अश्वगंधा…
आधुनिक जीवन प्रणाली और आधुनिक खानपान भी कई बीमारियों की जड़ है और हमसभी आधुनिक बनने कि होड़ में या यूँ कहें कि प्रतिस्पर्धा में बीमारियों को घर बुला रहें हैं.आधुनिकता की दौर में भारतीय जीवन पद्धति में जड़ी-बूटी व मसालों का प्रयोग होता हैं. ये जड़ी-बूटी ही हमारे आयुर्वेद चिकित्सा में भी प्रयोग होते हैं. अगर, मानव अपने जीवन को तंदरुस्त रखना चाहता हो तो अपनी जीने की पद्धति को थोडा बदल ले तो वो कई बीमारियों को अपने से दूर भगा सकता है. पिछले कई लेख में आयुवेद से जुड़े फल,फुल और मसाले के बारे में जानकारी मिली उसी श्रृंखला में आज बात करते हैं अश्वगंधा के बारे में……..
अश्वगंधा जो कि सोलेनेसी कुल का द्विबीज पत्रीय पौधा है, जिसकी पत्तियाँ रोमयुक्त, अण्डाकार होती हैं और इसके फुल हरे, पीले तथा छोटे एंव पाँच के समूह में लगे हुये होते हैं. इसका फल पकने पर लाल रंग का होता है और इसकी जड़ो का रंग भूरा और से सफेद होता है जो कि, मुली की तरह मोटी करीब 30-45 सेमी लम्बी 2.5-3.5 सेमी तक होती है. ज्ञात है कि, पुरे विश में सोलेनेसी परिवार की लगभग 3000 जातियाँ व 90 वंश पाये जाते हैं जिनमें, केवल 2 जातियाँ ही भारत में पाई जाती हैं. भारत में इसकी खेती 1500 मीटर की ऊँचाई तक के सभी क्षेत्रों में की जाती है जबकि, राजस्थान और मध्य प्रदेश में बड़े पैमाने पर खेती की जा रही है और इन्हीं क्षेत्रों से पूरे देश में अश्वगंधा की माँग को पूरा किया जाता है. अश्वगंधा की खेती के लिए बलुई दोमट अथवा हल्की लाल मृदा की मिटटी ही खेती के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है.
बताते चले कि, अश्वगंधा को भारत में जिनसेंग भी कहते है, और इसकी जड़, पत्ती, फुल और फल का प्रयोग ओषधि के रूप में किया जाता है. इसकी जड़ और पत्ते में कई तरह के रासायनिक घटक उपस्थित होते हैं इसी कारण से इसकी जड़ का प्रयोग किया जाता है. अश्वगंधा की जड़ में उपस्थि रासायनिक घटक जैसे:- एनाफेरीन (एल्केलॉइड), एनाहाइग्रीन (एल्केलॉइड), बीटा-सिस्टेरॉल, क्रोजेनिक एसिड (सिर्फ पत्तियों में), सिस्टेन (फलों में), कस्कोहाइग्रीन (एल्केलॉइड), लौह-तत्व, सियूडो-ट्रोपिन (एल्केलॉइड), स्कोपोलेटिन, सोमिनिफेरीनीन (एल्केलॉइड) सोमनीफेरीनीन (एल्केलॉइड), ट्रोपैनॉलस, विथेफेरीन-ए (स्टेरॉइडल लैक्टिन), वेथेनीन, विथेनेनीन, वेथेनॉलाइड्स, ए-वाई (स्टेरॉइडल लैक्टिन), एनाफेरीन, एनाहाइग्रीन, सिस्टरॉल, क्लोरोजेनिक एसीड (पत्ती में) आदि. अश्वगंधा के मुख्य अवयव एल्केलॉइड्स और स्टेरॉइडल लैक्टॉन और विथनीन.
अश्वगंधा का चिकित्सीय प्रयोग कई प्रकार से किया जाता है, यह कई बीमारियों में इसका प्रयोग क्या जाता है जैसे हर्बल उपचार, सुजन और बुखार या संक्रमन. रिसर्च से पता चला है कि, अश्वगंधा मस्तिष्क में न्यूरोलॉजीकल ट्रांसमिशन को ठीक करने में मदद करता है. इसमें एंटीओक्सिडेंट गुण भी पाया जाता है जो कि ह्रदय रोग, मधुमेह, मोतियाबिंद और विकलांगता को रोकने में मदद करता है. इसमें एंटी-एजिंग भी पाया जाता है जो उत्तकों के पुनर्जनन को बढाता है या यूँ कहें कि, उम्र बढने की प्रक्रिया को धीमा कर देता है साथ ही तनाव को रोकने और भूले की बीमारी को भी रोकने में मदद करता है. इसके गुणों को देखते हुए आम जन-जीवन में इसे लोग टानिक भी कहते हैं. यह रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है. कहा जाता है कि, अश्वगंधा कि जड़ को तीन महीने तक सेवन कर लिया जाय तो मानव शरीर में ओज, स्फूर्ति, बल, शक्ति और चेतना आ जाती है. यह पाचन शक्ति को भी सुधारता है और पेशाब को खुलकर आती है.
इसके पत्ते को पीसकर लगाने से त्वचा के रोग, जोड़ो के सुजन और घाव भरने में किया जाता है. इसके नियमित सेवन से हीमोग्लोबिन में वृद्धि होती है साथ ही इसका प्रयोग कैंसर कि दवाओं में भी किया जाता है. चिकित्सीय सलाह दी जाती है कि, गर्म प्रकृति वाले अश्वगंधा का प्रयोग अधिक मात्र में ना करें जब भी प्रयोग करना हो तो इसे खाली पेट में इसके चूर्ण का प्रयोग करें.
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Ashwagandha…
Modern life systems and modern food habits are also the root of many diseases and in the race to become modern or rather in competition; we all are inviting diseases to our homes. In the era of modernity, herbs and spices are used in the Indian way of life. These herbs are also used in our Ayurveda medicine. If a person wants to keep his life healthy, then if he changes his way of living a little, he can keep many diseases away from him. In many previous articles, information was given about fruits, flowers and spices related to Ayurveda. In the same series, today let’s talk about Ashwagandha.
Ashwagandha is a dicotyledonous plant of the Solanaceae family, whose leaves are hairy, and oval and its flowers are green, yellow and small and are arranged in groups of five. Its fruit is red when ripe and its roots are brown to white, which are about 30-45 cm long and 2.5-3.5 cm thick like radish. It is known that about 3000 species and 90 genera of the Solanaceae family are found throughout the world, out of which only 2 species are found in India. In India, it is cultivated in all the areas up to a height of 1500 meters, whereas, it is being cultivated on a large scale in Rajasthan and Madhya Pradesh. From these areas, the demand for Ashwagandha in the entire country is met. For the cultivation of Ashwagandha, only sandy loam or light red soil is considered most suitable for cultivation.
Let us tell you that Ashwagandha is also called ginseng in India, and its root, leaf, flower and fruit are used as medicine. Many types of chemical components are present in its roots and leaves, which is why its root is used. Chemical components present in the root of Ashwagandha include: – Anapherine (alkaloid), Anahygrine (alkaloid), Beta-sisterol, Chrogenic acid (only in leaves), Cystane (in fruits), Cuskohygrine (alkaloid), Iron-element, and Pseudo-tropine. (Alkaloids), scopoletin, somniferinine (alkaloids) somniferinine (alkaloids), tropanols, withaferin-A (steroidal lectin), withanine, withanin, withanolides, a-y (steroidal lectin), anaphyrin, anahigrin, sisterol, chlorogenic acid (in leaf) Etcetera. The main components of Ashwagandha are alkaloids steroidal lactones and withanine.
Ashwagandha is used medicinally in many ways, it is used in many diseases like herbal treatment, swelling and fever or infection. Research has shown that Ashwagandha helps in improving neurological transmission in the brain. Antioxidant properties are also found in it which helps in preventing heart disease, diabetes, cataracts and disability. Anti-ageing is also found in it which increases the regeneration of tissues in other words, it slows down the ageing process and also helps in preventing stress and Alzheimer’s disease. Considering its properties, people also call it tonic in common people’s life. It increases immunity. If Ashwagandha root is consumed for three months, the human body gets vigour, energy, strength, power and consciousness. It also improves digestion and allows urine to flow freely.
By grinding its leaves and applying it, it is used to cure skin diseases, joint swelling and wound healing. Its regular consumption increases hemoglobin and it is also used in cancer medicines. It is medically advised not to use the hot-natured Ashwagandha in large quantities. Whenever you want to use it, use its powder on an empty stomach.