
व्यक्ति विशेष -629.
क्रान्तिकारी मदन लाल ढींगरा
मदन लाल ढींगरा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान क्रान्तिकारी थे, जिनका नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है. मदन लाल ढींगरा का जन्म 18 सितंबर 1883 को अमृतसर, पंजाब में एक संपन्न परिवार में हुआ था. उनके पिता, जो एक सिविल सर्जन थे, अंग्रेजों के वफादार थे, लेकिन ढींगरा शुरू से ही क्रांतिकारी विचारों वाले थे. उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा अमृतसर से पूरी की और बाद में लाहौर में कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही वह क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए.
ढींगरा ने लाहौर के कॉलेज में ब्रिटिश आयातित कपड़ों का बहिष्कार किया, जिसके कारण उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया. उनके परिवार ने भी उनका साथ छोड़ दिया, जिसके बाद उन्होंने अपना जीवन चलाने के लिए क्लर्क, तांगा-चालक और मजदूर के रूप में भी काम किया. वर्ष 1906 में, वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए लंदन चले गए. वहाँ वे विनायक दामोदर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा जैसे राष्ट्रवादी नेताओं के संपर्क में आए और उनकी संस्था ‘अभिनव भारत’ से जुड़ गए.
1 जुलाई 1909 को, ढींगरा ने लंदन में एक कार्यक्रम के दौरान ब्रिटिश अधिकारी सर विलियम हट कर्जन वायली की गोली मारकर हत्या कर दी. कर्जन वायली ब्रिटिश सरकार का एक सलाहकार था और वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए गुप्त जानकारी जुटाता था. इस घटना के बाद, ढींगरा को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर मुकदमा चलाया गया.मुकदमे के दौरान, ढींगरा ने अपने वकील को यह कहकर मना कर दिया कि वह ब्रिटिश अदालत की वैधता को स्वीकार नहीं करते हैं.23 जुलाई को ढींगरा के प्रकरण की सुनवाई पुराने बेली कोर्ट, लंदन में हुई. उनको मृत्युदण्ड दिया गया और 17 अगस्त सन् 1909 को फाँसी दे दी गयी.
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हास्य कवि काका हाथरसी
काका हाथरसी हिंदी साहित्य के एक प्रसिद्ध हास्य कवि और व्यंग्यकार थे. उनका असली नाम प्रभुलाल गर्ग था. उनकी रचनाएँ समाज में व्याप्त दोषों, कुरीतियों, भ्रष्टाचार और राजनीतिक कुशासन की ओर सबका ध्यान आकृष्ट करती हैं. काका हाथरसी का जन्म 18 सितंबर 1906 को उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले में हुआ था. उनके पिता का नाम शिवलाल गर्ग और माता का नाम बरफ़ी देवी था. जब वे मात्र 15 दिन के थे, तभी प्लेग की महामारी ने उनके पिता को छीन लिया और परिवार के दुर्दिन आरम्भ हो गये. भयंकर ग़रीबी में भी काका ने अपना संघर्ष जारी रखते हुए छोटी-मोटी नौकरियों के साथ ही कविता रचना और संगीत शिक्षा का समंवय बनाये रखा.
प्रभुलाल गर्ग को बचपन में नाटक आदि में भी काम करने का शौक़ था. एक नाटक में उन्होंने ‘काका’ का किरदार निभाया, और बस तभी से प्रभूलाल गर्ग ‘काका’ नाम से प्रसिद्ध हो गए. चौदह साल की आयु में काका फिर अपने परिवार सहित हाथरस वापस आए और उन्होंने ‘मुनीम’ की नौकरी कर ली. उनका विवाह मात्र सोलह वर्ष की आयु में रतन देवी से हुई थी.
काका हाथरसी ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों, राजनीतिक विसंगतियों और आम आदमी की समस्याओं पर हल्के-फुल्के, व्यंगात्मक और विनोदी तरीके से प्रहार किया. उनकी कविताएँ सरल और सुबोध होती थीं, जिससे वे आम लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हुए.
उनकी रचनाओं में हास्य के साथ-साथ गहरी सामाजिक चेतना भी छिपी होती थी. उन्होंने ‘हाथरसी’ शैली को विकसित किया, जिसमें वे हास्य को एक गंभीर संदेश देने के लिए इस्तेमाल करते थे. उनकी कुछ प्रसिद्ध रचनाएँ हैं- ‘काका की कचहरी’, ‘हँसगुल्ले’ ‘काका के कारनामे’ ‘जोड़-तोड़’ .
काका हाथरसी को कई साहित्यिक सम्मानों से भी नवाजा गया.18 सितंबर, 1995 को उनका निधन हो गया, लेकिन आज भी उन्हें हिंदी हास्य कविता का एक महत्वपूर्ण स्तंभ माने जाते है.
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साहित्यकार श्रीकांत वर्मा
श्रीकांत वर्मा हिन्दी साहित्य के एक प्रमुख कवि, कथाकार, पत्रकार और आलोचक थे. उन्होंने अपनी कविताओं में वे इतिहास, राजनीति और समाज की विडंबनाओं को गहरे और नए तरीके से व्यक्त करते थे. श्रीकांत वर्मा का जन्म 18 सितंबर 1931 को छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में हुआ था. उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में एम.ए. की पढ़ाई पूरी की. उन्होंने दिल्ली में एक पत्रकार के रूप में अपना कैरियर शुरू किया और कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं, जैसे “दिनमान” से जुड़े रहे. बाद में, वे राजनीति में भी सक्रिय हुए और राज्यसभा के सदस्य भी रहे.
श्रीकांत वर्मा की लेखन शैली में समकालीन जीवन की जटिलताओं, शहरी जीवन के खालीपन और राजनीतिक विसंगतियों का गहरा चित्रण मिलता है. उनकी कविताओं में एक तीखा व्यंग्य और ऐतिहासिक संदर्भों का रचनात्मक उपयोग दिखाई देता है.उनकी कृति “मगध” के लिए उन्हें 1987 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो उनकी साहित्यिक यात्रा का एक बड़ा पड़ाव था.
श्रीकांत वर्मा ने विभिन्न साहित्यिक विधाओं में लिखा, जिनमें कविता, कहानी, उपन्यास और यात्रा-वृत्तांत शामिल हैं जैसे: – भटका मेघ, मायादर्पण, जलसाघर, मगध, झाड़ी, संवाद, दूसरी बार और अपोलो का रथ.
श्रीकांत वर्मा का निधन 25 मई, 1986 को न्यूयॉर्क में हुआ था. उनके साहित्यिक योगदान ने हिन्दी कविता को एक नई दिशा दी और आज भी वे अपनी रचनाओं के लिए याद किए जाते हैं.
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अभिनेत्री शबाना आज़मी
शबाना आज़मी एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जिन्होंने फिल्म, टेलीविजन और रंगमंच में अपने अभिनय किया है. शबाना आज़मी का जन्म 18 सितंबर 1950 को हैदराबाद में हुआ था. वह शायर कैफ़ी आज़मी और मंच अभिनेत्री शौकत आज़मी की बेटी हैं. उनके भाई, बाबा आज़मी, एक सिनेमैटोग्राफर हैं. अभिनेत्री तन्वी आज़मी उनकी भाभी हैं. उन्होंने मुंबई के सेंट जेवियर कॉलेज से मनोविज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और उसके बाद पुणे के भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (FTII) से अभिनय का कोर्स किया. उनका विवाह 9 दिसंबर 1984 को प्रसिद्ध गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख्तर से हुई थी.
शबाना आज़मी ने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1974 में श्याम बेनेगल की फिल्म ‘अंकुर’ से की थी. वो समानांतर सिनेमा की अग्रणी अभिनेत्रियों में से एक मानी जाती हैं, जिन्होंने यथार्थवादी और गंभीर विषयों पर आधारित फिल्मों में काम किया. अभिनय के साथ-साथ वह एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी सक्रिय हैं, खासकर बच्चों और एड्स से संबंधित मुद्दों पर. वह राज्यसभा की सदस्य भी रह चुकी हैं.
शबाना आज़मी ने 100 से अधिक फिल्मों में काम किया है. प्रमुख फ़िल्में:- अंकुर (1974), निशांत (1975), अर्थ (1982), खंडहर (1984), पार (1984), गॉडमदर (1999). आज़मी ने सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 5 बार जीता है, जो एक रिकॉर्ड है. ये पांच फिल्में हैं – अंकुर (1975), अर्थ (1983), खंडहर (1984), पार (1985), गॉडमदर (1999). शबाना आज़मी को पांच फिल्मफेयर पुरस्कार के साथ -साथ उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया.
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स्नेहलता श्रीवास्तव
स्नेहलता श्रीवास्तव एक भारतीय सिविल सेवक हैं जिन्हें लोकसभा की पहली महिला महासचिव के रूप में कार्य किया था. स्नेहलता का जन्म 18 सितंबर 1957 को कानपुर में हुआ था. उनके पिता का नाम रमेशचंद्र श्रीवास्तव और माता का नाम प्रेमलता श्रीवास्तव है. उनकी विवाह 19 नवंबर, 1985 को डॉ. संजय श्रीवास्तव के साथ हुआ था. उन्होंने ने भूगोल विषय में पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री हासिल की है जबकि बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय भोपाल से रीजनल प्लानिंग और इकनॉमिक ग्रोथ में एम.फिल. की है.
स्नेहलता श्रीवास्तव 1982 बैच की मध्य प्रदेश कैडर की भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी हैं. उन्होंने 1 दिसंबर, 2017 से 30 नवंबर, 2020 तक लोकसभा की पहली महिला महासचिव के रूप में कार्य किया. उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर काम किया है. लोकसभा की महासचिव के रूप में उनकी नियुक्ति से पहले, उन्होंने कानून और न्याय मंत्रालय में सचिव और वित्त मंत्रालय में विशेष/अतिरिक्त सचिव के रूप में कार्य किया था. वो मध्य प्रदेश सरकार में संस्कृति और संसदीय मामलों के मंत्रालयों में प्रधान सचिव सहित कई वरिष्ठ पदों पर भी रहीं.
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अभिनेता विनय राय
विनय राय एक भारतीय अभिनेता हैं जो मुख्य रूप से तमिल फिल्मों में काम करते हैं.उन्होंने तेलुगु और मलयालम फिल्मों में भी अभिनय किया है.
विनय राय का जन्म 18 सितंबर 1979 को मुंबई में हुआ था. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग से की थी. उन्होंने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत वर्ष 2007 में तमिल फिल्म ‘उन्नाले उन्नाले’ से की. इस फिल्म में उनके प्रदर्शन के लिए उन्हें विजय अवार्ड्स में ‘सर्वश्रेष्ठ नवोदित अभिनेता’ के लिए नामांकित किया गया था.
हाल के वर्षों में, उन्होंने कई फिल्मों में खलनायक की भूमिकाएँ निभाई हैं, जिनमें ‘थुप्पारिवलन’ (2017), ‘डॉक्टर’ (2021), ‘क्रिस्टोफर’ (2023), और ‘हनु-मान’ (2024) शामिल हैं.
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अभिनेत्री सनाया ईरानी
सनाया ईरानी एक भारतीय टेलीविज़न अभिनेत्री हैं जो अपने काम ‘मिले जब हम तुम’ और ‘इस प्यार को क्या नाम दूं?’ के लिए मशहूर हैं. सनाया ईरानी का जन्म 17 सितंबर 1983 को मुंबई में एक पारसी परिवार में हुआ था. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 2006 में आमिर खान की फिल्म “फना” में एक कैमियो रोल के साथ की थी. सनाया ईरानी ने वर्ष 2016 में मोहित सहगल से विवाह की थी.
सनाया को टेलीविजन पर पहला बड़ा मौका वर्ष 2007 में सीरियल “लेफ्ट राइट लेफ्ट” से मिला था. हालांकि, उन्हें सबसे ज्यादा प्रसिद्धि स्टार वन के सीरियल “मिले जब हम तुम” (2008) से मिली. इसके बाद, उन्होंने स्टार प्लस के सीरियल “इस प्यार को क्या नाम दूं?”(2011)में खुशी कुमारी गुप्ता के किरदार से घर-घर में पहचान बनाई.
सनाया ईरानी ने अपने अभिनय के लिए कई पुरस्कार जीते हैं, जिनमें एक आईटीए पुरस्कार, एक इंडियन टेली पुरस्कार और तीन गोल्ड पुरस्कार शामिल हैं.
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हास्य अभिनेता असित सेन
असित सेन हिंदी सिनेमा के एक जाने-माने हास्य अभिनेता थे. उनकी खासियत उनकी धीमी और भारी आवाज के साथ डायलॉग बोलने का अनोखा अंदाज़ था, जो उनके बड़े डील-डौल के साथ मिलकर दर्शकों को खूब हंसाता था. उन्होंने लगभग 200 से ज़्यादा फिल्मों में काम किया, जिनमें से ज़्यादातर में वे हास्य और सहायक भूमिकाओं में नज़र आए.
असित सेन का जन्म 13 मई 1917 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में हुआ था. उन्हें फोटोग्राफी का बहुत शौक था और वे फोटग्राफर के रूप में अपना कैरियर शुरू करना चाहते थे. इसी शौक के चलते वे कलकत्ता (अब कोलकाता) चले गए, जहाँ उन्होंने विमल रॉय जैसे महान फिल्म निर्माताओं के साथ काम किया. शुरुआत में उन्होंने फिल्मों में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर और कैमरामैन भी काम किया.
असित सेन ने अभिनय को अपना मुख्य कैरियर बना लिया. उनकी कुछ यादगार फिल्में हैं “बुड्ढा मिल गया” (1971), “बालिका बधू” (1976), “जुदाई” (1980), “प्यार का मौसम” (1969) और “आराधना” (1969). इन फिल्मों में उनके किरदार आज भी याद किए जाते हैं. उन्होंने 18 सितंबर 1993 को कोलकाता में अंतिम सांस ली.
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स्वतंत्रता सेनानी सारंगधर दास
सारंगधर दास भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक और अर्थशास्त्री थे, जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनका जन्म 1887 में ओडिशा के कटक जिले में एक समृद्ध और शिक्षित परिवार में हुआ था. सारंगधर दास एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया, बल्कि सामाजिक सुधार और आर्थिक विकास के मुद्दों पर भी विशेष ध्यान दिया.
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कटक में प्राप्त की और आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए. वहां उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (LSE) में अर्थशास्त्र की पढ़ाई की, जहां वे गांधीजी के विचारों से प्रेरित हुए. इंग्लैंड से लौटने के बाद, उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन और अन्य स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग लिया.
सारंगधर दास का योगदान केवल राजनीतिक आंदोलनों तक सीमित नहीं था, उन्होंने भारतीय समाज के आर्थिक और सामाजिक सुधारों के लिए भी काम किया. वे ग्रामीण विकास और स्वदेशी उद्योगों के समर्थक थे और गांधीजी के ग्राम स्वराज के विचार में विश्वास करते थे. उन्होंने ओडिशा में कई सामाजिक और शैक्षणिक सुधार कार्यक्रमों का नेतृत्व किया और ग्रामीण भारत के आर्थिक विकास के लिए कई योजनाएँ बनाई.
दास की प्रमुखता इस तथ्य से भी समझी जा सकती है कि वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विभिन्न आंदोलनों में सक्रिय थे और उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय जनता को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. स्वतंत्रता संग्राम के बाद, सारंगधर दास ने सामाजिक सेवा और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में अपना योगदान जारी रखा.
सारंगधर दास का निधन 18 सितंबर 1957 को हुआ था. उनका जीवन और कार्य स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ भारत के सामाजिक और आर्थिक विकास में भी महत्वपूर्ण थे.
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स्वतंत्रता सेनानी भगवान दास
स्वतंत्रता सेनानी भगवान दास, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख महान वीर और महान कवि थे. उनका जन्म 12 जनवरी 1869 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था और उनका निधन 18 सितम्बर 1958 को हुआ. भगवान दास भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण योद्धा बने. उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ सख्त विरोध किया और अपने कविताओं के माध्यम से लोगों को जागरूक किया.
दास की कविताएँ और गीत स्वतंत्रता संग्राम के समय के जनमानस की भावनाओं को बयां करती थीं और लोगों को आजादी के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा देती थीं. उनकी लोकप्रिय कविता “करम की धरती पर” भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीक मानी जाती है. दास का योगदान स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण है और उन्होंने अपने साहित्यिक कौशल के माध्यम से भारतीय जनमानस को एकजुट किया और उन्हें स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित किया. उनकी स्मृति में भारत सरकार ने 1969 में एक डाक टिकट जारी किया था.