
व्यक्ति विशेष -517.
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध निबंधकार, आलोचक और संपादक थे। उनका जन्म 27 मई 1894 को राजनांदगांव, छत्तीसगढ़ में हुआ था और उनका निधन 18 दिसंबर 1971 को रायपुर में हुआ.
बख्शी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा खैरागढ़ में प्राप्त की. उन्होंने बनारस हिंदू कॉलेज से बी.ए. किया और आगे एल.एल.बी. की पढ़ाई शुरू की, लेकिन साहित्य के प्रति उनकी गहरी रुचि के कारण वे इसे पूरा नहीं कर सके. बख्शी ने निबंध, कहानियाँ, कविताएँ और आलोचनाएँ लिखीं, लेकिन उनकी विशेष पहचान निबंधकार के रूप में बनी. उनका पहला निबंध “सोना निकालने वाली चींटियाँ” पत्रिका सरस्वती में प्रकाशित हुआ था.
प्रमुख रचनाएँ: –
निबंध संग्रह: – प्रबन्ध पारिजात, पंचपात्र, पद्मवन, मकरन्द बिन्दु, कुछ बिखरे पन्ने.
कहानी संग्रह: – झलमला, अञ्जलि.
आलोचना: – विश्व साहित्य, हिंदी साहित्य विमर्श, साहित्य शिक्षा, हिंदी उपन्यास साहित्य
काव्य संग्रह: – शतदल, अश्रुदल.
बख्शी ने वर्ष 1920 – 27 तक प्रसिद्ध पत्रिका सरस्वती का संपादन किया. इसके अलावा, उन्होंने महाकौशल और छाया पत्रिका का भी संपादन किया. उनकी भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली थी, जिसमें संस्कृत, उर्दू और अंग्रेज़ी के शब्दों का प्रयोग देखने को मिलता है. उनकी शैली गंभीर, प्रभावशाली, स्वाभाविक और स्पष्ट थी.
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी हिंदी साहित्य के महान निबंधकार थे, जिनकी रचनाएँ आज भी साहित्य प्रेमियों को प्रेरित करती हैं. उनका योगदान हिंदी साहित्य में अमूल्य है.
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मलयाली कवि और गीतकार ओ. एन. वी. कुरुप
ओट्टपलाक्कल नीलकंठन वेलु कुरुप, जिन्हें आमतौर पर ओ. एन. वी. कुरुप के नाम से जाना जाता है, मलयाली भाषा के एक प्रतिष्ठित कवि और गीतकार थे. उनका जन्म 27 मई 1931 को केरल के कोल्लम जिले में हुआ था और उन्होंने अपने साहित्यिक और संगीत योगदान से मलयाली संस्कृति को समृद्ध किया.
ओ. एन. वी. कुरुप ने मलयाली साहित्य में अपनी अमिट छाप छोड़ी. उनकी कविताएँ सामाजिक चेतना, मानवीय संवेदनाओं और प्रकृति के सौंदर्य को दर्शाती हैं. उनके प्रमुख काव्य संग्रहों में “अग्निशलभंगल,” “अक्षर,” “उप्पू,” “करुत्त पक्षियुडे पाट्टू,” “भूमिक्क ओरु चरम गीतम” आदि शामिल हैं. उनकी रचनाएँ न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि उन्होंने मलयाली समाज की सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों को भी प्रतिबिंबित किया. वर्ष 1975 में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया, और वर्ष 2007 में उन्हें भारत के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ.
कुरुप ने मलयालम सिनेमा के लिए भी कई यादगार गीत लिखे. उनके गीतों में गहरी भावनाएँ और काव्यात्मक सौंदर्य देखने को मिलता है. उन्होंने नाटकों और टीवी सीरियलों के लिए भी गीत लिखे, जो मलयाली संगीत जगत में अत्यंत लोकप्रिय हुए. ओ. एन. वी. कुरुप के योगदान को मान्यता देते हुए उन्हें वर्ष 1998 में पद्मश्री और वर्ष 2011 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया. इसके अलावा, केरल विश्वविद्यालय, तिरुवनंतपुरम ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की थी. कुरुप अपने वामपंथी विचारों के लिए भी जाने जाते थे. उन्होंने वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में तिरुवनंतपुरम से वाम लोकतांत्रिक मोर्चा के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा था.
ओ. एन. वी. कुरुप का निधन 13 फरवरी 2016 को हुआ था. कुरुप की रचनाएँ न केवल मलयाली भाषा के साहित्यिक धरोहर का हिस्सा हैं, बल्कि वे भारतीय साहित्य के व्यापक परिदृश्य में भी महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं. उनकी कविताएँ और गीत आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं और उनकी साहित्यिक विरासत अमर रहेगी.
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राजनीतिज्ञ नितिन गडकरी
नितिन गडकरी एक भारतीय राजनीतिज्ञ हैं और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के वरिष्ठ नेता हैं. उनका जन्म 27 मई 1957 को नागपुर, महाराष्ट्र में हुआ था. वर्तमान में, वे भारत सरकार में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री के पद पर कार्यरत हैं. इसके अलावा, उन्होंने माइक्रो, स्मॉल और मीडियम एंटरप्राइजेज (MSME) मंत्रालय की जिम्मेदारी भी संभाली है.
गडकरी ने अपने कैरियर की शुरुआत महाराष्ट्र की राजनीति से की और महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास निगम (MSRDC) के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे और कई अन्य प्रमुख परियोजनाओं का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया. उनकी नेतृत्व क्षमताओं और विकासशील दृष्टिकोण के कारण उन्हें “फ्लाईओवर मैन” के रूप में भी जाना जाता है.
गडकरी को उनके नवाचार, पर्यावरण-अनुकूल नीतियों और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए पहचाना जाता है. वे जैव-ईंधन और इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहित करने के भी प्रबल समर्थक हैं. उनके नेतृत्व में, भारत में सड़क नेटवर्क का महत्वपूर्ण विस्तार हुआ है, और कई नई परियोजनाएं शुरू की गई हैं.
गडकरी की प्रतिष्ठा एक कुशल प्रशासक और प्रभावी नेता के रूप में स्थापित है, और वे भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
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अभिनेत्री प्रीति गांगुली
प्रीति गांगुली एक भारतीय अभिनेत्री थीं, जिन्होंने मुख्य रूप से हिंदी फिल्म उद्योग में काम किया. उनका जन्म 17 मई 1953 को हुआ था, और वे प्रसिद्ध अभिनेता अशोक कुमार की बेटी थीं. प्रीति गांगुली ने 1970 – 80 के दशक में अपनी कॉमिक भूमिकाओं के लिए पहचानी गईं. उन्होंने कई फिल्मों में सहायक भूमिकाएं निभाईं और उनका अभिनय कौशल और हास्य टाइमिंग की सराहना की गई.
प्रीति गांगुली की एक प्रसिद्ध फिल्म “खट्टा मीठा” है, जिसमें उन्होंने मीनू की भूमिका निभाई और इस भूमिका के लिए उन्हें काफी प्रशंसा मिली. इसके अलावा, उन्होंने “दीवार”, “बलिका बधु”, और “धामाका” जैसी कई अन्य फिल्मों में भी काम किया.
प्रीति गांगुली का निधन 2 दिसंबर 2012 को हुआ. उनके निधन के समय उन्हें हिंदी सिनेमा में उनके योगदान के लिए याद किया गया, और उनकी कॉमेडी भूमिकाओं को विशेष रूप से सराहा गया.
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क्रिकेटर रवि शास्त्री
रवि शास्त्री एक पूर्व भारतीय क्रिकेटर और क्रिकेट कोच हैं, जो क्रिकेट जगत में एक प्रमुख नाम हैं. उनका पूरा नाम रवि शंकर जयद्रथ शास्त्री है, और उनका जन्म 27 मई 1962 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. शास्त्री ने भारतीय क्रिकेट टीम के लिए ऑलराउंडर के रूप में खेला और बाद में टीम के कोच के रूप में भी सेवा दी.
रवि शास्त्री एक बाएं हाथ के बल्लेबाज थे और उन्होंने भारतीय टीम के लिए कई महत्वपूर्ण पारियां खेली हैं. वे दाएं हाथ के स्पिन गेंदबाज थे और अपनी धीमी गति की गेंदबाजी से विपक्षी बल्लेबाजों को परेशान करते थे. शास्त्री ने 1987 में भारतीय टीम की कप्तानी भी की थी.
उपलब्धियां: –
- शास्त्री ने वर्ष 1981 – 92 तक भारतीय टीम के लिए खेले और कई महत्वपूर्ण मैचों में योगदान दिया.
- वर्ष 1985 की वर्ल्ड चैंपियनशिप ऑफ क्रिकेट में मैन ऑफ द सीरीज का पुरस्कार जीतकर उन्होंने विशेष पहचान बनाई.
- वर्ष 2017 में उन्हें भारतीय क्रिकेट टीम का प्रमुख कोच नियुक्त किया गया और उन्होंने वर्ष 2021 तक इस भूमिका में सेवा दी. उनके कार्यकाल के दौरान, भारतीय टीम ने कई महत्वपूर्ण श्रृंखलाओं में जीत हासिल की, जिनमें ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज जीत और इंग्लैंड में टेस्ट सीरीज की शुरुआत शामिल है.
अपने खेल कैरियर के बाद, शास्त्री ने क्रिकेट कमेंट्री में भी नाम कमाया और वे एक प्रमुख क्रिकेट विश्लेषक और कमेंटेटर के रूप में जाने जाते हैं. शास्त्री क्रिकेट जगत में एक बहुआयामी प्रतिभा हैं, जिन्होंने खिलाड़ी, कोच और कमेंटेटर के रूप में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उनकी खेल और नेतृत्व कौशल ने भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है.
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मुकेश छाबड़ा
मुकेश छाबड़ा एक भारतीय कास्टिंग निर्देशक, अभिनेता और फिल्म निर्माता हैं. उनका जन्म 27 मई 1980 को हुआ था. वे मुख्य रूप से बॉलीवुड में काम करते हैं और उन्होंने कई प्रमुख फिल्मों के लिए कास्टिंग डायरेक्टर के रूप में काम किया है. मुकेश छाबड़ा की सबसे बड़ी पहचान उनके कास्टिंग वर्क और वर्ष 2020 में आई फिल्म “दिल बेचारा” के निर्देशक के रूप में है.
मुकेश छाबड़ा ने अपने कैरियर की शुरुआत थिएटर से की और बाद में कास्टिंग निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखा. उन्होंने एनएसडी (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) से स्नातक किया और थिएटर में काम किया.
कास्टिंग निर्देशन: –
उन्होंने “काई पो चे!” (2013), “दंगल” (2016), “गैंग्स ऑफ वासेपुर” (2012), “बजरंगी भाईजान” (2015), और “पीके” (2014) जैसी फिल्मों के लिए कास्टिंग की. मुकेश छाबड़ा कास्टिंग कंपनी (MCCC) के संस्थापक हैं, जो बॉलीवुड में प्रमुख कास्टिंग एजेंसियों में से एक है.
मुकेश छाबड़ा ने वर्ष 2020 में सुशांत सिंह राजपूत और संजना सांघी अभिनीत फिल्म “दिल बेचारा” के साथ निर्देशन में कदम रखा. यह फिल्म जॉन ग्रीन के उपन्यास “द फॉल्ट इन आवर स्टार्स” पर आधारित है. “दिल बेचारा” उनकी पहली निर्देशित फिल्म थी और इसे दर्शकों से मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली. उन्होंने कुछ फिल्मों में छोटे किरदारों में अभिनय भी किया है.
मुकेश छाबड़ा ने भारतीय सिनेमा में कास्टिंग प्रक्रिया को एक नई पहचान दी है और कई नए और प्रतिभाशाली कलाकारों को मौका दिया है. उनकी कास्टिंग तकनीक और दृष्टिकोण ने उन्हें बॉलीवुड में एक सम्मानित स्थान दिलाया है.
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रमाबाई आम्बेडकर
रमाबाई आम्बेडकर जो डॉ. भीमराव आम्बेडकर की पत्नी थीं. उनका जन्म 7 फरवरी 1897 को महाराष्ट्र के वणंद गांव में हुआ था और उनका निधन 27 मई 1935 को हुआ. रमाबाई का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था, लेकिन उन्होंने अपने पति डॉ. भीमराव आम्बेडकर के साथ हर मुश्किल में उनका साथ दिया और उनका संबल बनीं.
रमाबाई का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था. उनके माता-पिता का नाम भिकू धूतरे और रुक्मिणी था. रमाबाई और भीमराव आम्बेडकर की शादी वर्ष 1906 में हुई थी, जब भीमराव आम्बेडकर सिर्फ 15 वर्ष के थे और रमाबाई 9 वर्ष की थीं. डॉ. भीमराव आम्बेडकर की शिक्षा और सामाजिक सुधार के कार्यों के दौरान रमाबाई ने उनका पूर्ण समर्थन किया. उन्होंने गरीबी और समाज की प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना किया और अपने परिवार की जिम्मेदारियों को निभाया.
रमाबाई ने अपने जीवन को सादगी और धैर्य के साथ जिया. उनके पास साधारण साधन थे, लेकिन उन्होंने अपने पति की पढ़ाई और समाज सुधार के कार्यों में कोई कमी नहीं आने दी. रमाबाई का स्वास्थ्य हमेशा खराब रहता था, लेकिन उन्होंने अपनी समस्याओं का सामना हिम्मत से किया. 27 मई 1935 को उनका निधन हो गया, जो डॉ. आम्बेडकर के लिए एक बड़ी क्षति थी.
रमाबाई का जीवन डॉ. आम्बेडकर के लिए प्रेरणा का स्रोत था. उनकी सहनशीलता, संघर्ष और समर्पण ने डॉ. आम्बेडकर को समाज सुधार के उनके महान कार्यों में मदद की. रमाबाई की स्मृति को सम्मानित करने के लिए कई संस्थान और संगठन उनके नाम पर स्थापित किए गए हैं. डॉ. आम्बेडकर ने अपने जीवन के कई महत्वपूर्ण कार्य उनके सम्मान में किए.
रमाबाई आम्बेडकर का जीवन एक महान संघर्ष और समर्पण की कहानी है. उन्होंने एक साधारण महिला के रूप में असाधारण कार्य किए और डॉ. भीमराव आम्बेडकर के जीवन और कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनका नाम भारतीय इतिहास में हमेशा सम्मान और श्रद्धा के साथ लिया जाएगा.
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प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू
जवाहरलाल नेहरू जिन्हें पंडित नेहरू भी कहा जाता है. वो स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे. जिनका जन्म 14 नवंबर 1889 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था और उनका निधन 27 मई 1964 को हुआ. नेहरू भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक थे और उन्होंने स्वतंत्रता के बाद भारत को एक आधुनिक राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
जवाहरलाल नेहरू का जन्म मोतीलाल नेहरू और स्वरूपरानी नेहरू के परिवार में हुआ था और उनका परिवार संपन्न और प्रतिष्ठित था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा हैरो और इटन जैसे प्रतिष्ठित स्कूलों में प्राप्त की. इसके बाद उन्होंने ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज और इनर टेम्पल, लंदन से अपनी उच्च शिक्षा पूरी की.
नेहरू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सक्रिय रूप से शामिल हुए और महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया. नेहरू ने कई बार ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन किया और उन्हें कई बार जेल भी गए. भारत की स्वतंत्रता के बाद, 15 अगस्त 1947 को नेहरू ने देश के पहले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली.
नेहरू ने पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत की, जिनका उद्देश्य भारत की आर्थिक और औद्योगिक प्रगति को बढ़ावा देना था. उन्होंने कृषि, शिक्षा, विज्ञान और तकनीकी क्षेत्रों में भी कई सुधार किए. उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो शीत युद्ध के दौरान देशों को किसी भी शक्ति ब्लॉक में शामिल होने से बचाने का प्रयास था.
नेहरू ने भारतीय लोकतंत्र की नींव को मजबूत किया और लोकतांत्रिक मूल्यों को स्थापित किया. उन्होंने शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में विशेष ध्यान दिया और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IITs) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIMs) जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों की स्थापना की. नेहरू का विश्व भर में सम्मान था और उन्होंने भारत की विदेश नीति को मजबूत बनाया.
नेहरू का विवाह कमला नेहरू से हुआ था और उनकी एक बेटी इंदिरा गांधी थीं, जो बाद में भारत की प्रधानमंत्री बनीं. नेहरू एक प्रतिष्ठित लेखक थे और उनकी पुस्तकों में “द डिस्कवरी ऑफ इंडिया” और “ग्लिम्प्सेस ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री” शामिल हैं. जवाहरलाल नेहरू का जीवन और कार्य भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण रहे हैं. उनके योगदान ने स्वतंत्र भारत की दिशा और भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनका दृष्टिकोण और नेतृत्व आज भी भारतीय राजनीति और समाज में प्रेरणा का स्रोत है.
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राजनीतिज्ञ और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सरदार हुकम सिंह
सरदार हुकम सिंह भारतीय राजनीति के एक प्रमुख नेता थे, जिन्होंने लोकसभा अध्यक्ष और राजस्थान के राज्यपाल के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनका जन्म 30 अगस्त 1895 को सहिवाल जिले (अब पाकिस्तान में) में हुआ था. हुकम सिंह का प्रारंभिक जीवन पंजाब में बीता. उन्होंने खालसा कॉलेज, अमृतसर से स्नातक किया और बाद में लॉ कॉलेज, लाहौर से एल.एल.बी. की डिग्री प्राप्त की. इसके बाद वे मोंटगोमरी में वकील के रूप में कार्य करने लगे.
हुकम सिंह ने सिख गुरुद्वारों को ब्रिटिश शासन के प्रभाव से मुक्त कराने के आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई. वर्ष 1923 में जब शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को गैरकानूनी घोषित किया गया, तो उन्होंने इसके लिए संघर्ष किया और वर्ष 1924 में उन्हें दो साल की जेल की सजा हुई. सरदार हुकम सिंह वर्ष 1950-52 की अंतरिम संसद और पहली, दूसरी और तीसरी लोकसभा के सदस्य रहे. 17 अप्रैल 1962 को उन्हें तीसरी लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया और उन्होंने 16 मार्च 1967 तक इस पद को संभाला. इसके बाद वे वर्ष 1967 – 72 तक राजस्थान के राज्यपाल रहे.
भारत विभाजन के दौरान, उन्होंने मोंटगोमरी में हिंदू और सिख समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने दंगाइयों से बचने के लिए लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया और अंततः खुद भी भारत आकर अपने परिवार से मिले. सरदार हुकम सिंह का 27 मई 1983 को निधन हो गया. वे एक प्रख्यात सांसद, न्यायविद, समाज सुधारक और सक्षम प्रशासक थे, जिन्होंने भारतीय राजनीति में अमिट छाप छोड़ी.