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व्यक्ति विशेष

भाग - 100.

मुमताज़ महल

मुमताज़ महल जिनका असली नाम अर्जुमन्द बानो बेगम था, मुगल सम्राट शाहजहाँ की पत्नी थीं. वह मुगल साम्राज्य की एक महत्वपूर्ण रानी थीं और उन्हें उनकी सुंदरता, बुद्धिमत्ता और शाहजहाँ के प्रति उनके प्रेम के लिए याद किया जाता है. उनका जन्म 6 अप्रैल 1593 को हुआ था और उनकी मृत्यु 17 जून 1631 को हुई थी.

मुमताज़ महल की मृत्यु के बाद, शाहजहाँ ने आगरा में उनकी याद में ताजमहल का निर्माण करवाया, जो आज दुनिया के सबसे प्रसिद्ध और सुंदर स्मारकों में से एक है. ताजमहल को अक्सर “प्रेम की अमर स्मृति” के रूप में वर्णित किया जाता है. मुमताज़ महल और शाहजहाँ के बीच का प्रेम इतिहास में सबसे अधिक प्रसिद्ध प्रेम कहानियों में से एक है.

उनकी शादी 1612 में हुई थी, और उनके बीच गहरा लगाव था. मुमताज़ महल ने शाहजहाँ को 14 बच्चे दिए, जिनमें से औरंगजेब, जो बाद में मुगल साम्राज्य का सम्राट बना, सबसे प्रसिद्ध है. मुमताज़ की मृत्यु उनके चौदहवें बच्चे को जन्म देते समय हुई थी, जिससे शाहजहाँ गहरे शोक में डूब गए थे.

ताजमहल का निर्माण उनकी मृत्यु के बाद शुरू हुआ और इसे पूरा होने में लगभग 22 वर्ष लगे. यह इमारत सफेद संगमरमर से बनी है और इसे इस्लामिक कला का एक उत्कृष्ट नमूना माना जाता है.

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निज़ाम उस्मान अली

निज़ाम उस्मान अली, जिन्हें मीर उस्मान अली खान भी कहा जाता है, हैदराबाद राज्य के आखिरी निज़ाम थे. वह 1911 से 1948 तक हैदराबाद राज्य के शासक रहे. उनका शासनकाल ब्रिटिश भारत में राजनीतिक उथल-पुथल और बदलावों के दौरान आया, जिसमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम भी शामिल था.

निज़ाम उस्मान अली को उनके समय में दुनिया के सबसे अमीर लोगों में से एक माना जाता था. उन्होंने हैदराबाद के विकास और आधुनिकीकरण में कई योगदान दिए, जिसमें स्कूल, कॉलेज, और अस्पतालों की स्थापना शामिल है. उन्होंने अपने राज्य को आर्थिक और सामाजिक रूप से सुधारने की दिशा में कई कदम उठाए.

1947 में भारत के स्वतंत्र होने के बाद, निज़ाम ने हैदराबाद को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में बनाए रखने की कोशिश की, लेकिन 1948 में भारतीय सेना के ऑपरेशन पोलो के बाद वे भारतीय संघ में शामिल हो गए. इसके बाद वह एक राज प्रमुख के रूप में बने रहे और उन्होंने सार्वजनिक जीवन से अपनी प्रत्यक्ष भागीदारी कम कर दी.

निज़ाम उस्मान अली का निधन 24 फरवरी 1967 को हुआ. उनकी मृत्यु के समय, वह अभी भी बहुत बड़ी संपत्ति और ऐतिहासिक महत्व के विरासती गहनों के मालिक थे. उनका शासन और उनके द्वारा किए गए कार्य आज भी हैदराबाद में उनकी विरासत के रूप में याद किए जाते हैं.

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राजनीतिज्ञ प्यारेलाल खण्डेलवाल

प्यारेलाल खण्डेलवाल एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे जो भारतीय जनता पार्टी के सदस्य थे. उनका जन्म 14 अक्टूबर 1931 को हुआ था और उनकी मृत्यु 7 अक्टूबर 2018 को हुई. खण्डेलवाल ने राजस्थान और भारतीय राजनीति में काफी लंबा समय बिताया और विभिन्न प्रमुख पदों पर कार्य किया.

उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के विकास और विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और विशेष रूप से राजस्थान में पार्टी के आधार को मजबूत करने में योगदान दिया. वह राजस्थान की राजनीति में एक प्रमुख आवाज थे और उन्होंने विधायिका में कई वर्षों तक सेवा की.

प्यारेलाल खण्डेलवाल अपने समय के प्रतिष्ठित और सम्मानित राजनीतिक व्यक्तित्वों में से एक थे, जिन्होंने अपनी नीतियों और कार्यों के माध्यम से समाज के विभिन्न वर्गों की सेवा की. उनकी मृत्यु पर राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में गहरी शोक की लहर दौड़ गई थी.

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अभिनेत्री सुचित्रा सेन

सुचित्रा सेन, भारतीय सिनेमा की एक अत्यंत प्रसिद्ध और सम्मानित अभिनेत्री थीं, जिन्होंने मुख्य रूप से बंगाली फिल्मों में काम किया। उनका जन्म 6 अप्रैल 1931 को पबना जिले में हुआ था, जो अब बांग्लादेश में है, और उनका निधन 17 जनवरी 2014 को हुआ. सुचित्रा सेन को उनकी गहरी अभिव्यक्तियों, खूबसूरती और उत्कृष्ट अभिनय प्रतिभा के लिए जाना जाता है.

सुचित्रा सेन ने 1950 और 1960 के दशकों में अपने कैरियर के चरम पर बंगाली और हिंदी सिनेमा पर राज किया. उन्होंने उत्तम कुमार के साथ कई फिल्मों में अभिनय किया, जो बंगाली सिनेमा के स्वर्ण युग के दौरान उनके सबसे प्रसिद्ध और सफल सह-कलाकार थे. दोनों की जोड़ी को बेहद लोकप्रिय माना जाता था और उनकी फिल्मों को आज भी बहुत पसंद किया जाता है.

सुचित्रा सेन की कुछ सबसे प्रसिद्ध फिल्मों में “आगमन”, “देवदास”, “सप्तपदी”, “इंद्राणी”, “उत्तर फाल्गुनी”, और “दीप ज्वेले जाई” शामिल हैं. उन्होंने हिंदी सिनेमा में भी अपनी छाप छोड़ी, जिसमें “देवदास” (1955 में दिलीप कुमार के साथ) और “बम्बई का बाबू” जैसी फिल्में शामिल हैं.

उनके अभिनय कैरियर के अलावा, सुचित्रा सेन का जीवन उनकी गोपनीयता और सार्वजनिक जीवन से दूरी के लिए भी जाना जाता था. वह अपने अंतिम वर्षों में बहुत कम ही सार्वजनिक रूप से दिखाई दीं, जिससे उनके चारित्रिक और निजी जीवन के बारे में एक रहस्यमयी आभा बनी रही. उनके निधन पर, भारतीय सिनेमा और बंगाली समुदाय ने एक महान कलाकार और आइकॉन को खो दिया.

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क्रिकेटर दिलीप वेंगसरकर

दिलीप वेंगसरकर एक प्रसिद्ध भारतीय क्रिकेटर हैं, जिन्होंने 1970 और 1980 के दशक में भारतीय राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के लिए खेला. उनका जन्म 6 अप्रैल 1956 को हुआ था. वेंगसरकर मुख्य रूप से एक मध्य क्रम बल्लेबाज थे और उन्हें अपने शानदार बल्लेबाजी कौशल के लिए जाना जाता था. उनकी तकनीक और स्थिरता ने उन्हें अपने समय के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों में से एक बना दिया.

वेंगसरकर को विशेष रूप से लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड पर उनके प्रदर्शन के लिए याद किया जाता है, जहाँ उन्होंने तीन शतक लगाए, जिसके लिए उन्हें ‘लॉर्ड ऑफ लॉर्ड्स’ का उपनाम दिया गया. वह पहले ऐसे अंतर्राष्ट्रीय बल्लेबाज बने, जिन्होंने लॉर्ड्स में तीन शतक लगाए.

वेंगसरकर ने अपने कैरियर के दौरान कई यादगार पारियाँ खेलीं और उन्होंने टेस्ट और वनडे दोनों प्रारूपों में भारत के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनकी कप्तानी में भारतीय टीम ने कुछ समय के लिए प्रतिस्पर्धी क्रिकेट खेला, हालाँकि उनका कप्तानी कार्यकाल बहुत लंबा नहीं रहा.

क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद, वेंगसरकर ने क्रिकेट प्रशासन और कोचिंग में भी अपना हाथ आजमाया. वह भारतीय टीम के चयन समिति के अध्यक्ष भी रहे और युवा प्रतिभाओं को तराशने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है. वेंगसरकर ने एक क्रिकेट अकादमी भी स्थापित की, जहाँ वह युवा क्रिकेटरों को प्रशिक्षित करते हैं. उनके योगदान के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था.

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अभिनेता संजय सूरी

संजय सूरी एक भारतीय अभिनेता, निर्माता, और पूर्व मॉडल हैं, जिन्होंने 1990 के दशक के अंत में अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत की. वह मुख्य रूप से हिंदी सिनेमा में सक्रिय हैं और उन्हें अक्सर उनके गहन और विविध भूमिकाओं के लिए सराहा जाता है. संजय सूरी की फिल्में अक्सर सामाजिक और व्यक्तिगत मुद्दों की गहराई में जाती हैं, जिससे उन्होंने पारंपरिक बॉलीवुड फार्मूला से हटकर अपनी एक विशेष पहचान बनाई है.

संजय ने “प्यार में कभी कभी” (1999) फिल्म के साथ अपनी अभिनय यात्रा शुरू की, लेकिन उन्हें असली पहचान “माई ब्रदर… निखिल” (2005) से मिली, जिसमें उन्होंने एक समलैंगिक तैराक की भूमिका निभाई, जिसे एचआईवी पॉजिटिव पाया जाता है. इस फिल्म ने न केवल समाज में एचआईवी/एड्स और समलैंगिकता के प्रति जागरूकता बढ़ाई, बल्कि संजय सूरी के अभिनय कौशल को भी सराहना मिली.

उन्होंने “जानकी विस” (2003), “फिर मिलेंगे” (2004), और “आई एम” (2010) जैसी फिल्मों में भी महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाई हैं. “आई एम” में उनकी भूमिका विशेष रूप से उल्लेखनीय है, क्योंकि इस फिल्म ने चार अलग-अलग कहानियों के माध्यम से भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया। संजय सूरी ने इस फिल्म का निर्माण भी किया था.

संजय सूरी ने न केवल अभिनय में अपना नाम कमाया है, बल्कि वह फिल्म निर्माण में भी सक्रिय हैं, जिससे उन्होंने नई और अर्थपूर्ण सिनेमाई परियोजनाओं को साकार करने में मदद की है. उनका काम भारतीय सिनेमा में गंभीर और संवेदनशील विषयों को उठाने वाले अभिनेताओं और निर्माताओं की एक नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है.

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राजनीतिज्ञ चौधरी देवी लाल

चौधरी देवी लाल, एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जो हरियाणा राज्य से आते थे और भारतीय किसानों और ग्रामीण समुदाय के प्रमुख नेता माने जाते थे. उन्हें ‘ताऊ’ के नाम से भी जाना जाता है, जो हरियाणवी में ‘बड़े भाई’ को दर्शाता है. चौधरी देवी लाल का जन्म 25 सितंबर, 1914 को हुआ था और उनका निधन 6 अप्रैल, 2001 को हुआ था.

वे दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री (1977-1979 और 1987-1989) के रूप में सेवा की और भारतीय उप-प्रधानमंत्री भी रहे. चौधरी देवी लाल ने भारतीय राजनीति में ग्रामीण और किसान हितों की आवाज़ उठाई और उनके लिए कई महत्वपूर्ण नीतियां और कार्यक्रम लागू किए.

वे जनता दल और इससे पहले लोक दल के महत्वपूर्ण सदस्य थे और भारतीय राजनीति में उनका एक लंबा और प्रभावशाली कैरियर था. चौधरी देवी लाल की विरासत आज भी उनके पोते और परिवार के अन्य सदस्यों के माध्यम से हरियाणा और भारतीय राजनीति में जीवित है.

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