
व्यक्ति विशेष– 649.
वैज्ञानिक मेघनाथ साहा
मेघनाथ साहा एक प्रमुख भारतीय वैज्ञानिक थे जिनका जन्म 6 अक्टूबर 1893 को हुआ था और उनका निधन 16 फरवरी 1956 को हुआ. उन्होंने खगोल भौतिकी और थर्मोडायनामिक्स के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया. साहा सबसे अधिक अपने “साहा आयनीकरण समीकरण” के लिए जाने जाते हैं, जिसे उन्होंने वर्ष 1920 में प्रस्तुत किया था. यह समीकरण तारों के वायुमंडल में विभिन्न तत्वों के आयनीकरण की व्याख्या करता है, जिससे खगोलविदों को तारों के तापमान और उनकी रासायनिक संरचना का अध्ययन करने में मदद मिली.
साहा का समीकरण खगोल भौतिकी में एक क्रांतिकारी खोज थी, जिसने विज्ञान के इस क्षेत्र में अनुसंधान की नई दिशाएं खोलीं. उन्होंने अपने कैरियर में भारतीय विज्ञान और शिक्षा के प्रसार के लिए भी काफी काम किया. उन्होंने कई वैज्ञानिक संस्थानों की स्थापना में मदद की और भारत में विज्ञान शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए काम किया.
मेघनाथ साहा को उनके असाधारण योगदान के लिए विभिन्न सम्मानों और पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था. उनका काम आज भी खगोल भौतिकी और थर्मोडायनामिक्स के क्षेत्र में अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा का स्रोत है.
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अभिनेता विनोद खन्ना
विनोद खन्ना एक प्रसिद्ध भारतीय अभिनेता थे जिन्होंने वर्ष 1970 – 80 के दशक में बॉलीवुड में अपना एक विशेष स्थान बनाया. उन्हें उनके आकर्षक व्यक्तित्व और शक्तिशाली अभिनय कौशल के लिए जाना जाता है. विनोद खन्ना का जन्म 6 अक्टूबर, 1946 में पेशावर, पाकिस्तान में हुआ था और उनकी मृत्यु 27 अप्रैल, 2017 को हुआ था.
विनोद खन्ना ने अपने कैरियर की शुरुआत 1968 में फिल्म “मन का मीत” से की थी. उन्होंने कई हिट फिल्मों में काम किया जैसे कि “मेरे अपने”, “मेरा गांव मेरा देश”, “इम्तिहान”, और “अमर अकबर एंथोनी”.
विनोद खन्ना ने न केवल नायक के रूप में बल्कि कई फिल्मों में खलनायक के रूप में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया. उन्होंने अपने अभिनय कैरियर के चरम पर आध्यात्मिकता की ओर रुख किया और कुछ समय के लिए फिल्म जगत से दूर रहे. बाद में उन्होंने फिल्मों में वापसी की और कई और सफल फिल्में दीं. विनोद खन्ना ने राजनीति में भी अपना कैरियर बनाया और भारतीय जनता पार्टी के सदस्य के रूप में चार बार सांसद भी रहे.
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सिक्खों के सातवें गुरु गुरु हरराय
गुरु हरराय सिक्खों के सातवें गुरु थे. उनका जन्म 16 जनवरी 1630 को पंजाब में हुआ था. वे गुरु हरगोबिंद के पोते और बाबा गुरदित्त के पुत्र थे. गुरु हरराय ने 1644 में, 14 साल की उम्र में, सिक्ख धर्म के गुरु का पद संभाला और 1661 तक इस पद पर रहे.
गुरु हरराय ने सिक्ख धर्म के आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों को बढ़ावा दिया. उन्होंने अपने अनुयायियों को करुणा, सेवा और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी. उन्होंने एक औषधालय (हर्बल डिस्पेंसरी) स्थापित किया, जहां वे रोगियों का इलाज करते थे. उन्होंने प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण पर भी जोर दिया.
गुरु हरराय ने मुगल शासक शाहजहां और उनके पुत्र औरंगज़ेब के समय में सतर्कता और विवेक के साथ कार्य किया. उन्होंने सिखों की सुरक्षा और धर्म की रक्षा सुनिश्चित की. उन्होंने सिख धर्म के मूल सिद्धांतों का प्रचार किया और गुरुग्रंथ साहिब की शिक्षाओं को आगे बढ़ाया. वे सिख समुदाय को संगठित और मजबूत करने में सफल रहे.
गुरु हरराय ने युद्ध के समय शांति और करुणा की शिक्षा दी. हालांकि वे अपने दादा गुरु हरगोबिंद के समान योद्धा नहीं थे, फिर भी उन्होंने सिख समुदाय को आत्मनिर्भर और संगठित बनाए रखा. उन्होंने दयालुता और सेवा की मिसाल पेश की और किसी भी प्रकार की हिंसा से बचने का संदेश दिया.
गुरु हरराय की मृत्यु 6 अक्टूबर 1661 को हुई थी. गुरु हरराय ने अपने सबसे छोटे पुत्र गुरु हरकिशन को अपना उत्तराधिकारी चुना, जो सिक्खों के आठवें गुरु बने. गुरु हरराय का जीवन सिख इतिहास में एक शांतिपूर्ण और दयालु नेतृत्व का प्रतीक माना जाता है.
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राजनीतिज्ञ वी. के. कृष्ण मेनन
वी. के. कृष्ण मेनन भारतीय राजनीति के प्रमुख व्यक्तित्वों में से एक थे. उनका पूरा नाम वेंगलील कृष्णन कृष्ण मेनन है, और वे 03 मई 1896 को कालीकट, मद्रास (अब चेन्नई) के एक सम्पन्न नायर परिवार में हुआ था. कृष्ण मेनन को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक अग्रणी सदस्य के रूप में जाना जाता है. वे विशेष रूप से अपने कूटनीतिक कौशल और उनके द्वारा भारत के लिए किए गए विदेश नीति में योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं.
वे भारतीय संसद के सदस्य भी रहे और विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर आसीन थे, जिसमें रक्षा मंत्री और भारतीय उच्चायुक्त (हाई कमिशनर) के रूप में लंदन में कार्य करना शामिल है. उनकी विदेश नीति में सबसे बड़ी भूमिका शीत युद्ध के दौरान थी, जब उन्होंने गुटनिरपेक्ष आंदोलन में भारत की भूमिका को मजबूत किया.
वी. के. कृष्ण मेनन का निधन 6 अक्टूबर 1974 को दिल्ली में हुआ था. उनके कैरियर को विवादों और उपलब्धियों का मिश्रण माना जाता है, और उन्होंने भारतीय राजनीति में अपनी अमिट छाप छोड़ी है.
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क्रांतिकारी गोकुलभाई भट्ट
गोकुलभाई भट्ट राजस्थान के एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक और राजनीतिज्ञ थे. उन्हें विशेष रूप से राजस्थान के गांधी के रूप में जाना जाता है. वे स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी के साथ-साथ समाज सुधार और शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए प्रसिद्ध थे.
गोकुलभाई भट्ट का जन्म 16 फरवरी 1898 को सिरोही, राजस्थान में हुआ था और उनकी मृत्यु 6 फरवरी 1977 को हुई. वे महात्मा गांधी से प्रभावित थे और असहयोग आंदोलन तथा भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रहे. उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विभिन्न आंदोलनों में भाग लिया और कई बार जेल भी गए.
राजस्थान को एकीकृत करने और सिरोही को राजस्थान का हिस्सा बनाने में गोकुलभाई भट्ट की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी. उन्होंने कई विद्यालयों की स्थापना में योगदान दिया और शिक्षा को आम जनता तक पहुँचाने का प्रयास किया साथ ही महिलाओं की शिक्षा और दलित उत्थान के प्रबल समर्थक थे.
गोकुलभाई भट्ट आजीवन सादगी और अहिंसा के मार्ग पर चले. उन्होंने अपने कार्यों के माध्यम से समाज में सुधार लाने का निरंतर प्रयास किया. गोकुलभाई भट्ट को “राजस्थान के गांधी” की भी उपाधि दी गई थी या यूँ कहें कि, गोकुलभाई भट्ट को राजस्थान के गांधी नहीं कहा जाता है. गोकुलभाई भट्ट के योगदान को याद करने के लिए राजस्थान सरकार ने कई योजनाएँ और संस्थाएँ उनके नाम पर स्थापित की हैं.
गोकुलभाई भट्ट का जीवन प्रेरणादायक था, और वे आज भी राजस्थान के सामाजिक और राजनीतिक इतिहास में एक महान क्रांतिकारी के रूप में याद किए जाते हैं.