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अनिश्चित सोच और बढ़ते विकसित देश …

वैश्वीकरण के इस युग में विकासशील देशों की प्रगति अक्सर “अनिश्चित सोच” (Uncertain Thinking) से प्रभावित होती है. यह अवधारणा अस्थिर नीतियों, राजनीतिक द्वंद्व, और दीर्घकालिक योजनाओं के अभाव को दर्शाती है. जबकि विकसित देश स्थिरता और रणनीतिक नियोजन पर जोर देते हैं, विकासशील राष्ट्र अक्सर अल्पकालिक समाधानों और अनिश्चितता के दुश्चक्र में फंसे दिखाई देते हैं.

बार-बार सरकारों का बदलना, नीतिगत उलटफेर, और दलीय संघर्ष दीर्घकालिक योजनाओं को अवरुद्ध करते हैं. उदाहरणार्थ, भारत में जीएसटी (GST) जैसे सुधारों को लागू करने में देरी राजनीतिक मतभेदों के कारण हुई. वहीं, वैश्विक बाजारों में उतार-चढ़ाव, मुद्रास्फीति, और ऋण का बोझ सरकारों को तात्कालिक निर्णयों पर मजबूर करता है. श्रीलंका का आर्थिक संकट (वर्ष 2022) इसका प्रमुख उदाहरण है. शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार में अंतर लोगों के विश्वास को कमजोर करता है, जिससे सरकारें जनसमर्थन हासिल करने के लिए अल्पकालिक योजनाएँ बनाती हैं. संसाधनों का गलत आवंटन और नीतियों का क्रियान्वयन धीमा होना.

निवेशकों का अविश्वास और पूँजी का पलायन भी एक बड़ा कारण है. उदाहरण के लिए, दक्षिण अफ्रीका में बिजली संकट और नीतिगत अनिश्चितता ने FDI (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) को कम किया. वहीँ, बार-बार बदलती योजनाएँ (जैसे किसानों के लिए सब्सिडी) जनता में भ्रम पैदा करती हैं. जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए दीर्घकालिक नीतियों का अभाव हो. ब्राजील में अमेज़न वनों की कटाई पर रुख में उतार-चढ़ाव इसका सबसे बड़ा उदाहरण है.

विकसित देश (जैसे जर्मनी, जापान) संस्थागत मजबूती, पारदर्शिता, और नीतिगत निरंतरता पर निर्भर करते हैं. उदाहरण के लिए, जर्मनी की “Energiewende” (ऊर्जा संक्रमण नीति) दशकों से स्थिर है. इसके विपरीत, विकासशील देशों में अक्सर नए नेतृत्व के साथ नीतियाँ बदल जाती हैं.

इसके समाधान व उपाय के लिए न्यायपालिका, निर्वाचन आयोग, और नियामक जैसी संस्थाओं को स्वतंत्र बनाना होगा. साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढाँचे में निवेश को प्राथमिकता देना होगा. भारत का “नेशनल एजुकेशन पॉलिसी 2020” एक सकारात्मक कदम है. इसके साथ ही नागरिकों, विशेषज्ञों और निजी क्षेत्र को भी नीति-निर्माण में शामिल करना त्तथा अंतर्राष्ट्रीय संगठनों (जैसे UN, WTO) के साथ मिलकर संसाधनों और ज्ञान का आदान-प्रदान करना.

अनिश्चित सोच विकासशील देशों की प्रगति में एक बड़ी बाधा है, लेकिन यह अपरिहार्य नहीं है. राजनीतिक इच्छाशक्ति, संस्थागत सुधार, और जनता की सक्रिय भागीदारी से नीतिगत स्थिरता हासिल की जा सकती है. जैसा कि, नोबेल विजेता अमर्त्य सेन ने कहा, “विकास स्वतंत्रता का विस्तार है”- और यह विस्तार तभी संभव है जब अनिश्चितता के बादल दूर हों. विकासशील देशों को चाहिए कि वे अनिश्चितता को चुनौती के बजाय सीखने के अवसर के रूप में देखें और लचीले, परंतु सुसंगत नीतिगत ढाँचे का निर्माण करें.

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