
मौसम की मार किसानों में हाहाकार…?
भारत एक कृषि प्रधान देश है और किसानों को देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है. लेकिन हर वर्ष, देश के विभिन्न हिस्सों से ऐसी खबरें आती हैं जो इस रीढ़ को झकझोर कर रख देती हैं – मौसम की मार से किसानों में हाहाकार. यह एक ऐसी त्रासदी है जो न केवल किसानों को आर्थिक रूप से तबाह करती है, बल्कि उनके मनोबल को भी बुरी तरह से तोड़ देती है, जिससे कई बार अत्यंत निराशाजनक स्थितियां पैदा हो जाती हैं.
मौसम की अनिश्चितता भारतीय कृषि की एक चिरस्थायी समस्या रही है. कभी अत्यधिक वर्षा और बाढ़, तो कभी लंबे समय तक सूखा, कभी ओलावृष्टि तो कभी बेमौसम बारिश – ये सभी किसानों की मेहनत पर पानी फेर देते हैं. जलवायु परिवर्तन ने इस समस्या को और भी जटिल बना दिया है. अब मौसम के पैटर्न अप्रत्याशित हो गए हैं, जिससे किसानों के लिए अपनी फसलों की योजना बनाना और उनकी सुरक्षा करना पहले से कहीं अधिक कठिन हो गया है.
अत्यधिक वर्षा और बाढ़ किसानों के लिए सबसे विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं में से एक है. खड़ी फसलें पानी में डूब जाती हैं, मिट्टी का कटाव होता है और खेतों में लंबे समय तक जल-भराव रहने से फसलें सड़ जाती हैं. कटाई के लिए तैयार फसलें भी बर्बाद हो जाती हैं, जिससे किसानों को भारी नुकसान होता है. बिहार और असम जैसे पूर्वी राज्यों में हर साल बाढ़ से किसानों को भारी क्षति होती है.
इसके विपरीत, लंबे समय तक सूखा पड़ने से फसलें सूख जाती हैं. सिंचाई की सुविधाओं की कमी वाले क्षेत्रों में किसान पूरी तरह से वर्षा पर निर्भर रहते हैं. मानसून की विफलता या कम वर्षा के कारण किसानों को अपनी फसलें बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है और कई बार उन्हें पूरी फसल गंवानी पड़ती है. महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ जैसे क्षेत्रों में सूखे की समस्या अक्सर किसानों के लिए जानलेवा साबित होती है.
ओलावृष्टि और बेमौसम बारिश भी किसानों के लिए कहर बनकर टूटती है. ओलों की मार से फल, सब्जियां और अनाज की फसलें बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो जाती हैं. फूल आने की अवस्था में ओलावृष्टि होने से पूरी फसल बर्बाद हो सकती है. इसी तरह, कटाई के समय होने वाली बेमौसम बारिश से अनाज की गुणवत्ता खराब हो जाती है और उन्हें मंडी में उचित दाम नहीं मिल पाता.
मौसम की मार का किसानों पर बहुआयामी प्रभाव पड़ता है. फसल की बर्बादी से किसानों को भारी आर्थिक नुकसान होता है. उन्होंने बीज, खाद, कीटनाशक और श्रम पर जो पैसा लगाया होता है, वह डूब जाता है. साथ ही, फसल खराब होने के कारण किसान अक्सर अपना कर्ज चुकाने में असमर्थ हो जाते हैं. साहूकारों और बैंकों का बढ़ता हुआ कर्ज उन्हें और भी निराश करता है. किसानों को न केवल अपनी आजीविका का नुकसान होता है, बल्कि उनके परिवारों के लिए खाद्य सुरक्षा भी खतरे में पड़ जाती है.
लगातार फसल की बर्बादी और आर्थिक तंगी के कारण किसान गंभीर मानसिक तनाव और अवसाद का शिकार हो जाते हैं. कुछ मामलों में, यह निराशा उन्हें आत्महत्या जैसे कदम उठाने के लिए भी मजबूर कर देती है. किसानों की आर्थिक बदहाली का असर ग्रामीण अर्थव्यवस्था और सामाजिक ताने-बाने पर भी पड़ता है.
सरकार किसानों को मौसम की मार से बचाने के लिए कई प्रयास करती है. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसका उद्देश्य प्राकृतिक आपदाओं, कीटों और बीमारियों के कारण फसल नुकसान होने पर किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है. हालांकि, इस योजना की पहुंच और कार्यान्वयन में कई चुनौतियां हैं. जागरूकता की कमी, जटिल प्रक्रियाएं और दावों के निपटान में देरी कुछ ऐसी समस्याएं हैं जिनका समाधान करना आवश्यक है. इसके अलावा, सिंचाई सुविधाओं का विस्तार, सूखा प्रतिरोधी फसलों का विकास, मौसम पूर्वानुमान प्रणाली को मजबूत करना और किसानों को कृषि संबंधी सही जानकारी प्रदान करना भी महत्वपूर्ण कदम हैं. जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए दीर्घकालिक रणनीतियों पर भी ध्यान देना होगा.
मौसम की मार से किसानों को बचाने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है. किसानों को आसानी से बीमा उपलब्ध कराना और दावों का समय पर निपटान सुनिश्चित करना. वर्षा पर निर्भरता कम करने के लिए सिंचाई के आधुनिक तरीकों को बढ़ावा देना. सूखा प्रतिरोधी और कम पानी में उगने वाली फसलों की खेती को प्रोत्साहित करना. सटीक और समय पर मौसम की जानकारी किसानों तक पहुंचाना. आपदा की स्थिति में किसानों को उचित मुआवजा और राहत प्रदान करना. किसानों को मौसम के जोखिमों और उनसे बचाव के तरीकों के बारे में शिक्षित करना.
मौसम की मार किसानों के लिए एक गंभीर चुनौती बनी हुई है. इस चुनौती का सामना करने और किसानों को आर्थिक संकट से बचाने के लिए सरकार, कृषि वैज्ञानिक, और स्वयं किसानों को मिलकर काम करना होगा. तभी हम “मौसम की मार किसानों में हाहाकार” की दुखद खबरों को कम कर पाएंगे और कृषि क्षेत्र को अधिक सुरक्षित और टिकाऊ बना पाएंगे.
संजय कुमार सिंह (पैनलिष्ट)
ज्ञानसागरटाइम्स.