद इसे एक मौली में पीरो दें या बांध लें. लीजिये आपकी वैदिक राखी तैयार हो गई.

इस राखी में डाली गई हर सामग्री का विशेष महत्व होता है. श्रावण के महीने में इस वैदिक राखी बाँधने से संक्रामक रोगों से लड़ने के लिए हमारे शरीर में प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है साथ ही यह रक्षासूत्र हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा का भी संचरण करता है.

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Rakshasutra…

Rakshishye Sarvatohan Tvaan Saanugan Saparichchhidam

Sada Sannihitan Veeran Tatr Maan Drshtyate Bhavan।।

In Hindu tradition, every single day there is some or other festival which gives a new direction to human life. At present, the auspicious and holy month of Shravan is going on in its last phase. In this month Mahadev, the god of gods is worshipped, but on the full moon day of the month of Shravan, which is also called the last day of the month of Shravan and this day ends by tying the Raksha Sutra.

No one knows when the Raksha Sutra or simply say Raksha Bandhan festival started, but, in our mythological texts like Skandha Purana, Padma Purana, and Shrimad Bhagwat Mahapurana, the context of Raksha Bandhan is found in the story called Vamanavatar. Let us tell you that even in the Bhavishya Purana there is a context of tying Raksha Sutra, but the story which is mentioned here is something like this… There was always a fight between both of them over one thing or the other. Once upon a time, there was an incident that the demons were overpowering the deities, and Indra, the king of the deities panicked and went to Dev Guru Brihaspati and told the whole story to Dev Guru. King Indra’s wife was sitting near Dev Guru and she was also listening to all the words of King Indra. After listening to all the things, Indrani purified a silk thread with a mantra and tied it to the hands of her husband. Coincidentally, that day was also the day of Shravan Purnima.

, the context of the story which comes in Skandha Purana, Padma Purana, and Shrimad Bhagwat Mahapurana is as follows. King Bali, also known as Danvendra, when was trying to make heaven his own by completing hundred (100) sacrifices, then Indra, the king of the gods, along with his assembly deities, prayed to Lord Vishnu, Lord Vishnu in the incarnation of Vamana Disguised as a Brahmin, the king went to Bali to beg for alms and he asked for three steps of land in charity. King Bali donated three steps of land even after Guru’s refusal. Lord Vishnu also measured the entire sky, earth, and earth in three steps and sent King Bali to the abyss. Impressed by the donation of King Bali, God asked to ask for a boon, then King Bali took the promise of God to stay in front of him day and night.

Mata Lakshmi was getting very upset when God did not reach home, and then Naradji told Mata Lakshmi the solution. Following that remedy, Mata Lakshmi made Raja Bali her brother by tying a thread of protection. The day when Goddess Lakshmi tied the thread of protection to King Bali, that day was also the day of Shravan Purnima. Mata Lakshmi brought her husband Lord Vishnu home with her by tying the Raksha Sutra. In the same context of Vishnu Purana, it is said that on the day of Shravan Purnima, Lord Vishnu incarnated in the form of Hygriva and retrieved the Vedas for Brahma. Hygriva is also considered a symbol of knowledge and wisdom.

There is also a Purana Mahabharata among the Puranas, there are many people who have read Mahabharata and also seen it in the serial. There are many such incidents in Mahabharata where the incident of tying Raksha Sutra has come up. There is an incident of Krishna and Shishupala Badh. In this context, when Krishna killed Shishupala with Sudarshan Chakra, his finger started bleeding, during which Draupadi tore her sari and tied a bandage on his finger. The day Draupadi tied the bandage on Krishna’s finger, that day was also the day of Shravan Purnima. Krishna also later repaid this favor by lengthening her saree at the time of tearing. Let us tell you that, the feeling of protection and cooperation with each other is the main feeling of Rakshabandhan and from this day the tradition of tying Raksha Sutra started.

In Indian history also, there is a description of many such incidents in which there is mention of tying Raksha Sutra. Like… When kings used to rule the country, while going to fight, the queens used to apply kumkum tilak on the forehead of their husbands as well as tie silk thread in their hands. He believed that this thread would bring him back with Vijayashree. In many incidents of history, there is a context of an incident, Mewar’s queen Karmavati received prior information about Bahadur Shah’s attack on Mewar and Mewar’s queen was unable to fight the battle, then she sent Rakhi to Mughal emperor Humayun and pleaded for protection. Despite being a Muslim, Humayun reached Mewar, fighting on behalf of Mewar against Bahadur Shah, protecting Karmavati and his kingdom.

Let us say that, the festival of Rakshabandhan is celebrated on the day of Shravan Purnima and this festival is celebrated every year with great pomp by Hindus and Jains. Due to being celebrated in Shravan, it is also called Shravani or Salono. In this great festival of Raksha Bandhan, Raksha Sutra, or simply say Rakhi has great importance. Raksha Sutras or Rakhi which are made of raw thread to colored kalawe, silk thread, or gold-silver. Generally, Rakhi is often tied by sisters to their brothers, but Brahmins, Gurus, and younger girls of the family also tie Rakhi to respected relatives such as daughters to their fathers or publicly to any leaders or eminent persons. At present, the tradition of tying rakhi to trees and plants has also started for the protection of nature. Let us say that, male members of Rashtriya Swayamsevak Sangh tie saffron-colored rakhi to each other for mutual brotherhood. In any religious ritual of the Hindu religion, the verse is recited while tying the Raksha Sutra.

Yen Baddho Baliraaja Daanavendro Mahaabal:

Ten Tvaamapi Badhanaami Rakshe Ma Chal Ma Chal।।

The meaning of this mantra is, “I bind you with the same thread with which the great powerful demon King Bali was tied. O Raksha, be firm and never waver from your resolution.

Let us say that, before independence, when India was ruled by the British, this festival was also used for public awareness in the freedom struggle. During this great festival of Rakshabandhan, Shri Rabindranath Tagore wrote a poem, which was published in his famous poem “Matrubhoomi Vandana” in 1905, while protesting against the partition. It is known that in the year 1905, Lord Curzon, by disbanding the Banga, had turned the spark that had erupted from the movement of ‘Vande Mataram’ into shoals. On October 16, 1905, on the day of the declaration of Bang Bhang, Amaavam came down on the streets reciting a verse after bathing in the Ganges.

Sapt Koti Lokar Karun Krandan, Sunega Suneel Karzan Durjan.

Taee Nite Pratishodh Maner Matan Karil, Amee Svajane Raakhee Bandhan

At present, Vedic Rakhi is used in many homes. After all, what is Vedic Rakhi? How is it made? Let us know the method of making Vedic Rakhi:-

Ingredients:-

Durva means doob, Akshat, sandalwood, mustard, saffron, cowrie, Gomti Chakra, and yellow-colored silk cloth.

First of all, take yellow colored silk cloth. Put all these ingredients in small amounts in it and stitch it. After sewing, thread it in a molly or tie it. Take your Vedic Rakhi is ready.

Every material put in this Rakhi has special significance. By tying this Vedic Rakhi in the month of Shravan, our body develops immunity to fight against infectious diseases, and this Rakshasutra also transmits positive energy to us.

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