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व्यक्ति विशेष – 546.

अन्तिम वाइसराय लॉर्ड माउंटबेटन

लॉर्ड माउंटबेटन का पूरा नाम लुइस फ्रांसिस अल्बर्ट विक्टर निकोलस माउंटबेटन था. उनका जन्म 25 जून 1900 को हुआ था और वे ब्रिटिश नौसेना के एक उच्च अधिकारी थे. माउंटबेटन ब्रिटिश भारत के अंतिम वाइसराय और स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर-जनरल थे. उन्होंने 15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता के दौरान ब्रिटिश शासन को समाप्त करने और भारत तथा पाकिस्तान के विभाजन की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

लॉर्ड माउंटबेटन का जीवनकाल वर्ष 1900 -79 तक रहा और उन्हें ब्रिटेन में भी एक महत्वपूर्ण सैन्य और राजनीतिक व्यक्तित्व के रूप में जाना जाता है. उनके कार्यकाल के दौरान भारत के विभाजन और स्वतंत्रता की प्रक्रिया में उनके द्वारा लिए गए निर्णयों का आज भी गहन अध्ययन और चर्चा होती है.

27 अगस्त 1979 को आयरलैंड गणराज्य में एक बम विस्फोट के कारण माउंटबेटन की हत्या कर दी गई थी. यह बम विस्फोट आयरिश रिपब्लिकन आर्मी (IRA) द्वारा किया गया था.

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स्वतंत्रता सेनानी सुचेता कृपलानी

सुचेता कृपलानी एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थीं. उनका जन्म 25 जून 1908 को हुआ था. वह भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की प्रमुख आवाज़ों में से एक थीं और महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाए गए कई आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया.

सुचेता कृपलानी का राजनीतिक जीवन भी बहुत महत्वपूर्ण था. स्वतंत्रता के बाद, उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य के रूप में कार्य किया और बाद में वर्ष 1963 – 67 तक उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं. वह भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं.

उनका योगदान सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने स्वतंत्रता के बाद के भारत के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. सुचेता कृपलानी का निधन 1 दिसंबर 1974 को हुआ. उनकी विरासत आज भी भारतीय राजनीति और समाज में प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है.

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पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह

विश्वनाथ प्रताप सिंह जिन्हें आमतौर पर वी. पी. सिंह के नाम से जाना जाता है, भारत के आठवें प्रधानमंत्री थे. उनका जन्म 25 जून 1931 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था. वी. पी. सिंह भारतीय राजनीति के एक महत्वपूर्ण नेता थे और उनके कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण घटनाएँ घटीं.

वी. पी. सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा इलाहाबाद और फिरोज़ाबाद में प्राप्त की और बाद में पॉलिटिक्स में कदम रखा. उन्होंने विभिन्न राजनीतिक पदों पर कार्य किया, जिनमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और भारत के रक्षा मंत्री शामिल हैं. वह राजीव गांधी सरकार में वित्त मंत्री भी रहे.

वर्ष 1989 में वी. पी. सिंह ने कांग्रेस पार्टी से अलग होकर जन मोर्चा का गठन किया, जो बाद में जनता दल में परिवर्तित हुआ. जनता दल ने वर्ष 1989 के आम चुनावों में जीत हासिल की और वी. पी. सिंह भारत के प्रधानमंत्री बने. उनके कार्यकाल में उन्होंने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया, जिससे अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई. यह निर्णय भारतीय राजनीति और समाज में बहुत प्रभावशाली और विवादास्पद साबित हुआ.

वी. पी. सिंह का प्रधानमंत्री पद का कार्यकाल वर्ष 1989 – 90 तक रहा. उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष किया और बोफोर्स घोटाले को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वी. पी. सिंह का निधन 27 नवंबर 2008 को हुआ. उनकी राजनीतिक विरासत आज भी भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण मानी जाती है.

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संगीत निर्देशक मदन मोहन

मदन मोहन एक भारतीय संगीत निर्देशक थे, जिन्हें हिंदी सिनेमा में उनके योगदान के लिए विशेष रूप से जाना जाता है. उनकी संगीत रचनाएँ आज भी भारतीय फिल्म संगीत में उच्च स्थान रखती हैं और वे अपनी उत्कृष्ट संगीत प्रतिभा के लिए मशहूर हैं.

मदन मोहन का जन्म 25 जून 1924 को बगदाद, इराक में हुआ था. उनका पूरा नाम मदन मोहन कोहली था. उनके पिता राय बहादुर चुन्नीलाल कोहली भारत सरकार के लिए काम करते थे और बगदाद में तैनात थे. मदन मोहन का परिवार बाद में भारत लौट आया और उन्होंने अपनी शिक्षा मुंबई में पूरी की.

मदन मोहन ने भारतीय फिल्म उद्योग में संगीत निर्देशक के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1950 के दशक में की. उनके संगीत में भारतीय शास्त्रीय संगीत और गजल का विशेष प्रभाव देखा जा सकता है.

फिल्में और गीत: –

“भाई भाई” (1956): – इस फिल्म में “मैंने चांद और सितारों की तमन्ना की थी” जैसे गीत शामिल हैं.

“अनपढ़” (1962): – इसमें “आप की नज़रों ने समझा” जैसे प्रसिद्ध गीत हैं.

“वो कौन थी?” (1964): – इसमें “लग जा गले” और “नैना बरसे” जैसे अमर गीत शामिल हैं.

“मेरा साया” (1966): – “नैनों में बदरा छाए” और “झुमका गिरा रे” जैसे गीत इस फिल्म का हिस्सा हैं.

“वो कौन थी?” (1964): – इस फिल्म का गीत “लग जा गले” और “नैना बरसे” आज भी बहुत लोकप्रिय हैं.

मदन मोहन को गजल संगीत का बादशाह माना जाता है. उन्होंने कई गजलें संगीतबद्ध कीं, जिन्हें लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी जैसे गायकों ने गाया। उनकी गजलों में शायराना अंदाज और गहराई की झलक मिलती है.

मदन मोहन ने लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी, तलत महमूद, और मन्ना डे जैसे प्रसिद्ध गायकों के साथ काम किया. लता मंगेशकर के साथ उनकी जोड़ी विशेष रूप से सफल रही. मदन मोहन का व्यक्तिगत जीवन साधारण और संजीदा था. उनकी पत्नी का नाम शीला कोहली था, और उनके दो बेटे और एक बेटी थी. उनका परिवार उनके संगीत के प्रति उनके समर्पण को समझता और समर्थन करता था. मदन मोहन का निधन 14 जुलाई 1975 को हुआ. उनके निधन से भारतीय फिल्म संगीत जगत को एक अपूरणीय क्षति हुई. उनकी संगीत रचनाएँ आज भी जीवित हैं और उनके प्रशंसकों द्वारा गाई और सुनी जाती हैं.

मदन मोहन का संगीत भारतीय फिल्म संगीत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. उनकी प्रतिभा और संगीत की गहराई ने उन्हें एक प्रतिष्ठित स्थान दिलाया और वे आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों में जीवित हैं. उनकी धुनें और गजलें सदाबहार हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेंगी.

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हास्य अभिनेता सतीश शाह

सतीश शाह एक भारतीय हास्य अभिनेता हैं, जो हिंदी फिल्म और टेलीविजन उद्योग में अपने अद्वितीय हास्य अभिनय के लिए जाने जाते हैं. उनका जन्म 25 जून 1951 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. सतीश शाह ने अपने कैरियर की शुरुआत थिएटर से की और बाद में उन्होंने फिल्मों और टेलीविजन में अपनी पहचान बनाई.

फिल्में:

जाने भी दो यारों (1983) – इस फिल्म में उनके अभिनय को बहुत सराहा गया और यह एक कल्ट क्लासिक मानी जाती है.

हम साथ साथ हैं (1999) – इस फिल्म में उन्होंने अपने हास्य अभिनय से दर्शकों का दिल जीता.

मैंने प्यार किया (1989) – इसमें उन्होंने एक महत्वपूर्ण सहायक भूमिका निभाई.

दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे (1995) – इस सुपरहिट फिल्म में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

टेलीविजन:

ये जो है ज़िंदगी (1984-1985) – इस शो में उनकी भूमिका ने उन्हें घर-घर में मशहूर कर दिया.

साराभाई वर्सेज साराभाई (2004-2006) – इस लोकप्रिय शो में उन्होंने इंद्रवदन साराभाई की भूमिका निभाई, जो आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई है.

सतीश शाह का अभिनय कैरियर चार दशकों से भी अधिक समय तक फैला है और उन्होंने विभिन्न प्रकार की भूमिकाओं में अपनी कला का प्रदर्शन किया है. उनकी कॉमिक टाइमिंग और विशिष्ट अभिनय शैली ने उन्हें भारतीय सिनेमा और टेलीविजन के सबसे प्रतिष्ठित हास्य कलाकारों में से एक बना दिया है.

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अभिनेत्री करिश्मा कपूर

करिश्मा कपूर एक भारतीय फिल्म अभिनेत्री हैं, जिन्होंने वर्ष 1990 – 2000 के दशक में बॉलीवुड में अपनी पहचान बनाई. उनका जन्म 25 जून 1974 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. करिश्मा कपूर कपूर परिवार से हैं, जो भारतीय फिल्म उद्योग का एक प्रतिष्ठित परिवार है. वह राज कपूर की पोती और रणधीर कपूर और बबीता की बेटी हैं. उनकी बहन करीना कपूर भी एक प्रमुख बॉलीवुड अभिनेत्री हैं.

करिश्मा कपूर ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत वर्ष 1991 में फिल्म “प्रेम कैदी” से की थी. उनकी प्रारंभिक फिल्मों में उन्होंने कई हिट फिल्मों में काम किया और धीरे-धीरे अपनी अभिनय क्षमता से दर्शकों का दिल जीता।

फिल्में: –

राजा हिन्दुस्तानी (1996) – इस फिल्म में आमिर खान के साथ उनकी जोड़ी को बहुत सराहा गया और फिल्म एक बड़ी हिट साबित हुई. इस फिल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला.

दिल तो पागल है (1997) – इस फिल्म में उनकी भूमिका के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला.

फिजा (2000) – इस फिल्म में उनकी अभिनय क्षमता को बहुत सराहा गया और उन्होंने कई पुरस्कार जीते।

जुबैदा (2001) – इस फिल्म में उन्होंने एक जटिल किरदार निभाया और उनकी भूमिका को आलोचकों ने काफी सराहा.

प्रसिद्ध फिल्में:

बीवी नं. 1 (1999),  हम साथ साथ हैं (1999),  अंदाज अपना अपना (1994) और हीरो नं. 1 (1997).

करिश्मा कपूर ने वर्ष 2003 में उद्योगपति संजय कपूर से शादी की, लेकिन वर्ष 2016 में उनका तलाक हो गया. उनके दो बच्चे भी हैं. करिश्मा कपूर ने अपने कैरियर में कई पुरस्कार और सम्मान जीते हैं, जिनमें फिल्मफेयर पुरस्कार और राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार शामिल हैं. उनके अभिनय और नृत्य कौशल ने उन्हें भारतीय सिनेमा की प्रमुख अभिनेत्रियों में से एक बना दिया है.

करिश्मा कपूर ने अपने कैरियर में विभिन्न प्रकार की भूमिकाओं में अपनी कला का प्रदर्शन किया है और भारतीय फिल्म उद्योग में एक महत्वपूर्ण स्थान हासिल किया है.

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स्वामी सहजानंद सरस्वती

स्वामी सहजानंद सरस्वती, जिन्हें किसानों के महान नेता और एक प्रखर समाजवादी चिंतक के रूप में जाना जाता है, ने भारतीय किसान आंदोलन में अमिट छाप छोड़ी. उनका जन्म 22 फरवरी 1889 को  उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में हुआ था. वे एक संन्यासी थे जिन्होंने सामाजिक और आर्थिक न्याय के लिए जीवन भर संघर्ष किया था.

स्वामी सहजानंद सरस्वती ने भारतीय किसान सभा की स्थापना की और इसके पहले अध्यक्ष बने. उन्होंने किसानों को जमींदारी प्रथा और अन्य शोषणकारी व्यवस्थाओं के खिलाफ एकजुट किया. उनका मानना था कि किसानों को उनकी भूमि और उपज पर अधिकार होना चाहिए.

स्वामी जी ने किसानों के हितों के लिए व्यापक रूप से लिखा और बोला. उन्होंने कई पुस्तकें और लेख प्रकाशित किए, जिनमें “किसान सभा के संकल्प,” “भूमिहार ब्राह्मण,” और “गांधी वध क्यों” शामिल हैं. उनके लेखन और भाषणों में वर्ग संघर्ष और साम्राज्यवाद के विरुद्ध तीव्र आलोचना मिलती है.

स्वामी सहजानंद सरस्वती ने भारतीय समाज में गहराई से व्याप्त जातिवाद, सामाजिक अन्याय और आर्थिक असमानताओं के खिलाफ भी मुखर रूप से आवाज उठाई. उनका जीवन और कार्य आज भी भारतीय समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है, खासकर उनकी जमीनी स्तर पर किसानों और वंचित वर्गों के प्रति समर्पण और संघर्ष की भावना.

स्वामी सहजानंद सरस्वती का निधन 26 जून 1950 को हुआ था, लेकिन उनके विचार और सिद्धांत आज भी भारतीय समाज में जीवित हैं और नई पीढ़ियों को प्रेरित करते हैं.

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