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व्यक्ति विशेष– 282.

बीरंगना रानी दुर्गावती

वीरांगना रानी दुर्गावती भारतीय इतिहास की एक प्रमुख योद्धा रानी थीं, जिन्होंने अपने साहस, वीरता, और स्वाभिमान से मुगलों के खिलाफ संघर्ष किया. रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को उत्तर प्रदेश के कालिंजर किले में हुआ था. उनके पिता राजा कीर्तिसिंह चंदेल थे, जो चंदेल वंश के शासक थे. उनकी शादी गोंडवाना राज्य के राजा दलपतिशाह से हुई, जो गोंड जनजाति के शक्तिशाली शासक थे.

पति दलपतिशाह की मृत्यु के बाद, रानी दुर्गावती ने अपने नाबालिग पुत्र वीर नारायण के नाम पर शासन संभाला. वह कुशल प्रशासक थीं और उनके नेतृत्व में गोंडवाना राज्य समृद्ध हुआ. रानी दुर्गावती को घुड़सवारी, तीरंदाजी, और तलवारबाजी में महारत हासिल थी. उनके शासनकाल के दौरान गोंडवाना राज्य के नागरिक सुखी और संपन्न थे.

वर्ष 1564 में मुगल बादशाह अकबर के सेनापति आसफ खान ने गोंडवाना पर आक्रमण किया. रानी दुर्गावती ने मुगलों के खिलाफ बहादुरी से संघर्ष किया, लेकिन अंतिम युद्ध में जब उन्होंने देखा कि उनकी सेना हारने वाली है, तो उन्होंने अपनी स्वतंत्रता और सम्मान को बचाने के लिए आत्महत्या करना बेहतर समझा. उन्होंने 24 जून 1564 को अपने ही खंजर से वीरगति प्राप्त की.

रानी दुर्गावती भारतीय इतिहास में साहस, नारी शक्ति, और मातृभूमि के प्रति समर्पण की अद्वितीय मिसाल हैं. उनका बलिदान आज भी भारतीय महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है.

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गायक राम चतुर मल्लिक

राम चतुर मल्लिक भारतीय शास्त्रीय संगीत के ध्रुपद शैली के प्रमुख गायक थे. वे दरभंगा घराने से संबंध रखते थे, जो ध्रुपद गायकी के चार प्रमुख घरानों में से एक है. ध्रुपद भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक प्राचीन शैली है, और राम चतुर मल्लिक इसके विशेष रूप से प्रशंसनीय कलाकार माने जाते थे. उनका जन्म बिहार के दरभंगा क्षेत्र में हुआ था, जो ध्रुपद गायकी का प्रमुख केंद्र रहा है.

राम चतुर मल्लिक का जन्म 05 अक्टूबर 1902 को चमथा गाँव (दरभंगा) में हुआ था.  उनके पिता का नाम पंडित राजित राम था जो दरभंगा महाराज के दरबार में संगीतज्ञ थे. राम चतुर ने अपने चाचा क्षितिजपाल से प्रारंभिक शिक्षा ली थी बाद में रामेश्वर पाठक से सितार वादन की शिक्षा ली.

राम चतुर मल्लिक का संगीत में अद्वितीय योगदान रहा है, खासकर उनकी विशिष्ट गायकी और रागों की गहरी समझ के लिए. उन्होंने ध्रुपद के अलाप, जो कि शास्त्रीय संगीत की सबसे पुरानी और शुद्धतम शैली मानी जाती है, में महारत हासिल की थी. उनका गायन शुद्धता, तन्मयता, और कठिन तालों को सहजता से प्रस्तुत करने के लिए जाना जाता था.

गायक राम चतुर मल्लिक का निधन 11 जनवरी 1990 को हुआ था. उनकी संगीत परंपरा को उनके परिवार और शिष्यों ने आगे बढ़ाया, जिससे ध्रुपद गायकी की धरोहर आज भी संरक्षित है.राम चतुर मल्लिक के योगदान ने उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत के इतिहास में एक प्रमुख स्थान दिलाया है.

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राजनितज्ञ कैलाशपति मिश्रा

कैलाशपति मिश्रा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक प्रमुख राजनेता थे, जिन्हें भारतीय राजनीति में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है. उनका जन्म 5 अक्टूबर 1923 को बिहार के बक्सर जिले में हुआ था. वे भारतीय जनसंघ और बाद में भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक थे. मिश्रा भारतीय राजनीति में अपनी स्पष्ट विचारधारा, संगठनात्मक कौशल और निष्ठा के लिए विख्यात थे.

कैलाशपति मिश्रा ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत भारतीय जनसंघ से की और बाद में भारतीय जनता पार्टी के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्हें वर्ष 1977 में जनता पार्टी की सरकार के दौरान बिहार के वित्त मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया, जहां उनके वित्तीय प्रबंधन और कार्यशैली की काफी सराहना हुई. उन्होंने वित्तीय अनुशासन लागू करने और राज्य के विकास के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की.

वर्ष 1990 के दशक में, मिश्रा ने भाजपा को मजबूत करने और उसकी जड़ें फैलाने में अहम योगदान दिया. उनकी संगठनात्मक क्षमता के कारण पार्टी बिहार और झारखंड में एक मजबूत राजनीतिक शक्ति बन पाई. इसके अलावा, उन्होंने भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के रूप में भी काम किया.

कैलाशपति मिश्रा को वर्ष 2003 में राजस्थान के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया, और बाद में वर्ष 2004 में गुजरात के राज्यपाल के रूप में भी कार्य किया. उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में स्वच्छ छवि, ईमानदारी और सेवा भाव को हमेशा प्राथमिकता दी. 03 नवंबर 2012 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनके योगदान और कर्तव्यपरायणता के कारण भारतीय राजनीति में उन्हें आज भी याद किया जाता है. वे विशेष रूप से भाजपा की जड़ें मजबूत करने और भारतीय राजनीति में राष्ट्रीय विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए प्रसिद्ध हैं.

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नर बहादुर भंडारी

नर बहादुर भंडारी सिक्किम के एक राजनेता थे, जो राज्य के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री के रूप में सेवा करने के लिए जाने जाते हैं. उनका जन्म 5 अक्टूबर 1940 को सिक्किम में हुआ था और वे सिक्किम की राजनीति के एक प्रमुख और लोकप्रिय नेता थे. भंडारी तीन बार सिक्किम के मुख्यमंत्री रहे और उन्हें सिक्किम के विकास और सामाजिक सुधारों में उनके योगदान के लिए व्यापक रूप से सम्मानित किया जाता है.

नर बहादुर भंडारी ने वर्ष 1979 में पहली बार सिक्किम के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और लगातार वर्ष 1994 तक इस पद पर बने रहे. वे सिक्किम संग्राम परिषद (एसएसपी) पार्टी के नेता थे, जिसके माध्यम से उन्होंने सिक्किम के लोगों के हितों के लिए संघर्ष किया. भंडारी को उनकी राष्ट्रीयता और क्षेत्रीयता के प्रति प्रतिबद्धता के लिए जाना जाता था, खासकर उस समय जब सिक्किम का भारत में विलय हुआ था.

उनके कार्यकाल के दौरान उन्होंने सिक्किम में शिक्षा, बुनियादी ढांचे, और कृषि विकास के क्षेत्रों में कई सुधारों की शुरुआत की. उन्होंने राज्य के विकास में अहम भूमिका निभाई और सिक्किम के आर्थिक और सामाजिक उत्थान के लिए काम किया. उनके नेतृत्व में सिक्किम ने न केवल राजनीतिक स्थिरता पाई, बल्कि राज्य के विकास में भी प्रगति की.

नर बहादुर भंडारी को वर्ष 2010 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, जो उनकी राजनीतिक और सामाजिक सेवाओं के लिए एक महत्वपूर्ण मान्यता थी. उनका निधन 16 जुलाई 2017 को हुआ, और उन्हें सिक्किम के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक के रूप में याद किया जाता है.

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पार्श्व गायिका ऐश्वर्या मजूमदार

ऐश्वर्या मजूमदार एक भारतीय पार्श्व गायिका हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी और गुजराती संगीत में सक्रिय हैं. उनका जन्म 5 अक्टूबर 1993 को अहमदाबाद, गुजरात में हुआ था. ऐश्वर्या ने बचपन से ही संगीत में रुचि दिखाई और छोटी उम्र से ही शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली.

उन्हें सबसे पहले प्रसिद्धि तब मिली जब उन्होंने वर्ष 2007 में ज़ी टीवी के लोकप्रिय गायन रियलिटी शो “अमूल वॉइस ऑफ इंडिया – छोटा चैंप्स” का खिताब जीता. उनकी मधुर आवाज़ और गहराई ने दर्शकों के बीच उन्हें खास पहचान दिलाई. इस शो ने उनके कैरियर को एक बड़ा मंच दिया, और इसके बाद उन्होंने हिंदी और गुजराती फिल्मों में पार्श्व गायन शुरू किया.

ऐश्वर्या मजूमदार को शास्त्रीय संगीत में भी महारत हासिल है और उन्होंने कई लाइव कॉन्सर्ट्स और संगीत समारोहों में प्रदर्शन किया है. उनकी आवाज़ की मिठास और विविधता ने उन्हें एक बहुमुखी गायिका के रूप में स्थापित किया है.

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उपन्यासकार दुर्गा प्रसाद खत्री

दुर्गा प्रसाद खत्री हिन्दी के प्रसिद्ध तिलिस्मी उपन्यासकार थे. उनका जन्म 12 जुलाई 1895 को वाराणसी (भूतपूर्व काशी) में हुआ था. उनके पिता का नाम प्रख्यात तिलस्मी उपन्यासकार देवकीनन्दन खत्री था.

वर्ष 1912 ई. में विज्ञान और गणित में विशेष योग्यता के साथ स्कूल लीविंग परीक्षा उन्होंने पास कर उन्होंने लिखना आरंभ किया और डेढ़ दर्जन से अधिक उपन्यास लिखे.

तिलस्मी उपन्यास में दुर्गा प्रसाद खत्री ने अपने पिता की परंपरा को आगे बढ़ाया वहीं , जासूसी उपन्यासों में राष्ट्रीय भावना और क्रांतिकारी आंदोलन को प्रतिबिम्बित किया.

कृतियाँ: –  तिलस्मी ऐयारी उपन्यास,

जासूसी उपन्यास – सुवर्णरेखा, स्वर्गपुरी, सागर सम्राट् साकेत.

उनके उपन्यासों में – प्रतिशोध, लालपंजा, रक्तामंडल, सुफेद शैतान जासूसी उपन्यास होते हुए भी राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत हैं और भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन को प्रतिबिंबित करते हैं.

दुर्गा प्रसाद खत्री का निधन 5 अक्टूबर 1974 को हुआ था. उन्होंने सामाजिक और राष्ट्रीय समस्याओं को जासूसी वातावरण के साथ ऐयारी जासूसी-परंपरा को मिलाकर एक नई परंपरा को विकसित करने की कोशिस की.

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गणितज्ञ प्रभु लाल भटनागर

प्रभु लाल भटनागर एक भारतीय गणितज्ञ थे, जिन्हें गणित और सांख्यिकी के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए जाना जाता है. भटनागर विशेष रूप से उनके द्वारा विकसित भटनागर-ग्रॉस-क्रूक (Bhatnagar-Gross-Krook, BGK) मॉडल के लिए प्रसिद्ध हैं, जो गैसों के सांख्यिकीय यांत्रिकी का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है. यह मॉडल वर्ष 1954 में प्रभु लाल भटनागर और उनके साथियों, ई. पी. ग्रॉस और एम. क्रूक द्वारा प्रस्तुत किया गया था, और आज भी गैसों के प्रवाह और उनके गुणों के अध्ययन के लिए उपयोग किया जाता है.

प्रभु लाल भटनागर का जन्म कोटा, राजस्थान में 8 अगस्त, 1912 को हुआ था. इनके पिता कोटा के महाराजा के दरबार में उच्च-पदासीन थे. ये पांच भाइयों में दूसरे स्थान पर थे. इन्होंने अपनी आरंभिक शिक्षा रामपुरा में और आगे कोटा के हर्बर्टर कॉलिज से ली.भटनागर का विवाह आनंद कुमारी से हुआ था.

प्रभु लाल भटनागर ने अपनी शिक्षा भारत में पूरी की और बाद में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ख्याति प्राप्त की. उन्होंने भौतिकी और गणित में गहरी दिलचस्पी दिखाई और दोनों क्षेत्रों में व्यापक शोध किए. उनका शोध कार्य खासतौर पर गैसों के गतिज सिद्धांत (Kinetic Theory of Gases) और गणितीय भौतिकी (Mathematical Physics) पर केंद्रित था.

BGK मॉडल का योगदान गैसों के प्रवाह और गतिज सिद्धांत की समझ में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ. यह मॉडल गैसों में कणों के टकराव और उनके वितरण के बीच संबंध को समझाने का एक सरल और प्रभावी तरीका प्रदान करता है. इसका उपयोग कई वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग समस्याओं में किया जाता है, जैसे तरल गतिकी (fluid dynamics), अर्धचालक यांत्रिकी (semiconductor mechanics), और वायुगतिकी (aerodynamics).

प्रभु लाल भटनागर का वैज्ञानिक कार्य आज भी अनुसंधान और शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ाया और अनुसंधान किया जाता है. उनका योगदान भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान जगत में अत्यधिक सम्मानित है. उनकी मृत्यु 5 अक्टूबर 1976 को हुई, लेकिन उनका काम गणितीय भौतिकी और वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में आज भी महत्वपूर्ण है, और उनकी विरासत भारतीय गणितज्ञों और वैज्ञानिकों के बीच प्रेरणादायक बनी हुई है.

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साहित्यकार भगवती चरण वर्मा

भगवती चरण वर्मा हिंदी साहित्य के एक साहित्यकार थे. जिनका जन्म 30 अगस्त 1903 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के शफीपुर गाँव में हुआ था और उनका निधन 5 अक्टूबर 1981 को हुआ. वह एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, जिन्होंने कविता, कहानी, उपन्यास, और पत्रकारिता जैसे कई क्षेत्रों में अपना योगदान दिया.

भगवती चरण वर्मा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए., एल.एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण की. उन्होनें लेखन तथा पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य किया. भगवती चरण वर्मा मुख्य रूप से अपने उपन्यासों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अपने साहित्य में सामाजिक और मनोवैज्ञानिक यथार्थ को गहराई से दर्शाया हैं. 

उनके उपन्यासों में समाज की सच्चाई, उसकी विसंगतियों और बदलते मूल्यों का वास्तविक चित्रण मिलता है. वे समस्याओं को उपदेशक की तरह नहीं, बल्कि एक सजग चितेरे की तरह प्रस्तुत करते हैं. उन्होंने पात्रों के मन की गहराई में उतरकर उनकी भावनाओं और संघर्षों को उजागर किया. उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास चित्रलेखा इसी का एक बेहतरीन उदाहरण है, जिसमें पाप-पुण्य की अवधारणा पर गहराई से विचार किया गया है.

वर्मा ने इतिहास को भी अपनी रचनाओं का आधार बनाया, जैसे कि भूले-बिसरे चित्र. इस उपन्यास में उन्होंने कई पीढ़ियों के सामाजिक और पारिवारिक बदलावों को चित्रित किया, जिसके लिए उन्हें वर्ष 1961 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.

प्रमुख कृतियाँ: – चित्रलेखा (1934), भूले-बिसरे चित्र (1959), टेढ़े-मेढ़े रास्ते (1946), सबहिं नचावत राम गोसाईं (1970).

 कविता संग्रह: – मधुकण (1932), प्रेम-संगीत (1937), मानव (1940).

कहानी संग्रह: – दो बाँके (1938), इंस्टालमेंट (1936).

साहित्य के क्षेत्र में उनके अतुलनीय योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उनके उपन्यास ‘भूले-बिसरे चित्र’ के लिए वर्ष 1961 में साहित्य अकादमी पुरस्कार और  साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा वर्ष 1971 में पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया. इसके अलावा, वे राज्यसभा के सदस्य भी रहे. भगवतीचरण वर्मा का निधन 5 अक्टूबर 1981 को हुआ था.

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