मन की चंचलता नियंत्रित होती है…
अभ्यास और वैराग्य से मन की चंचलता नियंत्रित होती है। इसलिए मन का निरोध करने के लिए अभ्यास और वैराग्य आवश्यक है। वैराग्य दो प्रकार का होता है – परा वैराग्य और अपरा वैराग्य।परा वैराग्य में ईश्वर के प्रति अनुरक्ति,अनुराग होता है। इसमें ऐसी भावना होती है कि प्रभू आप मेरे हैं और मैं आपका हूं।अपरा वैराग्य में सांसारिक विषयों के प्रति विकर्षण होता है।संसार के पदार्थों के प्रति विरक्ति हो जाती है।
सांसारिक पदार्थों के प्रति लगाव जब खत्म हो जाता है,तो वह लगाव परमात्मा से जुड़ जाता है।श्री मद भगवत गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से अभ्यास और वैराग्य की सीख देते हुए कहते हैं कि – संशय महावाहो मनो दुनिग्रह चलम। अभ्यास कौन्तेय वैराग्येन च गृहते।
अभ्यास से वैराग्य जागता है, और वैराग्य से अभ्यास में मध लगता है। हमारे जीवन में जो संस्कार होता है,उसी से हम सक्रिय होते हैं।इस संसार में परमात्मा ही मूल सत्ता हैं।हम सभी उनकी छाया हैं। देश काल और पात्र के परिस्थिति के अनुसार हमें साधना करनी चाहिए। साधना में हमें अपना अस्तित्व खो देना होता है।जो दोनों समय साधना करते हैं, मृत्यु के समय उसे काल का भय नहीं सताता है।
======== ========= ========== ==========
The fickleness of the mind is controlled by practice and dispassion. That’s why practice and quietness are necessary to restrain the mind. There are two types of Vairagya – Para Vairagya and Apara Vairagya. In Para Vairagya there is attachment towards God. In this, there is a feeling that Lord you are mine and I am yours. In Apara Vairagya, there is aversion towards worldly subjects. There is detachment towards the things of the world.
When the attachment towards worldly things ends, then that attachment gets connected with the divine. In Shrimad Bhagwat Gita, Shri Krishna while teaching Arjuna about practice and disinterest says that – Sanshay Mahavaho Mano Dunigraha Chalam. Abhyas kaunteya vairagyen ca grihate.
Practice awakens detachment, and detachment brings honey to practice. We become active by the rituals that happen in our life. God is the main power in this world. We all are his shadow. We should do spiritual practice according to the circumstances of the country, time, and character. We have to lose our existence in spiritual practice. Those who do spiritual practice both times, at the time of death the fear of time does not bother them.
नोट : इसे एडिट नहीं किया गया है.