Apni Virasat

पितरों के रूठ जाने पर …

ॐ पितृगणाय विद्महे जगत् धारिणी धीमहि तन्नो पितरों प्रचोदयात्।

दैहिक, दैविक,और भौतिक तीनो तापों से मुक्ति पाने  के लिए श्राद्ध से बढ़कर कोई दूसरा उपाय नहीं है, अतः मनुष्य को यत्न पूर्वक श्राद्ध करना चाहिए. पितरों का माह श्राद्धपक्ष भादों पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक मनाया जाता है. भगवान् ब्रह्मा ने यह पक्ष पितरों के लिए ही बनाया है. सूर्यपुत्र यमदेव के बीस हज़ार वर्ष तक घोर तपस्या करने के फलस्वरूप भगवान शिव ने उन्हें यमलोक और पितृलोक का अधिकारी बनाया. ऐसा माना गया है की जो प्राणी वर्ष पर्यन्त पूजा-पाठ आदि नहीं करते वे अपने पितरों का केवल श्राद्ध करके ईष्ट कार्य और पुण्य प्राप्त कर कर सकते हैं.

आचार्यों के अनुसार, वर्ष 2024 में श्राद्ध का शुभ मुहूर्त 18 सितंबर 2024 को सुबह 11 बजकर 50 मिनट से दोपहर 12 बजकर 39 मिनट तक रहेगा. इस अवधि में ही  श्राद्ध , तर्पण और पिंडदान करें.

पितरों के देवता कौन से हैं: –

पितरों के देव अर्यमा और सर्वपितृ … ये बारह हैं:- अंशुमान, इंद्र, अर्यमन, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषा, भग, मित्र, वरुण, विवस्वान और त्रिविक्रम (वामन)। अर्यमा का परिचय : अदिति के तीसरे पुत्र और आदित्य नामक सौर-देवताओं में से एक अर्यमन या अर्यमा को पितरों का देवता भी कहा जाता है.

96 अवसरों पर किया जा सकता है श्राद्ध-तर्पण: –

पितरों का श्राद्ध करने के लिए एक साल में 96 अवसर आते हैं. ये हैं बारह महीने की 12 अमावस्या, सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग के प्रारंभ की चार तिथियां, मनुवों के आरम्भ की 14 मन्वादि तिथियां, 12 संक्रांतियां, 12 वैधृति योग, 12 व्यतिपात योग, 15 महालय-श्राद्ध पक्ष की तिथियां, पांच अष्टका पांच अन्वष्टका और पांच पूर्वेद्युह ये श्राद्ध करने 96 अवसर हैं. अपने पुरोहित या योग्य विद्वानों से पूछकर इन पूर्ण शुभ अवसरों का लाभ उठाया जा सकता है.

किस तिथि में करें किसका श्राद्ध: –

किसी भी माह की जिस तिथि में परिजन की मृत्यु हुई हो इस महालय में उसी संबधित तिथि में श्राद्ध करना चाहिये. कुछ ख़ास तिथियाँ भी हैं जिनमे किसी भी प्रक्रार की मृत वाले परिजन का श्राद्ध किया जाता है.

  • सौभाग्यवती यानी पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गयी हो, उन नारियों का श्राद्ध नवमी तिथि में किया जाता है.
  • एकादशी में वैष्णव सन्यासी का श्राद्ध, चतुर्दशी में शस्त्र,आत्म हत्या, विष और दुर्घटना आदि से मृत लोगों का श्राद्ध किया जाता है.
  • इसके अतिरिक्त सर्पदंश, ब्राह्मण श्राप, वज्रघात, अग्नि से जले हुए, दंतप्रहार-पशु से आक्रमण, फांसी लगाकर मृत्य, क्षय जैसे महारोग हैजा, डाकुओं के मारे जाने से हुई मृत्यु वाले प्राणी श्राद्धपक्ष की चतुर्दशी और अमावस्या के दिन तर्पण और श्राद्ध करना चाहिये. जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो उनका भी अमावस्या को ही करना चाहिए.

पितरों को जल कितने बजे देना चाहिए: –

पितरों को जल देने का समय प्रात: 11:30 से 12:30 के बीच का होता है. पितरों को जल चढ़ाते समय कांसे का लोटा या तांबे के लोटे का प्रयोग करें.

पितरों को पानी देते समय कौन सा मंत्र बोलना चाहिए: –

इसके अलावा पितृ गायत्री मंत्र पढ़ने से भी पितरों की आत्मा को मुक्ति मिलती है तथा उनका आशीर्वाद भी मिलता है, ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्।

पितृ क्यों करते हैं ब्राह्मणों के शरीर में प्रवेश: –

श्राद्ध का पक्ष आ गया है, ऐसा जानते ही पितरों को प्रसन्नता होती है. वे परस्पर ऐसा विचार करके उस श्राद्ध में मन के सामान तीव्र गति से अपने परिजनों के घर आ पहुंचते हैं और अंतरिक्ष गामी पितृगण श्राद्ध में ब्राह्मणों के साथ ही भोजन करते हैं. जिन ब्राह्मणों को श्राद्ध में भोजन कराया जाता है, पितृगण उन्ही के शरीर में प्रविष्ट होकर भोजन करते हैं. उसके बाद अपने कुल के श्राद्धकर्ता को आशीर्वाद देकर पितृलोक चले जाते हैं.

ब्राह्मण भोजन के लिए सबसे अच्छा मुहूर्त: –

पितरों के स्वामी भगवान् जनार्दन के ही शरीर के पसीने से तिल की और रोम से कुश की उत्पत्ति हुई है. इसलिए तर्पण और अर्घ्य के समय तिल और कुश का प्रयोग करना चाहिए. श्राद्ध में ब्राह्मण भोज का सबसे पुण्यदायी समय कुतप, दिन का आठवां मुहूर्त अभिजित 11 बजकर 36 मिनट से लेकर १२ बजकर २४ मिनट तक का माना गया है. इस अवधि के मध्य किया जाने वाला श्राद्ध तर्पण एवं ब्राह्मण भोजन पुण्य फलदायी होता है.

इस कारण पितृ पीते हैं अपने परिजन का खून:

श्राद्धकर्म प्रकाश के अतिरिक्त पुराणों में लिखा गया है कि, श्राद्धं न कुरुते मोहात तस्य रक्तं पिबन्ति ते. अर्थात् जो श्राद्ध नहीं करते उनके पितृ उनका ही रक्तपान करते हैं और साथ ही… पितरस्तस्य शापं दत्वा प्रयान्ति च. यानी जब कोई व्यक्ति अपने पितरों का श्राद्ध नहीं करता है तो पितृगण अमावस्या तक प्रतीक्षा करने के पश्चात अपने परिजन को श्राप देकर पितृलोक चले जाते हैं.

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When ancestors get angry…

Om Pitrganaay Vidmahe Jagat Dhaarinee Dheemahi Tanno Pitaro Prachodayaat.

 There is no better solution than Shraddha to get relief from all three troubles – physical, divine and physical, hence a person should perform Shraddha diligently. The month of ancestors is celebrated from Shraddhapaksha Bhadon Purnima to Ashwin Amavasya. Lord Brahma has created this Paksha only for the ancestors. As a result of Suryaputra Yamdev’s severe penance for twenty thousand years, Lord Shiva made him the master of Yamalok and Pitralok. It is believed that those beings who do not do puja throughout the year can do good deeds and attain virtue by just performing the Shraddha of their ancestors.

According to Acharyas, the auspicious time of Shradh in the year 2024 will be from 11:50 am to 12:39 pm on 18 September 2024. Perform Shradh, Tarpan and Pinddaan during this period only.

Who are the ancestral gods: –

Aryama, the god of ancestors and Sarvapitri… These twelve are:- Anshuman, Indra, Aryaman, Tvashta, Dhatu, Parjanya, Pusha, Bhag, Mitra, Varun, Vivasvan and Trivikram (Vaman). Introduction of Aryama: Aryaman or Aryama, the third son of Aditi and one of the solar gods named Aditya is also called the god of ancestors.

Shraddha-Tarpan can be performed on 96 occasions: –

There are 96 occasions in a year to perform the Shraddha of ancestors. These are 12 Amavasya of twelve months, four dates of the beginning of Satyayuga, Treta, Dwapara and Kaliyuga, 14 Manvadi dates of the beginning of humans, 12 Sankrantis, 12 Vaidhriti Yoga, 12 Vyatipat Yoga, 15 Mahalaya-Shraddha Paksha dates, five Ashtakas. Five Anashtaka and five Purvedyuhs are 96 opportunities to perform Shraddha. These auspicious opportunities can be availed by asking your priest or qualified scholars.

Whose Shraddha should be performed on which date: –

In any month on which the death of a family member occurs, Shraddha should be performed in this Mahalaya on that respective date. There are also some special dates on which Shraddha is performed for any kind of deceased family member.

  1. Shraddha is performed on Navami Tithi for Saubhagyavati i.e. women who have died while their husbands are alive.
  2. In Ekadashi, Shraddha of Vaishnav Sanyasi is performed, in Chaturdashi, Shraddha of people who died due to weapons, suicide, poison accident etc. is performed.
  3. Apart from this, performing Tarpan and Shraddha on Chaturdashi and Amavasya days of Shraddha Paksha of animals who died due to snakebite, Brahmin curse, thunderbolt attack, burning by fire, teeth attack, death by hanging, tuberculosis, major diseases like cholera, being killed by bandits. Want. Those who have not been cremated after death should also be cremated on Amavasya.

At what time should water be given to ancestors: –

The time for offering water to ancestors is between 11:30 am to 12:30 pm. While offering water to ancestors, use a bronze or copper pot.

Which mantra should be chanted while giving water to ancestors: –

Apart from this, reciting Pitru Gayatri Mantra also liberates the souls of ancestors and also gives them blessings. Om Pitrganaay Vidmahe Jagat Dhaarinee Dheemahi Tanno Pitaro Prachodayaat.

Why do ancestors enter the body of Brahmins: –

The ancestors feel happy after knowing that the time of Shraddha has arrived. Thinking this to each other, they reach the homes of their relatives with great speed in that Shraddha and the departed ancestors eat food with the Brahmins in the Shraddha. The ancestors enter into the bodies of those Brahmins who are offered food during Shraddha and eat the food. After that, after blessing the Shraddha performer of his clan, he goes to his ancestral home.

Best time for Brahmin food: –

Sesame seeds were born from the sweat of the body of Lord Janardan, the lord of the ancestors, and Kush was born from hair. Therefore, sesame and kush should be used at the time of tarpan and arghya. The most auspicious time for the Brahmin feast in Shraddha is Kutap, the eighth Muhurta of the day, Abhijit, from 11:36 a.m. to 12:24 p.m. The Shraddha, Tarpan and Brahmin food performed during this period is fruitful.

This is why ancestors drink the blood of their relatives: –

Apart from Shraddhakarma Prakash, it is written in the Puranas that, Shraddha na kurute mohat tasya raktam pibanti te. That is, those who do not perform Shraddha, their ancestors drink their blood and also… Pitrastasya Shapan Datva Prayanti Ch. That is when a person does not perform the Shraddha of his ancestors, then after waiting till Amavasya, the ancestors curse their family members and go to the ancestral world.

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