
व्यक्ति विशेष– 535.
गुरु हरगोविंद सिंह
गुरु हरगोविंद सिंह सिखों के छठे गुरु थे, जिनका जन्म 14 जून1595 ई. को बडाली (भारत) में हुआ था. वह गुरु अर्जन देव और माता गंगा के इकलौते पुत्र थे. वे सिख इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने सिख धर्म को एक नई दिशा दी. उनके नेतृत्व में सिख समुदाय ने आध्यात्मिकता के साथ-साथ सैन्य शक्ति को भी अपनाया.
गुरु हरगोविंद सिंह के पिता, गुरु अर्जुन देव जी, को वर्ष 1606 में मुगल शासन के अधीन शहीद कर दिया गया. इस घटना ने युवा हरगोविंद के मन में दृढ़ता और आत्मरक्षा की भावना को जन्म दिया. जब वे मात्र 11 वर्ष की आयु में गुरु बने, तब उन्होंने मिरी और पीरी का सिद्धांत प्रस्तुत किया—जिसका अर्थ है धार्मिक और सांसारिक शक्ति का संतुलन.
गुरु हरगोविंद सिंह ने सिखों की रक्षा के लिए एक सेना गठित की और अकाल तख्त की स्थापना की, जो सिखों के राजनीतिक और न्यायिक मामलों का केंद्र बन गया. यह स्थान सिखों को अपनी पहचान और स्वायत्तता बनाए रखने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता था. उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि अकाल तख्त पर लिया गया कोई भी निर्णय गुरुद्वारे के अंदर आध्यात्मिक रूप से लिए गए निर्णयों से कम महत्वपूर्ण नहीं होगा.
गुरु हरगोबिंद सिंह और मुगल साम्राज्य के बीच कई संघर्ष हुए. जहाँगीर ने उन्हें ग्वालियर किले में 12 साल के लिए कैद कर लिया था. यह अवधि उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी. जब उन्हें रिहा किया गया, तो उन्होंने अपने साथ 52 हिंदू राजाओं को भी मुक्त कराया, जिन्हें किले में बंदी बनाया गया था. इस घटना के कारण उन्हें ‘बंदी छोड़ बाबा’ के नाम से भी जाना जाता है.
हालांकि गुरु हरगोविंद सिंह ने सिखों को आत्मरक्षा के लिए संगठित किया, फिर भी वे गहरे आध्यात्मिक विचारों के समर्थक थे. उन्होंने शांति और न्याय की शिक्षा दी और सिखों को एकता बनाए रखने का संदेश दिया. उनका मानना था कि धर्म और शक्ति का मेल समाज को बेहतर बना सकता है.
गुरु हरगोविंद सिंह ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष कीरतपुर साहिब में बिताए और 3 मार्च 1644 को उनका निधन हुआ. उनके योगदान से सिख धर्म की नई दिशा बनी, जो आगे चलकर खालसा पंथ की स्थापना में सहायक रही.
गुरु हरगोविंद सिंह न केवल एक धार्मिक गुरु थे, बल्कि वे एक योद्धा, संरक्षक और मार्गदर्शक भी थे. उन्होंने धर्म और शक्ति को एक साथ जोड़कर सिखों को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दी. उनका जीवन और शिक्षाएं आज भी सिखों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं, जो उन्हें धर्म, न्याय और आत्म-सम्मान के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करती हैं.
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वैज्ञानिक सतीश चंद्र दासगुप्ता
सतीश चंद्र दासगुप्ता का जन्म 14 जून, 1880 को बंगाल स्थित कूरिग्राम गांव के रंगपुर में हुआ था. वर्तमान समय में यह गांव अभी बांग्लादेश की सीमा में आता है. सतीश चंद्र दासगुप्ता ने अपनी स्नातक शिक्षा अपने गांव से पूर्ण करने के बाद, रसायन विज्ञान में स्नातकोत्तर कोलकाता के प्रेसीडेन्सी कॉलेज से वर्ष 1906 में पूरा किया.
उन्होंने यह डिग्री जाने-माने वैज्ञानिक आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय के मार्गदर्शन में पूर्ण कर दासगुप्ता आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय की लैबोरेट्रीज में ही काम करने लगे. ज्ञात है कि, बीसवीं शताब्दी के पूर्व में महंगा एवं बहुत सारा माल विदेश से आयात किया जाता था लेकिन, सतीश चंद्र दासगुप्ता ने स्ट्राइसनाईन अल्कलॉइड्स का आविष्कार कर चाय के खराब पत्तों से कैफीन निकालना, कई तरह की प्राकृतिक स्याही का आविष्कार, तेल के साथ -साथ कई रासायनिक औज़ारों का भी आविष्कार किया.
सतीश चंद्र दासगुप्ता ने 86 वर्ष की उम्र में, गोगरा गांव में कृषि रिसर्च फॉर्म की स्थापना भी की. सतीश चंद दासगुप्ता जी की मृत्यु 24 दिसम्बर 1979 को हुई थी.
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निर्माता-निर्देशक के. आसिफ़
के. आसिफ़, जिनका पूरा नाम करीमुद्दीन आसिफ़ था, भारतीय सिनेमा के महान निर्माता-निर्देशक और पटकथा लेखक थे. उनका जन्म 14 जून 1922 को उत्तर प्रदेश के इटावा में हुआ था और उन्होंने अपने जीवन में भारतीय फिल्म जगत को कुछ अविस्मरणीय कृतियाँ दीं.
के. आसिफ़, एक प्रसिद्ध भारतीय फ़िल्म निर्माता और निर्देशक थे. उन्हें सबसे अधिक उनकी महाकाव्य हिन्दी फ़िल्म ‘मुगल-ए-आज़म’ के लिए जाना जाता है, जो वर्ष 1960 में रिलीज़ हुई थी. यह फ़िल्म भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक मील का पत्थर मानी जाती है और यह उस समय की सबसे महंगी फ़िल्मों में से एक थी. ‘मुगल-ए-आज़म’ की कहानी मुगल शासक अकबर के बेटे प्रिंस सलीम और एक गरीब नर्तकी अनारकली की अमर प्रेम कहानी पर आधारित है. इस फिल्म ने न केवल तकनीकी और कलात्मक दृष्टि से नए मानक स्थापित किए, बल्कि इसकी कहानी, संवाद, और संगीत भी अमर हो गए.
आसिफ़ ने अपने कैरियर में कुछ ही फिल्में बनाई, लेकिन उनकी हर कृति ने गहरी छाप छोड़ी. उनकी अन्य फिल्मों में “फूल” (1945) और “हलचल” (1951) शामिल हैं. दुर्भाग्यवश, उनकी महत्वाकांक्षी फिल्म “लव एंड गॉड” अधूरी रह गई, क्योंकि 9 मार्च 1971 को उनका निधन हो गया.
के. आसिफ़ की फ़िल्म निर्माण शैली उनके विस्तृत सेट, भव्यता, विस्तारपूर्ण नृत्य दृश्यों, और गहन कहानीकारी के लिए जानी जाती थी. उनका काम आज भी भारतीय सिनेमा के सर्वश्रेष्ठ निर्माणों में से एक माना जाता है.उनकी फिल्मों में भव्यता, ऐतिहासिक संदर्भ, और गहरी भावनात्मक अभिव्यक्ति देखने को मिलती है.
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अभिनेत्री किरण खेर
किरण खेर एक भारतीय अभिनेत्री, राजनेत्री और टेलीविजन व्यक्तित्व हैं. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत थिएटर से की और बाद में बॉलीवुड में अपनी पहचान बनाई. उनकी कुछ चर्चित फ़िल्में “देवदास,” “वीर-ज़ारा,” “रंग दे बसंती,” और “ओम शांति ओम” हैं. किरण खेर का 14 जून 1955 को पंजाब में हुआ था. उन्होंने पहले गौतम बेरी से विवाह किया था, लेकिन बाद में उनका तलाक हो गया. इसके बाद उन्होंने अनुपम खेर से शादी की. उनके बेटे सिकंदर खेर भी एक अभिनेता हैं.
किरण खेर ने राजनीति में भी भूमिका निभाई. वे भारतीय जनता पार्टी की सदस्य हैं और वर्ष 2014 में चंडीगढ़ से लोकसभा सांसद चुनी गईं. उनके सामाजिक कार्यों में भ्रूण हत्या के खिलाफ अभियान “लाडली” और कैंसर जागरूकता अभियान “रोको कैंसर” शामिल हैं. किरण खेर ने कई यादगार फिल्मों में अभिनय किया है, जिनमें उनकी भूमिकाएँ दर्शकों को बेहद पसंद आईं. जिनमें प्रमुख है: – खामोश पानी (2004), ओम शांति ओम (2007), दोस्ताना (2008), रंग दे बसंती (2006), वीर-ज़ारा (2004) और देवदास (2002).
किरण खेर की खासियत यह है कि वे गंभीर, चुलबुली और प्रेरणादायक किरदारों को सहजता से निभाती हैं.
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भौतिक वैज्ञानिक कार्यमाणिवकम श्रीनिवास कृष्णन
कार्यमाणिवकम श्रीनिवास कृष्णन एक प्रसिद्ध भारतीय भौतिक वैज्ञानिक थे, जिनका जन्म 4 दिसंबर 1898 को तमिलनाडु में हुआ था और 14 जून 1961 को उनका निधन हुआ. उन्होंने सी. वी. रमन के साथ मिलकर रमण प्रभाव की खोज में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
श्रीनिवास कृष्णन ने प्रकाशिकी, चुंबकत्व, इलेक्ट्रॉनिकी, ठोस अवस्था भौतिकी और विशेष रूप से धातु भौतिकी में कई खोजें कीं.उन्हें वर्ष 1954 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था.
उन्होंने भारतीय परमाणु आयोग और भारतीय वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद के संचालक मंडल में भी कार्य किया. इसके अलावा, वे भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी और भारतीय विज्ञान कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे.
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अभिनेता सुशांत सिंह
सुशांत सिंह एक प्रमुख भारतीय फ़िल्म और टेलीविजन अभिनेता थे, जिनका जन्म 21 जनवरी 1986 में पटना, बिहार, में पैदा हुए थे और उनका निधन 14 जून 2020 को हुआ था. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत टेलीविजन सीरियल “किस देश में है मेरा दिल” (2008) से की थी और फिर बॉलीवुड में कई महत्वपूर्ण फ़िल्मों में काम किया.
सुशांत सिंह की कुछ महत्वपूर्ण फ़िल्में इस प्रकार हैं:
“कैय पोछे अंगना हमार” (2013)
“शुद्ध देसी रोमांस” (2013)
“मसान” (2015)
“कैच: वीवाई एंड कैच” (2016)
” एम्. एस. धोनी: अनटोल्ड स्टोरी” (2016) – जिसमें उन्होंने क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी का किरदार निभाया था।
“केदारनाथ” (2018)
सुशांत सिंह के निधन के बाद, उनकी मौत पर बहुत विवाद उत्पन्न हुआ था और कई जांचो के बाद उनकी मौत को सुसाइड के रूप में घोषित किया गया था। उनकी मौत के परिप्रेक्ष्य में कई विवाद उत्पन्न हुए थे और सोशल मीडिया पर इसकी चर्चा बहुत हुई थी.