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मेरी इच्छा…
मेरी इच्छा गाँव जाने की है, माँ से गले लगने की है,
मैं नहीं जानता शायद इसीलिए ,मेरी इच्छा बचपन की ओर लौटने की है.
धूल भरी गलियों में लोटपोट होने की है जहां मैं खेला करता था,
और माँ दूर से पुकारती खोजती फिरती थी.
मेरी इच्छा दोस्तों के साथ, सरसों और गेहूँ की लहलहाती
फसलों के खेत में घुस,गन्ना चूसने की है, आल्हा और फाग गाने की है,
गांव की स्त्रियों से सुआ,भोजली और गौरा गीत सुनने की है,
मेरी इच्छा, गांव के ठाकुर देवता के मंदिर जाने की है.
महामाई मंदिर में शीश नवाने की है, सब याद आते हैं,
शहर की दहलीज में पर किसने देखा है यहाँ,
उगते-डूबते, सूरज-चाँद की लाली,
किसने सुना है यहाँ, गांव के शान्त कोलाहल में,
कोयल की कूक बसन्त राघव…
प्रभाकर कुमार.