Dharm

सुन्दरकाण्ड-09-1…

...हनुमान-रावण संवाद-2...

दोहा :-

जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि।

तासु दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि ।।

वाल्व्याससुमनजीमहाराज श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, जिनके लेशमात्र बल से तुमने समस्त चराचर जगत् को जीत लिया और जिनकी प्रिय पत्नी को तुम चोरी से हर लाए हो, और  मैं उन्ही का दूत हूँ.

चौपाई :-

जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई। सहसबाहु सन परी लराई।।

समर बालि सन करि जसु पावा। सुनि कपि बचन बिहसि बिहरावा ।।

महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, मैं तुम्हारी प्रभुता को खूब जानता हूँ सहस्रबाहु से तुम्हारी लड़ाई हुई थी और बालि से युद्ध करके तुमने यश प्राप्त किया था. हनुमानजी के मार्मिक वचन सुनकर रावण ने हँसकर बात टाल दी.

खायउँ फल प्रभु लागी भूँखा। कपि सुभाव तें तोरेउँ रूखा।।

सब कें देह परम प्रिय स्वामी। मारहिं मोहि कुमारग गामी ।।

महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि,  हे स्वामी मुझे भूख लगी थी, इसलिए मैने फल खाए और वानर स्वभाव के कारण वृक्ष तोड़े. हे निशाचर के मालिक ! देह सबको परम प्रिय है. कुमार्ग पर चलने वाले दुष्ट राक्षस जब मुझे मारने लगे.

जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे। तेहि पर बाँधेउ तनयँ तुम्हारे।।

मोहि न कछु बाँधे कइ लाजा। कीन्ह चहउँ निज प्रभु कर काजा ।।

महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, तब जिन्होने मुझे मारा , उनको मैने भी मारा. उस पर तुम्हारे पुत्र ने मुझको बाँध लिया. किन्तु  मुझे अपने बाँधे जाने की कुछ भी लज्जा नही है. मै तो अपने प्रभु का कार्य करना चाहता हूँ.

बिनती करउँ जोरि कर रावन। सुनहु मान तजि मोर सिखावन।।

देखहु तुम्ह निज कुलहि बिचारी। भ्रम तजि भजहु भगत भय हारी ।।

महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, हे रावण ! मै हाथ जोड़कर तुमसे विनती करता हूँ, तुम अभिमान छोड़कर मेरी सीख सुनो. तुम अपने पवित्र कुल का विचार करके देखो और भम्र को छोड़कर भयहारी भगवान् को भजो.

जाकें डर अति काल डेराई। जो सुर असुर चराचर खाई।।

तासों बयरु कबहुँ नहिं कीजै। मोरे कहें जानकी दीजै ।।

महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, जो देवता, राक्षस और समस्त चराचर को खा जाता है, वह काल भी जिनके डर से अत्यंत डरता है, उनसे कदापि वैर न करो और मेरे कहने से जानकी जी को दे दो.

प्रनतपाल रघुनायक करुना सिंधु खरारि।

गएँ सरन प्रभु राखिहैं तव अपराध बिसारि।।

महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, खर के शत्रु श्रीरघुनाथजी शरणागतो के रक्षक और दया के समुन्द्र है. उनकी शरण जाने पर प्रभु तुम्हारा अपराध भुलाकर तुम्हे अपनी शरण में रख लेंगे.

राम चरन पंकज उर धरहू। लंका अचल राज तुम्ह करहू।।

रिषि पुलिस्त जसु बिमल मंयका। तेहि ससि महुँ जनि होहु कलंका ।।

महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, तुम श्रीरामजी के चरण कमलो को ह्रदय मे धारण करो और लंका का अचल राज्य करो. ऋषि पुलस्त्यजी का यश निर्मल चंद्रमा के समान है. उस चन्द्रमा में तुम कलंक न बनो.

राम नाम बिनु गिरा न सोहा। देखु बिचारि त्यागि मद मोहा।।

बसन हीन नहिं सोह सुरारी। सब भूषण भूषित बर नारी ।।

महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, राम नाम के बिना वाणी शोभा नही पाती, मद-मोह को छोड़, विचारकर देखो. हे देवताओ के शत्रु ! सब गहनो से सजी हुई सुंदरी स्त्री भी कपड़ो के बिना नंगी शोभा नही पाती.

राम बिमुख संपति प्रभुताई। जाइ रही पाई बिनु पाई।।

सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं। बरषि गए पुनि तबहिं सुखाहीं ।।

महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, रामविमुख पुरूष की संपत्ति और प्रभुता रही हुई भी चली जाती है और उसकी पाना न पाने के समान है. जिन नदियो के मूल मे कोई जलस्त्रोत नही है या यूँ कहें कि (जिन्हे केवल बरसात ही आसरा है ) वे वर्षा बीत जाने पर फिर तुरंत ही सूख जाती है.

सुनु दसकंठ कहउँ पन रोपी। बिमुख राम त्राता नहिं कोपी।।

संकर सहस बिष्नु अज तोही। सकहिं न राखि राम कर द्रोही ।।

महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, हे रावण ! सुनो, मै प्रतिज्ञा करके कहता हूँ कि रामविमुख की रक्षा करने वाला कोई भी नही है. हजारो शंकर, विष्णु और ब्रह्मा भी श्रीरामजी के साथ द्रोह करने वाले तुमको नही बचा सकते हैं.

वालव्याससुमनजीमहाराज,

महात्मा भवन, श्रीरामजानकी मंदिर,

राम कोट, अयोध्या.

मो0 :- 8709142129.

========== ========== ===========

Sundarkand-09-1…

…Hanuman-Ravana Dialogue-02…

Doha:-

Jake Bal Lavles ten Jitehu Charaachar Jjhari

Taasu Doot main ja Kari Hari Aanehu Priya Naaree।।

Explaining the meaning of Valvyassumanji Maharaj shlok, he says that, by whose mere force you have conquered the whole world and whose beloved wife you have stolen away, and I am her messenger.

Chaupai:-

Janun Main Tumhari Prabhutai। Sahsabahu San Pari Larai।।

Samar Bali San Kari Jasu Pava। Suni Kapi Bachan Bihasi Biharaava ।।

Explaining the meaning of the verse, Maharajji says I know your lordship very well, you had a fight with Sahasrabahu and you gained fame by fighting with Bali. After listening to Hanumanji’s poignant words, Ravana laughed and avoided talking.

Khaayun Phal Prabhu Laagee BhoonkhaKapi Subhaav Ten Toreun Rookha।।

Sab ken Deh Param Priy SvaameeMaarahin Mohi Kumaarag Gaamee ।।

Maharajji explains the meaning of the verse and says O Swami, I was hungry, so I ate fruits and plucked trees because of my monkey nature. O Lord of the Night! The body is very dear to everyone. When evil demons walking on the wrong path started killing me.

Jinh Mohi Maara Te Main MaareTehi Par Bandheu Tanayan Tumhare।।

Mohi Na Kachhu Bandhe kai LajaKeenh Chahun Nij Prabhu Kar Kaja ।।

Explaining the meaning of the verse, Maharajji says, then those who killed me, I also killed them. On that, your son tied me up. But I am not ashamed of being tied. I want to do the work of my Lord.

Binati Karun Jori Kar RaavanSunahu Man Taji Mor Sikhaavan।।

Dekhahu Tumh Nij Kulahi BichariBhram Taji Bhajahu Bhagat Bhay Hari ।।

Explaining the meaning of the verse, Maharajji says, O Ravana! I request you with folded hands, leave your pride and listen to my lesson. Think about your holy family and worship the God of fear leaving illusions.

Jaaken Dar Ati Kaal DeraiJo Sur Asur Charaachar Khai।।

Tason Bayaru Kabahun Nahin KeejaiMore Kahen Janaki Dijai ।।

Explaining the meaning of the verse, Maharajji says that the one who eats gods, demons, and all the grazing animals, who is extremely afraid of Kaal, never has enmity with them and on my saying give it to Janaki ji.

Prantpal Raghunayak karuna

Gayen saran Prabhu Rakhihain Taw Apradh Bisari।।

Explaining the meaning of the verse, Maharajji says that Shri Raghunathji, the enemy of Khar, is the protector of the refugees and the ocean of mercy. On taking refuge in him, the Lord will forget your crime and keep you in his shelter.

Ram Charan “Pankaj Ur DharahooLanka Achal Raj Tumh Karahoo।।

Rishi Pulist Jasu Bimal ManyakaTehi Sasi Mahun Jani Hohu Kalanka ।।

Explaining the meaning of the verse, Maharajji says that you keep the lotus feet of Shriramji in your heart and rule Lanka unshakably. The fame of Rishi Pulastyaji is like the pure moon. Don’t be a blur in that moon.

Ram Nam Binu Gira Na SohaDekhu Bichaari Tyagi Mad Moha।।

Basan Hin Nahin Soh SurariSab Bhushan Bhushit Bar Nari ।।

Explaining the meaning of the verse, Maharajji says that, without the name of Ram, the speech does not suit, leave the intoxication, and think carefully. O enemy of the gods! Even a beautiful woman adorned with all ornaments does not look beautiful without clothes.

Ram Bimukh Sampati prabhutaeejai rahee Paee binu paee।।

Sajal Mool Jinh Saritanh Naaheenbarashi gae puni tabahin sukhaaheen ।।

Explaining the meaning of the verse, Maharajji says that the wealth and dominance of a man who is not devoted to Ram, even if he remains, goes away, and getting it is like not getting it. The rivers which do not have any source of water in their origin or should say (which are sheltered only by rain), they dry up immediately after the rains.

Sunu Dasakanth Kahun Pan RopiBimukh Ram Trata Nahin Kopi।।

Sankar Sahas Bishnu Aj ToheeSakahin Na Rakhi Ram kar drohi ।।

Explaining the meaning of the verse, Maharaj Ji says, O Ravana! Listen, I promise that there is no one to protect Ramvimukh. Even thousands of Shankars, Vishnu, and Brahma who betray Shriram ji cannot save you.

Walvayasumanji Maharaj,

Mahatma Bhavan, Shri Ramjanaki Temple,

Ram Kot, Ayodhya.

Mob: – 8709142129.

Rate this post
:

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!