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व्यक्ति विशेष -613.

समाज सुधारक टी. के. माधवन

टी. के. माधवन  केरल के एक प्रमुख समाज सुधारक, पत्रकार और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे. उनका जन्म 02 सितंबर 1885 को मध्य त्रावनकोर (कार्थिकापल्ली, ज़िला अलापुझा, केरल) में हुआ था और उन्होंने अपना जीवन सामाजिक असमानता को दूर करने और विशेष रूप से अछूतों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने में समर्पित कर दिया था.

माधवन ने वाइकोम सत्याग्रह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. यह सत्याग्रह वर्ष 1924 में त्रावणकोर (वर्तमान केरल) में स्थित वाइकोम महादेव मंदिर के आसपास की सड़कों पर निम्न जाति के लोगों के प्रवेश के अधिकार के लिए चलाया गया था. उस समय इन लोगों को मंदिर के पास से गुजरने की भी अनुमति नहीं थी. माधवन ने इस आंदोलन को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और महात्मा गांधी से मिलकर इस समस्या को उनके सामने रखा.

उन्होंने विभिन्न पत्रिकाओं और अखबारों में लेख लिखकर जातिवाद और अस्पृश्यता के खिलाफ जन जागरूकता फैलाई. उनका मानना था कि समाज में समानता और न्याय के बिना वास्तविक प्रगति संभव नहीं है. वे श्री नारायण गुरु के शिष्य थे और उनके एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर के सिद्धांतों से काफी प्रभावित थे.

टी. के. माधवन ने अपने जीवनकाल में समाज में व्याप्त रूढ़ियों और भेदभाव को चुनौती दी. उनके प्रयासों ने केरल में सामाजिक सुधारों की नींव रखी और जाति-आधारित भेदभाव को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनका निधन 27 अप्रैल1927 को हुआ, लेकिन उनके विचार और संघर्ष आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं.

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दरोगा प्रसाद राय

दरोगा प्रसाद राय बिहार के एक प्रमुख राजनीतिज्ञ और जनता दल के नेता थे. उनका जन्म 2 सितंबर 1922 को हुआ था और उनकी मृत्यु 15 अप्रॅल 1981 को हुई थी.  उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में भी कार्य किया.

दरोगा प्रसाद राय का कार्यकाल विशेष रूप से छोटा था, मात्र फरवरी वर्ष 1970 से जून 1971 तक, लेकिन इस दौरान उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण पहलें कीं. वे ग्रामीण विकास और शिक्षा के क्षेत्र में विशेष रूप से सक्रिय रहे. उनके शासन काल में कई सुधारात्मक नीतियां और योजनाएँ लागू की गईं, जिन्होंने बिहार की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार किया.

उनकी मृत्यु के बाद, उनकी स्मृति में उनके योगदान और प्रयासों को याद किया जाता रहा है. दरोगा प्रसाद राय की विरासत उनके द्वारा किए गए सामाजिक और राजनीतिक कार्यों में निहित है, जिन्होंने बिहार के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

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अभिनेत्री साधना शिवदासानी

साधना शिवदासानी, जिन्हें साधना के नाम से जाना जाता है, भारतीय सिनेमा की एक अभिनेत्री थीं. वर्ष 1960 – 70 के दशक में वे बॉलीवुड की अग्रणी अभिनेत्रियों में से एक थीं और अपनी खूबसूरती, अदाकारी, और फैशन सेंस के लिए जानी जाती थीं. उनके नाम पर “साधना कट” हेयर-स्टाइल भी मशहूर हुआ, जो उनके फैशन आइकन होने का प्रमाण है.

साधना शिवदासानी का जन्म 2 सितंबर 1941 को कराची, ब्रिटिश भारत (अब पाकिस्तान) में हुआ था. साधना के पिता का नाम शेवाराम और माता का नाम लाली देवी था. वर्ष 1947 में भारत के बंटवारे के बाद उनका परिवार कराची छोड़कर मुंबई आ गया था. इस समय साधना की आयु मात्र छ: साल थी. साधना ने फिल्म निर्देशक आर.के. नैयर से शादी की, जिन्होंने उनकी पहली बड़ी फिल्म का निर्देशन किया था.  

साधना ने वर्ष 1958 में ‘अबाना’ नामक सिंधी फिल्म से अपने कैरियर की शुरुआत की. उन्हें वर्ष 1960 में ‘लव इन शिमला’ से बड़ा ब्रेक मिला, जो एक सुपरहिट साबित हुई.

प्रमुख फिल्में: –  मेरे महबूब (1963), वो कौन थी? (1964),मेरा साया (1966), आरजू  (1965), एक फूल दो माली (1969).

साधना ने कई रोमांटिक और रहस्यमय फिल्मों में काम किया और अपने समय की सबसे बहुमुखी अभिनेत्रियों में से एक मानी जाती थीं. लव इन शिमला के दौरान उनकी हेयरस्टाइल को साधना कट के रूप में जाना गया. यह हेयरस्टाइल युवाओं के बीच बहुत लोकप्रिय हो गया और आज भी इसका जिक्र होता है.

साधना को उनकी भावुक अदाकारी और किरदारों में गहराई लाने के लिए सराहा गया. उनकी रहस्यमय भूमिकाओं (जैसे वो कौन थी?) ने उन्हें एक अलग पहचान दी. साधना ने साड़ी पहनने के स्टाइल और हेयरस्टाइल के जरिए महिलाओं के बीच फैशन ट्रेंड बनाए. साधना ने वर्ष 1974 के बाद फिल्मों से दूरी बना ली और एक शांत जीवन जीना पसंद किया.

साधना को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले. वे आज भी अपनी खूबसूरती, अभिनय, और स्टाइल के लिए याद की जाती हैं. भारतीय सिनेमा में उनका योगदान उन्हें सदा अमर बनाए रखेगा. साधना का निधन 25 दिसंबर 2015 को मुंबई में हुआ था. उनका ‘जाना’ हिंदी सिनेमा के लिए एक बड़ी क्षति थी, लेकिन उनकी फिल्में और व्यक्तित्व उन्हें हमेशा जीवित रखेगा.

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अभिनेत्री अल्का कौशल

अल्का कौशल एक भारतीय अभिनेत्री और निर्माता हैं, जो हिंदी फिल्मों और टेलीविजन धारावाहिकों में अपने काम के लिए जानी जाती हैं. उनका जन्म 2 सितंबर 1969 को दिल्ली में हुआ था. वह अक्सर नकारात्मक या सहायक भूमिकाओं में नज़र आती हैं.

 टेलीविजन: – उन्हें “कुमकुम – एक प्यारा सा बंधन” और “क़ुबूल है” जैसे लोकप्रिय धारावाहिकों में उनकी भूमिकाओं के लिए जाना जाता है. उन्होंने “स्वरागिनी” और “ये रिश्ता क्या कहलाता है” जैसे कई अन्य धारावाहिकों में भी काम किया है.

फिल्में: – उन्होंने कई बॉलीवुड फिल्मों में सहायक भूमिकाएं निभाई हैं, जिनमें “बजरंगी भाईजान” (करीना कपूर की मां के रूप में), “क्वीन” (कंगना रनौत की मां के रूप में), “वीरे दी वेडिंग”, “बधाई हो”, और “धर्म संकट में” जैसी फिल्में शामिल हैं.

उनके पिता विश्व मोहन बडोला एक जाने-माने स्टेज कलाकार थे. उनके भाई वरुण बडोला भी एक अभिनेता हैं. उन्होंने निर्माता और निर्देशक रवि जी. कौशल से शादी की है और दोनों ने मिलकर “मंगलम आर्ट्स” नामक एक प्रोडक्शन हाउस भी शुरू किया है.

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अभिनेता पवन कल्याण

पवन कल्याण एक प्रमुख भारतीय अभिनेता होने के साथ-साथ एक प्रभावशाली राजनेता भी हैं. वह मुख्य रूप से तेलुगु सिनेमा में अपने काम के लिए जाने जाते हैं.

पवन कल्याण का जन्म 2 सितंबर 1971 को कोनिडेला कल्याण बाबू के रूप में आंध्र प्रदेश के बापटला में हुआ था. वह प्रसिद्ध अभिनेता चिरंजीवी के छोटे भाई हैं. उन्होंने वर्ष 1996 में फिल्म “अक्कड़ अम्माई इक्कड़ा अब्बायी” से अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत की.

वर्ष 1998 में आई फिल्म “थोली प्रेमा” उनके कैरियर की एक बड़ी सफलता थी, जिसने उन्हें एक स्थापित अभिनेता के रूप में पहचान दिलाई. इसके अलावा, उनकी कुछ सबसे लोकप्रिय फिल्मों में “कुशी,” “जल्सा,” “गब्बर सिंह,” और “वकील साब” शामिल हैं.

पवन कल्याण ने वर्ष 2014 में अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी, जन सेना पार्टी की स्थापना की. जून 2024 में, उन्होंने आंध्र प्रदेश के 11वें उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. उनकी पार्टी ने राज्य विधानसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन करते हुए सभी 21 सीटों पर जीत हासिल की थी.

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साहित्यकार अमरनाथ झा

अमरनाथ झा, जिनका जन्म 25 फ़रवरी, 1897 को बिहार के मधुबनी ज़िले में हुआ था और जिनका निधन 2 सितंबर, 1955 को हुआ, भारत के प्रमुख विद्वान, साहित्यकार, और शिक्षाविद् थे. वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे, और हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति भी थे. अमरनाथ झा को हिन्दी भाषा के प्रति उनके योगदान और इसे राजभाषा बनाने के उनके प्रयासों के लिए जाना जाता है​​​​.

उन्होंने अपनी शिक्षा इलाहाबाद में पूरी की और अपने अकादमिक जीवन में कई उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल कीं. उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया, जिनमें इलाहाबाद विश्वविद्यालय के उपकुलपति और उत्तर प्रदेश और बिहार के लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष शामिल हैं​​​​.

उनकी रचनाओं में ‘संस्कृत गद्य रत्नाकर’, ‘दशकुमारचरित की संस्कृत टीका’, और ‘हिंदी साहित्य संग्रह’ जैसी कृतियाँ शामिल हैं, जो उनकी विद्वता और साहित्यिक प्रतिभा को दर्शाती हैं​​. उन्हें उनके अकादमिक योगदान के लिए इलाहाबाद और आगरा विश्वविद्यालयों से एल. एल. डी. और पटना विश्वविद्यालय से डी. लिट् की उपाधि प्रदान की गई थी. वर्ष 1954 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था.

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