
रामू काका, गाँव के सबसे बुज़ुर्ग व्यक्ति, जिन्हें हर कोई सम्मान से देखता था। उनकी झुर्रियों में सालों का अनुभव था और उनकी आँखों में वो चमक, जो किसी ने ज़िंदगी को पूरी शिद्दत से जिया हो।
रामू काका का जन्म एक छोटे किसान परिवार में हुआ था। बचपन में उन्होंने खेतों में काम करना सीखा, मिट्टी से दोस्ती की और प्रकृति के हर बदलाव को महसूस किया। उनकी माँ उन्हें खेतों में काम करने के साथ-साथ पुरानी लोककथाएँ भी सुनाती थीं, जिससे उनकी यादों का पिटारा और भी समृद्ध होता चला गया।
जब वह किशोर अवस्था में पहुँचे, तो उन्होंने खेती में नए तरीकों को अपनाने का प्रयास किया। उन्होंने गाँव के बुज़ुर्गों से सलाह ली और अपने पिता की तरह मेहनत को ही अपना धर्म बना लिया। धीरे-धीरे वह गाँव के लोगों के लिए एक मार्गदर्शक बन गए। जब भी कोई खेती-बाड़ी या जीवन से जुड़ी समस्या होती, लोग रामू काका से पूछने आते।
रामू काका ने गाँव में शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने गाँव के बच्चों को प्रेरित किया कि वे पढ़ाई में रुचि लें। उनका मानना था कि खेती और शिक्षा, दोनों मिलकर गाँव को एक नई दिशा देंगे। उन्होंने गाँव के चौपाल में अनगिनत चर्चाएँ कीं और अपनी कहानियों से युवा पीढ़ी को ज्ञान दिया।
अब जब उनकी उम्र अधिक हो चुकी थी, वह पीपल के नीचे बैठकर गाँव वालों को पुराने समय की बातें सुनाते थे। उनकी बातें सिर्फ़ इतिहास नहीं, बल्कि जीवन के गहरे सबक होते। जेठ की अल्हड़ पवन जब भी बहती, वह मुस्कुराकर कहते, “यही हवा है, जो मेरी यादों को उड़ा ले जाती है, लेकिन कुछ बातें हमेशा रह जाती हैं—जैसे इस पीपल की छाया।”
रामू काका सिर्फ़ एक व्यक्ति नहीं थे, बल्कि वह गाँव की आत्मा थे—स्नेह, अनुभव और ज्ञान का जीवंत स्रोत। उनके किस्से और उनकी सीख पीढ़ियों तक चलती रही।
शेष भाग अगले अंक में…,