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व्यक्ति विशेष – 639.

उड़िया साहित्यकार राधानाथ राय

राधानाथ राय ओड़िया साहित्य के एक प्रमुख साहित्यकार और कवि थे. उन्हें आधुनिक ओड़िया साहित्य के पिता के रूप में माना जाता है. उनका साहित्यिक योगदान ओड़िया भाषा के विकास में अहम रहा है, खासकर कविताओं के माध्यम से.

राधानाथ राय का जन्म 28 सितंबर 1848 को बालेश्वर, ओडिशा में हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा उनके गाँव में ही हुई और बाद में उन्होंने कलकत्ता (अब कोलकाता) में अध्ययन किया. उन्होंने ओड़िया साहित्य को एक नई दिशा दी, विशेष रूप से ओड़िया कविता में. उन्होंने ओड़िया भाषा को मजबूत बनाने के लिए बंगाली और अंग्रेजी साहित्य से प्रेरणा ली और उसे ओड़िया साहित्य के साथ मिश्रित किया. 

कविता: –

“चिलिका” (Chilika) – उनकी सबसे प्रसिद्ध कविता मानी जाती है.

“कदंब कणन” (Kadamb Kanan)

“नन्दिकेश्वरी” (Nandikeswari)

महाकाव्य: –

“मेघनाथ वध” (Meghnath Badha)

“द्रौपदी निर्वासन” (Draupadi Nirvasan)

राधानाथ राय की कविताओं में प्राकृतिक सौंदर्य, भारतीय मिथकों, ऐतिहासिक घटनाओं और मानवीय संवेदनाओं का अद्भुत मिश्रण देखने को मिलता है. उन्होंने ओड़िया साहित्य को उच्च स्तर पर पहुँचाने के लिए नए शब्दों और शैलियों का उपयोग किया.

राधानाथ राय का निधन 17 अप्रैल 1908 को हुआ था. उनके योगदान को ओडिशा में बहुत सराहा गया, और उन्हें एक महान कवि के रूप में माना जाता है, जिन्होंने ओड़िया साहित्य को समृद्ध किया.

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फ़िल्म निर्देशक यश चोपड़ा

यश चोपड़ा हिंदी सिनेमा के सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली फिल्म निर्देशकों में से एक थे. उन्हें “रोमांस के बादशाह” के रूप में जाना जाता है और भारतीय सिनेमा में उनकी रोमांटिक फिल्मों ने उन्हें बेहद लोकप्रियता दिलाई.

यश चोपड़ा का जन्म 27 सितंबर 1932 को लाहौर, ब्रिटिश भारत (अब पाकिस्तान) में हुआ था. विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आ गया, और उन्होंने भारतीय सिनेमा में अपने बड़े भाई, फिल्म निर्माता बी.आर. चोपड़ा के साथ काम करना शुरू किया. यश चोपड़ा ने फिल्म निर्देशन की शुरुआत बी.आर. चोपड़ा के बैनर के तहत की, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी खुद की प्रोडक्शन कंपनी यशराज फिल्म्स (YRF) की स्थापना की.

यश चोपड़ा का फिल्मी कैरियर पाँच दशकों तक फैला रहा, और उन्होंने कई कालजयी फिल्मों का निर्देशन किया, जो आज भी दर्शकों के दिलों में जीवित हैं.

फिल्में: –

धूल का फूल (1959) – बतौर निर्देशक उनकी पहली फिल्म.

धर्मपुत्र (1961) – सामाजिक मुद्दों पर आधारित फिल्म.

रोमांटिक और ड्रामा फिल्में: –

वक़्त (1965) – मल्टी-स्टारर फिल्म, जिसने ‘लॉस्ट एंड फाउंड’ शैली को लोकप्रिय किया.

इत्तेफाक (1969) – एक सस्पेंस थ्रिलर फिल्म.

सुपरहिट रोमांटिक फिल्में:

कभी कभी (1976) – एक प्रेम कहानी और पारिवारिक ड्रामा.

सिलसिला (1981) – अमिताभ बच्चन, रेखा और जया भादुरी के साथ एक रोमांटिक त्रिकोण.

चांदनी (1989) – रोमांटिक फिल्म जिसने श्रीदेवी को सुपरस्टार बनाया.

दिल तो पागल है (1997) – माधुरी दीक्षित, शाहरुख खान, और करिश्मा कपूर के साथ बनाई गई एक म्यूजिकल रोमांटिक फिल्म.

ब्लॉकबस्टर: –

दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे (1995) – उनके बेटे आदित्य चोपड़ा द्वारा निर्देशित, लेकिन यशराज फिल्म्स के बैनर तले बनी यह फिल्म एक ऐतिहासिक सफल रही.

वीर-ज़ारा (2004) – भारत-पाकिस्तान प्रेम कहानी, जिसने बॉक्स ऑफिस पर धूम मचाई.

जब तक है जान (2012) – यह उनकी अंतिम निर्देशित फिल्म थी और उनके निधन के बाद रिलीज़ हुई.

यश चोपड़ा की फिल्मों में प्रेम, भावनाएँ, परिवार और व्यक्तिगत संबंधों की जटिलताओं को खूबसूरती से दिखाया जाता है. उनकी फिल्मों की खूबसूरती, फिल्मांकन, संगीत, और उत्कृष्ट संवादों ने उन्हें भारतीय सिनेमा का सबसे रोमांटिक निर्देशक बना दिया. उन्होंने स्विट्जरलैंड के सुंदर दृश्य पहली बार भारतीय सिनेमा में व्यापक रूप से दिखाए, जो उनकी फिल्मों की खास पहचान बन गए.

यश चोपड़ा को भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले, जिनमें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार (2001) और पद्म भूषण (2005) शामिल हैं. उन्हें कई फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिले और भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए उन्हें बेहद सम्मानित किया गया.

यश चोपड़ा का निधन 21 अक्टूबर 2012 को डेंगू के कारण हुआ, लेकिन उनकी विरासत आज भी यशराज फिल्म्स और उनकी फिल्मों के माध्यम से जीवित है.

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धार्मिक नेता माता अमृतानंदमयी

माता अमृतानंदमयी, जिन्हें “अम्मा” या “गले लगाने वाली संत” के रूप में भी जाना जाता है, एक प्रसिद्ध भारतीय आध्यात्मिक नेता और मानवतावादी हैं. उनका असली नाम सुधामणि इदम्मनिल है, और उन्हें उनके गहरे आध्यात्मिक ज्ञान, दया, और लाखों लोगों के जीवन में शांति और प्रेम लाने के लिए जाना जाता है. अम्मा अपने अनुयायियों को गले लगाने और आशीर्वाद देने की परंपरा के लिए विश्वभर में जानी जाती हैं.

 माता अमृतानंदमयी का जन्म 27 सितंबर 1953 को केरल, भारत के छोटे से गांव पराय्यकदवु (अलप्पुझा जिले में) में एक मछुआरे के परिवार में हुआ. बचपन से ही अम्मा का जीवन असामान्य था. उन्होंने छोटी उम्र में ही कठिनाइयों और गरीबी को सहन किया, लेकिन उनका ध्यान हमेशा भगवान पर और दूसरों की सेवा पर केंद्रित था.

अम्मा ने अपना अधिकांश समय ईश्वर की भक्ति, ध्यान, और लोगों की सेवा में बिताया. उन्होंने समाज के निम्न वर्गों और गरीबों के बीच प्रेम, करुणा, और सेवा का संदेश फैलाया. उनका ध्यान कभी भी केवल धार्मिक कर्मकांड पर नहीं रहा, बल्कि उन्होंने यह सिखाया कि सच्ची सेवा का मतलब हर जीव के प्रति करुणा और प्रेम दिखाना है. धीरे-धीरे, उनकी प्रसिद्धि बढ़ी और लोग उन्हें एक संत मानने लगे. उनके अनुयायी मानते हैं कि उनका स्पर्श और गले लगाना दिव्य आशीर्वाद है.

अम्मा का संदेश:

अम्मा का जीवन दर्शन प्रेम, करुणा, और सेवा पर आधारित है. वह मानती हैं कि मानवता की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है.

प्रेम और करुणा: – सभी जीवों के प्रति प्रेम और करुणा का भाव रखना चाहिए.

सेवा का महत्व: – किसी भी प्रकार की सेवा, चाहे वह छोटी हो या बड़ी, अगर सही भावना से की जाए तो वह सबसे बड़ा पुण्य है.

धर्म और मानवता: – धर्म केवल एक व्यक्तिगत आस्था नहीं है, बल्कि यह मानवता की सेवा के लिए है.

अम्मा ने कई मानवतावादी और सामाजिक कार्यों का नेतृत्व किया है. उनकी संस्था माता अमृतानंदमयी मठ (Mata Amritanandamayi Math) दुनिया भर में सक्रिय है और शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, गरीबों की मदद, और आपदा राहत के लिए काम कर रही है.

अम्मा ने “गले लगाने” को अपने आध्यात्मिक संदेश का एक प्रमुख हिस्सा बनाया है. वह अपने अनुयायियों और आगंतुकों को गले लगाती हैं और आशीर्वाद देती हैं, जिससे उन्हें मानसिक और भावनात्मक शांति मिलती है. उनके अनुयायी इसे “दिव्य आलिंगन” (Divine Hug) मानते हैं.

अम्मा को न केवल भारत में, बल्कि पूरे विश्व में उनके सेवा कार्यों और आध्यात्मिकता के लिए पहचाना गया है. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में भी अपने विचार व्यक्त किए हैं, और उन्हें कई पुरस्कारों और सम्मानों से नवाज़ा गया है, जैसे: – गांधी किंग पुरस्कार (2002) – अहिंसा और सामाजिक न्याय के लिए.

संयुक्त राष्ट्र के द्वारा विशेष आमंत्रण अम्मा को वैश्विक शांति और महिला सशक्तिकरण पर उनके विचार साझा करने के लिए बुलाया गया.

माता अमृतानंदमयी या अम्मा को उनके प्रेम, सेवा और करुणा के लिए पूरी दुनिया में सम्मान दिया जाता है. उनकी शिक्षा का मूल उद्देश्य है कि मानवता की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है, और प्रेम से ही जीवन में शांति प्राप्त की जा सकती है.

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अभिनेत्री सुधा चंद्रन

सुधा चंद्रन एक भारतीय अभिनेत्री और शास्त्रीय नृत्यांगना हैं, जिन्हें उनके नृत्य और अभिनय के लिए विशेष पहचान मिली है. उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उन्होंने एक दुर्घटना में अपना पैर खो दिया, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और एक कृत्रिम पैर के सहारे नृत्य जारी रखा. उनकी प्रेरणादायक कहानी ने लाखों लोगों को प्रेरित किया है.

सुधा चंद्रन का जन्म 27 सितंबर 1965 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. उन्होंने छोटी उम्र से ही भरतनाट्यम का प्रशिक्षण लेना शुरू किया था और नृत्य में एक विशेष पहचान बना ली थी. वर्ष 1981 में, सुधा चंद्रन एक कार दुर्घटना का शिकार हो गईं, जिसमें उनका एक पैर गंभीर रूप से घायल हो गया. संक्रमण के कारण उनका पैर काटना पड़ा. यह घटना उनके जीवन का सबसे बड़ा झटका था, क्योंकि नृत्य उनकी पहचान और जुनून था.

हालांकि, सुधा ने कृत्रिम पैर (जयपुर फुट) के सहारे फिर से चलना और नृत्य करना सीखा. कुछ सालों के कठिन संघर्ष के बाद, उन्होंने न केवल नृत्य की ओर वापसी की, बल्कि अपनी कहानी से दुनिया को प्रेरित किया. सुधा चंद्रन ने न केवल नृत्य की दुनिया में वापसी की, बल्कि फिल्मों और टीवी सीरियलों में भी अपनी जगह बनाई.

सुधा चंद्रन की प्रसिद्ध फिल्म “नाचे मयूरी” (1986) थी, जो उनकी खुद की जीवन कहानी पर आधारित थी. इसमें उन्होंने अपनी भूमिका निभाई और यह फिल्म काफी सफल रही. इसके अलावा, उन्होंने तमिल, तेलुगु, मलयालम और हिंदी सिनेमा में भी काम किया.

सुधा चंद्रन ने टीवी की दुनिया में भी काफी नाम कमाया. वे कई लोकप्रिय हिंदी धारावाहिकों का हिस्सा रही हैं, जिनमें: –

कहीं किसी रोज़ (2001) – इसमें उनकी नकारात्मक भूमिका (रमोला सिकंद) काफी प्रसिद्ध हुई.

क्योंकि सास भी कभी बहू थी इस धारावाहिक में भी उन्होंने एक प्रमुख भूमिका निभाई.

नागिन इस प्रसिद्ध सीरियल में भी सुधा चंद्रन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

सुधा चंद्रन को उनके अदम्य साहस और कला में उत्कृष्टता के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं, जिनमें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार शामिल हैं. सुधा चंद्रन की कहानी दृढ़ निश्चय और साहस का प्रतीक है. उन्होंने अपनी शारीरिक कठिनाई को कभी अपने सपनों की राह में बाधा नहीं बनने दिया और अपने संघर्ष और सफलता से यह साबित किया कि किसी भी मुश्किल को पार किया जा सकता है.

सुधा चंद्रन न केवल एक बेहतरीन अभिनेत्री और नृत्यांगना हैं, बल्कि वे उन सभी के लिए प्रेरणा हैं जो जीवन में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं. उनकी जीवन कहानी ने यह साबित कर दिया है कि अगर इंसान के पास हौसला और समर्पण हो, तो वह किसी भी विपरीत परिस्थिति को जीत सकता है.

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अभिनेत्री मृणालिनी शर्मा

मृणालिनी शर्मा एक भारतीय अभिनेत्री और मॉडल हैं, जिन्होंने बॉलीवुड में अपने अभिनय और आकर्षक व्यक्तित्व से पहचान बनाई है. वह अपने फिल्मी कैरियर से पहले एक सफल मॉडल के रूप में जानी जाती थीं और फिर फिल्मों में भी अपनी जगह बनाई.

मृणालिनी शर्मा का जन्म 27 सितंबर 1982 को हुआ था और उनकी और परवरिश नई दिल्ली भी में ही  हुई. वह शुरू से ही ग्लैमर और फैशन इंडस्ट्री से जुड़ी रही हैं और अपनी मॉडलिंग कैरियर की शुरुआत से ही आकर्षण का केंद्र रहीं. उन्होंने मॉडलिंग की दुनिया में कदम रखा और विभिन्न फैशन शो, विज्ञापनों और म्यूजिक वीडियो में काम किया. उन्होंने कई लोकप्रिय म्यूजिक वीडियो में काम किया, जो उन्हें भारतीय मनोरंजन उद्योग में एक प्रमुख चेहरा बना दिया.

मृणालिनी शर्मा ने बॉलीवुड में अपने अभिनय की शुरुआत 2006 में फिल्म “अपार्टमेंट” से की थी. हालांकि, उन्हें असली पहचान फिल्म “आवारापन” (2007) से मिली, जिसमें उन्होंने इमरान हाशमी के साथ प्रमुख भूमिका निभाई. यह फिल्म महेश भट्ट द्वारा निर्मित थी और मृणालिनी के अभिनय को सराहा गया.

फ़िल्में: – “हिडन” (2008), “शादी के साइड इफेक्ट्स” (2014),

मृणालिनी की अभिनय शैली में सहजता और स्वाभाविकता दिखाई देती है. उनकी स्क्रीन प्रजेंस और अभिनय कौशल ने उन्हें भारतीय सिनेमा में एक अलग पहचान दिलाई. हालाँकि उन्होंने कुछ ही फिल्मों में काम किया है, फिर भी उनके अभिनय को सराहा गया है.

मृणालिनी शर्मा का फिल्मी कैरियर भले ही छोटा रहा हो, लेकिन उन्होंने अपनी प्रतिभा और कड़ी मेहनत से दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया. मॉडलिंग से लेकर फिल्मों तक की उनकी यात्रा ने उन्हें एक सफल और बहुमुखी कलाकार के रूप में स्थापित किया.

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क्रिकेट खिलाड़ी लक्ष्मीपति बालाजी

लक्ष्मीपति बालाजी भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व तेज गेंदबाज हैं, जिन्होंने अपनी स्विंग गेंदबाजी और खेल के प्रति अपने जुनून के लिए ख्याति प्राप्त की. वह भारतीय क्रिकेट में एक प्रमुख खिलाड़ी रहे और अपने कैरियर के दौरान कई शानदार प्रदर्शनों के लिए जाने गए. बालाजी न केवल अपने खेल कौशल बल्कि अपने विनम्र और सकारात्मक व्यक्तित्व के लिए भी लोकप्रिय थे.

लक्ष्मीपति बालाजी का जन्म 27 सितंबर 1981 को तमिलनाडु के कांचीपुरम में हुआ था. बालाजी को बचपन से ही क्रिकेट का शौक था, और उन्होंने क्रिकेटर बनने का सपना देखा. उन्होंने घरेलू क्रिकेट में तमिलनाडु का प्रतिनिधित्व किया और जल्द ही भारतीय क्रिकेट में अपनी पहचान बनाई.

बालाजी ने 2002 में भारतीय क्रिकेट टीम के लिए अपना डेब्यू किया और जल्द ही टीम के तेज गेंदबाजों में अपनी जगह पक्की की. बालाजी ने 8 टेस्ट मैचों में भारत का प्रतिनिधित्व किया और 27 विकेट लिए. उनकी गेंदबाजी में स्विंग और सीमिंग क्षमता थी, जिसने उन्हें एक महत्वपूर्ण टेस्ट गेंदबाज बनाया. बालाजी ने 30 वनडे मैचों में भारत के लिए खेला और 34 विकेट हासिल किए. उनका सबसे यादगार प्रदर्शन 2004 के पाकिस्तान दौरे में था, जहां उन्होंने अपने शानदार प्रदर्शन से भारतीय टीम की जीत में अहम भूमिका निभाई. इस सीरीज में उनके लगातार प्रदर्शन ने उन्हें भारतीय क्रिकेट प्रशंसकों के बीच लोकप्रिय बना दिया. पाकिस्तान के खिलाफ उनके प्रदर्शन और हंसमुख स्वभाव के कारण उन्हें दर्शकों का बहुत प्यार मिला.

बालाजी ने इंडियन प्रीमियर लीग में भी प्रभावशाली प्रदर्शन किया. वह चेन्नई सुपर किंग्स के प्रमुख खिलाड़ियों में से एक थे. उन्होंने 2008 के आईपीएल सीज़न में हैट्रिक लेकर एक यादगार उपलब्धि हासिल की, जो आईपीएल के इतिहास में पहली हैट्रिक थी. बालाजी का कैरियर चोटों से प्रभावित रहा. वर्ष 2005 में उन्हें गंभीर पीठ की चोट के कारण क्रिकेट से कुछ समय के लिए दूर रहना पड़ा. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और कड़ी मेहनत और समर्पण से मैदान पर वापसी की. उनका पुनरुत्थान उनके खेल के प्रति उनके समर्पण और साहस का प्रतीक है.

क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद, बालाजी ने खेल कोचिंग की ओर रुख किया. उन्होंने कई टीमों के लिए गेंदबाजी कोच के रूप में काम किया है और नए खिलाड़ियों को मार्गदर्शन दिया है. वह चेन्नई सुपर किंग्स के गेंदबाजी कोच भी रहे हैं, और उनके अनुभव से युवा तेज गेंदबाजों को काफी लाभ हुआ है. लक्ष्मीपति बालाजी की गेंदबाजी का मुख्य आधार उनकी स्विंग और गति थी. वह अपनी मध्यम गति की गेंदों में विविधता लाने में माहिर थे, और उनकी गेंदें अक्सर बल्लेबाजों को चकमा देती थीं. उनका हमेशा मुस्कुराते रहना और सकारात्मक दृष्टिकोण ने उन्हें प्रशंसकों के बीच खास बना दिया.

लक्ष्मीपति बालाजी भारतीय क्रिकेट के एक विनम्र और प्रेरणादायक खिलाड़ी हैं, जिन्होंने अपने खेल कौशल और संघर्ष से अपनी पहचान बनाई. उनके संघर्ष, वापसी, और क्रिकेट के प्रति समर्पण ने उन्हें भारतीय क्रिकेट इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना दिया है.

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समाज सुधारक राजा राममोहन राय

राजा राममोहन राय भारत के एक महान समाज सुधारक, शिक्षाविद, और आधुनिक भारत के निर्माण में अग्रणी व्यक्ति थे. उन्हें भारतीय पुनर्जागरण के पिता के रूप में जाना जाता है. राजा राममोहन राय ने समाज में व्याप्त कुरीतियों, अंधविश्वासों, और भेदभाव को खत्म करने के लिए कई सुधार आंदोलनों की शुरुआत की, और उन्होंने भारतीय समाज को आधुनिक और प्रगतिशील दिशा में ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

राजा राममोहन राय  का जन्म 22 मई 1772 को बंगाल के राधानगर गांव (वर्तमान पश्चिम बंगाल में) में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनका बचपन धार्मिक और परंपरागत परिवेश में बीता, लेकिन वे प्रारंभ से ही आधुनिक शिक्षा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण की ओर झुके हुए थे. उन्होंने बंगाली, संस्कृत, फारसी, अरबी और अंग्रेजी जैसी कई भाषाओं में दक्षता हासिल की.

राममोहन राय ने विभिन्न भाषाओं और धर्मों का गहन अध्ययन किया, जिससे उनकी सोच में व्यापकता और गहराई आई. उन्होंने भारतीय और पाश्चात्य शिक्षा को एक साथ मिलाने का पक्ष लिया. फारसी और अरबी का अध्ययन करते हुए उन्होंने इस्लामी और पश्चिमी विचारधाराओं का भी अध्ययन किया, जिससे उनके विचारों में धर्मनिरपेक्षता और सहिष्णुता आई. उन्होंने हिंदू धर्मग्रंथों का भी अध्ययन किया और समाज में सुधार लाने के लिए भारतीय धर्म और परंपराओं को नए दृष्टिकोण से देखा.

राजा राममोहन राय ने समाज में व्याप्त कई कुरीतियों को खत्म करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए.  उन्होंने सती प्रथा (जिसमें पति की मृत्यु के बाद पत्नी को जीवित जला दिया जाता था) का कड़ा विरोध किया. उन्होंने इस प्रथा को अमानवीय और अत्याचारी माना और इसके खिलाफ जन जागरूकता अभियान चलाया. उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप, लॉर्ड विलियम बेंटिक की सरकार ने वर्ष 1829 में सती प्रथा को कानूनी रूप से प्रतिबंधित कर दिया.

राजा राममोहन राय विधवा पुनर्विवाह के प्रबल समर्थक थे. उन्होंने महिलाओं के अधिकारों की वकालत की और समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए कार्य किया. उनके विचारों ने बाद में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम (1856) का मार्ग प्रशस्त किया. उन्होंने हिंदू धर्म में व्याप्त अंधविश्वास और मूर्तिपूजा का विरोध किया और एकेश्वरवाद (एक ईश्वर की पूजा) का समर्थन किया. वे ब्रह्म समाज के संस्थापक थे, जो ईश्वर की एकता, नैतिकता, और धर्म में सुधार की वकालत करता था.

राजा राममोहन राय ने आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए. उन्होंने संस्कृत और पारंपरिक शिक्षा के साथ-साथ अंग्रेजी और विज्ञान की शिक्षा को महत्व दिया. उन्होंने 1817 में हिंदू कॉलेज (जिसे अब प्रेसीडेंसी यूनिवर्सिटी के नाम से जाना जाता है) की स्थापना में मदद की, जो आधुनिक शिक्षा का प्रमुख केंद्र बना. वे अंग्रेजी, विज्ञान, और गणित की पढ़ाई के पक्षधर थे, ताकि भारतीय युवा विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकें और देश के विकास में योगदान दे सकें.

राजा राममोहन राय ने प्रेस की स्वतंत्रता का समर्थन किया और संपादक और लेखक के रूप में कार्य किया. उन्होंने ‘सम्वाद कौमुदी’ (बंगाली भाषा में) और ‘मिरात-उल-अखबार’ (फारसी भाषा में) जैसे पत्रों का संपादन किया, जिनके माध्यम से उन्होंने अपने समाज सुधार विचारों का प्रसार किया. उन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रेस की स्वतंत्रता पर लगाए गए प्रतिबंधों का विरोध किया और भारतीय पत्रकारिता की नींव रखी.

राजा राममोहन राय धार्मिक सहिष्णुता के प्रबल समर्थक थे. उन्होंने हिंदू, इस्लाम, और ईसाई धर्मों के बीच संवाद स्थापित करने के प्रयास किए और सभी धर्मों को समान मानने की आवश्यकता पर जोर दिया. वर्ष 1828 में राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना की, जो एक सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलन था. ब्रह्म समाज ने एकेश्वरवाद का प्रचार किया. जातिवाद, छुआछूत, और सामाजिक असमानता का विरोध किया. मूर्तिपूजा का विरोध किया और तर्कसंगत और नैतिक जीवन पर जोर दिया. ब्रह्म समाज भारतीय समाज में प्रगतिशील विचारों का एक प्रमुख मंच बना और राजा राममोहन राय के सुधारवादी विचारों का प्रतीक बन गया.

राजा राममोहन राय ने न केवल भारतीय समाज में सुधार किया, बल्कि उन्होंने विदेशों में भी भारतीय संस्कृति और समस्याओं को लेकर आवाज उठाई. उन्हें ब्रिटेन में ‘भारत का पहला राजदूत’ कहा जाता है, क्योंकि वे ब्रिटिश सरकार से भारतीय अधिकारों के लिए संवाद करने गए थे. राजा राममोहन राय की मृत्यु 27 सितंबर 1833 को इंग्लैंड के ब्रिस्टल में हुई. वे वहां भारतीय समाज की समस्याओं और अधिकारों के बारे में ब्रिटिश सरकार से संवाद करने गए थे.

राजा राममोहन राय ने भारतीय समाज में सुधार के लिए जो प्रयास किए, वे आज भी भारतीय समाज के विकास और प्रगति की नींव माने जाते हैं. उन्होंने न केवल सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई, बल्कि भारतीय समाज को आधुनिक और प्रगतिशील बनाने के लिए भी काम किया. उनके विचार और उनके योगदान आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं.

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ठुमरी गायिका शोभा गुर्टू

शोभा गुर्टू भारतीय शास्त्रीय शैली की एक प्रसिद्ध गायिका थीं. शोभा गुर्टू को ‘ठुमरियों की रानी’ कहा जाता है. उन्होंने ठुमरी के अतिरिक्त कजरी, होरी और दादरा आदि उप-शास्त्रीय शैलियों के अस्तित्व को भी बचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

 ठुमरी गायिका शोभा गुर्टू का जन्म 08 फ़रवरी, 1925 को कर्नाटक के बेलगाँव ज़िले में हुआ था. उनका मूल नाम ‘भानुमति शिरोडकर’ था. शोभा के बारे में कहा जाता है कि, न केवल अपने गले की आवाज़ से बल्कि अपनी आँखों से भी गाती थीं. शोभा गुर्टू ने कई हिन्दी और मराठी फ़िल्मों में भी गीत गाए. वर्ष 1972 में आई कमल अमरोही की फ़िल्म ‘पाक़ीज़ा’ में उन्हें पहली बार पार्श्वगायन का मौका मिला था.

प्रमुख फिल्मों के गाने : –

बंधन बांधो’ गाया, ‘मोरे सैय्याँ बेदर्दी बन गए कोई जाओ मनाओ, ‘मैं तुलसी तेरे आँगन की और ‘सैय्याँ रूठ गए मैं मनाऊँ कैसे आदि.

शोभा गुर्टू को कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया.शोभा गुर्टू को 2002 में ‘पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया था. ठुमरी गायिका शोभा गुर्टू का निधन 27 सितंबर 2004 को मुंबई में हुआ था.

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पार्श्व गायक महेन्द्र कपूर

महेंद्र कपूर एक प्रमुख भारतीय फ़िल्म अभिनेता थे जिन्होंने हिन्दी सिनेमा में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाया। उन्होंने अपनी कैरियर के दौरान बहुत सारी सफल फ़िल्में की हैं और उन्हें “पार्श्व गायक” के रूप में भी जाना जाता है.

महेंद्र कपूर का जन्म 9 जनवरी 1934 को अमृतसर में हुआ था और उनका निधन  27 सितंबर 2008 को मुंबई में हुआ. पार्श्वगायन में कैरियर बनाने के लिए वे कम उम्र में ही मुंबई आ गए थे. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत फिल्म ‘मदमस्त’ के गीत आप आए तो खयाल-ए-दिल-ए नाशाद आया से किया था.  उनका कैरियर 1950 के दशक में शुरू हुआ था और उन्होंने बहुत सारी मशहूर फ़िल्मों में काम किया.

फ़िल्में:“पारवान” (1954), “श्री 420” (1955), “मेरा नाम जोकर” (1970),“जब जब फूल खिले” (1970),“अपना देस” (1972)

उन्होंने अपने कैरियर में विभिन्न जीनों का काम किया और वे एक प्रमुख और प्रिय अभिनेता बने। महेंद्र कपूर का नाम भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान है. उन्होंने वर्ष 1992 में अपनी कैरियर की आखिरी फ़िल्म “जब तक है जान” में काम किया था.

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राजनीतिज्ञ जसवंत सिंह

जसवंत सिंह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता, राजनेता, और एक प्रसिद्ध लेखक थे. उन्होंने अपने कैरियर के दौरान भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान दिया और भारत के वित्त, विदेश, और रक्षा मंत्रालय जैसे प्रमुख विभागों का नेतृत्व किया. जसवंत सिंह का जन्म 03 जनवरी 1938 को जसोल, राजस्थान के एक राजपूत परिवार में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा अजमेर के मेयो कॉलेज और नेशनल डिफेंस एकेडमी से प्राप्त की. भारतीय सेना में कमीशन प्राप्त करने के बाद, उन्होंने कुछ समय तक सैन्य सेवा की और फिर राजनीति में प्रवेश किया.

जसवंत सिंह भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक थे. वे अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार (वर्ष 1998-2004) में एक प्रमुख मंत्री रहे. उन्होंने कूटनीति में भारत की स्थिति को मजबूत किया. कारगिल युद्ध के समय और भारत-पाकिस्तान संबंधों में उनकी भूमिका अहम थी. पोखरण परमाणु परीक्षण (वर्ष 1998) के बाद के अंतरराष्ट्रीय दबाव को संभालने में उनकी कूटनीति प्रभावशाली रही.

वित्त मंत्री (1996, 2002-2004) के रूप में उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार और उदारीकरण को बढ़ावा दिया. रक्षा मंत्री (2000-2001) के रूप में उन्होंने भारतीय रक्षा प्रणाली को आधुनिक बनाने में उनका योगदान रहा. वर्ष 1999 के भारतीय एयरलाइंस के फ्लाइट IC-814 के अपहरण के दौरान जसवंत सिंह ने अपहरणकर्ताओं से बातचीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने तीन आतंकवादियों की रिहाई के बदले यात्रियों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित की, जो विवाद का विषय भी बना.

जसवंत सिंह अपने गहरे बौद्धिक दृष्टिकोण और लेखन के लिए जाने जाते थे. “Jinnah: India-Partition-Independence” (जिन्ना: भारत-विभाजन-स्वतंत्रता): – इस पुस्तक में उन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना के बारे में तटस्थ दृष्टिकोण अपनाया, जिससे भाजपा के साथ उनका मतभेद हुआ. वे भारत के विभाजन, कूटनीति, और राष्ट्रवाद जैसे विषयों पर लिखने के लिए प्रसिद्ध थे. जिन्ना पर उनकी पुस्तक के कारण राजस्थान सरकार ने उन्हें भाजपा से निलंबित कर दिया.

वर्ष 2014 में उन्हें पार्टी ने टिकट देने से इनकार कर दिया, जिसके बाद वे निर्दलीय चुनाव लड़े. जसवंत सिंह एक विद्वान राजनेता, कुशल वक्ता, और राष्ट्रवादी विचारक थे. उनके लेखन और उनके कूटनीतिक योगदान ने भारतीय राजनीति में उन्हें विशिष्ट स्थान दिलाया. सात वर्ष तक कोमा में रहने के बाद, 27 सितंबर 2020 को उनका निधन हो गया.

जसवंत सिंह को उनकी राजनैतिक सूझबूझ, कूटनीतिक कौशल और भारतीय राजनीति में सुधारवादी दृष्टिकोण के लिए याद किया जाता है. उनकी लेखनी और सेवा आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी.

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