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व्यक्ति विशेष

भाग - 98.

माखन लाल चतुर्वेदी

माखनलाल चतुर्वेदी एक प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार, कवि, नाटककार, पत्रकार, और अध्यापक थे. जिनका जन्म 4 अप्रैल, 1889 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बाबई गाँव में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा के बाद घर पर ही अंग्रेजी, संस्कृत, बांग्ला, गुजराती आदि भाषाओं का अध्ययन किया। उन्होंने मात्र 16 वर्ष की आयु में शिक्षक के रूप में काम करना शुरू किया.

माखनलाल चतुर्वेदी ने हिंदी साहित्य में अपनी गहरी छाप छोड़ी. उनकी कविताएँ अक्सर देशभक्ति, प्रकृति की सुंदरता, और मानवीय भावनाओं की गहराई को उजागर करती हैं. उनकी रचनाओं में एक विशेष ओज और संवेदनशीलता है, जो पाठकों को उनके दिल की गहराइयों तक ले जाती है.

उनकी सबसे प्रसिद्ध कविता “पुष्प की अभिलाषा” है, जिसमें एक फूल अपनी इच्छा व्यक्त करता है कि उसे माली द्वारा नहीं बल्कि देश के लिए बलिदान होने वाले वीरों की छाती पर सजाया जाए. इस कविता में फूल के माध्यम से माखनलाल ने बलिदान और देशप्रेम की गहरी भावनाओं को व्यक्त किया है.

उनकी रचनाएँ आज भी हमें प्रेरणा देती हैं और उनकी काव्यात्मक शैली और भावनाओं की गहराई के लिए सराही जाती हैं. माखनलाल की अन्य प्रमुख कृतियों में ‘हिमकिरीटिनी’, ‘हिमतरंगिणी’, ‘युगचरण’, ‘समर्पण’ आदि शामिल हैं, जो हिंदी साहित्य में उनके योगदान को दर्शाती हैं. माखनलाल चतुर्वेदी ने स्वतंत्रता आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई और वे असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन में प्रमुखता से शामिल हुए.

माखनलाल चतुर्वेदी की कविताएँ और उनका जीवन हमें न केवल कला के प्रति उनके समर्पण की कहानी बताते हैं, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति की भी, जिसने अपने देश के लिए गहरा प्रेम महसूस किया और उसे अपनी रचनाओं में व्यक्त किया.

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राजनीतिज्ञ नृपेन चक्रबर्ती

नृपेन चक्रबर्ती जो 4 अप्रैल 1905 को विक्रमपुर, बंगाल प्रेसीडेन्सी (अब बांग्लादेश) में जन्मे थे, त्रिपुरा के प्रमुख कम्युनिस्ट राजनीतिज्ञ और पांचवें मुख्यमंत्री थे. वह 5 जनवरी 1978 से 5 फरवरी 1988 तक दो बार त्रिपुरा के मुख्यमंत्री रहे.

उन्हें भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन का पितृ पुरुष कहा जाता है​ (Bharat Discovery)​. उनके निधन की तारीख 25 दिसंबर 2004 थी, और वह कोलकाता में निधन हो गया था. चक्रबर्ती ने अपनी शिक्षा ढाका विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी और उन्होंने अपने जीवन को लेखन, पत्रकारिता, और राजनीति को समर्पित कर दिया था. वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सक्रिय सदस्य भी थे.​

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बेगम ऐज़ाज़ रसूल

बेगम ऐज़ाज़ रसूल भारत की संविधान सभा में एकमात्र मुस्लिम महिला सदस्य थीं.4 अप्रैल, 1908 को पंजाब के मलेरकोटला के राजसी परिवार में जन्मी वह छोटी उम्र से ही अपने प्रगतिशील विचारों और राजनीति में सक्रिय भागीदारी के लिए जानी जाती थीं. उनकी राजनीतिक यात्रा अवध के तालुकदार नवाब ऐज़ाज़ रसूल से शादी करने के बाद शुरू हुई, जिसने राजनीतिक क्षेत्र (भारत में नारीवाद) में उनकी भागीदारी को और मजबूत किया.

उनके महत्वपूर्ण राजनीतिक कैरियर 1930 के दशक में शुरू हुआ और 1935 के भारत सरकार अधिनियम के बाद, वह मुस्लिम लीग में शामिल हो गईं, जिससे चुनावी राजनीति में उनका औपचारिक प्रवेश हुआ.

1937 के चुनावों में, वह यू.पी विधान सभा के लिए चुनी गईं. यह सीट 1952 तक उनके पास रही, स्वतंत्रता-पूर्व भारत के दौरान गैर-आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र से चुनी गई कुछ महिलाओं में से एक बन गई. विशेष रूप से, उन्होंने अपनी नेतृत्व क्षमताओं का प्रदर्शन करते हुए विपक्ष के नेता (1950-52) और परिषद के उपाध्यक्ष (1937- 40) सहित कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया.

संविधान सभा में बेगम ऐज़ाज़ रसूल ने मुस्लिम लीग के सदस्य के रूप में संयुक्त प्रांत का प्रतिनिधित्व किया. बहस के दौरान उनका हस्तक्षेप महत्वपूर्ण था, खासकर राष्ट्रीय भाषा, राष्ट्रमंडल के साथ भारत का जुड़ाव, आरक्षण, संपत्ति अधिकार और अल्पसंख्यक अधिकार (भारत का संविधान) जैसे विषयों पर। अल्पसंख्यक समुदायों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों का उनका विरोध और जमींदारी प्रथा को खत्म करने की उनकी वकालत ने एकजुट और न्यायसंगत भारत (भारत में नारीवाद) के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को रेखांकित किया.

स्वतंत्रता के बाद, उनकी राजनीतिक यात्रा राज्यसभा (1952-56) और बाद में उत्तर प्रदेश विधान सभा (1969-89) के लिए उनके चुनाव के साथ जारी रही. आरक्षण पर उनके बदलते विचार, विशेष रूप से विधान सभाओं और सेवाओं में मुसलमानों के संबंध में, बदलते राजनीतिक परिदृश्य (भारत का संविधान) में मुसलमानों के लिए शैक्षिक और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार के लिए एक व्यावहारिक दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला.

भारत के संवैधानिक और राजनीतिक परिदृश्य में बेगम ऐज़ाज़ रसूल के योगदान को 2000 में पद्म भूषण पुरस्कार से मान्यता दी गई थी. उनकी आत्मकथा, “फ्रॉम पर्दा टू पार्लियामेंट”, एक मुस्लिम महिला के रूप में भारतीय राजनीति के जटिल क्षेत्र में उनके जीवन के बारे में गहन जानकारी प्रदान करती है.

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अभिनेत्री परवीन बॉबी

परवीन बॉबी भारतीय सिनेमा की एक अभिनेत्री थीं. जिन्होंने 1970 – 80 के दशक में अपने अभिनय से हिंदी फिल्म उद्योग में खास पहचान बनाई. उनका जन्म 4 अप्रैल 1949 को हुआ था और उनका निधन 20 जनवरी 2005 को हो गया था. परवीन बॉबी ने कई यादगार फिल्मों में काम किया, जैसे कि ‘दीवार’, ‘नमक हलाल’, ‘अमर अकबर एंथोनी’, और ‘काला पत्थर’. उनके अभिनय की खासियत उनकी स्वाभाविकता और आकर्षण थी, जिसने दर्शकों के दिलों में विशेष स्थान बनाया.

परवीन बॉबी को उनके समय की सबसे स्टाइलिश और आकर्षक अभिनेत्रियों में गिना जाता था. वह अपने जीवनकाल में विभिन्न चर्चाओं में भी रहीं, जिसमें उनके व्यक्तिगत जीवन और मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दे शामिल थे. उनका निधन एकांत में हुआ था, और उनकी मृत्यु के कुछ दिनों बाद ही उनके शरीर की खोज की गई थी. परवीन बॉबी के जीवन और कैरियर पर विभिन्न डॉक्यूमेंट्रीज और फिल्में बनी हैं, जिन्होंने उनके योगदान और जीवन की जटिलताओं को उजागर किया है.

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अभिनेत्री पल्लवी जोशी

पल्लवी जोशी भारतीय सिनेमा और टेलीविजन उद्योग की एक बहुत ही प्रतिभाशाली और सम्मानित अभिनेत्री हैं. वह विशेष रूप से 1980 – 90 के दशक में अपने विविध किरदारों और प्रदर्शनों के लिए प्रसिद्ध हैं. पल्लवी जोशी ने बचपन में ही अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत कर दी थी और उन्होंने नाटक, फिल्मों और टेलीविजन धारावाहिकों में अपनी अद्भुत प्रतिभा का प्रदर्शन किया.

उन्होंने नाटकीय और सीरियस भूमिकाओं से लेकर हल्की-फुल्की और कॉमिक भूमिकाओं तक, हर तरह के किरदार निभाए हैं. पल्लवी जोशी ने कई पुरस्कार जीते हैं और उन्हें उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया है.

पल्लवी जोशी ने कई लोकप्रिय फिल्मों और टेलीविजन शोज में काम किया है, जैसे कि “वो छोकरी”, “मृत्युदंड”, “अंधा युग”, और “द वर्डिक्ट – स्टेट वर्सेस नानावती”. वह टेलीविजन पर “आरंभ” और “भारत एक खोज” जैसे शैक्षिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी नज़र आई हैं.

पल्लवी जोशी का योगदान न केवल उनके अभिनय क्षेत्र तक सीमित है, बल्कि वह सामाजिक मुद्दों पर भी सक्रिय रही हैं. वह शिक्षा, महिला सशक्तिकरण और सांस्कृतिक विकास जैसे विषयों पर अपनी आवाज उठाती रही हैं.

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अभिनेत्री एवं फैशन मॉडल लीसा रे

लीसा रे एक भारतीय-कनाडाई अभिनेत्री और मॉडल हैं, जिन्होंने फिल्म, टेलीविजन और मॉडलिंग इंडस्ट्री में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है. उनका जन्म 4 अप्रैल 1972 को टोरंटो, कनाडा में हुआ था. लीसा ने अपने कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग से की और बाद में अभिनय की दुनिया में कदम रखा. वह अपने आकर्षक लुक और विविध भूमिकाओं के लिए जानी जाती हैं.

लीसा रे की प्रमुख फिल्मों में “कसूर”, “वाटर”, “बॉलीवुड/हॉलीवुड”, और “इकबालिया” शामिल हैं. “वाटर” फिल्म के लिए उनके अभिनय को विशेष रूप से सराहा गया था, जिसे दीपा मेहता ने निर्देशित किया था. इस फिल्म में उन्होंने एक युवा विधवा की भूमिका निभाई, जिसकी कहानी 1930 के भारत में सेट है.

लीसा रे ने टेलीविजन पर भी कई उल्लेखनीय भूमिकाएं निभाई हैं, जिसमें “ब्लड टाइस”, “टॉप शेफ कनाडा” और “एंड द वर्ल्ड मीट्स नो एंड” जैसे शो शामिल हैं. वह एक सफल मॉडल भी रही हैं और उन्होंने विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मैगज़ीन कवरों पर अपनी उपस्थिति दर्ज की है.

लीसा रे का जीवन सिर्फ उनके कैरियर तक सीमित नहीं है. वह मल्टीपल मायलोमा, एक प्रकार के कैंसर से जूझ चुकी हैं और उसके बाद से वह इस बीमारी के खिलाफ जागरूकता फैलाने और शोध के लिए धन जुटाने में सक्रिय रही हैं. उन्होंने अपनी जीवन यात्रा और इस चुनौती से उबरने के अनुभव को साझा करते हुए सार्वजनिक रूप से बोला है, जिससे उन्होंने कई लोगों को प्रेरित किया है.

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अभिनेत्री  सिमरन

सिमरन भारतीय सिनेमा की एक प्रमुख अभिनेत्री हैं. जिन्होंने मुख्य रूप से तमिल और तेलुगु फिल्म उद्योग में काम किया है, हालांकि उन्होंने हिंदी, मलयालम, और कन्नड़ फिल्मों में भी अभिनय किया है. उनका असली नाम रिशिभाला नवल है, लेकिन वह अपने स्टेज नाम सिमरन से ज्यादा प्रसिद्ध हैं.

सिमरन का जन्म 4 अप्रैल 1976 को मुंबई में हुआ था, और उन्होंने 1990 के दशक के मध्य में अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत की. उन्हें अपने शानदार अभिनय, नृत्य कौशल, और आकर्षक स्क्रीन प्रेजेंस के लिए जाना जाता है. सिमरन ने अपने कैरियर में कई हिट फिल्में दी हैं और उन्हें कई पुरस्कारों से नवाजा गया है.

सिमरन की प्रमुख फिल्मों में “वाली”, “कन्नाथिल मुथमिट्टल”, “वासेगारा”, “प्रियमानवले”, और “थिरुपाच्ची” शामिल हैं. उनके अभिनय ने न केवल दर्शकों का दिल जीता, बल्कि समीक्षकों से भी सराहना प्राप्त की. सिमरन ने विभिन्न शैलियों की फिल्मों में काम किया है, जिसमें रोमांस, एक्शन, ड्रामा, और कॉमेडी शामिल हैं.

उनकी विविधता और लचीलापन ने उन्हें दक्षिण भारतीय सिनेमा की सबसे प्रतिष्ठित और पसंदीदा अभिनेत्रियों में से एक बना दिया है. सिमरन ने अपने कैरियर के उत्तरार्ध में टेलीविजन पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज की है, जिसमें वह विभिन्न रियलिटी शोज और टॉक शोज में दिखाई दी हैं. उनकी प्रतिभा, करिश्मा, और अभिनय कौशल ने उन्हें समय के साथ एक लंबी और सफल करियर बनाने में मदद की है.

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स्वतंत्रता सेनानी हंसा मेहता

हंसा मेहता एक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, समाज सेवा, और महिला अधिकारों की प्रमुख अग्रदूत थीं. उनका जन्म 3 जुलाई 1897 को गुजरात में हुआ था. हंसा मेहता ने अपनी जीवनी में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं, जिनमें से शिक्षाविद, साहित्यकार, और राजनेता के रूप में उनका योगदान सबसे अधिक उल्लेखनीय है.

उन्होंने भारतीय संविधान सभा में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया था और वह संविधान सभा की सदस्य थीं. हंसा मेहता विशेष रूप से उस प्रस्तावना के लिए जानी जाती हैं जिसमें उन्होंने “भारत के लोग” के संबोधन को “भारत के पुरुष और महिलाएं” में बदलने का सुझाव दिया था, जिससे भारतीय संविधान में लैंगिक समानता को मजबूती मिली.

हंसा मेहता ने संयुक्त राष्ट्र में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया और वे उन महत्वपूर्ण व्यक्तियों में से एक थीं, जिन्होंने वैश्विक मंच पर महिला अधिकारों की वकालत की. विशेष रूप से, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार घोषणापत्र में “सभी पुरुषों को जन्मजात स्वतंत्रता और समानता” वाले वाक्यांश को “सभी मानव जन्मजात स्वतंत्र और समान” में बदलने के लिए संघर्ष किया, जो कि इस दस्तावेज के प्रस्तावना में आता है.

हंसा मेहता की विरासत भारतीय महिलाओं के लिए शिक्षा, समानता, और स्वतंत्रता के क्षेत्र में उनके अथक प्रयासों में निहित है. उनके जीवन और कार्य ने भारत और विश्व समुदाय में महिलाओं के अधिकारों और स्थिति को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

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अभिनेत्री शशिकला

शशिकला जवालकर जिन्हें शशिकला के नाम से भी जाना जाता है. वो भारतीय सिनेमा की एक प्रतिष्ठित अभिनेत्री थीं. उनका जन्म 4 अगस्त 1932 को सोलापुर, महाराष्ट्र में हुआ था, और उनका निधन 4 अप्रैल 2021 को हुआ. शशिकला ने अपने कैरियर में 100 से अधिक फिल्मों में काम किया और विशेष रूप से सहायक भूमिकाओं और खलनायिका के किरदारों के लिए जानी जाती थीं.

उन्होंने 1940 – 50 के दशक में अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत की और जल्दी ही हिंदी सिनेमा की एक प्रमुख अभिनेत्री के रूप में उभरीं. शशिकला ने अपनी अभिनय प्रतिभा से विविध भूमिकाएं निभाईं और उन्हें विशेष रूप से “आरती” (1962), “गुमराह” (1963), “छोटी बहन” (1959), और “वक्त” (1965) जैसी फिल्मों में उनके प्रदर्शन के लिए सराहा गया. उन्होंने न केवल नकारात्मक किरदारों में, बल्कि विभिन्न अन्य चरित्र भूमिकाओं में भी अपनी विशिष्ट पहचान बनाई.

शशिकला को उनके अभिनय के लिए कई पुरस्कारों से नवाजा गया, जिसमें दो फिल्मफेयर पुरस्कार भी शामिल हैं. उनकी अद्भुत अभिनय क्षमता और फिल्म उद्योग में उनके योगदान के लिए उन्हें पद्म श्री, भारत सरकार द्वारा चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान से भी सम्मानित किया गया था.

शशिकला ने अपनी विशिष्ट अभिनय शैली और विविधता से हिंदी सिनेमा में एक अमिट छाप छोड़ी. उनकी मृत्यु के साथ, भारतीय सिनेमा ने अपनी एक महान कलाकार को खो दिया, लेकिन उनके द्वारा निभाई गई भूमिकाएं और उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा.

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