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व्यक्ति विशेष

भाग - 82.

अभिनेत्री तनुश्री दत्ता

तनुश्री दत्ता एक पूर्व भारतीय अभिनेत्री, मॉडल और सौंदर्य प्रतियोगिता की खिताब धारक हैं. उनका जन्म 19 मार्च 1984 को जमशेदपुर, झारखंड, भारत में हुआ था.

2004 में फेमिना मिस इंडिया यूनिवर्स का खिताब जीतने के बाद उन्हें प्रसिद्धि मिली और उन्होंने इक्वाडोर में मिस यूनिवर्स 2004 प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व किया और शीर्ष 10 में रहीं. दत्ता 2005 और 2010 के बीच विभिन्न हिंदी फिल्मों में उल्लेखनीय भूमिकाओं के साथ दिखाई दी हैं. जैसे “आशिक बनाया आपने,” “भागम भाग,” और “ढोल”.

अपने फ़िल्मी कैरियर से पहले, दत्ता ने मॉडलिंग में अपना कैरियर बनाया और उन्हें एक संगीत वीडियो में दिखाया गया. उन्होंने 2005 में फिल्म “आशिक बनाया आपने” से अभिनय की शुरुआत की. अभिनेत्री को हिंदी, तेलुगु और तमिल फिल्मों सहित कई भाषाओं में उनके काम के लिए जाना जाता है. अपनी सफलता के बावजूद, उन्होंने कम सफल फिल्मों की एक श्रृंखला के बाद 2010 में अभिनय से विश्राम ले लिया.

तनुश्री दत्ता भारत के #MeToo आंदोलन में एक महत्वपूर्ण हस्ती बन गईं जब उन्होंने 2008 में फिल्म “हॉर्न ओके प्लीज” की शूटिंग के दौरान अपने सह-कलाकार नाना पाटेकर पर अनुचित व्यवहार का आरोप लगाया. 2018 में उनके आरोपों के कारण कानूनी और सार्वजनिक लड़ाई हुई. दत्ता ने पाटेकर और अन्य लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई. उनके प्रयासों के बावजूद, पाटेकर को 2019 में मुंबई पुलिस द्वारा यौन उत्पीड़न के आरोपों से मुक्त कर दिया गया. इस मामले ने भारतीय फिल्म उद्योग में यौन उत्पीड़न के मुद्दे पर महत्वपूर्ण ध्यान आकर्षित किया.

तनुश्री के पास बैचलर ऑफ कॉमर्स की डिग्री (ड्रॉपआउट) है और उन्होंने नृत्य और गायन को अपने शौक में शामिल किया है. वह अविवाहित हैं और विवादों में शामिल रही हैं, खासकर भारत में #MeToo आंदोलन से संबंधित. तनुश्री की एक बहन इशिता दत्ता हैं, जो एक अभिनेत्री हैं.

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लोक गायिका माधुरी बड़थ्वाल

लोक गायिका माधुरी बड़थ्वाल, उत्तराखंड की प्रसिद्ध लोक संगीतकार हैं, जिन्हें अपने गायन और संगीत रचनाओं के लिए बहुत पहचाना जाता है. वह 19 मार्च 1953 को पौड़ी गढ़वाल में जन्मीं थीं. उनके पिता चंद्रमणि उनियाल एक स्वतंत्रता सेनानी थे और संगीत में अच्छी समझ रखते थे. माधुरी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लैंसडाउन से प्राप्त की और संगीत प्रभाकर की डिग्री हासिल की. बाद में, उन्होंने इलाहबाद संगीत समिति और आगरा यूनिवर्सिटी से संगीत में उच्च शिक्षा प्राप्त की और रुहेलखंड यूनिवर्सिटी से हिंदी में परास्नातक की डिग्री हासिल की. उन्होंने गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर गढ़वाल से पीएचडी भी की.

उन्हें रूढ़िवादी विचारधारा का विरोधी माना जाता है, क्योंकि उन्होंने लड़कियों के संगीत में आगे बढ़ने के लिए बहुत प्रयास किए. वह आकाशवाणी नजीबाबाद में पहली महिला संगीतकार बनीं और उन्होंने ‘धरोहर’ कार्यक्रम के माध्यम से लोक संगीत और लोक गाथाओं का प्रसार किया. उनके पति, डॉ. मनुराज शर्मा बड़थ्वाल, ने भी उनके इस कार्य में पूरा साथ दिया. उन्होंने महिलाओं के लिए मंगल टीमें बनाईं और ढोल वादन में महिलाओं को प्रशिक्षित किया, जिससे पुरुषों के वर्चस्व को चुनौती दी गई.

माधुरी बड़थ्वाल ने अपने कैरियर में लोक संगीत के संरक्षण और प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उन्होंने लोक गीतों और संगीत में 50 वर्षों के शोध का अनुभव प्राप्त किया और उत्तराखंड के अनेक जाने माने कलाकारों के साथ काम किया. उन्होंने उत्तराखंड के दुर्लभ वाद्य यंत्रों को दस्तावेज स्वरूप में सहेजने का महत्वपूर्ण कार्य किया और भारतीय शास्त्रीय संगीत के साथ लोक संगीत को मिलाकर एक नया रूप दिया. उनका काम उत्तराखंड के लोक संगीत और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण रहा है.

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गीतकार योगेश

योगेश गौर, जिन्हें आम तौर पर योगेश के नाम से जाना जाता है, भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध गीतकार थे. उन्होंने 1960 और 1970 के दशक में अपने गीतों के माध्यम से हिंदी सिनेमा में खास पहचान बनाई.

योगेश ने अनेक हिट गीत लिखे जो आज भी लोकप्रिय हैं, जैसे कि “कहीं दूर जब दिन ढल जाए”, “रिमझिम गिरे सावन”, “ज़िन्दगी कैसी है पहेली”, और “रजनीगंधा फूल तुम्हारे”. उनके गीतों में जीवन के विविध पहलुओं को बड़ी ही सूक्ष्मता और गहराई से छुआ गया है, और वे समय के साथ और भी अधिक प्रासंगिक होते जा रहे हैं.

योगेश का योगदान हिंदी फिल्म संगीत में अमूल्य माना जाता है.

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छत्रपती शिवाजी महाराज की पत्नी काशीबाई

छत्रपती शिवाजी महाराज की पत्नी काशीबाई थीं. वह एक मराठा राजकुमारी थीं और उन्होंने शिवाजी महाराज से विवाह किया था.

काशीबाई मराठा साम्राज्य की एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व थीं और उन्होंने शिवाजी महाराज के शासनकाल में उनका बहुत समर्थन किया था. उन्होंने अपने पति और मराठा साम्राज्य के लिए विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक योगदान दिए थे.

काशीबाई को उनके धर्मनिष्ठा, करुणा और शासन के प्रति उनकी समझदारी के लिए जाना जाता था. वह एक सम्मानित और आदर्श रानी के रूप में मराठा इतिहास में याद की जाती हैं.

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पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी

पंडित गुरुदत्त विद्यार्थी, जिनका जन्म 26 अप्रैल 1864 को मुल्तान में हुआ था, एक प्रतिष्ठित विद्वान और आर्य समाज के एक प्रमुख सदस्य थे. उनकी शिक्षा और बौद्धिक योगदान ने उन्हें अपने समय के एक उल्लेखनीय व्यक्ति के रूप में स्थापित किया. वे विशेष रूप से हिन्दी, उर्दू, अरबी और फारसी में दक्ष थे और पंजाब विश्वविद्यालय से विज्ञान में मास्टर्स की डिग्री हासिल की थी, जहाँ उन्होंने प्रथम स्थान प्राप्त किया था.

उन्होंने 1884 में आर्य समाज साइंस इंस्टीट्यूशन की स्थापना की और द रिजेनरेटर ऑफ आर्यावर्त के संपादक के रूप में काम किया. उनके लेखन में उन्होंने उपनिषदों का अनुवाद किया और वैदिक संस्कृति और परंपरा के समर्थन में कई ग्रंथ लिखे. उनकी उल्लेखनीय कृतियों में ‘द टर्मिनॉलॉजी ऑफ द वेदास’ और ‘ईश-मुण्डक व माण्डूक्य उपनिषदों की व्याख्या’ शामिल हैं.

विद्यार्थी ने वेदों की व्याख्या करने के लिए तीन प्रमुख विधियों का विवरण दिया: मिथकीय, पुरातात्विक और समकालीन. उन्होंने विशेष रूप से वेदों को केवल पौराणिक कथाओं के रूप में देखने वाली मिथकीय विधि की आलोचना की, यह बताते हुए कि वेद वास्तव में दार्शनिक ग्रंथ हैं जो अंतिम सत्यों की व्याख्या करते हैं, न कि केवल पौराणिक कथाओं की पुनर्कथन में हैं.

दुर्भाग्य से, उनका जीवन छोटा था और वे केवल 25 वर्ष की आयु में 1890 में क्षय रोग के कारण चल बसे. उनकी मृत्यु के बाद, पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़ ने उनके सम्मान में अपने रसायन विभाग के भवन का नाम ‘पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी हाल’ रखा. उनका काम और योगदान आज भी उन्हें एक उल्लेखनीय व्यक्तित्व के रूप में याद रखता है, विशेष रूप से वैदिक साहित्य और आर्य समाज के क्षेत्र में.

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स्वतंत्रता सेनानी एम. ए. अय्यंगार

मुदुरै आंदवान अय्यंगार  एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ और भारतीय संविधान सभा के सदस्य थे. उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपना योगदान दिया और भारत की स्वतंत्रता के बाद, वे लोकसभा के सदस्य भी बने. उनकी राजनीतिक और सामाजिक योगदानों को भारतीय इतिहास में सराहा गया है.

वे विशेष रूप से तमिलनाडु के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य में अधिक सक्रिय थे और उन्होंने वहाँ के लोगों के जीवन में कई सुधार लाने का प्रयास किया. उनका जीवन और कार्य आज भी भारतीय राजनीतिक इतिहास में महत्वपूर्ण माना जाता है.

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राजनीतिज्ञ जे. बी. कृपलानी

आचार्य जे. बी. कृपलानी, जिनका पूरा नाम जीवत्राम भगवानदास कृपलानी है, एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ और स्वतंत्रता सेनानी थे. उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया और भारतीय नेशनल कांग्रेस के एक अग्रणी सदस्य थे. आचार्य कृपलानी 1947 में भारतीय नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष बने और उन्होंने इस पद पर रहते हुए भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में भाग लिया.

कृपलानी एक अनुभवी शिक्षक भी थे और उन्होंने युवाओं को राष्ट्रीय आदर्शों और मूल्यों की शिक्षा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे गांधीजी के निकट सहयोगी थे और उनके विचारों और आदर्शों के प्रति गहरा समर्पण रखते थे. आचार्य कृपलानी ने भारतीय राजनीति में नैतिकता और आदर्शवाद की बात की और उन्होंने अपने जीवन के माध्यम से इन मूल्यों को जीवित रखा.

स्वतंत्रता के बाद, वे भारतीय राजनीति में सक्रिय रहे और विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर उनकी आवाज सुनी गई. उनका जीवन और कार्य भारतीय इतिहास में एक प्रेरणादायक उदाहरण के रूप में माना जाता है.

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अभिनेता नवीन निश्चल

नवीन निश्चल एक भारतीय फ़िल्म अभिनेता व चरित्र अभिनेता थे. उनका जन्म 11 अपैल 1946 को लाहौर, ब्रिटिश भारत में हुआ था.

 फ़िल्म एंड टेलिविज़न इंस्टीट्यूट पुणे से गोल्ड मेडल प्राप्त करले वाले पहले छात्र रहे थे नवीन निश्चल. उन्होंने 1970 के दशक से लेकर 1990 के दशक तक कई हिट फिल्मों में अभिनय किया और अपनी विशेष शैली के लिए प्रसिद्ध थे.

उनकी प्रमुख फिल्मों में ‘सावन भादो’, ‘विक्टोरिया नंबर 203’, ‘राजू बन गया जेंटलमैन’, और ‘खंजर’ शामिल हैं​.

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साहित्यकार केदारनाथ सिंह

केदारनाथ सिंह एक प्रमुख हिंदी साहित्यकार थे, जो अपनी कविताओं और निबंधों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध थे. वह 1934 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में जन्मे थे. उनकी शिक्षा इलाहाबाद और बनारस में हुई. केदारनाथ सिंह की कविताएँ अपनी सरलता, प्राकृतिक सौंदर्य और ग्रामीण जीवन के चित्रण के लिए जानी जाती हैं.

उन्होंने कई कविता संग्रह प्रकाशित किए, जिनमें से ‘अभी बिल्कुल अभी’, ‘जमीन पक रही है’, ‘बाघ’ और ‘अकाल में सारस’ प्रमुख हैं. केदारनाथ सिंह ने हिंदी साहित्य को अपनी विशेष शैली से समृद्ध किया. उनकी कविताएँ प्रकृति, प्रेम, समाजिक चिंतन और व्यक्तिगत अनुभवों को स्पर्श करती हैं.

केदारनाथ सिंह को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले. उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया, जो हिंदी साहित्य में उनकी महत्वपूर्ण उपलब्धियों को मान्यता देता है. उनकी कविताएं और लेखन आज भी हिंदी साहित्य में प्रासंगिक और प्रेरणादायक हैं.

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