Dharm

सुन्दरकाण्ड-08-2.

हनुमान जी द्वारा अशोक वाटिका विध्वंस

दोहा :-

कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि।

कछु पुनि जाइ पुकारे प्रभु मर्कट बल भूरि।।

महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, हनुमान जी उसकी सेना में से कुछ को मार डाला और कुछ को मसल दिया और कुछ को पकड़ कर धुल में मिला दिया. कुछ ने फिर जाकर रावण से पुकार की कि हे प्रभु ! बंदर बहुत ही बलवान है.

चौपाई :-

सुनि सुत बध लंकेस रिसाना। पठएसि मेघनाद बलवाना।।

मारसि जनि सुत बांधेसु ताही। देखिअ कपिहि कहाँ कर आही।।

महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, पुत्र का वध सुनकर रावण क्रोधित हो उठा और उसने अपने बड़े व बलवान पुत्र मेघनाद को भेजा.साथ ही रावण ने कहा – हे पुत्र ! उसे मारना नहीं बाँध लाना. उस बंदर को देखा जाए कि कहाँ का है…

चला इंद्रजित अतुलित जोधा। बंधु निधन सुनि उपजा क्रोधा।।

कपि देखा दारुन भट आवा। कटकटाइ गर्जा अरु धावा ।।

महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, इंद्र को जीतने वाला अतुलनीय योद्धा मेघनाद चला. साथ ही भाई का मारा जाना  सुन के उसे क्रोध हो आया. उधर हनुमानजी ने देखा कि अब एक भयानक योद्धा आ रहा है उसे देखकर हनुमानजी कटकटाकर गरजे और दौड़े.

अति बिसाल तरु एक उपारा। बिरथ कीन्ह लंकेस कुमारा।।

रहे महाभट ताके संगा। गहि गहि कपि मर्दइ निज अंगा ।।

महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, उन्होने एक बहुत बड़ा वृक्ष उखाड़ लिया और लंकेश्वर रावण के पुत्र मेघनाद के रथ को तोड़कर उसे नीचे पटक दिया. उसके साथ जो बड़े-बड़े योद्धाओं को पकड़-पकड़कर हनुमान् जी अपने शरीर से मसलने लगे.

तिन्हहि निपाति ताहि सन बाजा। भिरे जुगल मानहुँ गजराजा।।

मुठिका मारि चढ़ा तरु जाई। ताहि एक छन मुरुछा आई ।।

वाल्व्याससुमनजीमहाराज श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, उन सबको मारकर फिर मेघनाद से लड़ने लगे. लड़ते हुये दोनों ऐसे भिडे जैसे दो गजराज(हाथी) हों. हनुमान् जी उसे एक घूँसा मारकर वृक्ष पर जा चढ़े और मेघनाद को क्षण भर के लिए मूर्छा आ गई.

उठि बहोरि कीन्हिसि बहु माया। जीति न जाइ प्रभंजन जाया ।।

महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, फिर उठकर उसने बहुत माया रची, परन्तु पवन के पुत्र उससे जीते नही जाते.

वाल्वयासुमनजी महाराज,

महात्मा भवन, श्रीरामजानकी मंदिर,

राम कोट, अयोध्या.

मोब: – 8709142129.

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Sundarkand-08-1…

… Ashok Vatika destruction by Hanuman Ji…

 

Doha:-

 

Kachhu maaresi kachhu mardesi kachhu milesi dhari dhoori

Kachhu puni jai pukaare prabhu markat bal bhoori।।

Maharajji explains the meaning of the verse and says that Hanuman Ji killed some of his armies and crushed some and caught some and mixed them in the dust. Some went again and called out to Ravana, O Lord! Monkey is very strong.

Chaupaee:-

Suni sut badh lankes risaana pathesi meghanaad balavaana।।

Maarasi jani sut baandhesu taahee dekhi kapihi kahaan kar aahee।।

Maharajji explains the meaning of the verse and says that, while explaining the meaning of the verse, Ravana got angry after hearing the killing of the son and sent his elder and strong son Meghnad. Along with this, Ravana said – O son! Don’t kill him, tie him up. Let’s see where that monkey is from…

Chala indrajit atulit jodhabandhu nidhan suni upaja krodha।।

Kapi dekha daarun bhat aavakatakatai garja aru dhaava ।।

Explaining the meaning of the verse, Maharajji says that Meghnad, the incomparable warrior who conquered Indra, went on. At the same time, he got angry after hearing that his brother was killed. On the other hand, Hanumanji saw that now a terrible warrior is coming, seeing him, Hanumanji roared and ran.

Ati bisaal taru ek upaarabirath keenh lankes kumaara।।

Rahe mahaabhat taake sangagahi gahi kapi mardi nij anga ।।

Describing the meaning of the verse, Maharajji says that he uprooted a huge tree and broke the chariot of Lankeshwar Ravana’s son Meghnad and threw it down. Hanuman Ji started rubbing his body by holding big warriors with him.

Tinhahi nipaati taahi san baajabhire jugal maanahun gajaraaja।।

Muthika maari chadha taru jaeetaahi ek chhan muruchha aaee ।।

Describing the meaning of the verse, Valvyassumanji Maharaj says that after killing them all, he again started fighting with Meghnad. While fighting, both clashed like two elephants. Hanuman ji hit him with one punch and climbed the tree and Meghnad fainted for a moment.

Uthi bahoree keenhisi bahu maayajeeti na jay prabhanjan jay।।

Describing the meaning of the verse, Maharajji says that, after getting up, he created a lot of illusion, but the sons of Pawan do not get won by him.

Valvayasumanji Maharaj,

Mahatma Bhavan, Shri Ramjanaki Temple,

Ram Kot, Ayodhya.

Mob: – 8709142129.

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