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व्यक्ति विशेष -613.

रोशन आरा बेगम

रोशन आरा बेगम भारतीय शास्त्रीय संगीत, विशेषकर किराना घराना की एक प्रसिद्ध गायिका थीं. उनका जन्म 03 सितंबर 1617 में कोलकाता में हुआ था और वे उस्ताद अब्दुल करीम खान की शिष्या थीं.

अपनी मधुर और भावपूर्ण गायकी के लिए उन्हें “बुलबुले-ए-हिंद” (भारत की बुलबुल) के नाम से जाना जाता था. उनकी गायकी में एक खास तरह की मिठास और गहराई थी, जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देती थी. उन्होंने ठुमरी, दादरा, ख्याल और ग़ज़ल जैसी संगीत शैलियों में महारत हासिल की थी.

रोशन आरा बेगम का निधन 11 सितंबर 1671 में हुआ था. लेकिन उनकी गायकी की रिकॉर्डिंग आज भी संगीत प्रेमियों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं.

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स्वतंत्रता सेनानी कमलापति त्रिपाठी

कमलापति त्रिपाठी एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता, लेखक और पत्रकार थे. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे और स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे, जिनमें रेल मंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद भी शामिल है. कमलापति त्रिपाठी अपनी विद्वता, राजनैतिक दूरदर्शिता और देशभक्ति के लिए जाने जाते थे.

कमलापति त्रिपाठी का जन्म 3 सितंबर 1905 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के गाँव बनारस के नजदीक हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा बनारस के क्वींस कॉलेज में हुई, जहाँ उन्होंने साहित्य और भारतीय संस्कृति में गहरी रुचि ली. उन्होंने शिक्षा के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लेना शुरू किया.

कमलापति त्रिपाठी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी के नेतृत्व में सक्रिय रूप से शामिल हुए. उन्होंने वर्ष 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान अपनी शिक्षा छोड़ दी और स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े. वे कई बार जेल गए और अपनी स्वतंत्रता सेनानी भूमिका के दौरान कई महत्वपूर्ण आंदोलनों में भाग लिया, जैसे: – सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930), भारत छोड़ो आंदोलन (1942). कमलापति त्रिपाठी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन के दौरान जेल की सजा भी काटी, लेकिन उनके इरादे कभी नहीं डगमगाए. उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के माध्यम से भी जनता को जागरूक करने का काम किया.

स्वतंत्रता के बाद, कमलापति त्रिपाठी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक प्रमुख नेता बने और उन्हें विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया गया. उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में भी कार्य किया. उनके नेतृत्व में उत्तर प्रदेश ने सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में काफी प्रगति की. उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान तब आया जब वे भारतीय रेल मंत्री बने. उनके कार्यकाल के दौरान, भारतीय रेलवे ने उल्लेखनीय सुधार किए और उनका योगदान इस क्षेत्र में अद्वितीय माना जाता है. कमलापति त्रिपाठी को उनकी सेवाओं के लिए “रेल मंत्री के रूप में अमिट छाप छोड़ने वाले” नेताओं में गिना जाता है.

कमलापति त्रिपाठी एक प्रसिद्ध लेखक और पत्रकार भी थे. उन्होंने हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान दिया.

 प्रमुख रचनाएँ: –  “सत्याग्रह और स्वतंत्रता संग्राम”.

“महात्मा गांधी और स्वतंत्रता आंदोलन” वे लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी के मुखपत्र “आज” के संपादक भी रहे, जहाँ उन्होंने अपने लेखों और विचारों के माध्यम से समाज को प्रेरित किया और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जागरूकता फैलाने का कार्य किया.

कमलापति त्रिपाठी एक साधारण और सादगी पसंद व्यक्ति थे. उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी समाज और देश की सेवा में समर्पित की. उनकी सादगी और ईमानदारी उन्हें राजनीति में सबसे अलग पहचान देती थी. उनका निधन 8 अक्टूबर 1990 को हुआ. कमलापति त्रिपाठी को आज भी उनकी निष्ठा, सेवा और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के लिए याद किया जाता है. उत्तर प्रदेश और भारतीय राजनीति में उनका नाम हमेशा सम्मान से लिया जाता है, और वे भारतीय लोकतंत्र के एक स्तंभ के रूप में माने जाते हैं.

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तबला वादक पंडित किशन महाराज

पंडित किशन महाराज भारतीय क्लासिकल संगीत के एक प्रमुख तबला वादक थे, जिन्होंने अपनी विशेष तालीम और प्रदर्शन कौशल के लिए विश्वव्यापी प्रशंसा प्राप्त की. उनका जन्म 3 सितंबर 1923 को हुआ था और उनका निधन 4 मई 2008 को हुआ था.  पंडित किशन महाराज बनारस घराने के प्रमुख सदस्य थे और उन्होंने तबला वादन की बनारस बाज की शैली को आगे बढ़ाया.

उन्होंने अपने दादा बड़े रामदासजी और पिता हरि महाराज से तबला वादन सीखा और बाद में अपने चाचा कान्ठे महाराज के शिष्य बने, जो स्वयं एक महान तबला वादक थे. पंडित किशन महाराज की विशेषता उनकी तकनीकी कुशलता, लय की गहराई और अभिव्यक्ति की विविधता थी. उन्होंने अपनी प्रस्तुतियों में तबला के विभिन्न बोलों को इस प्रकार से पेश किया कि वह हमेशा श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते थे.

पंडित किशन महाराज ने अपने कैरियर में कई प्रतिष्ठित कलाकारों के साथ मंच साझा किया, जैसे कि पंडित रवि शंकर, उस्ताद अली अकबर खान, और उस्ताद विलायत खान आदि. उन्होंने न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया. उनके कला जीवन और उपलब्धियों को भारत सरकार द्वारा पद्म श्री और पद्म भूषण जैसे सम्मानों से नवाजा गया.

पंडित किशन महाराज का निधन भले ही हो गया हो, लेकिन उनकी संगीत साधना और उनके द्वारा स्थापित मानक आज भी तबला वादकों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं.

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अभिनेता उत्तम कुमार

बांग्ला सिनेमा के ‘महानायक’ और भारतीय फिल्म इतिहास के सबसे प्रतिष्ठित और प्रभावशाली अभिनेताओं में से एक थे उत्तम कुमार. उनका वास्तविक नाम अरुण कुमार चटर्जी था.

उत्तम कुमार का जन्म 3 सितंबर 1926, भवानीपुर, कोलकाता में हुआ था और उनका निधन 24 जुलाई 1980 को हुआ. उन्होंने साउथ सबर्बन स्कूल और गोयनका कॉलेज, कोलकाता से पढ़ाई की थी. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत कलकत्ता पोर्ट ट्रस्ट में क्लर्क से की थी.

उत्तम कुमार ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत वर्ष 1948 में फिल्म ‘दृष्टिदान’ से की थी. बांग्ला फिल्मों में अभिनेत्री सुचित्रा सेन के साथ उनकी जोड़ी के लिए जाना जाता है. इस जोड़ी ने कई सफल फिल्में दीं, जिनमें ‘सप्तपदी’, ‘पौथे होलो देरी’ और ‘हरानो सुर’ शामिल हैं. उत्तम कुमार ने हिंदी फिल्मों में काम किया जिनमें प्रमुख हैं – छोटी सी मुलाक़ात (1967), अमानुष (1975), आनंद आश्रम (1977), किताब (1979), दूरियां (1979).

उत्तम कुमार को वर्ष 1967 में ‘चिरियाखाना’ और ‘एंथोनी फ़िरंगी’ फिल्मों के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला था. उन्हें “महानायक” की उपाधि दी गई, जो आज भी बंगाली सिनेमा में उनके योगदान को दर्शाती है. कोलकाता में उनके नाम पर कोलकाता में उत्तम थिएटर और महानायक उत्तम कुमार मेट्रो स्टेशन है. उनके पोते गौरव कुमार आज बंगाली फिल्मों में अभिनय कर रहे हैं.

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संगीतकार प्यारेलाल

भारतीय सिनेमा के स्वर्णिम युग के एक महान संगीतकार, जिनका नाम लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी के रूप में अमर है. प्यारेलाल रामप्रसाद शर्मा का जन्म 3 सितम्बर 1940 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में हुआ था. बचपन में ही माँ का देहांत और आर्थिक संघर्षों के बीच, उनके पिता पंडित रामप्रसाद शर्मा ने उन्हें वायलिन सीखने के लिए प्रेरित किया. प्यारेलाल ने बचपन से ही संगीत को अपना जीवन बना लिया और घंटों रियाज़ करते थे.

प्यारेलाल ने संगीतकार एंथनी गोंजाल्विस से वायलिन सीखा था. उनके सम्मान में ही फिल्म अमर अकबर एंथनी में एक गाना “माई नेम इज एंथनी गोंजाल्विस” शामिल किया गया था.

प्यारेलाल की मुलाकात संगीतकार लक्ष्मीकांत शांताराम कुडालकर से हुई और जल्द ही उनकी दोस्ती एक कामयाब संगीतकार जोड़ी में बदल गई, जिसे लोग लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के नाम से जानते हैं. यह जोड़ी वर्ष1963- 98 तक हिंदी सिनेमा में सक्रिय रही और उन्होंने 635 से ज़्यादा फिल्मों में संगीत दिया. उन्होंने कई बड़े फिल्म निर्माताओं के साथ काम किया और अपने संगीत से हिंदी सिनेमा को एक नई पहचान दी. उनके कुछ यादगार गानों में ‘अमर अकबर एंथनी’, ‘कर्ज’, ‘राम लखन’, और ‘एक दूजे के लिए’ जैसी फिल्मों के गाने शामिल हैं.

प्यारेलाल शर्मा आज भी संगीत से जुड़े हुए हैं और उन्हें उनके असाधारण योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है.

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अभिनेता गोविन्द नामदेव

गोविन्द नामदेव एक भारतीय अभिनेता हैं जो हिंदी फिल्मों और टेलीविजन में काम करते हैं। वे मुख्य रूप से खलनायक की भूमिकाओं के लिए जाने जाते हैं.

गोविन्द नामदेव का जन्म 3 सितम्बर 1950 को सागर, मध्य प्रदेश में हुआ था. वे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) के स्नातक हैं, और थिएटर से उनका गहरा जुड़ाव रहा है.

गोविन्द नामदेव ने आपने अभिनय कैरियर की शुरुआत वर्ष 1992 में डेविड धवन की फिल्म ‘शोला और शबनम’ में एक भ्रष्ट पुलिस अधिकारी की भूमिका से की थी. जिसमें उन्होंने एक भ्रष्ट पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाई थी.

फ़िल्में: – बैंडिट क्वीन’, ‘विरासत’, ‘सत्या’, ‘सरफरोश’, ‘ओह माई गॉड’ और ‘सिंघम.

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