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व्यक्ति विशेष

भाग – 452.

बेगम जहाँआरा

जहाँआरा बेगम मुग़ल साम्राज्य की एक महत्वपूर्ण हस्ती थीं, जिन्हें राजनीति, संस्कृति और अर्थव्यवस्था में उनके विविध योगदान के लिए याद किया जाता है. सम्राट शाहजहाँ और मुमताज महल की सबसे बड़ी बेटी के रूप में, उन्हें पादशाह बेगम की उपाधि दी गई, जिससे वह साम्राज्य की सबसे शक्तिशाली महिलाओं में से एक बन गईं. उन्हें साहिबात अल-ज़मानी (उम्र की महिला) और बेगम साहिब (राजकुमारियों की राजकुमारी) के नाम से भी जाना जाता था.

बेगम जहाँआरा का जन्म 23 मार्च 1614 को अजमेर में हुआ था. जहाँआरा उच्च शिक्षित थी, राजनीति और अर्थशास्त्र की पेचीदगियों को समझती थी और सूफीवाद में उसकी गहरी रुचि थी. उनकी शिक्षा में फ़ारसी साहित्य और कुरान शामिल थे, और उन्होंने मुगल दरबार के दैनिक कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. विशेष रूप से, उन्होंने पारिवारिक संघर्षों के दौरान अपने पिता शाहजहाँ और अपने भाई औरंगजेब के बीच मध्यस्थता की थी. उसकी राजनीतिक कुशलता ऐसी थी कि वह सम्राट के निर्णयों को भी प्रभावित कर सकती थी.

जहाँआरा का एक महत्वपूर्ण योगदान मुगल भारत के स्थापत्य और शहरी विकास में था. उन्होंने दिल्ली के चांदनी चौक को डिज़ाइन किया, जो शहर के सबसे प्रसिद्ध बाज़ारों में से एक है, जो आज भी एक प्रमुख व्यावसायिक केंद्र बना हुआ है. वास्तुकला और शहरी नियोजन के प्रति उनका दृष्टिकोण उनकी नवोन्वेषी और दूरदर्शी सोच को दर्शाता है.

जहाँआरा न केवल राजनीति और वास्तुकला में शामिल थीं बल्कि उन्होंने आर्थिक क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनके पास साहिबी नाम का एक जहाज था, जो उनके कारखानों से माल सूरत में उनके बंदरगाह तक ले जाता था, जिससे उनकी आय में काफी वृद्धि हुई. अंग्रेज़ों और डचों के साथ उनके व्यापारिक संबंध उनकी व्यापारिक कुशलता का प्रमाण थे. अपनी संपत्ति और शक्ति के बावजूद, वह दान के प्रति गहराई से प्रतिबद्ध थी, नियमित रूप से भिक्षा देने के कार्यों में संलग्न रहती थी और विभिन्न सामाजिक कारणों का समर्थन करती थी.

सूफीवाद के प्रति उनका समर्पण गहरा था, जैसा कि उनके लेखन और मुल्ला शाह बदख्शी के शिष्य के रूप में उनकी भूमिका से पता चलता है. उन्होंने सूफीवाद पर कई किताबें लिखीं, जिनमें मोइनुद्दीन चिश्ती की जीवनी भी शामिल है, जो इस्लाम की रहस्यमय शाखा के साथ उनके गहरे आध्यात्मिक और बौद्धिक जुड़ाव को दर्शाती है.

जहाँआरा का जीवन वैभव और त्रासदी दोनों से चिह्नित था, आग से उसकी लगभग घातक दुर्घटना से लेकर उसके अंतिम वर्षों के दौरान अपने पिता के प्रति उसके अटूट समर्थन तक. अपनी संपत्ति और पद के बावजूद, उन्होंने अपनी सूफी मान्यताओं के अनुरूप एक साधारण विश्राम स्थल चुना, जो आकाश की ओर खुला था और केवल हरियाली से ढका हुआ था. बेगम जहाँआरा का निधन 16 सितंबर 1681 को हुआ था. उनकी जीवन कहानी उनके लचीलेपन, बुद्धिमत्ता और गहरी आध्यात्मिकता का प्रमाण है, जो उन्हें मुगल काल की सबसे उल्लेखनीय महिलाओं में से एक बनाती है.

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स्वतंत्रता सेनानी बसंती देवी

बसंती देवी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण महिला स्वतंत्रता सेनानी थीं. वे अपने पति चितरंजन दास के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल थीं. चितरंजन दास एक प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ और बैरिस्टर थे जो स्वराज पार्टी के सह-संस्थापक थे.

बसंती देवी का जन्म 23 मार्च 1880 को हुआ था. उन्होंने अपने पति और अन्य नेताओं के साथ मिलकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अनेक योगदान दिए. वे विशेष रूप से वर्ष 1921 में नोन-कोऑपरेशन आंदोलन में सक्रिय थीं. उन्होंने ब्रिटिश उत्पादों के बहिष्कार और खादी के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

बसंती देवी का निधन 7 मई 1974 को हुआ था. बसंती देवी ने नारी शिक्षा और समाज सेवा में भी महत्वपूर्ण योगदान दिए. वे उस समय की अन्य महिला स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए कार्य करती थीं. उनका जीवन और कार्य आज भी भारतीय महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं.

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संस्कृत कवि भट्ट मथुरानाथ शास्त्री

भट्ट मथुरानाथ शास्त्री एक प्रसिद्ध संस्कृत कवि और विद्वान थ. उनका जन्म 23 मार्च 1905 को आंध्र के देवर्षि परिवार में हुआ था और उनका निधन 4 जून 1964 को हुआ. वे भारतीय संस्कृति और साहित्य के महान ज्ञाता माने जाते थे और उन्होंने संस्कृत भाषा और साहित्य में अनेक योगदान दिए.

भट्ट मथुरानाथ शास्त्री ने विभिन्न विषयों पर कई ग्रंथों की रचना की और संस्कृत कविता, नाटक, आलोचना और अनुवाद में अपने अद्वितीय कौशल का प्रदर्शन किया. उनका कार्य उनके गहन अध्ययन और संस्कृत साहित्य के प्रति उनके असीम समर्पण को दर्शाता है. वे अपने समय के संस्कृत के प्रमुख विद्वानों में से एक थे और उनका कार्य आज भी संस्कृत अध्ययन में महत्वपूर्ण माना जाता है.

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स्वतंत्रता सेनानी डॉ. राममनोहर लोहिया

डॉ. राममनोहर लोहिया भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा, समाजवादी विचारक, और प्रभावशाली राजनेता थे. वे भारतीय समाजवाद के प्रमुख नेता माने जाते हैं और भारत की सामाजिक और राजनीतिक संरचना में सुधार के लिए अपने दृढ़ विचारों और नीतियों के लिए प्रसिद्ध थे. लोहिया ने भारतीय राजनीति में गरीबों और पिछड़ों की आवाज को बुलंद करने का महत्वपूर्ण कार्य किया.

राममनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को उत्तर प्रदेश के अकबरपुर, अयोध्या में हुआ था. उनके पिता हीरा लाल लोहिया गांधीजी के अनुयायी थे और राममनोहर लोहिया पर उनके विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा. लोहिया की प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी और मुंबई में हुई. बाद में वे उच्च शिक्षा के लिए जर्मनी गए, जहां उन्होंने बर्लिन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीति में डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की.

डॉ. लोहिया स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी के नेतृत्व में सक्रिय रूप से शामिल हुए. उन्होंने वर्ष 1934 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़कर कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की. वे एक मुखर समाजवादी थे और अंग्रेज़ों के खिलाफ संघर्ष में समाजवादी विचारधारा का प्रचार किया. लोहिया ने महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए भारत छोड़ो आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ अपनी दृढ़ता और साहस के लिए जाने जाते थे. इस आंदोलन के दौरान उन्हें जेल भी भेजा गया. लोहिया ने गांधीजी के नमक सत्याग्रह में भी भाग लिया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.

लोहिया ने हमेशा समाज के निचले तबकों और दलितों के उत्थान के लिए संघर्ष किया. उनकी विचारधारा “चौखंबा राज” (विकेंद्रीकरण की नीति) पर आधारित थी, जिसमें सत्ता का विकेंद्रीकरण चार स्तरों पर (गांव, जिला, राज्य, और केंद्र) पर हो. उनके विचार समाजवाद और मानवतावाद से प्रेरित थे. वे जातिवाद, भाषावाद, और क्षेत्रवाद के कट्टर विरोधी थे.

राजनीतिक विचार और योगदान: –

जाति और वर्ग भेदभाव के खिलाफ आंदोलन: – लोहिया ने भारतीय समाज में व्याप्त जाति और वर्ग भेदभाव का पुरजोर विरोध किया. उन्होंने इसे खत्म करने के लिए कई आंदोलन चलाए और समाज के सभी वर्गों के लिए समानता की वकालत की.

अंग्रेज़ी के स्थान पर भारतीय भाषाओं का समर्थन: – लोहिया अंग्रेज़ी के आधिपत्य के खिलाफ थे और भारतीय भाषाओं के उपयोग के लिए जोर देते थे. वे मानते थे कि भारतीय भाषाओं में शिक्षा और प्रशासनिक कार्य होना चाहिए, जिससे देश की बड़ी आबादी को लाभ हो.

नारी अधिकारों के समर्थक: – डॉ. लोहिया ने महिलाओं के अधिकारों के लिए भी आवाज उठाई. वे मानते थे कि नारी स्वतंत्रता के बिना समाज का पूर्ण विकास संभव नहीं है.

गैर-कांग्रेसवाद: – लोहिया भारतीय राजनीति में गैर-कांग्रेसवाद के एक प्रमुख प्रवर्तक थे. उनका मानना था कि कांग्रेस के एकाधिकार को समाप्त करके ही भारत में सच्चे लोकतंत्र की स्थापना की जा सकती है. उनके इस विचार के परिणामस्वरूप वर्ष 1967 में कई राज्यों में गैर-कांग्रेसी सरकारें बनीं.

लोहिया एक प्रभावी लेखक और विचारक थे. उन्होंने कई पुस्तकों और लेखों के माध्यम से अपने विचार प्रस्तुत किए. उनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ हैं: –

“मार्क्स, गांधी और समाजवाद”: – इस पुस्तक में उन्होंने समाजवाद की भारतीय परिभाषा और गांधीवादी विचारधारा का समावेश किया.

“इकोनॉमिक्स ऑफ द पूअर”: – इसमें उन्होंने भारतीय समाज की आर्थिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया.

12 अक्टूबर 1967 को डॉ. राममनोहर लोहिया का निधन नई दिल्ली में हुआ. उनके निधन के बाद भी उनकी विचारधारा और योगदान भारतीय राजनीति में जीवित रहे. भारतीय समाजवादी आंदोलन पर उनकी छाप आज भी महसूस की जाती है. डॉ. लोहिया ने भारतीय राजनीति में न सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम के समय बल्कि स्वतंत्रता के बाद भी समाजवाद, समानता और सामाजिक न्याय की आवाज उठाई. उनकी विचारधारा को आज भी कई राजनीतिक दल और समाजवादी नेता प्रेरणा के रूप में मानते हैं.

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स्वतंत्रता सेनानी हेमू कालाणी

हेमू कालाणी एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वह सिंध के थे और ब्रिटिश राज के खिलाफ विद्रोह में सक्रिय थे. हेमू कालाणी का जन्म 23 मार्च 1923 को सुक्कर , सिन्ध, ब्रिटिश राज (अब पाकिस्तान ) में हुआ था. हेमू कालाणी बहुत ही युवा उम्र में आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे और उन्होंने अपनी जिंदगी देश की आजादी के नाम कर दी.

हेमू कालाणी ने ब्रिटिश रेल लाइनों को नष्ट करने का प्रयास किया ताकि ब्रिटिश सेना की आवाजाही को रोका जा सके. इस कार्य में उन्हें पकड़ लिया गया और उन पर मुकदमा चलाया गया. बिना किसी सहायता और समर्थन के, हेमू ने बहादुरी से अपनी गतिविधियों का सामना किया और किसी भी साथी का नाम नहीं बताया.

हेमू कालाणी का निधन 21 जनवरी 1943 को हुआ था. उनकी अदम्य साहस और बलिदान की भावना ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर शहीदों में एक स्थान दिलाया. हेमू कालाणी को उनके कारनामों के लिए बहुत ही कम उम्र में फांसी की सजा सुनाई गई, और वे इतिहास में एक युवा स्वतंत्रता सेनानी के रूप में याद किए जाते हैं.

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जीव विज्ञानी आदित्य प्रसाद दास

आदित्य प्रसाद दास भारत के प्रतिष्ठित जीव विज्ञानी हैं उन्होंने डेंगू, मलेरिया, काला-अजार और चिकनगुनिया जैसे वेक्टर जनित उष्ण कटिबंधीय रोगों में विशेषज्ञता हासिल की. दास पांच दशकों से ग्रामीण और आदिवासी समुदायों के बीच स्वास्थ्य सेवाएं भी प्रदान कर रहे हैं.

दास का जन्म 23 मार्च, 1951 को भुवनेश्वर में हुआ था. दास ने ‘भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद’ में एक वैज्ञानिक के रूप में अपना कैरियर शुरू किया और संस्थान के निदेशक भी बने. उन्होंने ने वीबीडी में विभिन्न उपकरणों, प्रौद्योगिकियों, रणनीतियों के विकास में मलेरिया और वेक्टर जनित रोगों के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.

दास ‘दाल एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ’, भुवनेश्वर, खोरधा के वाइस चांसलर हैं. वर्ष 2022 में आदित्य प्रसाद दास को भारत सरकार द्वारा ‘पद्म श्री’ सम्मान से सम्मानित किया गया.

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राजनीतिज्ञ स्मृति ईरानी

स्मृति ईरानी एक भारतीय राजनीतिज्ञ और पूर्व टेलीविजन अभिनेत्री हैं. वह भारतीय जनता पार्टी की एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं और केंद्रीय मंत्री के रूप में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुकी हैं. उन्होंने शिक्षा, वस्त्र और महिला एवं बाल विकास जैसे विभागों में केंद्रीय मंत्री के रूप में सेवा की है.

राजनीतिज्ञ स्मृति ईरानी का जन्म 23 मार्च 1976 को दिल्ली में हुआ था और उनकी शिक्षा भी दिल्ली में ही हुई थी. स्मृति ईरानी को विशेष रूप से उनके टेलीविजन कैरियर में ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ नामक धारावाहिक में तुलसी विरानी की भूमिका के लिए जानी जाती है. उनका यह किरदार बेहद लोकप्रिय हुआ था और उसने उन्हें घर-घर में पहचान दिलाई. अपने अभिनय कैरियर के बाद, वह राजनीति में सक्रिय हो गईं और तेजी से उभरीं.

स्मृति ईरानी अपने दृढ़ निश्चयी व्यक्तित्व और वाक्पटुता के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने अपने राजनीतिक कैरियर में कई महत्वपूर्ण और चर्चित विषयों पर बोला है और उन्होंने अपने क्षेत्र और देश के लिए कई महत्वपूर्ण योगदान दिए हैं. उनका राजनीतिक जीवन उत्थान और चुनौतियों से भरा हुआ है, और वे आधुनिक भारतीय राजनीति की एक जानी-मानी हस्ती हैं.

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अभिनेत्री कंगना राणावत

कंगना राणावत, जिन्हें कंगना रनौत के नाम से अधिक जाना जाता है, एक प्रमुख भारतीय फिल्म अभिनेत्री हैं और बॉलीवुड में उनका एक अलग स्थान है. वे हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले से हैं और उन्होंने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत वर्ष 2006 में फिल्म ‘गैंगस्टर’ से की थी. इस फिल्म में उनके अभिनय को काफी सराहा गया था और उन्हें सर्वश्रेष्ठ महिला डेब्यू के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया था.

कंगना राणावत का जन्म 23 मार्च 1986 को हिमांचल प्रदेश के भांभला में एक राजपूत परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम अमरदीप रनौत और मां का नाम आशा रनौत है. उनकी एक बड़ी बहन भी हैं जिनका नाम रंगोली है और एक छोटा भाई है जिसका नाम अक्षत है. कंगना की पढ़ाई डी. ए. वी. स्‍कूल चंडीगढ़ से हुई थी. उनका परिवार उन्‍हें मेडिकल के पेशे में भेजना चाहता था लेकिन, वो 16 वर्ष की उम्र में ही वे दिल्‍ली आ गईं और यहां उन्‍होंने थियेटर ग्रुप को ज्‍वाइन किया.

कंगना रनौत ने अपने कैरियर में ‘क्वीन’, ‘तनु वेड्स मनु’ और ‘मणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ झांसी’ जैसी कई हिट फिल्मों में काम किया है. उनकी अभिनय क्षमता और फिल्मों के चयन की विविधता ने उन्हें समकालीन हिंदी सिनेमा की सबसे विशिष्ट अभिनेत्रियों में से एक बना दिया है. कंगना न केवल अपने अभिनय के लिए जानी जाती हैं बल्कि वे अपने मुखर विचारों और सोशल मीडिया पर अपनी बेबाक टिप्पणियों के लिए भी प्रसिद्ध हैं. उन्होंने विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर खुलकर अपनी राय व्यक्त की है, जिससे कभी-कभी विवाद भी हुए हैं. फिर भी, उनका अभिनय कैरियर उनके प्रतिभाशाली अभिनय और विविध भूमिकाओं के लिए सम्मानित किया जाता है.

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पार्श्व गायिका कनिका कपूर

कनिका कपूर भारतीय संगीत जगत की एक पार्श्व गायिका हैं, जिन्होंने अपनी अनोखी आवाज़ और गायन शैली से बॉलीवुड में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. उनका जन्म 21 अगस्त 1978 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था. बचपन से ही संगीत के प्रति उनका गहरा लगाव था, और उन्होंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा पंडित गणेश प्रसाद मिश्रा से प्राप्त की.

कनिका कपूर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ के लोरेटो कॉन्वेंट स्कूल से पूरी की. इसके बाद उन्होंने भातखंडे संगीत संस्थान से संगीत में स्नातक और परास्नातक की डिग्री प्राप्त की. उन्होंने 12 वर्ष की उम्र में ऑल इंडिया रेडियो के साथ गाना शुरू किया और भजन गायक अनूप जलोटा के साथ भी प्रस्तुति दी.

कनिका कपूर ने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 2012 में “जुगनी जी” गाने से की, जो एक म्यूजिक वीडियो के रूप में रिलीज़ हुआ और काफी लोकप्रिय हुआ. इसके बाद वर्ष 2014 में उन्होंने बॉलीवुड में “बेबी डॉल” गाने से कदम रखा, जो फिल्म रागिनी एमएमएस 2 का हिस्सा था. यह गाना सुपरहिट हुआ और उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला।

प्रमुख गाने: –  चिट्टियां कलाइयां (फिल्म: रॉय),  लवली (फिल्म: हैप्पी न्यू ईयर), देसी लुक (फिल्म: एक पहेली लीला), बीट पे बूटी (फिल्म: ए फ्लाइंग जट्ट).

कनिका कपूर का विवाह राज चंदोक से हुआ था, लेकिन बाद में उनका तलाक हो गया. उनके तीन बच्चे हैं. वर्तमान में वह लंदन में रहती हैं और संगीत के साथ-साथ सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय हैं. कनिका कपूर लखनऊ की पारंपरिक चिकनकारी कला को बढ़ावा देने और बच्चों की शिक्षा के लिए भी काम करती हैं. उन्होंने कई लाइव कॉन्सर्ट और रियलिटी शो में भी भाग लिया है, जिनमें द वॉइस (सीजन 3) को जज करना शामिल है.

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क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु

शिवराम हरी राजगुरु को उनकी निर्भीकता और उत्कृष्ट निशानेबाजी कौशल के लिए जाने जाते थे.  वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपने अदम्य साहस और देशभक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं. राजगुरु भी हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य थे और भगत सिंह और सुखदेव के साथ मिलकर अंग्रेजी राज के खिलाफ लड़े.

इन तीनों क्रांतिकारियों ने मिलकर वर्ष 1928 में लाहौर में ब्रिटिश पुलिस अधीक्षक जॉन सॉन्डर्स की हत्या की थी, जिसे वे लाला लाजपत राय पर हुए लाठी चार्ज के लिए जिम्मेदार मानते थे, जिसमें लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए थे और बाद में उनकी मृत्यु हो गई थी.

भगत सिंह, सुखदेव, और राजगुरु को उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए गिरफ्तार किया गया था और अंततः उन्हें 23 मार्च 1931 को लाहौर में फांसी दी गई. उनकी मृत्यु ने भारतीय जनता में गहरी भावनाओं को जगाया और वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायकों के रूप में अमर हो गए. उनका बलिदान और आदर्श आज भी भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं.

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कानू सान्याल

कानू सान्याल भारतीय कम्युनिस्ट राजनीतिज्ञ थे, जिनका जन्म 1932 में हुआ था. वे 1967 में नक्सलबाड़ी विद्रोह के प्रमुख नेताओं में से एक थे और 1969 में उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) की स्थापना में भी योगदान दिया. उनकी मृत्यु 23 मार्च 2010 को हुई थी.

सान्याल ने कम्युनिस्ट राजनीति में शामिल होकर पहले सीपीआई और फिर सीपीआई(एम) का हिस्सा बने। नक्सली उदय की विफलता के बाद वे छिप गए और उनके सहयोगी चारु मजूमदार की मौत के बाद नक्सली आंदोलन टूट गया. सान्याल को बाद में गिरफ्तार किया गया और उन्हें सात वर्षों के लिए जेल में रखा गया. वर्ष 1977 में उनकी रिहाई के बाद, उन्होंने हिंसात्मक साधनों को त्याग दिया और सीपीआई(एम) की सभी पार्टी बैठकों में भाग लेना जारी रखा. उनके बाद के वर्षों में, सान्याल राजनीतिक सक्रियता, श्रमिक आंदोलन और भूमि अधिकारों में अपनी सक्रिय भागीदारी जारी रखे. वे कई बार गिरफ्तार और हिरासत में लिए गए.

सान्याल का निधन उनके निवास स्थान पर लटके हुए पाए जाने के साथ हुआ. उनकी मौत के समय, वे नई सीपीआई(एमएल) के महासचिव थे, जो मूल पार्टी के कई विखंडन समूहों के विलय से बनी थी.

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स्वामी ओमानन्द सरस्वती

स्वामी ओमानन्द सरस्वती भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, इतिहासकार, और सामाजिक कार्यकर्ता थे. उनका जन्म मार्च 1910 में हुआ था और उनका निधन 23 मार्च 2003 को हुआ. उन्होंने हरियाणा प्रांत में अपना जीवन और काम समर्पित किया. स्वामी ओमानन्द आर्य प्रतिनिधि सभा और परोपकारिणी सभा के प्रमुख रह चुके हैं. उनका असली नाम भगवान देव था और वे झज्जर के गुरुकुल में आचार्य थे.वर्ष 1969-70 में उन्होंने सन्यास लिया और फिर वे स्वामी ओमानन्द सरस्वती के नाम से जाने जाने लगे.

उनकी इतिहास में गहरी रुचि थी और उन्होंने प्राचीन सामग्री का संग्रह किया और एक संग्रहालय भी स्थापित किया. उन्होंने अनेक इतिहास और पुरातत्व से संबंधित ग्रंथों की रचना की. स्वामी ओमानन्द सरस्वती ने आर्य समाज के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान दिया और उन्होंने अनेक देशों में आर्य समाज का संदेश फैलाया.

उनकी कुछ प्रमुख कृतियों में ‘हरियाणा के वीर योद्धा’ और ‘भारत की प्राचीन मुद्राएँ’ शामिल हैं. स्वामी ओमानन्द का मानना था कि आर्य समाज और इतिहास की समृद्धि में गहरा योगदान है. उनका विश्वास था कि शिक्षा और समाज सेवा से ही एक समृद्ध समाज का निर्माण संभव है​.

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35वें मुख्य न्यायाधीश रमेश चंद्र लहोटी

रमेश चंद्र लहोटी भारत के 35वें मुख्य न्यायाधीश थे. उनका कार्यकाल 1 जून 2004 से 31 अक्टूबर 2005 तक रहा. लहोटी को उनके न्यायिक कार्य, निर्णयों और भारतीय न्यायपालिका में उनके योगदान के लिए जाना जाता है. रमेश चंद्र लहोटी का जन्म 1 नवंबर, 1940 को मध्य प्रदेश के गुना जिले में हुआ था और उनका निधन 23 मार्च, 2022 को नई -दिल्ली में हुआ. 

रमेश चंद्र लहोटी ने कानून की पढ़ाई की और बाद में वकील के रूप में अभ्यास किया. उन्हें वर्ष 1994 में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त किया गया. बाद में, उन्हें  वर्ष 2002 में सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त किया गया.लहोटी के कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण मामलों में निर्णय दिए गए, जो भारतीय कानून में महत्वपूर्ण माने जाते हैं. उन्होंने संविधान के सिद्धांतों और मानवाधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

रमेश चंद्र लहोटी की न्यायपालिका में भूमिका उनके अनुभव और ज्ञान के लिए महत्वपूर्ण रही है. उनके द्वारा किए गए निर्णय और दिशा-निर्देश भारतीय न्यायपालिका के विकास में योगदान करते हैं.

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