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व्यक्ति विशेष

भाग – 474.

भीमराव अंबेडकर

भीमराव रामजी अंबेडकर जिन्हें डॉ. बी. आर. अंबेडकर के नाम से भी जाना जाता है. वो भारतीय संविधान के मुख्य आर्किटेक्ट थे और वे एक महान समाज सुधारक, राजनीतिज्ञ, और शिक्षाविद् थे. उनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को हुआ था, और उन्होंने भारत में अछूतों और दलितों के लिए समानता और न्याय की लड़ाई लड़ी. अंबेडकर ने अपनी शिक्षा भारत और विदेशों में पूरी की, जिसमें उन्होंने कई विषयों में मास्टर्स और डॉक्टरेट डिग्री हासिल की.

उनके योगदानों में से एक मुख्य योगदान यह था कि उन्होंने भारतीय संविधान की रचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और वे उस संविधान सभा के अध्यक्ष भी थे. उन्होंने समाज में जातिगत भेदभाव को समाप्त करने के लिए कई आंदोलनों का नेतृत्व किया और दलितों के लिए शिक्षा और समान अवसर प्रदान करने के लिए कई पहल की.

उनका निधन 6 दिसंबर 1956 को हुआ, लेकिन उनकी विरासत आज भी भारतीय समाज में प्रेरणा के रूप में मौजूद है. भारत में उनका जन्मदिन ‘अम्बेडकर जयंती’ के रूप में मनाया जाता है और यह राष्ट्रीय अवकाश है.

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स्वाधीनता सेनानी पूरन चन्द जोशी

पूरन चंद जोशी जिन्हें पी. सी. जोशी के नाम से भी जाना जाता है. वो एक प्रमुख भारतीय कम्युनिस्ट नेता और स्वाधीनता सेनानी थे. उनका जन्म 14 अप्रैल 1907 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा में हुआ था. जोशी ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के सचिव के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय रहे.

पी. सी. जोशी ने अपनी शिक्षा कलकत्ता विश्वविद्यालय से पूरी की और वहीं से उनकी राजनीतिक यात्रा शुरू हुई. उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के विकास और स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और वे वर्ष 1935 – 47 तक पार्टी के महासचिव रहे. इस दौरान, उन्होंने भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन को मजबूत किया और अंग्रेजी शासन के खिलाफ विभिन्न आंदोलनों में भाग लिया.

जोशी ने किसानों और मजदूरों के अधिकारों के लिए व्यापक स्तर पर काम किया और उन्होंने भारतीय समाज में समानता और न्याय के लिए संघर्ष किया. उनकी नेतृत्व शैली और दृष्टिकोण ने कई युवा कम्युनिस्टों को प्रेरित किया. पूरन चंद जोशी का निधन 9 नवंबर 1989 को हुआ. उनका जीवन और कार्य आज भी भारतीय राजनीतिक इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं.

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पार्श्वगायिका शमशाद बेगम

शमशाद बेगम भारतीय सिनेमा की एक प्रसिद्ध पार्श्वगायिका थीं, जिन्होंने अपनी विशिष्ट आवाज़ और गायन शैली के लिए व्यापक पहचान प्राप्त की. उनका जन्म 14 अप्रैल 1919 को लाहौर, ब्रिटिश भारत (अब पाकिस्तान में) में हुआ था. शमशाद बेगम का कैरियर वर्ष 1940 के दशक से शुरू होकर वर्ष 1970 के दशक तक उन्होंने हिन्दी फिल्म संगीत में अमिट छाप छोड़ी.

शमशाद बेगम ने कई प्रमुख संगीतकारों के साथ काम किया, जिनमें नौशाद, ओ. पी. नैय्यर, और सचिन देव बर्मन शामिल हैं. उनकी आवाज़ ने उन्हें उस समय के अन्य गायिकाओं से अलग किया. उनके कुछ प्रसिद्ध गाने जैसे कि “कजरा मोहब्बत वाला”, “लेके पहला पहला प्यार”, और “कभी आर कभी पार” आज भी लोकप्रिय हैं और उन्हें भारतीय सिनेमा के क्लासिक्स माना जाता है.

शमशाद बेगम की गायन क्षमता ने उन्हें व्यापक प्रशंसा दिलाई, और उनके गीतों को विभिन्न पीढ़ियों द्वारा सराहा गया है. उन्होंने संगीत की दुनिया में अपनी विशेष पहचान बनाई और भारतीय संगीत की एक अमूल्य धरोहर के रूप में अपना स्थान सुरक्षित किया. उनका निधन 23 अप्रैल 2013 को हुआ, लेकिन उनका संगीत आज भी भारतीय संगीत प्रेमियों के दिलों में जीवित है.

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सरोद वादक अली अकबर ख़ाँ

अली अकबर ख़ाँ भारतीय शास्त्रीय संगीत के एक महान सरोद वादक थे. उनका जन्म 14 अप्रैल 1922 को वर्तमान बांग्लादेश के शिबपुर गांव में हुआ था. वे भारतीय शास्त्रीय संगीत के मशहूर मैहर घराने से ताल्लुक रखते थे और उनके पिता उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ, जो स्वयं एक महान संगीतकार थे, उनके गुरु थे.

अली अकबर ख़ाँ ने बहुत ही कम उम्र में संगीत की शिक्षा प्राप्त करनी शुरू कर दी थी. उनके पिता, उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ, उनके प्रमुख गुरु थे और उन्होंने अपने पुत्र को न केवल सरोद वादन, बल्कि विभिन्न वाद्ययंत्रों और गायन की भी शिक्षा दी. उनके संगीत का प्रशिक्षण अत्यंत कठोर और व्यापक था, जिसमें विभिन्न रागों और तालों का गहन अध्ययन शामिल था.

अली अकबर ख़ाँ ने अपने जीवनकाल में भारतीय शास्त्रीय संगीत को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाई. उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रदर्शन किया और पश्चिमी दर्शकों के बीच भारतीय शास्त्रीय संगीत की लोकप्रियता बढ़ाई. उन्होंने कई प्रतिष्ठित संगीत समारोहों में भाग लिया और अपने अद्वितीय सरोद वादन शैली के लिए प्रसिद्ध हुए.

अली अकबर ख़ाँ ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को सिखाने के लिए अली अकबर कॉलेज ऑफ म्यूजिक की स्थापना की. इस कॉलेज का मुख्यालय कैलिफोर्निया, अमेरिका में है और इसकी शाखाएँ विभिन्न स्थानों पर हैं. इस संस्थान ने भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा और प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

अली अकबर ख़ाँ को उनके संगीत के लिए कई सम्मान और पुरस्कार मिले. इनमें से कुछ प्रमुख हैं: –  पद्म भूषण (1967), पद्म विभूषण (1989) व मैकआर्थर फाउंडेशन पुरस्कार (1991). अली अकबर ख़ाँ की संगीत शैली और शिक्षा ने कई संगीतकारों और छात्रों को प्रेरित किया है. उनके शिष्य और अनुयायी उनकी विधा को आगे बढ़ा रहे हैं और भारतीय शास्त्रीय संगीत की धरोहर को संरक्षित कर रहे हैं. उनकी संगीत रिकॉर्डिंग और प्रदर्शन आज भी संगीत प्रेमियों के बीच अत्यधिक मूल्यवान हैं.

अली अकबर ख़ाँ का निधन 18 जून 2009 को सैन फ्रांसिस्को, कैलिफोर्निया में हुआ. उनकी संगीत विधा, शिक्षा, और योगदान को हमेशा याद किया जाएगा और भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनकी विरासत अमर रहेगी.

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मांड गायिका गवरी देवी

गवरी देवी राजस्थान की एक प्रतिष्ठित मांड गायिका थीं. उन्हें “मांड की रानी” के रूप में जाना जाता है और उन्होंने राजस्थान की पारंपरिक संगीत शैली मांड को पूरे भारत में लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. गवरी देवी का जन्म 14 अप्रैल 1920 को राजस्थान के बीकानेर जिले में हुआ था. गवरी देवी ने अपने परिवार से संगीत की शिक्षा प्राप्त की. उनके परिवार में संगीत की गहरी परंपरा थी, जिसने उन्हें इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया.

मांड राजस्थान की पारंपरिक लोक संगीत शैली है, जो शाही दरबारों और महलों में गाया जाता था. इस संगीत शैली में राजस्थान की संस्कृति, प्रेम और विरह की कहानियों का वर्णन होता है. गवरी देवी ने मांड संगीत को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया और इसे लोकप्रिय बनाया.

प्रसिद्ध गीत: –  “केसरिया बालम आवो नी,” “निम्बूडा निम्बूडा,” और “पधारो म्हारे देश” शामिल हैं.

गवरी देवी को उनकी संगीत सेवा के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले. उन्हें राजस्थान सरकार द्वारा “राज्य कलाकार” की उपाधि से भी सम्मानित किया गया. उन्होंने मांड संगीत की समृद्ध परंपरा को संरक्षित किया और इसे युवा पीढ़ी तक पहुँचाया. उनकी गायकी और योगदान के कारण, मांड संगीत को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली.

गवरी देवी का निधन 29 जून 1988 को हुआ था. उनका योगदान राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर में अमूल्य है. उनकी संगीत यात्रा ने मांड संगीत को नई पहचान दिलाई और उन्हें सदैव याद किया जाएगा.

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अन्तरिक्ष वैज्ञानिक के. सिवन

कैलासवडिवू सिवन जिन्हें अधिकतर के. सिवन के नाम से जाने  जाते  है. वो भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं. उनका जन्म 14 अप्रैल 1957 को तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले में हुआ था. सिवन को उनके उत्कृष्ट योगदान और नेतृत्व के लिए भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक महत्वपूर्ण हस्ती माना जाता है.

के. सिवन ने अपनी उच्च शिक्षा मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से पूरी की और उन्होंने आईआईएससी बैंगलोर से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर से की और धीरे-धीरे अपने कुशल नेतृत्व और तकनीकी ज्ञान के बल पर ISRO के अध्यक्ष के पद तक पहुंचे.

के. सिवन के नेतृत्व में ISRO ने कई महत्वपूर्ण मिशनों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया, जिसमें चंद्रयान-2 और मंगलयान जैसे महत्वाकांक्षी परियोजनाएं शामिल हैं. उन्हें विशेष रूप से उनकी अगुवाई में किए गए चंद्रयान-2 मिशन के लिए व्यापक प्रशंसा मिली, जिसने भारत को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर वाहन उतारने का प्रयास करने वाले देशों की सूची में शामिल किया.

के. सिवन की उपलब्धियों के लिए उन्हें कई सम्मान और पुरस्कार मिले हैं, जिसमें पद्म भूषण भी शामिल है. उनका योगदान न केवल भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में, बल्कि वैश्विक अंतरिक्ष समुदाय में भी महत्वपूर्ण है.

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जमशेद जी जीजाभाई

जमशेद जी जीजाभाई एक प्रमुख भारतीय उद्योगपति और टाटा समूह के संस्थापक थे. उनका जन्म 15 जुलाई, 1783 को एक ग़रीब परिवार में मुंबई में हुआ था. उन्होंने भारत में औद्योगिकीकरण की नींव रखी और टाटा समूह की स्थापना की, जिसने भारतीय उद्योग जगत में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

आर्थिक तंगी के कारण वे शिक्षा ग्रहण नहीं कर सके.12 वर्ष की छोटी उम्र में अपने मामा के साथ पुरानी बोतलें बेचने के धंधे में लग गए थे. जमशेद जी में बड़ी व्यवसाय-बुद्धि थी. व्यवहार से जमशेद जी जीजाभाई ने साधारण हिसाब रखना और कामचलाऊ अंग्रेज़ी सीख ली थी. उन्होंने अपने व्यापार का भारत के बाहर विस्तार किया.

जमशेदजी ने भारत की पहली स्टील कंपनी, टाटा स्टील (पहले टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी), की स्थापना की. यह भारतीय उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था. उन्होंने भारत की पहली हाइड्रो-इलेक्ट्रिक पावर प्लांट की स्थापना की, जो बाद में टाटा पावर बन गई. जमशेदजी ने भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) की स्थापना के लिए भी अपना योगदान दिया. उन्होंने भारत के पहले लक्जरी होटल, ताज महल पैलेस होटल, की स्थापना की.

जमशेदजी का दृष्टिकोण न केवल व्यावसायिक सफलता के लिए था, बल्कि उन्होंने समाज सेवा और देश की प्रगति में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनकी मृत्यु 19 मई 1904 को जर्मनी के बाडेन-बाडेन में हुई. उनका योगदान आज भी भारतीय उद्योग जगत में अनुकरणीय माना जाता है.

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रमण महर्षि

रमण महर्षि एक महान आध्यात्मिक गुरु थे जो 20वीं सदी के भारतीय सन्यासी और आध्यात्मिक महात्मा थे. उनका जन्म 30 दिसम्बर 1879 को हुआ था और मृत्यु 14 अप्रैल 1950 को हुई थी. वे अपने आत्मज्ञान और आत्मा के अद्वितीयता के लिए प्रसिद्ध हुए थे.

रमण महर्षि ने अपने जीवन के बड़े हिस्से को अरुणाचल प्रदेश के तिरुवन्नामलाया में आश्रम में बिताया था, जहां उन्होंने चुप्तचर ध्यान और सत्संग का आयोजन किया. उनकी शिक्षाएं और उनके सत्संगों ने लाखों लोगों को आत्मज्ञान और आत्मा के साक्षात्कार की दिशा में मार्गदर्शन किया.

रमण महर्षि का मुख्य सिद्धांत था “कोई भी व्यक्ति अपने आत्मा को जान सकता है” और इसके लिए उन्होंने ध्यान और स्वानुभूति का मार्ग प्रशिक्षण दिया. उनका उपदेश बहुतंत्री में औरों को आत्मा की सच्चाई की ओर प्रवृत्ति करने के लिए प्रेरित करता था.

रमण महर्षि के जीवन और उनके उपदेशों का महत्वपूर्ण स्रोत उनकी लेखनी से है, जिसमें “आत्मविचार” और “आत्मार्पण” जैसे विषयों पर चर्चा की गई है. उनका आध्यात्मिक वास्तविकता का अद्वितीय सिद्धांत भक्ति और ज्ञान के साथ जुड़ा हुआ था.

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वैज्ञानिक और निर्माता मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया एक प्रसिद्ध भारतीय इंजीनियर, वैज्ञानिक और राजनेता थे, जिन्हें आधुनिक भारत के निर्माण में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है. उनका जन्म 15 सितम्बर 1861 को कर्नाटक के मुद्देनहल्ली गांव में हुआ था और उनका निधन 14 अप्रैल, 1962 को हुआ था. विश्वेश्वरैया ने अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री पुणे के कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से प्राप्त की थी. वे भारतीय संविधान सभा के सदस्य भी थे. उन्हें “भारत रत्न” से भी सम्मानित किया गया था, जो भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है. उनकी उत्कृष्ट इंजीनियरिंग प्रतिभा और उनके द्वारा किए गए विकास कार्य उन्हें भारतीय इतिहास में एक अग्रणी स्थान दिलाते हैं.

प्रमुख योगदान: –

कृष्णराज सागर बांध: – यह बांध मैसूर (अब कर्नाटक) में कावेरी नदी पर बनाया गया था, जो विश्वेश्वरैया के नेतृत्व में संभव हुआ. यह बांध सिंचाई और जल आपूर्ति के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण था.

ब्लॉक सिस्टम: – उन्होंने एक अद्वितीय “ब्लॉक सिस्टम” विकसित किया, जो पानी की बेहतर प्रबंधन और सिंचाई में सहायक था. इसे आज भी आधुनिक जल प्रबंधन प्रणालियों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है.

भारत का औद्योगिकीकरण: – विश्वेश्वरैया का मानना था कि औद्योगिकीकरण ही भारत के विकास का मार्ग प्रशस्त करेगा. उन्होंने भारत में उद्योग और प्रौद्योगिकी के विकास के लिए कई सुझाव दिए.

मैसूर का विकास: – कर्नाटक के मैसूर राज्य के दीवान रहते हुए उन्होंने मैसूर के शहरी और औद्योगिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनके नेतृत्व में कई उद्योग और शैक्षिक संस्थान स्थापित किए गए.

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को वर्ष 1955 में देश के प्रति योगदान के लिए भारत रत्न से सम्मानित किया गया था. उनकी जयंती 15 सितंबर को भारत में इंजीनियर्स डे के रूप में मनाई जाती है, ताकि उनके योगदान को याद किया जा सके.

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को न केवल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में उनकी महान उपलब्धियों के लिए जाना जाता है, बल्कि वे एक दूरदर्शी व्यक्ति भी थे, जिन्होंने आधुनिक भारत के निर्माण में अहम भूमिका निभाई.

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साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन

राहुल सांकृत्यायन हिंदी साहित्य के प्रमुख साहित्यकार माने जाते हैं और विशेष रूप से यात्रा वृतांत/यात्रा साहित्य और विश्व-दर्शन के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जाने जाते हैं. राहुल सांकृत्यायन को महापंडित की उपाधि दी गई थी. उनका जन्म 9 अप्रैल 1893 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में जन्मे थे और उनका निधन 14 अप्रैल 1963 को हुआ.

राहुल सांकृत्यायन का जीवन घुमक्कड़ी, या गतिशीलता, के प्रति समर्पित था, जिसे उन्होंने एक धर्म के रूप में देखा. उनके लिए, घुमक्कड़ी सिर्फ एक वृत्ति नहीं, बल्कि एक धर्म थी. वे एक परिष्कृत बहुभाषाविद् थे और उनका बौद्ध धर्म पर किया गया शोध हिंदी साहित्य में युगान्तरकारी माना जाता है. उन्होंने तिब्बत से श्रीलंका तक और मध्य-एशिया तथा कॉकेशस तक यात्राएं कीं और उन पर वृत्तांत लिखे, जो साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माने जाते हैं.

राहुल सांकृत्यायन ने अपनी प्रारंभिक यात्राओं के दौरान देश-देशांतरों की प्रत्यक्ष जानकारी प्राप्त करने और प्राचीन एवं अर्वाचीन विषयों का अध्ययन करने में गहरी रुचि दिखाई. उनकी ये दो प्रवृत्तियाँ उन्हें एक महान पर्यटक और महान अध्येता बनाती हैं. सनातन धर्म से लेकर आर्य समाज और फिर बौद्ध धर्म से मानव धर्म तक राहुल सांकृत्यायन ने अपने जीवन के धर्म और विचारधारा के सफर में कई बदलाव किए. वे आर्य समाज से बौद्ध धर्म और फिर मानव धर्म तक गए, वहीं उनका सामाजिक चिंतन भी काश्तकारी से शुरू होकर किसान आंदोलन और अंततः साम्यवाद तक पहुंचा. उन्होंने अपनी ‘जीवन यात्रा’ में कहा, “बड़े की भाँति मैंने तुम्हें उपदेश दिया है, वह पार उतरने के लिए हैं, सिर पर ढोये-ढोये फिरने के लिए नहीं”. इससे उनके विचारों की गहराई और उनके जीवन में विविध अनुभवों के प्रभाव को समझा जा सकता है.

राहुल जी का जीवन घुमक्कड़ी और अध्ययन की ओर उन्मुख था. वाराणसी में उन्होंने संस्कृत का गहन अध्ययन किया और कलकत्ता में अंग्रेजी के साथ अपनी पारंगतता साबित की. आर्य समाज के प्रभाव में वेदों का अध्ययन किया और बौद्ध धर्म की ओर आकर्षित होने पर पाली, प्राकृत, अपभ्रंश, तिब्बती, चीनी, जापानी, और सिंहली भाषाओं का अध्ययन किया. उन्होंने संपूर्ण बौद्ध-ग्रंथों का मनन किया और ‘त्रिपिटकाचार्य’ की उपाधि भी प्राप्त की.

उनके अध्ययन और घुमक्कड़ी की प्रवृत्ति ने उन्हें विश्व के विभिन्न कोनों की यात्रा करने और विविध संस्कृतियों, धर्मों, और विचारधाराओं को समझने में मदद की. उनकी रचनाएँ और शोध कर राहुल सांकृत्यायन ने अपने जीवन काल में विविध धार्मिक और सामाजिक विचारधाराओं की यात्रा की. उन्होंने अपने विचारों और अध्ययनों के माध्यम से न केवल भारतीय साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि विश्व साहित्य में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया.

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फ़िल्म निर्देशक नितिन बोस

नितिन बोस एक भारतीय फिल्म निर्देशक और सिनेमैटोग्राफर थे, जिन्होंने बंगाली और हिन्दी सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनका जन्म 26 अप्रैल 1901 को हुआ था. नितिन बोस ने अपने कैरियर में कई महत्वपूर्ण फिल्में बनाईं और विशेषकर वर्ष 1930 – 40 के दशक में उनका काम बेहद प्रशंसित हुआ.

नितिन बोस ने कई नवाचारों को भी अंगीकार किया था. उन्हें भारतीय सिनेमा में पहली बार प्ले-बैक सिंगिंग और साउंड रिकॉर्डिंग तकनीकों को लागू करने का श्रेय जाता है. इन तकनीकी नवाचारों का प्रयोग उन्होंने वर्ष 1935 में बनी फिल्म ‘भग्य चक्र’ में किया था, जिससे भारतीय सिनेमा में एक नई क्रांति आई.

नितिन बोस की कुछ अन्य प्रमुख फिल्मों में ‘गंगा जमुना’ (1961), जिसमें दिलीप कुमार और वैजयंतीमाला मुख्य भूमिका में थे, और ‘मशाल’ (1950) शामिल हैं. उनके निर्देशन में बनी फिल्में अपनी कहानी के गहरे इमोशनल असर और सामाजिक संदेश के लिए जानी जाती हैं. नितिन बोस का निधन 14 अप्रैल 1986 को हुआ था.

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