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व्यक्ति विशेष

भाग - 94.

गुरु अंगद देव

सिख धर्म में गुरु अंगद देव जी को दूसरे गुरु के रूप में बहुत आदर और सम्मान के साथ याद किया जाता है. उनका जन्म 31 मार्च, 1504 को माता सब्रई और पिता फेरू मल के घर में हुआ था, उनका मूल नाम लहिणा था. वे गुरु नानक देव जी, सिख धर्म के संस्थापक, के सबसे करीबी शिष्य और उत्तराधिकारी थे. गुरु नानक देव जी ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी चुनने से पहले उनकी भक्ति, सेवा और समर्पण की परीक्षा ली थी.

गुरु अंगद देव जी ने सिख धर्म के विकास और प्रचार में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए. उन्होंने गुरमुखी लिपि का विकास किया, जो कि पंजाबी भाषा के लिखित रूप के लिए आज भी प्रयोग की जाती है. इस लिपि का उपयोग करके उन्होंने सिख धर्म की शिक्षाओं को और अधिक सुलभ बनाया.

गुरु अंगद देव जी ने शारीरिक कल्याण और खेलों को भी बढ़ावा दिया. उन्होंने ‘मल अखाड़ा’ (कुश्ती के अखाड़े) की स्थापना की, जहां लोग शारीरिक फिटनेस के लिए व्यायाम और कुश्ती कर सकते थे.

गुरु अंगद देव जी का देहांत 29 मार्च, 1552 को हुआ. उनके जीवन और शिक्षाओं को आज भी सिख समुदाय में गहरी भक्ति और श्रद्धा के साथ याद किया जाता है. उन्होंने सिख धर्म की मूल भावना को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और उनकी शिक्षाएं आज भी सिखों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं.

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भारत की प्रथम महिला डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी

आनंदी गोपाल जोशी जिनका जन्म 31 मार्च 1865 को हुआ था. भारत की प्रथम महिला डॉक्टर मानी जाती हैं. वे 19वीं सदी में एक ऐसे समय में डॉक्टर बनीं जब महिलाओं का उच्च शिक्षा प्राप्त करना या पेशेवर कैरियर का पीछा करना बहुत ही दुर्लभ था.

आनंदी का विवाह कम उम्र में गोपालराव जोशी से हो गया था. जो खुद एक प्रगतिशील विचारक थे और उन्होंने आनंदी को उच्च शिक्षा की दिशा में प्रोत्साहित किया. उन्होंने अमेरिका के Woman’s Medical College of Pennsylvania से 1886 में चिकित्सा की डिग्री प्राप्त की, जिससे वह भारत की पहली महिला डॉक्टर बनीं.

आनंदी ने अपने शोध प्रबंध में “ओब्सटेट्रिकल ऑपरेशंस” पर काम किया, और उनके काम और समर्पण ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय मान्यता दिलाई. उनकी डिग्री प्राप्ति के बाद, वह भारत लौट आईं और उन्होंने यहाँ महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य सुधार पर काम करने का संकल्प लिया.

दुर्भाग्यवश, उनका स्वास्थ्य खराब रहा और वह लंबे समय तक अपने कैरियर को आगे नहीं बढ़ा पाईं. आनंदी गोपाल जोशी का देहांत 26 फरवरी, 1887 को मात्र 22 वर्ष की आयु में हो गया. उनकी छोटी लेकिन प्रेरणादायक जीवनी आज भी कई लोगों को प्रेरित करती है, और भारतीय महिलाओं के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में कैरियर के द्वार खोलने में उनका योगदान अमूल्य है.

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राजनीतिज्ञ शीला दीक्षित

शीला दीक्षित भारतीय राजनीति की एक प्रमुख हस्ती थीं. जिन्होंने दिल्ली की मुख्यमंत्री के रूप में तीन कार्यकाल (1998 – 2013) तक सेवा की. उनका जन्म 31 मार्च 1938 को कपूरथला, पंजाब में हुआ था और उनका निधन 20 जुलाई 2019 को हुआ. वे भारतीय राजनीति में कांग्रेस पार्टी की एक प्रमुख नेता थीं और उन्होंने दिल्ली में विभिन्न विकासात्मक और सुधारात्मक परियोजनाओं का नेतृत्व किया.

शीला दीक्षित का कार्यकाल उल्लेखनीय था, जिसमें उन्होंने दिल्ली के आधारभूत ढांचे, परिवहन, विद्युत आपूर्ति और पानी की व्यवस्था में महत्वपूर्ण सुधार किए. उनके कार्यकाल में दिल्ली मेट्रो का विकास एक प्रमुख उपलब्धि थी, जिसने शहर की जनता के लिए परिवहन को सुगम बनाया. उन्होंने दिल्ली को एक हरित और स्वच्छ शहर बनाने के लिए भी प्रयास किए और वायु प्रदूषण को कम करने के लिए कई पहल की.

शीला दीक्षित ने शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में भी सुधार किया, जिससे दिल्ली के निवासियों की जीवन गुणवत्ता में बढ़ोतरी हुई. उन्होंने महिला सुरक्षा और अधिकारों पर भी जोर दिया.

शीला दीक्षित के नेतृत्व में दिल्ली ने 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स की मेजबानी की, जिसके लिए शहर में व्यापक पैमाने पर आधारभूत संरचना और सौंदर्यीकरण के कार्य किए गए. उनके नेतृत्व और प्रशासनिक कौशल की वजह से वे एक विशेष रूप से सम्मानित राजनीतिज्ञ बनीं.

उनकी मृत्यु के बाद, उन्हें दिल्ली और भारतीय राजनीति में उनके योगदान के लिए व्यापक रूप से शोक व्यक्त किया गया. उनका जीवन और कार्य आज भी कई लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है.

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राजनीतिज्ञ मीरा कुमार

मीरा कुमार एक भारतीय राजनीतिज्ञ हैं. जिन्होंने भारतीय लोकसभा की पहली महिला अध्यक्ष के रूप में इतिहास रचा. वह 2009 -14 तक इस पद पर रहीं. वे भारतीय राजनीति में कांग्रेस पार्टी की एक प्रमुख नेता हैं. मीरा कुमार का जन्म 31 मार्च 1945 को हुआ था, और वे बाबू जगजीवन राम, भारत के पूर्व उप प्रधानमंत्री, और इंद्राणी देवी की बेटी हैं.

मीरा कुमार ने अपनी शिक्षा दिल्ली और पुणे में पूरी की. वे भारतीय विदेश सेवा में भी शामिल हुईं और स्पेन, यूनाइटेड किंगडम तथा मॉरीशस में भारतीय मिशनों में कार्य किया. बाद में, उन्होंने राजनीति में अपना कैरियर बनाने का निर्णय लिया और 1985 में पहली बार लोकसभा सांसद के रूप में चुनी गईं.

मीरा कुमार ने विभिन्न मंत्रालयों में केंद्रीय मंत्री के रूप में कार्य किया, जिसमें सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण, पर्यावरण और वन, और जल संसाधन शामिल हैं. उनके अध्यक्षता काल में लोकसभा ने कई महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित किया और उन्होंने सदन की कार्यवाही को अधिक समावेशी और लोकतांत्रिक बनाने की कोशिश की.

मीरा कुमार ने सामाजिक न्याय, महिला अधिकारों और दलित सशक्तिकरण पर विशेष ध्यान दिया. उनका मानना है कि राजनीति में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी से समाज में सकारात्मक परिवर्तन आ सकता है.

मीरा कुमार अपने विनम्र स्वभाव और मजबूत नेतृत्व क्षमता के लिए जानी जाती हैं. उनका जीवन और कार्य भारतीय राजनीति में महिलाओं के योगदान को दर्शाता है और अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है.

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राजनीतिज्ञ  पी. जे. कुरियन

प्रोफेसर पी. जे. कुरियन एक वरिष्ठ भारतीय राजनीतिज्ञ हैं. जिन्होंने विशेष रूप से केरल की राजनीति और भारतीय संसद में लंबे समय तक योगदान दिया. उन्होंने भारतीय नेशनल कांग्रेस के टिकट पर कई बार चुनाव लड़ा और विभिन्न पदों पर कार्य किया. कुरियन केरल की राजनीति में एक प्रमुख चेहरा रहे हैं और उन्होंने राज्य और केंद्रीय सरकार में विभिन्न मंत्री पदों पर कार्य किया है.

पी. जे. कुरियन भारतीय राज्यसभा के उपसभापति के रूप में भी सेवा कर चुके हैं. इस पद पर उनका कार्यकाल विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा, जिसमें उन्होंने संसदीय बहसों और चर्चाओं का संचालन किया और उच्च सदन की कार्यवाही में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

उनके राजनीतिक कैरियर में, कुरियन ने शिक्षा, कृषि, और ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्रों में विशेष रुचि दिखाई और इन क्षेत्रों में कई पहलों और नीतियों को आगे बढ़ाने में सक्रिय रहे. उन्होंने केरल के सामाजिक-आर्थिक विकास में सुधार के लिए विभिन्न प्रोजेक्ट्स और प्रोग्राम्स की अगुवाई की.

पी. जे. कुरियन की विनम्रता, संवेदनशीलता और उनके काम में पारदर्शिता ने उन्हें राजनीतिक स्पेक्ट्रम के आर-पार सम्मान दिलाया। उन्हें उनके योगदान के लिए व्यापक रूप से पहचाना जाता है, और उनकी सेवाएँ भारतीय लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती हैं.

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स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी कृष्ण वर्मा

श्यामजी कृष्ण वर्मा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख व्यक्तित्व थे. उनका जन्म 4 अक्टूबर 1857 को मांडवी, कच्छ, गुजरात में हुआ था. वे एक उत्कृष्ट विद्वान, एक दूरदर्शी राजनीतिक नेता, एक सक्रिय पत्रकार और भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के एक महान समर्थक थे.

श्यामजी कृष्ण वर्मा ने ब्रिटेन में रहकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को बढ़ावा दिया उन्होंने 1905 में लंदन में ‘इंडिया हाउस’ की स्थापना की, जो भारतीय नेशनलिस्ट गतिविधियों का एक केंद्र बन गया. इंडिया हाउस भारतीय युवाओं के लिए एक आवासीय क्लब और एक क्रांतिकारी केंद्र दोनों के रूप में काम करता था. वहां रहने वाले युवा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए समर्पित हो गए.

वर्मा ने ‘द इंडियन सोशियोलॉजिस्ट’ नामक एक मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी शुरू किया, जो ब्रिटिश सरकार के खिलाफ तीव्र और कटु आलोचना के लिए प्रसिद्ध थी. उनका उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध को उत्तेजित करना और भारतीयों में स्वतंत्रता की भावना को जगाना था.

उनके कार्यों के परिणामस्वरूप, ब्रिटिश सरकार ने उन्हें एक गंभीर खतरा माना और उनके खिलाफ कई कदम उठाए. हालांकि, श्यामजी कृष्ण वर्मा ने अपनी मृत्यु तक स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपने समर्थन को जारी रखा. उनकी मृत्यु 30 मार्च 1930 को जिनेवा, स्विट्जरलैंड में हुई.

भारत सरकार ने उनकी याद में विभिन्न सम्मान और स्मारक स्थापित किए हैं. उनके योगदान को आज भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायकों में से एक के रूप में याद किया जाता है.

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अभिनेत्री मीना कुमारी

मीना कुमारी जिनका असली नाम महजबीं बानो था. भारतीय सिनेमा की एक प्रतिष्ठित अभिनेत्री थीं. उनका जन्म 1 अगस्त 1933 को हुआ था और उनका निधन 31 मार्च 1972 को हुआ. मीना कुमारी को भारतीय सिनेमा की “ट्रेजेडी क्वीन” के रूप में जाना जाता है. उन्होंने अपने कैरियर में कई यादगार फिल्मों और पात्रों को जीवंत किया.

उनका फिल्मी कैरियर 1939 में बच्चे की भूमिका से शुरू हुआ और उन्होंने लगभग तीन दशकों तक भारतीय सिनेमा पर राज किया. मीना कुमारी ने “साहिब बीबी और गुलाम”, “पाकीजा”, “मेरे अपने”, “दिल एक मंदिर”, “आरती” जैसी कई उल्लेखनीय फिल्मों में अभिनय किया. उनकी फिल्म “पाकीजा” विशेष रूप से प्रसिद्ध है, जो उनके निधन के कुछ समय बाद रिलीज हुई थी और इसे उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि माना जाता है.

मीना कुमारी ने अपने समय के सर्वश्रेष्ठ निर्देशकों और सह-कलाकारों के साथ काम किया. उनकी अभिनय प्रतिभा ने उन्हें चार बार फिल्मफेयर पुरस्कार और एक बार भारत के प्रतिष्ठित राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

उनकी जीवन कहानी उतनी ही दिलचस्प थी जितनी कि उनके फिल्मी कैरियर. उनकी व्यक्तिगत जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए, जिनमें उनकी शादी और उसके बाद के जीवन में आई समस्याएँ शामिल हैं. उनकी मृत्यु केवल 38 वर्ष की आयु में हुई, जिसे उनके जीवन के असमय अंत के रूप में देखा जाता है.

मीना कुमारी ने न केवल अभिनय के क्षेत्र में बल्कि कविता लिखने में भी अपनी प्रतिभा दिखाई. उनकी कविताएं उनकी भावनात्मक गहराई और व्यक्तिगत अनुभवों को दर्शाती हैं. उनके निधन के बाद, उनकी कविताओं का संग्रह प्रकाशित हुआ था, जो उनके प्रशंसकों के बीच बहुत लोकप्रिय है.

मीना कुमारी की विरासत भारतीय सिनेमा में अमर है, और उनकी फिल्में आज भी सिनेमा प्रेमियों द्वारा देखी और सराही जाती हैं.

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