दोहा :-
काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ।
सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत ।।
श्लोक का अर्थ बताते हुए महाराजजी कहते है कि, हे नाथ ! काम, क्रोध, मद और लोभ – ये सब नरक के रास्ते है, इन सबको छोड़कर श्रीरामचन्द्रजी को भजिए, जिन्हे संत भजते है.
चौपाई :-
तात राम नहिं नर भूपाला। भुवनेस्वर कालहु कर काला।।
ब्रह्म अनामय अज भगवंता। ब्यापक अजित अनादि अनंता ।।
श्लोक का अर्थ बताते हुए महाराजजी कहते है कि, हे तात ! राम मनुष्यो के ही राजा नही है. वे तो समस्त लोको के स्वामी और काल के भी काल है. वे ही सम्पूर्ण ऐश्र्वर्य, यश, श्री, वैराग्य, एवं ज्ञान के भंडार और भगवान् है, वे निरामय ( विकाररहित ), अजन्मे, व्यापक, अजेय, अनादि और अनन्त ब्रह्म है.
गो द्विज धेनु देव हितकारी। कृपासिंधु मानुष तनुधारी।।
जन रंजन भंजन खल ब्राता। बेद धर्म रच्छक सुनु भ्राता ।।
श्लोक का अर्थ बताते हुए महाराजजी कहते है कि, उनकी कृपा के समुन्द्र भगवान् ने पृथ्वी, ब्राह्मण, गो और देवताओ का हित करने के लिए ही मनुष्य शरीर धारण किया है. हे भाई ! सुनिए, वे सेवको को आनन्द देने वाले, दुष्टो के समूह का नाश करने वाले वेद तथा धर्म की रक्षा करने वाले है.
ताहि बयरु तजि नाइअ माथा। प्रनतारति भंजन रघुनाथा।।
देहु नाथ प्रभु कहुँ बैदेही। भजहु राम बिनु हेतु सनेही ।।
श्लोक का अर्थ बताते हुए महाराजजी कहते है कि, वैर त्यागकर उनकी शरण में जाइए. श्रीरघुनाथजी शरणागत का दुःख दूर करने वाले है. हे नाथ! जानकीजी को प्रभु! कोप दे दीजिए और बिना ही कारण स्नेह करने वाले श्रीरामचन्द्रजी को भजिए.
सरन गएँ प्रभु ताहु न त्यागा। बिस्व द्रोह कृत अघ जेहि लागा।।
जासु नाम त्रय ताप नसावन। सोइ प्रभु प्रगट समुझु जियँ रावन ।।
श्लोक का अर्थ बताते हुए महाराजजी कहते है कि, जिसे संपूर्ण जगत् से द्रोह करने का पाप लगा है, उनके शरण में जाने पर प्रभु उसका भी त्याग नही करते. जिसका नाम तीनो तापो का नाश करने वाला है, वे ही प्रभु मनुष्य रूप मे प्रकट हुए है. हे रावण ! हृदय में यह समझ लीजिए.
वालव्याससुमनजीमहाराज,
महात्मा भवन,
श्रीरामजानकी मंदिर,
राम कोट, अयोध्या.
Mob: – 8709142129.
========== ========== ===========
Raavan KO Vibhishan Ka Samajhaana Aur Vibhishan Ka Apmaan-01…
Doha: –
Kaam Krodh Mad Lobh Sab Naath Narak Ke Panth।
Sab Parihari Raghubeerahi Bhajahu Bhajahin Jehi Sant।।
Explaining the meaning of the verse, Maharaj ji says, O Lord! Lust, anger, pride and greed – all these are the paths to hell, leave them all and worship Shri Ramchandra ji, whom the saints worship.
Choupai: –
Taat Raam Nahin Nar Bhoopaala। Bhuvanesvar Kaalahu Karakala।।
Brahm Anaamay Aj Bhagavant। Bayaapak Ajit Anaadi Ananta।।
Explaining the meaning of the verse, Maharaj ji says, O Father! Ram is not the king of humans only. He is the master of all the worlds and also of time itself. He is the storehouse and God of all opulence, fame, glory, renunciation and knowledge, He is niramaya (without any disorder), unborn, all-pervasive, invincible, eternal and infinite Brahma.
Go Dvij Dhenu Dev Hitakaaree। Krpaasindhu Maanush Tanudhaaree।।
Jan Ranjan Bhanjan Khal Brata। Bed Dharm Rachak Sunu Bhraata।।
Explaining the meaning of the verse, Maharaj ji says that God, the ocean of his grace, has assumed the human body only for the welfare of the earth, Brahmins, cows and gods. Hey brother! Listen, He is the one who gives joy to the servants, who destroys the group of evil people and who protects the Vedas and Dharma.
Taahi Bayaru Taji nai Maatha। Pranataarati Bhanjan Raghunaatha।।
Dehu Naath Prabhu Kahun Badehee। Bhajahu Raam Binu Hetu Sanehee।।
Explaining the meaning of the verse, Maharaj Ji says, give up enmity and go to Him for refuge. Shri Raghunath ji is going to remove the sorrow of the surrendered person. Hey Nath! Lord to Janki ji! Give up your anger and send it to Shri Ramchandra ji who loves you without any reason.
Saran Gaen Prabhu Taahu Na Tyaaga। Bisv Droh Krit Agh Jehi Laaga।।
Jaasu Naam Tray Taap Tasaavan। Soi Prabhu Pragat Samujhu Jiyan Raavan।।
Explaining the meaning of the verse, Maharaj ji says that the Lord does not abandon even the one who has sinned betraying the entire world when he takes refuge in Him. The Lord whose name is the destroyer of all three heats has appeared in human form. Hey Ravana! Understand this in your heart.
Mahatma Bhawan,
Shriram Janaki Temple,
Ram Kot, Ayodhya.
Mob: – 8709142129.