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व्यक्ति विशेष -613.

भक्ति वेदान्त स्वामी प्रभुपाद

भक्ति वेदान्त स्वामी प्रभुपाद एक भारतीय आध्यात्मिक नेता और लेखक थे, जिन्होंने इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शसनेस (इस्कॉन)  की स्थापना की. इस्कॉन को हरे कृष्ण आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है. उन्होंने गौड़ीय वैष्णव परंपरा को पश्चिमी दुनिया में फैलाया. स्वामी प्रभुपाद का जन्म  01 सितंबर, 1896 को कलकत्ता (अब कोलकाता), भारत में हुआ था. उनके बचपन का नाम अभय चरण डे था. उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज में पढ़ाई की। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर, उन्होंने अपनी डिग्री लेने से इनकार कर दिया.

वर्ष 1922 में, वे अपने गुरु, भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर से मिले। उनके गुरु ने उन्हें कृष्ण के संदेश को अंग्रेजी में फैलाने के लिए कहा। प्रभुपाद ने इस कार्य को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया. वर्ष 1959 में, उन्होंने संन्यास लिया और वृंदावन चले गए, जहाँ उन्होंने प्राचीन वैदिक ग्रंथों, विशेष रूप से श्रीमद्भागवतम् (Srimad Bhagavatam) का अनुवाद और उन पर टीका लिखना शुरू किया.

वर्ष 1965 में, 69 साल की उम्र में, वे अपने गुरु के मिशन को पूरा करने के लिए एक माल वाहक जहाज से अमेरिका गए. वे लगभग बिना किसी पैसे के न्यूयॉर्क पहुंचे. वर्ष 1966 में, उन्होंने न्यूयॉर्क में इस्कॉन की स्थापना की. उन्होंने वैदिक संस्कृति के बारे में कक्षाएं पढ़ाना शुरू किया और “हरे कृष्ण महा-मंत्र” का जाप करना सिखाया. यह आंदोलन वर्ष 1960 के दशक की जवाबी संस्कृति के बीच युवाओं में लोकप्रिय हुआ.

अपने जीवन के अंतिम 12 वर्षों में, प्रभुपाद ने दुनिया भर में कई केंद्रों, मंदिरों और आश्रमों की स्थापना की. उन्होंने 50 से अधिक किताबें लिखीं, जिनमें भगवद् गीता ‘ऐज़ इट इज़’ (Bhagavad Gita As It Is) और श्रीमद्भागवतम् (Srimad Bhagavatam) का अनुवाद और उन पर टीका शामिल है.

स्वामी प्रभुपाद ने प्राचीन भारतीय ग्रंथों को अंग्रेजी में अनुवाद और उन पर टीका करके उन्हें पश्चिमी दुनिया के लिए सुलभ बनाया. उन्होंने यह शिक्षा दी कि भक्ति योग (Bhakti Yoga), या भगवान के प्रति भक्तिपूर्ण सेवा, आध्यात्मिक जागरूकता और परम आनंद प्राप्त करने का सबसे महत्वपूर्ण साधन है. उनका कार्य पश्चिमी संगीत, फिल्म और कला पर भी पड़ा, जिससे कृष्ण चेतना का व्यापक प्रसार हुआ.

भक्ति वेदान्त स्वामी प्रभुपाद का 14 नवंबर, 1977 को वृंदावन में निधन हो गया, लेकिन उनका मिशन इस्कॉन के माध्यम से आज भी जारी है, जो दुनिया भर में करोड़ों लोगों को आकर्षित करता है.

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अभिनेता के. एन. सिंह

के. एन. सिंह एक भारतीय अभिनेता थे, जो मुख्य रूप से हिंदी सिनेमा में खलनायक और चरित्र भूमिकाओं के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने वर्ष 1936 – 80 के दशक के अंत तक लगभग 200 से अधिक फिल्मों में काम किया.

के. एन. सिंह का पूरा नाम कृष्ण निरंजन सिंह है और उनका जन्म 1 सितंबर 1908 को देहरादून में हुआ था. उनके पिता चंडी प्रसाद सिंह एक प्रसिद्ध क्रिमिनल वकील थे. के. एन. सिंह ने फिल्मों में आने से पहले कानून की पढ़ाई की थी. वह एक बेहतरीन एथलीट भी थे और वर्ष 1936 के बर्लिन ओलंपिक के लिए भी चुने गए थे, लेकिन पारिवारिक कारणों से उन्हें यह मौका छोड़ना पड़ा.

के. एन. सिंह ने खलनायक की भूमिकाओं को एक नया आयाम दिया. वे पारंपरिक लाउड विलेन की बजाय, अपनी शांत और शालीन शैली, प्रभावशाली आंखों और व्यंग्यात्मक संवादों के लिए जाने जाते थे.

प्रमुख फिल्में: – आवारा (1951): जगगा,  सीआईडी (1956): पुलिस अधीक्षक, हावड़ा ब्रिज (1958): प्यारेलाल, हाथी मेरे साथी (1971): मालिक, दोस्ताना (1980): एडवोकेट.

के. एन. सिंह का 31 जनवरी 2000 को 91 वर्ष की आयु में हुआ. उनके अभिनय और खलनायकी की शैली ने भारतीय सिनेमा पर एक गहरी छाप छोड़ी.

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साहित्यकार राही मासूम रज़ा

राही मासूम रज़ा एक हिंदी और उर्दू साहित्यकार थे, जिन्होंने साहित्य के विभिन्न आयामों में अनुपम योगदान दिया. उनका जन्म 1 सितंबर, 1927 को गंगौली गाँव, गाजीपुर जिला, उत्तर प्रदेश में हुआ था और उनका निधन 15 मार्च, 1992 को हुआ था. राही ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाजीपुर में पूरी की और पोलियो के कारण कुछ समय के लिए उनकी पढ़ाई बाधित हुई. बाद में उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से एम.ए. की डिग्री प्राप्त की और पीएच.डी. की. उन्होंने अलीगढ़ में उर्दू विभाग में अध्यापन भी किया.

राही मासूम रज़ा ने हिंदी सिनेमा और दूरदर्शन के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने ‘महाभारत’ धारावाहिक की पटकथा और संवाद लिखे, जो बेहद लोकप्रिय हुए और उन्हें बड़ी पहचान दिलाई. उन्हें ‘मैं तुलसी तेरे आँगन की’ फिल्म के लिए फिल्म फेयर सर्वश्रेष्ठ संवाद पुरस्कार भी मिला. उनके लेखन की विविधता में उपन्यास, कविता, निबंध और जीवनी शामिल हैं. उनके प्रसिद्ध उपन्यासों में ‘आधा गाँव’, ‘टोपी शुक्ला’, और ‘नीम का पेड़’ शामिल हैं.

राही मासूम रज़ा ने अपने लेखन में साम्यवादी दृष्टिकोण और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रीय विचारधारारे जताया. उन्हें भारतीय साहित्य और फिल्म जगत में उनके योगदान के लिए ‘पद्म श्री’ और ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया गया था.

उनकी रचनाओं में उन्होंने सामाजिक विषयों को उठाया और विभिन्न सामाजिक वर्गों के जीवन को चित्रित किया, जो आज भी अत्यंत प्रासंगिक हैं. उनके साहित्यिक कार्य ने उन्हें हिंदी और उर्दू साहित्य में एक विशिष्ट स्थान दिया है, और उनकी रचनाएँ विभिन्न शैक्षणिक सिलेबस में शामिल की गई हैं.

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पटकथा लेखक, नाट्य निर्देशक, कवि और अभिनेता हबीब तनवीर

हबीब तनवीर एक प्रमुख भारतीय पटकथा लेखक, नाट्य निर्देशक, कवि और अभिनेता थे. उन्हें भारतीय रंगमंच में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है. उन्होंने थिएटर के माध्यम से सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया और ग्रामीण और पारंपरिक भारतीय थिएटर को आधुनिक थिएटर के साथ जोड़ा. हबीब तनवीर का जन्म 1 सितंबर 1923 को रायपुर, छत्तीसगढ़ में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा रायपुर और नागपुर में प्राप्त की. बाद में, उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय से अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त की.

हबीब तनवीर ने वर्ष 1959 में “नया थिएटर” की स्थापना की. इस समूह ने छत्तीसगढ़ी लोक कलाकारों और पारंपरिक कला रूपों का उपयोग करके नए और सशक्त नाटकों का निर्माण किया. उनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में से एक “चरणदास चोर” (1975) है, जिसने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की और कई पुरस्कार जीते. उनके नाटकों में सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों का प्रमुखता से चित्रण होता था. हबीब तनवीर एक प्रतिष्ठित कवि भी थे. उनकी कविताएँ गहरे सामाजिक और सांस्कृतिक विषयों पर आधारित होती थीं. उन्होंने उर्दू और हिंदी में कई कविताएँ लिखीं और अपने नाटकों के माध्यम से उनकी कविताओं को जीवंत किया.

हबीब तनवीर ने कुछ हिंदी फिल्मों में भी अभिनय किया और पटकथा लेखन में भी हाथ आजमाया. उनकी अभिनय कला को भी सराहा गया. हबीब तनवीर को उनके योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले, जिनमें “पद्म श्री” (1983) और “पद्म भूषण” (2002) शामिल हैं. उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और कालिदास सम्मान भी प्राप्त हुआ.

हबीब तनवीर का निधन 8 जून 2009 को हुआ. उनकी विरासत आज भी जीवित है और उनके नाटकों और कविताओं के माध्यम से लोग प्रेरित होते रहते हैं. हबीब तनवीर ने भारतीय रंगमंच और साहित्य को एक नई दिशा दी और उनकी कृतियाँ आज भी प्रासंगिक हैं.

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कवि दुष्यंत कुमार

कवि दुष्यंत कुमार एक हिन्दी कवि थे जो भारतीय साहित्य के क्षेत्र में अपने उत्कृष्ट काव्य से पहचान बना चुके हैं. उनका जन्म 1 सितंबर 1933 को हुआ था और उनका नाम स्वर्गीय रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के नाम से जुड़ा है, जो एक अग्रणी हिन्दी कवि थे. दुष्यंत कुमार को ‘दुष्यंत’ के नाम से भी जाना जाता है.

उन्होंने अपनी कविताओं में समाज, राजनीति, प्रेम, और विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर अपने दृष्टिकोण को अद्वितीय रूप से प्रस्तुत किया. उनकी कविताएं आम जनता के बीच में बहुत प्रिय हुईं और उन्हें “जननायक कवि” के रूप में जाना जाता है.

प्रमुख कृतियाँ: “हम तो मित जाएंगे”,”सरहद पर एक आशीक़”,”आत्मघाती”,”काले मेघा पानी दे”,”कानपूर की विधवा”,”अयोध्या तथा दूसरे काव्य”,”पर्वतपंक्ति”.

कवि दुष्यंत कुमार का निधन 30 दिसंबर 1975 को हुआ था. दुष्यंत कुमार का योगदान हिन्दी साहित्य में अद्वितीय है और उनकी कविताएं आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई हैं. उनकी रचनाएं उत्तेजना भरी हैं और समाज में जागरूकता पैदा करने का कार्य करती हैं.

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अभिनेत्री पद्मा लक्ष्मी

पद्मा लक्ष्मी एक भारतीय-अमेरिकी लेखिका, अभिनेत्री, मॉडल और टेलीविजन होस्ट हैं. उनका जन्म 1 सितंबर 1970 को चेन्नई, तमिलनाडु के एक तमिल परिवार  में हुआ था. जब वह एक साल की थीं, तब उनके माता-पिता का तलाक हो गया और उनका बचपन न्यूयॉर्क में बीता.

पद्मा लक्ष्मी ने 21 साल की उम्र में मॉडलिंग कैरियर शुरू किया. वह अरमानी, वर्साचे और राल्फ लॉरेन जैसे बड़े ब्रांडों के लिए मॉडलिंग करने वाली पहली भारतीय मॉडलों में से थीं. वो कई प्रसिद्ध पत्रिकाओं के कवर पर भी दिखाई दीं, जिनमें कॉस्मोपॉलिटन, मैरी क्लेयर और हार्पर्स बाज़ार शामिल हैं.

पद्मा लक्ष्मी ने वर्ष 2006- 2023 तक यूएस कुकिंग प्रतियोगिता शो “टॉप शेफ” की होस्ट रहीं। इस शो ने उन्हें काफी प्रसिद्धि दिलाई और उन्हें कई एमी पुरस्कारों के लिए नामांकित किया गया. वो फूड और ट्रैवल सीरीज “टेस्ट द नेशन” की क्रिएटर, होस्ट और कार्यकारी निर्माता हैं, जो वर्ष 2020 में शुरू हुई थी.

पद्मा लक्ष्मी ने कई किताबें लिखी हैं, जिनमें “इज़ी एक्स्टिक: अ मॉडल्स लो-फैट रेसिपीज़ फ्रॉम अराउंड द वर्ल्ड” (Easy Exotic: A Model’s Low-Fat Recipes from Around the World) और संस्मरण “लव, लॉस एंड व्हाट वी एट” (Love, Loss, and What We Ate) शामिल हैं.

पद्मा लक्ष्मी ने वर्ष 2004 में प्रसिद्ध उपन्यासकार सलमान रुश्दी से शादी की थी, लेकिन वर्ष 2007 में उनका तलाक हो गया.

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नृत्यांगना यामिनी रेड्डी

यामिनी रेड्डी एक भारतीय शास्त्रीय नृत्यांगना हैं, जो कुचिपुड़ी नृत्य शैली के लिए जानी जाती हैं. वह प्रसिद्ध कुचिपुड़ी नर्तक और पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित डॉ. राजा रेड्डी और राधा रेड्डी की बेटी और शिष्या हैं.

यामिनी रेड्डी का जन्म 1  सितम्बर 1982 को नई दिल्ली में कुचिपुड़ी नर्तक और ‘पद्म भूषण’ विजेता डॉ. राजा रेड्डी और राधा रेड्डी के घर हुआ था. उन्होंने अपने माता-पिता से नृत्य का प्रशिक्षण लिया और जब वह केवल तीन साल की थीं, तब उन्होंने नई दिल्ली में अपना पहला प्रदर्शन दिया.

यामिनी ने भारत और विदेशों में व्यापक रूप से प्रदर्शन किया है, जिसमें यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश शामिल हैं. डबलिन के मेयर ने उनके प्रभावशाली प्रदर्शन से प्रभावित होकर उन्हें “गोल्डन की” से सम्मानित किया था.

यामिनी को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले हैं, जिनमें देवदासी राष्ट्रीय पुरस्कार और बिस्मिल्ला खान युवा पुरस्कार शामिल हैं. नृत्य के अलावा, यामिनी रेड्डी हैदराबाद में अपने परिवार के नाट्यतरंगिनी नृत्य विद्यालय को चलाती हैं. वह कुचिपुड़ी कला को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने का काम कर रही हैं. यामिनी रेड्डी ने कुचिपुड़ी की पारंपरिक शैली को बनाए रखते हुए उसमें अपनी अनूठी पहचान बनाई है.

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राजनीतिज्ञ पी. ए. संगमा

पी. ए. संगमा, जिनका पूरा नाम पुर्णो अगितोक संगमा है, भारतीय राजनीति के एक अनुभवी नेता थे. वे मेघालय से थे और भारतीय राजनीति में उत्तर पूर्वी राज्यों के प्रतिनिधित्व के लिए महत्वपूर्ण थे. पी. ए. संगमा का जन्म 01 सितम्बर 1947 को हुआ था. संगमा ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत एक वकील के रूप में की थी और बाद में वे मेघालय के राजनीतिक दृश्य में सक्रिय हो गए. उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया, जिसमें मेघालय के मुख्यमंत्री का पद भी शामिल है.

संगमा केंद्रीय सरकार में भी कई महत्वपूर्ण मंत्री पदों पर रहे और विशेष रूप से उन्हें उनके लोक सभा अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल के लिए जाना जाता है. उनके अध्यक्ष कार्यकाल में, उन्होंने संसदीय प्रक्रियाओं और नियमों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

पी. ए. संगमा भारतीय राजनीतिक जीवन में एक विशिष्ट और प्रभावशाली व्यक्तित्व थे, जिनके योगदान को उनके निधन के बाद भी याद किया जाता है. उनका निधन 4 मार्च 2016 को हुआ था. उन्होंने भारतीय राजनीति में उत्तर पूर्वी राज्यों की आवाज को मजबूत किया और राष्ट्रीय राजनीति में उनके प्रभाव को सराहा जाता है.

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सिक्खों के तीसरे गुरु गुरु अमरदास

सिख धर्म के तीसरे गुरु, गुरु अमरदास का जन्म 5 अप्रैल 1479 को हुआ था और उन्होंने वर्ष 1552 – 74 तक गुरु के रूप में सेवा की. उन्हें सिख धर्म की परंपराओं और रीतियों में कई महत्वपूर्ण बदलावों के लिए जाना जाता है. गुरु अमरदास जी ने सिख धर्म में एकता और समाजिक न्याय के संदेश को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

उन्होंने लंगर (सामूहिक भोजन) की प्रथा को मजबूत किया, जिसमें सभी सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि के लोग समान रूप से भोजन करते हैं, जिससे समाज में बराबरी और एकता को बढ़ावा मिलता है. इस प्रथा ने समाजिक विभाजन को कम करने और समानता को बढ़ावा देने में मदद की.

गुरु अमरदास जी ने अनुष्ठानिक पवित्रता और बाहरी रूप से अधिक आंतरिक भक्ति और नैतिकता पर जोर दिया. उन्होंने सिख धर्म की शिक्षाओं को व्यवस्थित करने और उन्हें व्यापक बनाने में भी योगदान दिया. गुरु अमरदास जी ने सिख धर्म के मूल्यों और सिद्धांतों को फैलाने के लिए वारिस (धार्मिक उत्तराधिकारी) और मंजी (धार्मिक केंद्र) की व्यवस्था की स्थापना की.

गुरु अमरदास जी के कार्यकाल में, उन्होंने विभिन्न धार्मिक यात्राओं (तीर्थ) के विरुद्ध अपनी आवाज़ उठाई, जोर देकर कहा कि सच्चा तीर्थ गुरु के प्रति समर्पण और आत्मिक पवित्रता में है. उन्होंने गोइंदवाल साहिब में एक विशेष कुआँ, बाउली साहिब का निर्माण करवाया, जो आज भी सिखों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है. गुरु अमरदास का निधन 01 सितंबर 1574 को गोइंदवाल साहिब, पंजाब में हुआ था. उनके निधन के बाद, उनके पोते गुरु राम दास जी सिख धर्म के चौथे गुरु बने.

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मुनि तरुण सागर

मुनि तरुण सागर एक प्रसिद्ध भारतीय दिगंबर जैन संत थे, जिन्होंने अपने स्पष्ट और निर्भीक प्रवचनों के लिए ख्याति प्राप्त की. उनका जन्म 26 जून 1967 को मध्य प्रदेश के दमोह जिले के गुहजी गाँव में हुआ था. उनका असली नाम पवन कुमार जैन था.20 साल की उम्र में उन्होंने जैन मुनि दीक्षा ग्रहण की और मुनि तरुण सागर के नाम से जाने जाने लगे.

 मुनि तरुण सागर अपने “कड़वे प्रवचन” के लिए प्रसिद्ध थे, जिनमें वे समाज के विभिन्न मुद्दों पर बेबाकी से बात करते थे. उनके प्रवचनों का मुख्य उद्देश्य समाज में व्याप्त बुराइयों को उजागर करना और लोगों को नैतिकता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना था. उन्होंने कई पुस्तकों की रचना की, जिनमें उनके प्रवचनों का संकलन होता था. उनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तक “कड़वे प्रवचन” है, जो समाज के विभिन्न पहलुओं पर उनके विचारों को प्रस्तुत करती है.

मुनि तरुण सागर ने अपने प्रवचनों में सामाजिक मुद्दों जैसे भ्रष्टाचार, अनैतिकता, धार्मिक असहिष्णुता, और पर्यावरण संरक्षण पर जोर दिया. उनके विचारों ने समाज के विभिन्न वर्गों में व्यापक चर्चा और विमर्श को प्रेरित किया. मुनि तरुण सागर ने कई बार राजनीति और धर्म के बीच संतुलन पर अपने विचार प्रस्तुत किए. उन्होंने कई राजनेताओं और सार्वजनिक व्यक्तियों से मुलाकात की और अपने विचार साझा किए.

मुनि तरुण सागर ने दिगंबर जैन परंपरा का पालन किया और नग्नता के सिद्धांत का पालन करते हुए तपस्या की. उनका जीवन सरलता और तपस्या का प्रतीक था. उन्होंने विभिन्न सार्वजनिक मंचों पर अपने प्रवचन दिए और उनके विचारों को व्यापक रूप से सराहा गया.

मुनि तरुण सागर का निधन 1 सितंबर 2018 को हुआ. उनका जीवन और उनके द्वारा दिए गए प्रवचन आज भी समाज में नैतिकता और धर्म के प्रति जागरूकता फैलाने का कार्य कर रहे हैं. मुनि तरुण सागर का जीवन और उनका योगदान न केवल जैन समुदाय के लिए बल्कि सम्पूर्ण भारतीय समाज के लिए प्रेरणास्पद है. उनके विचार और शिक्षाएं आज भी लोगों को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं.

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