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आया सावन

झमक झमक झम पानी झर झर इस सावन में

ताल – तलैया  पोखर   भर -भर  इस सावन में

गौनाही  दुलहिन  के  साजन  आये हैं  घर

कैसे  वो  निकलेगी  बाहर  इस सावन  में

टिपिर टिपिर टिप बूंदें पड़ती रही रात भर

कंत  नहीं  , टूटा  है  छप्पर  इस सावन में

राह ताकते आँख बरसती  जाती झर झर

मइया  बिन सूना है  नइहर  इस सावन में

घोघो रानी  ,  वीरबहूटी  ,  दादुर , झींगुर

कजरी सुनती खेती धनहर इस सावन में

रोटी  माँगे   आसमान  से   टीले चढ़कर

उफनाती  धारों  से  बेघर  इस सावन में

हरी  चूड़ियाँ ,मेंहदी, झूला , मेंढक  टर टर

गोरैया  के   फूल  गये   पर  इस सावन  में

सागर  मंथन  के  विष को शिव धरे कंठ पर

अमृत  धार  चढाये  जलधर   इस सावन में

पुलक रहे  हैं  मोर  जलद  को देख गगनपर

किलक रहे करके  ऊँचा  स्वर इस सावन में।

प्रभाकर कुमार.

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