दिव्य औषधि है…
विज्ञान जितनी तेजी से आगे बढ़ रही है, जीवन से जुड़े तमाम पहलु आधुनिक से अत्याधुनिक हो रहे हैं. पर आज हम सभी जितनी भी तरक्की कर लें… लेकिन हमारे पूर्वज और पुरातन ग्रन्थों में जो कुछ भी लिखा है वो जीवन के मूलाधार के बारे में विस्तृत वर्णन किया गया है. आज हम सभी तरक्की कितनी भी कर लें… हम सब की सोच कितनी भी आधुनिक हो जाय पर अंतिम सहारा तो आयुर्वेद ही होता है. वर्तमान से में पूरी दुनिया 21वीं सदी के जीवन-यापन कर रही है, लेकिन अपने ही घर में अगर देखें तो हमारे बुजुर्ग कि सेहत और युवावस्था के लोगों कि सेहत में आसमान जमीन का अंतर आया है. वर्तमान समय में लीवर की बीमारी से प्राय: लोग ग्रसित होते हैं, और तमाम तरह के दवाइयों का सेवन करते है. लेकिन मैं आपको एक ऐसे पोधे के बारे में बता रहें हैं जिसके प्रयोग से लीवर से जुडी किसी भी परेशानी को दूर कर देता है.
आप सभी आंवले का नाम सूना ही होगा, लेकिन मैं आपको आंवला जाती के दुसरे पौधे जिसका नाम भूमि आंवला है और इसका वानस्पतिक नाम फाईलेन्थस निरूरी (Phyllanthus niruri) और इसका वानस्पतिक कुल यूकार्बिएसी (एरण्ड कुल) (Enphorbiaceae). हिंदी में भुंई आमला, भूआमलकी, हजारदाना, जरमाला, जंगली आंवला, संस्कृत में भूम्यामलकी, भूधात्री, तामलकी, बहुफला और बंगाली में भुंई आमला कहते हैं. यह एरंड कुल का कम उंचाई का एक वर्षीय पौधा होता है जो आमतौर पर बरसात के समय में खरपतवार व जंगल-झाड़ियों में स्वयं उपजता है. दिखने में यह आंवले के पेड़ से छोटा और आंवले के पेड़ के समान ही दीखता है और इसमें आंवले के फल के समान ही इसमें छोट-छोटे फल लगते है इसीलिए आमतौर पर लोग इसे भूमि आंवला कहते हैं. बताते चलें कि, भूमि आंवला का उत्पत्ति स्थान अमेरिका माना जाता है.
कहा जाता है कि, भूमि आंवला के सम्पूर्ण पौधा( जड़, तना, पत्ती, फुल और फल) का दवाई के रूप में प्रयोग किया जाता है. इसके पत्तों में पौटाशियम की काफी अधिक मात्रा होती है साथ ही इसके मुख्य घटक फाइलेन्थिन तथा हाईपोफाइलेन्थिन हैं तथा इसकी सूखी शाक में फाइलेन्थिल तत्व की मात्रा 0.4% से 0.5% तक होती है. लीवर संबंधी विकारों के साथ-साथ भुंई आमला बुखार, मधुमेह, घनोरिया, आंखों की बीमारियों, खुजली तथा चर्मरोगों, फोड़ों, पेशाब से संबंधित विकारों जैसे पेशाब में खून आना, पेशाब में जलन होना आदि के उपचार में इसका प्रयोग किया जाता है. बताते चलें कि, भूमि आंवला लीवर की सूजन, सिरोसिस, फैटी लिवर, बिलीरुबिन बढ़ने पर, पीलिया में, हेपेटायटिस B और C में, किडनी क्रिएटिनिन बढ़ने पर, मधुमेह आदि में चमत्कारिक रूप से काम करता है. बताते चलें कि, साल के एक महीने अगर आप भूमि आंवले के पौधे का काढ़ा पी लिया जाय तो साल भर लीवर में किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं होती है. चिकित्सको के अनुसार किसी रोगी को यकृत में सुजन, घाव या यकृत सिकुड़ गया हो तो वैसे रोगी को भूमि आंवला खाने कि सलाह दी जाती है. अगर मुंह में छाले हो गये हो तो इसके पत्तो को चबा कर रस पी लें. अगर आप खांसी से परेशान हो तो तुलसी के पत्तो के साथ भूमि आंवला के पत्तो को मिलाकर काढ़ा बनाकर पियें. भूमि आंवला के पत्तो का काढ़ा किडनी के इन्फेक्शन, सूजन और पेशाब के इन्फेक्शन में लाभदायक होता है. इन सभी के अलावा और भी कई बीमारियों में भूमि आंवला का प्रयोग किया जाता है. भूमि आंवला गरीबों के लिए अमृत से कम नहीं है.
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Divine Medicine…
As fast as science is progressing, all the aspects related to life are becoming modern to state-of-the-art. But no matter how much progress we all make today… But whatever has been written by our ancestors and ancient books, has been described in detail about the fundamentals of life. No matter how much progress we all make today… No matter how modern our thinking becomes, Ayurveda is the last resort. At present, the whole world is living in the 21st century, but if we look at our own homes, then there is a vast difference between the health of our elders and the health of young people. At present, people often suffer from liver disease, and take all kinds of medicines. But I am telling you about such a plant, the use of which removes any problem related to the liver.
All of you will know the name of Amla, but I will introduce you to another plant of Amla species, whose name is Bhumi Amla Its botanical name is Phyllanthus niruri and its botanical family is Eucarbiaceae (Erand family) (Enphorbiaceae). In Hindi it is called Bhui Amla, Bhuamalki, Hazardana, Jarmala, Wild Amla, in Sanskrit Bhumyamalki, Bhudhatri, Tamalki, Bahuphala and in Bengali it is called Bhui Amla. It is a one-year plant of the castor family of low height, which usually grows on its own in weeds and forest bushes during the rainy season. In appearance, it is smaller than the gooseberry tree and looks similar to the gooseberry tree and it bears small fruits similar to the gooseberry fruit, which is why people generally call it Bhumi Amla. Let us tell you that the place of origin of Bhoomi Amla is considered to be America.
It is said that the entire Amla plant (root, stem, leaf, flower, and fruit) is used as medicine. There is a lot of potassium in its leaves, as well as its main components are phyllanthin and hypophyllanthin and the amount of phyllanthyl element in its dry herb ranges from 0.4% to 0.5%. Along with liver-related disorders, it is used in the treatment of roasted amla fever, diabetes, gonorrhea, eye diseases, itching, skin diseases, boils, urine-related disorders like blood in urine, burning sensation in urine, etc. Let us tell you that Bhoomi Amla works miraculously in liver inflammation, cirrhosis, fatty liver, increased bilirubin, jaundice, hepatitis B and C, increased kidney creatinine, diabetes, etc. Let us tell you that, if you drink the decoction of the Bhoomi Amla plant for one month of the year, then there is no problem of any kind in the liver throughout the year. According to doctors, if a patient has swelling, wound, or shrunken liver, then he is advised to eat ground Amla. If you have mouth ulcers then chew its leaves and drink the juice. If you are troubled by cough, then make a decoction by mixing ground Amla leaves with basil leaves and drink it. The decoction of Bhoomi Amla leaves is beneficial in kidney infection, swelling, and urine infection. Apart from all these, Bhoomi Amla is used in many other diseases. Bhoomi Amla is no less than nectar for the poor.