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हर डाल पर उल्लू बैठा है…

एक कहावत थी ‘हर डाल पर उल्लू बैठा है’ सुनने में अजीब लगता है परन्तु यही सच्चाई है डिजिटल भारत की. कभी इस देश में हनुमान की पूंछ से भी लम्बी बेरोजगारों की फौज थी. डिजिटल भारत की शुरुआत होते ही बेरोजगारों की फौज गायब हो गई जिससे सत्तासीन की बैचैनी कुछ कम हुई.

बात यहीं खत्म नहीं होती… सरकारी महकमों से लेकर प्राइवेट कम्पनियों में स्टाफ का रोना रो रहें है परन्तु कामगार नहीं मिल रहें है…?  हमारे भारत में डिजिटल और विकसित भारत की चर्चा होती है परन्तु कामगारों की कमी कहीं ‘रुकावट के लिए खेद’…

अभी हाल ही में लोकतंत्र का महापर्व बीता… परन्तु इस पर्व में डिजिटल और विकसित भारत की चर्चा तो छोडिये जनाब … इसकी याद भी नहीं आई और भारतवर्ष विकासशील का तमगा छोड़ विकसित भारत के रथ पर सवार हो चला…

डिजिटल भारत में एक राज्य है बिहार… कभी विहार हुआ करता था. वैसे तो बिहार में अभी बाढ़ नहीं आई है लेकिन, बेचारा पुल ईमानदारी की भेंट चढ़ाने में व्यस्त है और आवाम हैरान व परेशान..!    

लोकतंत्र के महापर्व के बाद संसद का महापर्व भी चल रहा है. स्थिति और परिस्थिति के बावजूद अभी शान्ति का माहौल कायम है परन्तु ऐसा लग रहा है जैसे दादा-पोता का प्यार-मोहब्बत या रूठना मनाना चल रहा है. चौकीदार साहेब जागो… दस बरस बीत गए !

वैसे तो भारतवर्ष की शिक्षा व शिक्षित के कुछ मायने थे. लोगों की उम्मीद होती थी मेरा बेटा-बेटी पढ़ रहा है और अपने छोटे भाई – बहनों को पढायेगा. क्या वर्तमान समय की शिक्षा से उम्मीद की जा सकती है …? वर्तमान समय में देश में कई प्रकार के सरकारी व मान्यता प्राप्त स्कूल व कॉलेजों में हर विषय की शिक्षा व छात्र भी मौजूद हैं परन्तु , योग्य शिक्षक की भारी कमी है परन्तु हर वर्ष छात्र कागज के टुकड़े को लाकर बसते की तरह अपने प्रोफ़ाइल का वजन बढ़ा रहें है.

वर्तमान समय के भारतवर्ष में लक्ष्मी के आगे सरस्वती बौनी व लाचार बन गई है. लक्ष्मी के आगे वर्ण-मालाएँ भी बेस्वाद हो गई है. स्कूल व कॉलेज तो टाइम पास है असल खेल तो लक्ष्मी का है! लक्ष्मी के आगे सब बौने और नंगें हैं. प्रश्नपत्र का लीक होना भी… सुरसा के मुख भाँती और लम्बी होती जा रही है… वहीं, मेहनती व ईमानदार लाचार होकर सुरसा के मुख में समाते जा रहें है.

एक देश एक कानून की तो बात होती है और हम लम्बी-लम्बी चर्चा करते हुए नहीं अघाते हैं परन्तु, मध्य-प्रदेश के मुखिया की बात पर इतना सन्नाटा क्यों …? कभी जीएसटी का सपना देखा और अपनाया भी लेकिन सपना अधुरा रह गया. पेट्रोल-डीजल व गैस अब भी जीएसटी से कोसों दूर… एक तरफ पेट्रोल-डीजल व गैस के कारण लोगों तेल निकल रहा है वहीं, दूसरी तरफ देश की डायन अब सौतन बन कर राज कर रही है.  

कभी भारतवर्ष में औषधीय व फलदार पेड़ सड़क व  राजमार्गों के दोनों किनारों पर लगे थे जो देखने में मनमोहक, छायादार और शीतलता प्राप्त करते थे. एक समय था जब धरती को बंजर बनाने वाले पेड़  लगाने का दौर चला था वहीं, वर्तमान में पेड़- पौधों को समूल समाप्त कर कंक्रीट के गमलों में लगा दो स्वच्छ व सुन्दर शहर बन जाएगा.

अंग्रेज चले गए पर नौकरशाही ना गई … आलम ये है कि नौकरशाही के आगे मुखिया बेबस हाथ जोड़े खड़ा है ! हम सभी बात करते हैं कानून की पर मानता कौन है ! संविधान की बड़ी-बड़ी कसमे खाते हैं और भूल जाते है वहीँ दूसरी तरफ न्याय की धीमी रफ़्तार का मजा … सिर्फ ‘जी’ ही लेते हैं जब मन करे तो काल-कोठरी घूम आओ और जब मन करे तो राज गद्दी पर बैठ जाओ !

जब से हिन्दू , हिंदुत्व का ‘मान’ लोगों के दिल पे चढ़ा है तब से हिन्द की हर गली में कथा वाचक व संतों का हुजूम खड़ा हो गया है..? संत शब्द सुनने में जितना अच्छा लगता है क्या वर्तमान समय में संत की मर्यादा क्या होती है मालूम नहीं पर हर गली में एक संत और कथा –वाचक मौजूद है.

धर्म सुनने व बोलने में बड़ा ही मजा व जोश आता है. क्या आपको पता है धर्म की भी मर्यादा होती है? यूँ ना बाजार में उछालों यारों… ये हमारे पूर्वजों की अथक मेहनत , साहस व धैर्य का परिणाम है.

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