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साया …

अध्याय 1

गाँव के बाहर, बरगद के पुराने पेड़ के नीचे, एक साया मंडराता था. न वह पूरी तरह से अँधेरा था, न पूरी तरह से रोशनी, बल्कि दोनों के बीच एक धुंधली सी परत. गाँव के लोग उसे ‘साया’ कहते थे. कुछ कहते थे कि वह एक भटकती हुई आत्मा है, जिसे शांति नहीं मिली. कुछ मानते थे कि वह जंगल का रक्षक है, जो बुरी आत्माओं से गाँव की रक्षा करता है. बच्चे उससे डरते थे, पर फिर भी, एक अजीब आकर्षण उन्हें उस पेड़ के पास खींच लाता था.

बारिश की एक रात, जब बिजली कड़क रही थी और हवा चीख रही थी, एक छोटा लड़का, अमन, गलती से जंगल में भटक गया. वह डरा हुआ था और रो रहा था. तभी उसने बरगद के पेड़ के नीचे उस साये को देखा. साया स्थिर था, पर उसमें एक अजीब सी चमक थी. अमन डर के मारे काँपने लगा, पर भाग नहीं सका.

धीरे-धीरे, साया आगे बढ़ा. अमन ने अपनी आँखें बंद कर लीं, डर रहा था कि अब क्या होगा. पर कुछ नहीं हुआ. जब उसने धीरे से अपनी आँखें खोलीं, तो साया बिल्कुल उसके सामने था. और उस साये में, रवि ने एक आकृति देखी – धुंधली, पर फिर भी पहचानी जा सकने वाली. वह एक औरत की आकृति थी, जिसके चेहरे पर उदासी थी.

शेष भाग अगले अंक में…,

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