
माँ स्कंदमाता…
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया|
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी||
चैत्र नवरात्रि जिसे वसंत नवरात्रि भी कहा जाता है. हिन्दू कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास (मार्च-अप्रैल) में मनाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है. यह त्योहार देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा और सम्मान में मनाया जाता है. नवरात्रि का शाब्दिक अर्थ है ‘नौ रातें’, और इस अवधि में, भक्त व्रत रखते हैं, मंदिरों में जाते हैं, और घरों में पूजा अर्चना करते हैं. इस दौरान देवी दुर्गा की मूर्तियों और प्रतीकों की विशेष पूजा की जाती है. नवरात्रि के पहले तीन दिन देवी दुर्गा, अगले तीन दिन देवी लक्ष्मी, और अंतिम तीन दिन देवी सरस्वती की पूजा के लिए समर्पित होते हैं. इस समय के दौरान, भक्तों द्वारा उपवास रखा जाता है साथ ही देवी के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है.
वर्ष 2025 में वसंती नवरात्रि के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की उपासना की जाती है. भगवान स्कंद की माता होने के कारण से ही माँ अम्बे को स्कंदमाता, पार्वती और उमा के नाम से भी जाना जाता है. चुकिं, भगवान ‘कुमार कार्तिकेय’ का ही दूसरा नाम “स्कंद” भी है. भगवान कार्तिकेय प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति भी बने थे. माँ स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं, इनके हाथों में कमल पुष्प और वरमुद्रा है. इनका वर्ण पूर्णतः सफेद हैं और ये कमल के आसन पर विराजमान है इसीलिए इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है, और इनका भी वाहन सिंह है. माँ अपने भक्तों की समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करती हैं, साथ ही मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं.
नवरात्रि के पाँचवें दिन स्कंदमाता की अलसी (तीसी) से औषधि के रूप में पूजा होती है चुकिं, अलसी एक औषधि होती है जिससे वात, पित्त, कफ जैसी मौसमी बीमारियों का इलाज होता है. इस औषधि को नवरात्रि में माँ स्कंदमाता को चढ़ाने से मौसमी रोगों से मुक्ति मिल जाती है. शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि के पाँचवें दिन का महत्व पुष्कल बताया गया है. इस चक्र में अवस्थित मन वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाओं एवं चित्तवृत्तियों का लोप हो जाता है. स्कंद माता को पार्वती एवं उमा के नाम से भी जाना जाता है. स्कंदमाता की आराधना के फल स्वरूप चित्त (मन) को शांति मिलती है.
साधक का मन समस्त लौकिक, सांसारिक, मायिक बंधनों से विमुक्त होकर पद्मासना माँ स्कंदमाता के स्वरूप में पूर्णतः तल्लीन होता है, और इस समय साधक को पूर्ण सावधानी के साथ उपासना की ओर आगे बढना चाहिए. माँ स्कंदमाता की उपासना से साधक की समस्त इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं, और इस मृत्युलोक में ही उसे परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है साथ ही मोक्ष का द्वार भी सुलभ हो जाता है. स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना भी हो जाती है.
मन्त्र: –
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
पूजा के नियम: –
माँ स्कंदमाता की उपासना करते समय पीले या लाल रंग के वस्त्र पहने और माँ को लाल-पीले व नील फूलों से चंदन, अक्षत, दूध, दही, शक्कर और पंचामृत अर्पित करें, साथ ही माँ की मूर्ति का ध्यान करते हुए, उनके मन्त्रों का जाप करें.