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व्यक्ति विशेष

भाग – 469.

साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन

राहुल सांकृत्यायन हिंदी साहित्य के प्रमुख साहित्यकार माने जाते हैं और विशेष रूप से यात्रा वृतांत/यात्रा साहित्य और विश्व-दर्शन के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जाने जाते हैं. राहुल सांकृत्यायन को महापंडित की उपाधि दी गई थी. उनका जन्म 9 अप्रैल 1893 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में जन्मे थे और उनका निधन 14 अप्रैल 1963 को हुआ.

राहुल सांकृत्यायन का जीवन घुमक्कड़ी, या गतिशीलता, के प्रति समर्पित था, जिसे उन्होंने एक धर्म के रूप में देखा. उनके लिए, घुमक्कड़ी सिर्फ एक वृत्ति नहीं, बल्कि एक धर्म थी. वे एक परिष्कृत बहुभाषाविद् थे और उनका बौद्ध धर्म पर किया गया शोध हिंदी साहित्य में युगान्तरकारी माना जाता है. उन्होंने तिब्बत से श्रीलंका तक और मध्य-एशिया तथा कॉकेशस तक यात्राएं कीं और उन पर वृत्तांत लिखे, जो साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माने जाते हैं.

राहुल सांकृत्यायन ने अपनी प्रारंभिक यात्राओं के दौरान देश-देशांतरों की प्रत्यक्ष जानकारी प्राप्त करने और प्राचीन एवं अर्वाचीन विषयों का अध्ययन करने में गहरी रुचि दिखाई. उनकी ये दो प्रवृत्तियाँ उन्हें एक महान पर्यटक और महान अध्येता बनाती हैं. सनातन धर्म से लेकर आर्य समाज और फिर बौद्ध धर्म से मानव धर्म तक राहुल सांकृत्यायन ने अपने जीवन के धर्म और विचारधारा के सफर में कई बदलाव किए. वे आर्य समाज से बौद्ध धर्म और फिर मानव धर्म तक गए, वहीं उनका सामाजिक चिंतन भी काश्तकारी से शुरू होकर किसान आंदोलन और अंततः साम्यवाद तक पहुंचा. उन्होंने अपनी ‘जीवन यात्रा’ में कहा, “बड़े की भाँति मैंने तुम्हें उपदेश दिया है, वह पार उतरने के लिए हैं, सिर पर ढोये-ढोये फिरने के लिए नहीं”. इससे उनके विचारों की गहराई और उनके जीवन में विविध अनुभवों के प्रभाव को समझा जा सकता है.

राहुल जी का जीवन घुमक्कड़ी और अध्ययन की ओर उन्मुख था. वाराणसी में उन्होंने संस्कृत का गहन अध्ययन किया और कलकत्ता में अंग्रेजी के साथ अपनी पारंगतता साबित की. आर्य समाज के प्रभाव में वेदों का अध्ययन किया और बौद्ध धर्म की ओर आकर्षित होने पर पाली, प्राकृत, अपभ्रंश, तिब्बती, चीनी, जापानी, और सिंहली भाषाओं का अध्ययन किया. उन्होंने संपूर्ण बौद्ध-ग्रंथों का मनन किया और ‘त्रिपिटकाचार्य’ की उपाधि भी प्राप्त की.

उनके अध्ययन और घुमक्कड़ी की प्रवृत्ति ने उन्हें विश्व के विभिन्न कोनों की यात्रा करने और विविध संस्कृतियों, धर्मों, और विचारधाराओं को समझने में मदद की. उनकी रचनाएँ और शोध कर राहुल सांकृत्यायन ने अपने जीवन काल में विविध धार्मिक और सामाजिक विचारधाराओं की यात्रा की. उन्होंने अपने विचारों और अध्ययनों के माध्यम से न केवल भारतीय साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि विश्व साहित्य में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया.

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सरोद वादिका शरण रानी

शरण रानी एक भारतीय सरोद वादिका थीं, जिन्होंने इस पारंपरिक भारतीय वाद्य यंत्र को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई. उनका जन्म 9 अप्रैल 1929 को हुआ था, और उनका निधन 8 अप्रैल 2008 को हुआ. उनका पूरा नाम शरण रानी बैकुलतला था. उन्हें सरोद वादन में उनके असाधारण योगदान के लिए व्यापक रूप से सम्मानित किया गया था.

शरण रानी ने सरोद वादन की शिक्षा उस्ताद अलाउद्दीन खान से प्राप्त की, जो भारतीय संगीत के मैहर घराने के संस्थापक थे. उन्होंने संगीत के इस क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका को मजबूत किया और विश्व स्तर पर भारतीय संगीत की लोकप्रियता में योगदान दिया. उनका संगीत कैरियर उस समय में बहुत प्रभावशाली था जब सरोद जैसे वाद्य यंत्रों को बजाना मुख्य रूप से पुरुषों का काम समझा जाता था.

शरण रानी को उनके असाधारण प्रतिभा और संगीत के प्रति समर्पण के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया, जिनमें पद्म श्री (1968) और पद्म भूषण (2000) शामिल हैं. उनका संगीत न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रशंसित हुआ.

शरण रानी ने न केवल एक कलाकार के रूप में अपना योगदान दिया, बल्कि वे एक महत्वपूर्ण संगीत शिक्षक भी थीं, जिन्होंने अगली पीढ़ी के संगीतकारों को प्रेरित और प्रशिक्षित किया. उनकी मृत्यु के बाद भी, उनका संगीत और उनकी विरासत संगीत प्रेमियों और कलाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है.

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कन्नड़ अभिनेत्री प्रतिमा देवी

प्रतिमा देवी कन्नड़ अभिनेत्री थीं, जिन्होंने अपने लंबे फिल्मी कैरियर में 60 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया. उनकी पहली फिल्म ‘कृष्ण लीला’ थी, जो वर्ष 1947 में रिलीज हुई थी. इसके बाद, उन्होंने वर्ष 1951 में ‘जगनमोहिनी’ में मुख्य भूमिका निभाई, जो कि पहली कन्नड़ फिल्म थी जो सिनेमाघरों में 100 दिनों तक चली. प्रतिमा देवी का जन्म 09 अप्रैल 1933 को मद्रास (आज़ादी पूर्व, वर्तमान चेन्नई) में हुआ था.

प्रतिमा देवी की उल्लेखनीय फिल्मों ‘जगनमोहिनी’, ‘कृष्णलीला’, ‘चंचला उमरी’, ‘शिवाशरेन नामियाका’, और ‘मंगला सूत्र’ के लिए याद किया जाता है. उनकी आखिरी फिल्म ‘रमा शमा भामा’ थी, जो वर्ष  2005 में रिलीज हुई थी. प्रतिमा देवी को कर्नाटक सरकार द्वारा वर्ष 2000-01 के लिए लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था. उनकी शादी बिजनेसमैन और स्वतंत्रता सेनानी डी शंकर सिंह से हुई थी, जिन्होंने ‘जगनमोहिनी’ का निर्माण किया था.

प्रतिमा देवी के बेटे राजेंद्र सिंह फिल्म डायरेक्टर हैं और बेटी विजयलक्ष्मी सिंह एक अभिनेत्री व फिल्म निर्माता हैं. उनका निधन 88 वर्ष की आयु में 6 अप्रैल, 2021 को हो गया था. 

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अभिनेत्री जया बच्चन

जया बच्चन का विवाह से पहले उनका नाम जया भादुरी है जो हिन्दी फिल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री व राजनीतिज्ञ हैं. उनका जन्म 9 अप्रैल 1948 को जबलपुर, मध्य प्रदेश में हुआ था. उन्होंने फिल्मी कैरियर की शुरुआत वर्ष 1971 में फिल्म ‘गुड्डी’ से की थी.

जया बच्चन ने अमिताभ बच्चन से 3 जून 1973 को शादी की और उनके दो बच्चे हैं: – अभिषेक बच्चन और श्वेता बच्चन नंदा. जया ने अपने कैरियर में कई हिट फिल्मों में काम किया. जिनमें ‘महानगर’ (1963), ‘शोले’ (1975), ‘सिलसिला’ (1981), ‘अभिमान’ (1973), और ‘जंजीर’ (1973) शामिल हैं. उन्होंने फिल्मफेयर से बेस्ट सहायक अभिनेत्री का अवार्ड भी जीता है और उन्हें पद्म श्री तथा यश भारती सम्मान से भी नवाजा गया है.

जया बच्चन ने फिल्मों के अलावा राजनीति में भी अपनी पहचान बनाई है. वे वर्ष 2004 से समाजवादी पार्टी की ओर से राज्यसभा सदस्य हैं. उन्हें फिल्म जगत और राजनीति दोनों क्षेत्रों में अपने उल्लेखनीय योगदान के लिए जाना जाता है.​

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राजनीतिज्ञ जयराम रमेश

जयराम रमेश एक प्रतिष्ठित भारतीय राजनीतिज्ञ हैं. जिनका जन्म 9 अप्रैल 1954 को कर्नाटक के चिकमंगलूर में हुआ था. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य हैं और उन्होंने ग्रामीण विकास, पर्यावरण, और वन मंत्री के रूप में केंद्रीय मंत्रिमंडल में सेवा प्रदान की है​ .

रमेश ने अपनी शिक्षा IIT Bombay से B.Techमें, Carnegie Mellon University से M.S में और Massachusetts Institute of Technology से भी पढ़ाई की. उन्हें विश्व बैंक में कार्य करने का भी अनुभव है. वे वर्ष 2004 – 16 तक आंध्र प्रदेश से राज्यसभा सांसद रहे हैं और जून 2016 से कर्नाटक से राज्यसभा के सदस्य हैं.​

रमेश ने ग्रामीण विकास और पेयजल और स्वच्छता मंत्री के रूप में सेवा की. उन्होंने विभिन्न समितियों में भाग लिया है और विभिन्न राजनीतिक पदों पर रहे हैं, जिसमें सदस्य, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण समिति और सदस्य, प्राचीन स्मारकों और पुरातत्व स्थलों का सदस्य शामिल हैं​.

उन्होंने अपनी युवावस्था में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से प्रेरणा प्राप्त की और उनके विचारों से बहुत प्रभावित हुए. वे भारतीय बिजनेस स्कूल, हैदराबाद के संस्थापक सदस्य भी हैं.​

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अभिनेत्री स्‍वरा भास्‍कर

स्वरा भास्कर भारतीय सिनेमा की एक ऐसी अभिनेत्री हैं, जिन्होंने अपनी अदाकारी और सामाजिक मुद्दों पर बेबाक राय के लिए पहचान बनाई है. उनका जन्म 9 अप्रैल 1988 को दिल्ली में हुआ था.  उनके पिता का नाम सी. उदय भास्कर भारतीय नौसेना के अधिकारी हैं और उनकी मां इरा भास्कर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में सिनेमा अध्ययन की प्रोफेसर हैं. स्वरा ने दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक किया और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की.

स्वरा भास्कर ने अभिनय कैरियर की शुरुआत वर्ष 2009 में फिल्म मधोलाल कीप वॉकिंग से की, लेकिन उन्हें पहचान वर्ष 2011 में आई फिल्म तनु वेड्स मनु से मिली. इस फिल्म में उनके सहायक किरदार को दर्शकों और आलोचकों ने खूब सराहा. इसके बाद उन्होंने रांझणा (2013), नील बटे सन्नाटा (2016), और अनारकली ऑफ आरा (2017) जैसी फिल्मों में अपनी अदाकारी का लोहा मनवाया. उनकी फिल्म नील बटे सन्नाटा में एक घरेलू नौकरानी की भूमिका ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (आलोचक) का स्क्रीन अवार्ड दिलाया. इसके अलावा, वीरे दी वेडिंग (2018) में उनके किरदार ने भी काफी चर्चा बटोरी.

स्वरा ने वर्ष  2023 में फहाद अहमद से शादी की, जो एक सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक नेता हैं. उनकी शादी और उनके विचारों ने उन्हें अक्सर सुर्खियों में रखा है. वो केवल एक अभिनेत्री ही नहीं, बल्कि महिला अधिकार, लैंगिक समानता, और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मुद्दों पर खुलकर अपनी बात रखी है.

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निर्माता एवं निर्देशक शक्ति सामंत

शक्ति सामंत एक प्रसिद्ध फिल्म निर्माता और निर्देशक थे. जिनका जन्म 13 जनवरी 1926 को पश्चिम बंगाल के बर्धमान में हुआ था और उनका निधन 9 अप्रैल 2009 को हुआ. उन्होंने फिल्म उद्योग में विशेष स्थान बनाया और कई सफल फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया. जिनमें ‘कटी पतंग’, ‘आराधना’, ‘अमर प्रेम’, ‘कश्मीर की कली’ और ‘अमानुष’ जैसी फिल्में शामिल हैं.

शक्ति सामंत की शिक्षा देहरादून और कलकत्ता विश्वविद्यालय से पूरी की. शुरू में अभिनेता बनने की इच्छा रखने वाले शक्ति सामंत ने मुंबई में अपने कैरियर की शुरुआत की, लेकिन उन्हें तुरंत सफलता नहीं मिली. इसके बाद, उन्होंने एक स्कूल में शिक्षक के रूप में काम किया. वहाँ उन्होंने अशोक कुमार के साथ ‘बॉम्बे टॉकीज़’ में काम किया और धीरे-धीरे फिल्म निर्देशन की ओर रुख किया.

 शक्ति सामंत ने वर्ष 1957 में ‘शक्ति फिल्म्स’ नाम से अपना प्रोडक्शन हाउस शुरू किया और उनकी पहली फिल्म ‘हावड़ा ब्रिज’ थी. उनकी फिल्मों ने उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कारों से भी नवाज़ा गया. शक्ति सामंत का फिल्मी कैरियर उनकी विविधता और नवीनता के लिए जाना जाता है.उनकी फिल्मों में संगीत, कहानी और निर्देशन की गहराई ने दर्शकों के दिलों में विशेष स्थान बनाया.

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