कुश्ती प्रशिक्षक गुरु हनुमान
गुरु हनुमान भारतीय कुश्ती के प्रसिद्ध प्रशिक्षक थे. उनका जन्म 15 मार्च 1901 में हुआ था और उन्होंने अपना जीवन भारतीय कुश्ती को समर्पित कर दिया. वह एक प्रसिद्ध कुश्ती गुरु के रूप में जाने जाते थे और उन्होंने भारतीय कुश्ती को एक नई दिशा दी.
गुरु हनुमान ने दिल्ली में अपना अखाड़ा स्थापित किया था, जो बाद में भारतीय कुश्ती के प्रमुख केंद्रों में से एक बन गया. उनके अखाड़े से निकले कुश्ती के कई प्रसिद्ध पहलवान, जिन्होंने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन किया.
गुरु हनुमान की शिक्षा और प्रशिक्षण पद्धतियाँ उनके समय के अनुसार काफी प्रगतिशील थीं. वह पहलवानों को न केवल शारीरिक शक्ति पर बल देते थे, बल्कि मानसिक दृढ़ता, तकनीकी कौशल और आत्म-अनुशासन पर भी जोर देते थे. उनकी इसी समग्र शिक्षा पद्धति के कारण उनके शिष्य उच्च स्तरीय पहलवान बन पाए.
गुरु हनुमान को उनकी उपलब्धियों और योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान से नवाजा गया था. वे भारतीय कुश्ती के एक आइकन के रूप में सम्मानित किए गए थे. उनका देहांत 1999 में हुआ, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है. भारतीय कुश्ती के क्षेत्र में उनका योगदान अमूल्य है.
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राजनीतिज्ञ कांशीराम
कांशीराम एक प्रभावशाली भारतीय राजनीतिज्ञ और सामाजिक सुधारक थे. उनका जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के रोपड़ जिले में हुआ था. कांशीराम को भारतीय राजनीति में दलित और पिछड़े वर्गों के अधिकारों के लिए उनके संघर्ष और प्रयासों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है.
उन्होंने अपने जीवन के प्रारंभिक दौर में वैज्ञानिक और तकनीकी संस्थानों में काम किया लेकिन बाद में समाजिक न्याय की दिशा में अपना जीवन समर्पित कर दिया. कांशीराम ने दलित समाज को राजनीतिक शक्ति और सम्मान दिलाने के लिए कई संगठनों की स्थापना की. उन्होंने 1984 में बहुजन समाज पार्टी (BSP) की स्थापना की, जो भारत में दलित और पिछड़े वर्गों के अधिकारों के लिए लड़ती है.
कांशीराम का मानना था कि राजनीतिक शक्ति ही सामाजिक परिवर्तन की कुंजी है. उनके नेतृत्व में, BSP ने उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में महत्वपूर्ण राजनीतिक सफलता हासिल की. उनकी रणनीतियों और विचारों ने भारतीय राजनीति में एक नई धारा की शुरुआत की और उन्हें ‘बहुजन समाज’ का महान नेता माना जाता है.
कांशीराम के निधन से पहले, उन्होंने मायावती को अपनी राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में चुना. उनकी मृत्यु 9 अक्टूबर 2006 को हुई, लेकिन उनके विचार और उनकी विरासत आज भी भारतीय राजनीति और समाज में प्रासंगिक हैं.
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राजनीतिज्ञ साहिब सिंह वर्मा
साहिब सिंह वर्मा एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जो विशेष रूप से दिल्ली की राजनीति में सक्रिय थे. उनका जन्म 15 मार्च 1943 को हुआ था. वह भारतीय जनता पार्टी के सदस्य थे और दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में भी कार्य किया था.
साहिब सिंह वर्मा का राजनीतिक कैरियर काफी उल्लेखनीय था. वह शिक्षाविद् के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत करने के बाद राजनीति में आए. उन्होंने दिल्ली विधानसभा में कई बार सेवा की और विभिन्न मंत्रालयों में मंत्री के रूप में भी कार्य किया। 1993 में उन्हें दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया गया, और उन्होंने 1996 तक इस पद पर कार्य किया.
साहिब सिंह वर्मा अपनी विनम्र शुरुआत और जमीन से जुड़ी शैली के लिए जाने जाते थे. वह विशेष रूप से ग्रामीण और पिछड़े वर्गों के बीच प्रसिद्ध थे. उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान शिक्षा, स्वास्थ्य और इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण पहल की.
साहिब सिंह वर्मा का देहांत 30 जून 2007 को हुआ. उनका निधन भारतीय राजनीति और विशेष रूप से दिल्ली के राजनीतिक परिदृश्य में एक बड़ी क्षति माना गया. उनकी विरासत और उनके द्वारा किए गए कार्य आज भी कई लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं.
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साहित्यकार रमेशराज तेवरीकार
रमेशराज तेवरीकार एक प्रतिष्ठित हिंदी साहित्यकार हैं, जो विशेष रूप से अपनी तेवरी शैली के काव्य के लिए जाने जाते हैं. तेवरी एक काव्य विधा है जिसमें क्रोध, विरोध, असंतोष, अन्याय और गरीबों के प्रति सहानुभूति जैसे भाव शामिल होते हैं. उन्होंने ‘तेवरीपक्ष’ नामक एक लघु पत्रिका का भी संपादन और प्रकाशन किया है. तेवरी को उन्होंने एक पूर्ण काव्य-विधा के रूप में स्थापित किया है, जिसे कई छंदों में प्रस्तुत किया जा सकता है जैसे गीत, गज़ल, दोहा, हाइकु, मुक्तक, चतुष्पदी, कुण्डलिया, घनाक्षरी आदि.
रमेशराज ने ‘विरोधरस’ नामक एक नए रस की भी निष्पत्ति की है, जिसे वे तेवरी के लिए उपयुक्त मानते हैं. उनका यह कदम तेवरी शैली को एक विशिष्ट पहचान देता है. उनकी प्रकाशित कृतियों में ‘अभी जु़बां कटी नहीं’, ‘कबीर जि़न्दा है’, ‘इतिहास घायल है’, ‘एक प्रहारः लगातार’ (सभी तेवरी-संग्रह) जैसी रचनाएँ शामिल हैं. इसके अलावा, उन्होंने ‘तेवरी में रस-समस्या और समाधान’, ‘विचार और रस’ (विवेचनात्मक निबंध), ‘विरोध-रस’ (शोध-प्रबंध) और ‘काव्य की आत्मा और आत्मीयकरण’ (शोध-प्रबंध) जैसे विश्लेषणात्मक और शोध-प्रबंध भी लिखे हैं.
वे ‘साहित्यश्री’, ‘उ.प्र. गौरव’, ‘तेवरी-तापस’, ‘शिखरश्री’ जैसे अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किए गए हैं. रमेशराज ने बाल साहित्य में भी योगदान दिया है और ‘अभिनव बालमन’ पत्रिका के लिए कार्यशालाओं में सन्दर्भदाता के रूप में भाग लिया है. वे बाल रचनाकारों को कविता की बारीकियां सिखाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, और उनका मार्गदर्शन बाल साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है. रमेशराज तेवरीकार की साहित्यिक उपलब्धियाँ और उनके द्वारा किए गए साहित्यिक प्रयोग हिंदी साहित्य जगत में उन्हें एक विशिष्ट स्थान प्रदान करते हैं. उनके कार्य और विचार आज भी साहित्यिक चर्चाओं और अध्ययनों में प्रमुखता से शामिल होते हैं.
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अभिनेता अभय देयोल
अभय देयोल एक भारतीय फिल्म अभिनेता हैं, जिनका जन्म 15 मार्च 1976 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. वे प्रसिद्ध निर्माता और निर्देशक अजीत सिंह देओल के पुत्र हैं और उनके चाचा धर्मेंद्र हैं. अभिनेता सनी देओल, बॉबी देओल और अभिनेत्री ईशा देओल उनके चचेरे भाई-बहन हैं.
अभय ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के जमनाबाई नरसी स्कूल से पूरी की थी. बाद में, उन्होंने न्यूयॉर्क के सिटी कॉलेज में अध्ययन करने का निर्णय लिया, लेकिन अंत में उन्होंने अभिनय की दिशा में अपना कैरियर बनाने का फैसला किया और थिएटर तथा अभिनय के कोर्स किए.
उन्होंने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत 2005 में “सोचा न था” फिल्म से की थी. इसके बाद वह “आहिस्ता-आहिस्ता”, “हनीमून ट्रेवल्स प्राइवेट लिमिटेड”, “ओये लक्की. लक्की ओये!”, “देव डी”, और “जिंदगी न मिलेगी दोबारा” जैसी कई सफल फिल्मों में नजर आए. विशेष रूप से, “देव डी” और “ओये लक्की! लक्की ओये!” फिल्मों में उनकी भूमिकाओं की आलोचकों द्वारा बहुत प्रशंसा की गई थी.
अभय देयोल अपने अनूठे चयन और अभिनय के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने हमेशा मुख्यधारा से हटकर फिल्में चुनीं और अपनी विशेष पहचान बबनाई है. उनकी शैली और विकल्पों ने उन्हें बॉलीवुड में एक विशिष्ट स्थान दिया है. अभय देयोल की फिल्में आमतौर पर समाजिक मुद्दों पर आधारित होती हैं या वे ऐसे विषयों को छूती हैं जो आम बॉलीवुड सिनेमा में कम ही देखने को मिलते हैं.
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सूफ़ी संत हज़रत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती
हज़रत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती, जिन्हें ख्वाजा गरीब नवाज़ के नाम से भी जाना जाता है, भारत में सूफ़ी इस्लाम के सबसे प्रमुख संतों में से एक हैं. वे चिश्ती सूफ़ी सम्प्रदाय के संस्थापक हैं, जो इस्लामी धर्म के भीतर एक प्रमुख सूफ़ी आदेश है.
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म 1141 ई. में ईरान के सिस्तान में हुआ था. उन्होंने अपना जीवन अध्यात्मिक खोज और भक्ति में समर्पित कर दिया था. वे अपने आध्यात्मिक मार्गदर्शन, करुणा और दया के लिए जाने जाते थे.
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने अपने जीवन के बाद के वर्षों में भारत के अजमेर में अपना आधार बनाया. वहां उन्होंने धर्म, सामाजिक समानता और भक्ति पर अपने संदेश का प्रचार किया. उनकी शिक्षाओं और सूफ़ी प्रथाओं को भारत में विशेष रूप से अधिक मान्यता मिली और उनका सम्मान व्यापक रूप से किया गया.
उनकी मृत्यु के बाद, अजमेर में उनकी दरगाह एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बन गई, जो आज भी हज़ारों लोगों द्वारा हर साल दर्शनीय है. ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को उनकी गहरी आध्यात्मिकता और मानवता के प्रति उनकी सेवा के लिए याद किया जाता है. उनकी शिक्षाएँ और आदर्श आज भी विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक समुदायों में प्रासंगिक और प्रेरणादायक हैं.
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इतिहासकार राधा कृष्ण चौधरी
राधा कृष्ण चौधरी एक भारतीय इतिहासकार, विचारक, और साहित्यकार थे. उनका जन्म 15 फ़रवरी, 1921 को हुआ था और उनका निधन 15 मार्च, 1985 को हुआ था. वे बिहार के इतिहास और पुरातत्व पर कई महत्वपूर्ण शोध कार्य करने के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने मैथिली साहित्य में भी बहुत योगदान दिया था।.उन्होंने बिहार के गणेश दत्त कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में काम किया और उन्हें एक प्रख्यात शिक्षाविद के रूप में भी पहचाना जाता था. उनकी पसंद की भाषाएँ हिंदी और अंग्रेज़ी थीं, लेकिन उन्होंने अपने साहित्यिक कार्यों के लिए मैथिली का भी अत्यधिक प्रयोग किया.
उनकी प्रमुख रचनाओं में “Political History of Japan (1868–1947)”, “Maithili Sahityik Nibandhavali”, “Studies in Ancient Indian Law”, “Bihar – The Homeland of Buddhism”, और “History of Bihar” शामिल हैं. उन्होंने मिथिला के इतिहास पर भी कई महत्वपूर्ण शोध कार्य किए थे.
राधा कृष्ण चौधरी का योगदान भारतीय इतिहास और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण है, खासकर बिहार और मिथिला के संदर्भ में. उनके कार्य ने इन क्षेत्रों के इतिहास और साहित्य की समझ में बहुत योगदान दिया है.
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साहित्यकार राही मासूम रज़ा
राही मासूम रज़ा एक हिंदी और उर्दू साहित्यकार थे, जिन्होंने साहित्य के विभिन्न आयामों में अनुपम योगदान दिया. उनका जन्म 1 सितंबर, 1927 को गंगौली गाँव, गाजीपुर जिला, उत्तर प्रदेश में हुआ था और उनका निधन 15 मार्च, 1992 को हुआ था.
राही ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाजीपुर में पूरी की और पोलियो के कारण कुछ समय के लिए उनकी पढ़ाई बाधित हुई. बाद में उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से एम.ए. की डिग्री प्राप्त की और पीएच.डी. की. उन्होंने अलीगढ़ में उर्दू विभाग में अध्यापन भी किया.
राही मासूम रज़ा ने हिंदी सिनेमा और दूरदर्शन के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने ‘महाभारत’ धारावाहिक की पटकथा और संवाद लिखे, जो बेहद लोकप्रिय हुए और उन्हें बड़ी पहचान दिलाई. उन्हें ‘मैं तुलसी तेरे आँगन की’ फिल्म के लिए फिल्म फेयर सर्वश्रेष्ठ संवाद पुरस्कार भी मिला. उनके लेखन की विविधता में उपन्यास, कविता, निबंध और जीवनी शामिल हैं। उनके प्रसिद्ध उपन्यासों में ‘आधा गाँव’, ‘टोपी शुक्ला’, और ‘नीम का पेड़’ शामिल हैं.
राही मासूम रज़ा ने अपने लेखन में साम्यवादी दृष्टिकोण और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रीय विचारधारारे जताया. उन्हें भारतीय साहित्य और फिल्म जगत में उनके योगदान के लिए ‘पद्म श्री’ और ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया गया था.
उनकी रचनाओं में उन्होंने सामाजिक विषयों को उठाया और विभिन्न सामाजिक वर्गों के जीवन को चित्रित किया, जो आज भी अत्यंत प्रासंगिक हैं. उनके साहित्यिक कार्य ने उन्हें हिंदी और उर्दू साहित्य में एक विशिष्ट स्थान दिया है, और उनकी रचनाएँ विभिन्न शैक्षणिक सिलेबस में शामिल की गई हैं.
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महिला विमान चालक सरला ठकराल
सरला ठकराल भारत की पहली महिला विमान चालक थीं. उनका जन्म 8 अगस्त 1914 को नई दिल्ली में हुआ था और उनका निधन 15 मार्च 2008 को हुआ. उन्होंने 21 वर्ष की उम्र में, वर्ष 1936 में, विमानन लाइसेंस प्राप्त किया और जिप्सी मोठ विमान को अकेले उड़ाया. इस समय वे पहले से ही एक चार साल की बेटी की माँ थीं.
सरला ने अपनी शादी के बाद विमान उड़ाने की प्रेरणा अपने पति पी. डी. शर्मा से प्राप्त की, जो एक प्रशिक्षित पायलट थे. विवाह के कुछ समय बाद, उनके पति ने देखा कि सरला को विमान और उड़ान के बारे में जानने में गहरी रुचि थी, इसलिए उन्होंने उनकी ट्रेनिंग का इंतजाम किया. जोधपुर फ्लाइंग क्लब में उन्होंने अपनी ट्रेनिंग पूरी की और लाहौर हवाई अड्डे से उन्होंने अपनी पहली उड़ान भरी. इस प्रकार वे भारत की पहली महिला विमान चालक बनीं.
पति की मृत्यु के बाद और द्वितीय विश्व युद्ध के आरंभ के कारण, उन्होंने विमानन क्षेत्र से अपना कैरियर बदल लिया. दिल्ली में उन्होंने पेंटिंग शुरू की और कपड़े तथा गहने डिजाइन करने लगीं. वे करीब 20 साल तक अपनी डिज़ाइन की हुई चीजों को विभिन्न कुटीर उद्योगों को देती रहीं. सरला ठकराल की कहानी आज भी अनेक महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है.
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गीतकार वर्मा मलिक
वर्मा मलिक, जिनका पूरा नाम बरकत राय मलिक था, एक भारतीय गीतकार थे. उनका जन्म 13 अप्रैल, 1925 को फिरोजपुर, ब्रिटिश भारत में हुआ था. वे बचपन से ही काव्य रचना करते थे और आजादी की लड़ाई के दौरान उन्होंने अंग्रेज़ों के खिलाफ गीत लिखे जो कांग्रेस के जलसों में गाए जाते थे. इसके कारण उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था लेकिन उन्हें जल्द ही रिहा कर दिया गया था.
विभाजन के बाद वे दिल्ली चले गए और फिर मुंबई में बस गए. उन्होंने मुंबई में संगीत निर्देशक हंसराज बहल के साथ काम करना शुरू किया और पंजाबी फिल्म ‘लच्छी’ में गीत लिखने का मौका मिला. वर्मा मलिक ने बहुत सारी पंजाबी फिल्मों के लिए गीत लिखे और कुछ हिंदी फिल्मों में भी अपना योगदान दिया. उन्होंने हिंदी में भी अपनी काव्य प्रतिभा को बरकरार रखा और कई प्रसिद्ध गीत लिखे. उन्होंने फिल्म ‘दिल और मोहब्बत’ के लिए ओ. पी. नैय्यर के संगीत निर्देशन में गीत लिखे जो काफी लोकप्रिय हुए.
मनोज कुमार ने उन्हें पहली बार फिल्म ‘यादगार’ में काम दिया जिसके बाद उन्होंने कई हिंदी फिल्मों में काम किया. वर्मा मलिक ने अपने कैरियर में देशभक्ति गीतों सहित कई विधाओं में गीत लिखे. उन्होंने अपने योगदान के लिए वर्ष 1971- 73 में फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ गीतकार पुरस्कार भी जीते. उनकी मृत्यु 15 मार्च 2009 को जूहू, मुंबई में हुई. उनके गीतों की खासियत उनकी सरलता और भावनात्मक गहराई थी जो श्रोताओं के दिलों को छू जाती थी.
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उद्यमी कलाम अंजी रेड्डी
डॉ. कलाम अंजी रेड्डी एक प्रमुख भारतीय उद्यमी थे, जिन्होंने दवा उद्योग में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने अपना कैरियर इंडियन ड्रग्स एंड फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड में शुरू किया और बाद में यूनीलॉइड्स लिमिटेड और स्टैंडर्ड ऑर्गेनिक्स लिमिटेड में महत्वपूर्ण भूमिकाओं में काम किया। 1984 में, उन्होंने रेड्डीज लेबोरेटरीज की स्थापना की, जो भारतीय औषधि उद्योग में क्रांति लाई और देश को दवाओं के मामले में आत्मनिर्भर बनाया। उनकी कंपनी भारत की पहली औषधि खोज कंपनी बनी और 2001 में, यह न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होने वाली पहली गैर-जापानी, एशियाई औषधि कंपनी बनी.
डॉ. रेड्डी ने सामाजिक और मानवीय विकास के लिए डॉ. रेड्डीज फाउंडेशन की स्थापना की और वे कई सम्मानित पुरस्कार और सम्मान प्राप्त कर चुके हैं, जैसे कि पद्म श्री पुरस्कार, सर पीसी रे अवार्ड, और बिजनेसमैन ऑफ द ईयर. उनके विशाल कैरियर में उन्होंने भारतीय औषधि उद्योग को एक नई दिशा प्रदान की और अपने नवाचारों के माध्यम से इसे वैश्विक मंच पर ले गये.
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अभिनेता इम्तियाज खान
इम्तियाज खान, जिनका निधन 78 वर्ष की उम्र में मुंबई में हुआ, एक प्रसिद्ध बॉलीवुड अभिनेता थे. वे मशहूर अभिनेता अमजद खान के भाई थे और उन्होंने टीवी अभिनेत्री कृतिका देसाई से शादी की थी.
इम्तियाज खान ने फिल्मों जैसे ‘यादों की बारात’, ‘प्यारा दोस्त’ और ‘नूरजहाँ’ में यादगार भूमिकाएं निभाईं. उनका जन्म 15 अक्टूबर 1942 को पेशावर में हुआ था और उन्होंने मनोरंजन जगत में प्रवेश करने के बाद अपना नाम जकरियन खान से इम्तियाज खान में बदल लिया था.
उनकी मृत्यु का कारण अभी तक पता नहीं चल पाया है. इम्तियाज अपने पीछे अपनी पत्नी कृतिका और बेटी आयशा खान को छोड़ गए.